रूबी सरकार
सीहोर जिले से 20 किलोमीटर दूर शिकारपुर गांव का भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 11 हेक्टेयर तथा यहां की कुल आबादी लगभग एक हज़ार, 800 हैं। डेढ़ दशक पहले तक गांव वालों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कृषि उत्पादकता पर निर्भर थी, लेकिन यहां की कृषि एवं किसान पूरी तरह मानसूनी बारिश पर निर्भर है और बारिश पिछले कई सालों से औसतन 30 से 35 दिनों में कुछ ही घण्टों के लिए बरस कर समाप्त हो जाती है । जिसके चलते यहां की ज़मीन बंजर होती चली गई और किसान रोजगार के लिए पलायन करने लगे।
लगभग 7-8 साल पहले अपनी जरूरतों के लिए कर्ज लेने वाला 60 वर्षीय किसान बाबूलाल को समय पर कर्ज न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या करनी पड़ी थी। गांव वाले बताते हैं, कि बाबूलाल साहूकार की धमकी से तंग आ चुके थे। एक दिन अचानक उसने बिजली का करंट लगाकर आत्महत्या कर ली। बाबूलाल के पर ढाई लाख रुपये का कर्ज था। उसकी 3 बेटियां थी, जिनकी शादी हो चुकी है। घर पर अब केवल उसकी बीवी अकेली रह गई है।
गांव का किसान कमलेश वर्मा ने बताया, बाबूलाल के अलावा 40 वर्षीय चोरन सिंह ने कर्ज में डूबे होने के कारण अपनी मानसिक संतुलन खो बैठा है। उसने व्यवसाय के लिए लगभग 20 लाख रुपये का कर्ज साहूकारों और बैंक से लिया था,लेकिन साहूकारों के दबाव में उसे अपनी 8 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन बेचनी पड़ी । तभी से वह धीरे-धीरे मानसिक संतुलन खोने लगा था । आज वह पूरी तरह पागल हो चुका है। चोरन का कोई औलाद नहीं है। घर पर उसकी बीवी है, जो स्वयं मजदूरी कर पति के इलाज के साथ-साथ उसका भरण-पोषण भी कर रही है। कमलेश ने कहा, इस तरह की घटनाओं ने गांव के किसानों को झकझोर दिया और वे बंजर ज़मीन को खेती योग्य बनाने की कवायत करने लगे। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। इसके लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत थी । गांव में पैसा किसी किसान के पास नहीं था।
इस बीच ग्राम स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने तथा ग्रामीणों की आजीविका में स्थायित्व लाने की दिशा में मध्यप्रदेश एवं भारत सरकार द्वारा कार्यक्रम का क्रियान्वयन श्ुारू हुआ, तो गांव में चौपाल लगाकर पी.आई.ए. आई.टी.सी. एवं आई.टी.सी. की सहयोगी संस्था ÓÓनेशनल सेन्टर फ ॉर ह्यूमन सेटलमेन्ट्स एण्ड एनवायरनमेन्ट, भोपालÓÓ यहां के लोगों से कच्चा तालाब बनाने और उसमें 20 फीसदी अंशदान गांव वालों को देने के लिए सहमति मांगी। संस्थाओं के वैज्ञानिक प्रबंधन व तकनीकी मार्गदर्शन में ग्राम स्तर पर ''जलग्रहण समितिÓÓ बनाई गई। हालांकि सभी किसानों ने अपना अंशदान देने पर सहमति व्यक्त नहीं की, लेकिन कमलेश वर्मा, फैजल खान, असिया फैजल, राकेश सोनवने, छीतू सिंह, प्रेम नारायण और बाबूलाल ने काम में अंशदान देने को राज़ी हो गये। इन लोगों को उम्मीद है, कि लगभग साढ़े 6 लाख की लागत से बनीं इस जलाशय से गांव में हरियाली आयेगी।
कमलेश के पास गांव में 5 एकड़ ज़मीन है, जिसमें वह बरसात के मौसम में सोयाबीन की फसल ही ले पाता है, हालांकि उसे पानी की कमी के कारण कम उत्पादन से ही संतोष करना पड़ता है। कमलेश बताते हैं, कि कच्चे जलाशय से बंजर ज़मीन को सींचने में मदद मिलेगी और इस बरसात में हमलोग गेहूं और चना भी बोयेंगे। उसने बताया, यह सूखे की स्थिति पिछले 10 सालों से बनी है। इससे पहले खेतों के आस-पास कुआं हुआ करते थे। साथ में किसान ट्यूबबेल के पानी से भी खेती करते थे, लेकिन अब पानी इतना नीचे चला गया, कि बामुशिकल पेयजल ही उन ट्यूबबेलों से मिल पा रहा है। अब पानी 300 फीट से अधिक नीचे चला गया है, इसलिए भविष्य में पेयजल के लिए भी गांव वाले तरसेंगे। प्रेम नारायण के पास साढ़े 6 एकड़ और उनके भाई बाबूलाल के पास भी साढ़े 6 एकड़ ज़मीन है। सिंचाई के लिए पानी न मिलने से ज़मीन बेकार पड़ी है और आजीविका के लिए दोनों भाईयों को दूसरे रोजगार करने पड़ते हैं। 8 एकड़ ज़मीन के मालिक राकेश सोनवने को अपनी आजीविका के लिए शहर जाकर नौकरी करनी पड़ रही है , वहीं 4 एकड़ ज़मीन के मालिक छोटू सिंह को आजीविका के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है। असिया फैजल और फैजल खान के पास क्रमश: 8 और 5 एकड़ ज़मीन है। लेकिन बंजर होने से खेती छोड़कर व्यवसाय के लिए शहर जाना पड़ा।
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जन-निजी भागीदारी से गांव-गांव में बनाया तालाब
विकासखण्ड-सीहोर सूखाग्रस्त एवं संसाधन विहीन क्षेत्र है। यहां के अधिकांश गांव समतल हैं तथा भू-क्षरण की मात्रा अत्यधिक हैं। जिले का विकासखण्ड ''सीहोरÓÓ विन्ध्यन क्षेत्र, मालवा के पठार तथा नर्मदा घाटी में स्थित है। यह एक उपजाऊ काली मिट्टी का मैदान है। यहां की मिट्टी काली है तथा ऊंचे-नीचे खेत असमानता लिए हुए है। वर्षा के दौरान खेतों से अत्यधिक मात्रा में मृदा-क्षरण होता है तथा पानी रोकने का समुचित प्रबंध नहीं होने के कारण मिट्टी तेजी से पानी के साथ बहते हुए नालों व नदियों में चली जाती है। जलस्तर में कमी के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर निरंतर पड़ रहे दबाव के कारण खाद्यान, सामाजिक, आर्थिक आजीविका और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रति गंभीर चुनौतियां सामने आ रही हैं। इसीलिए ग्रामीण समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए विकासखण्ड-सीहोर के चयनित 9 माइक्रोवाटरशेडों के 11 ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों विशेष रूप से भूमि एवं जल के संरक्षण व संवर्धन के लिए एकीकृत जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम (आई.डब्ल्यू.एम.पी.-8) जन-निजी भागीदारी से चलाया जा रहा है, इसमें मध्यप्रदेश एवं भारत सरकार के अलावा आईटीसी सुनहरा कल शामिल हैं।
किसानों के लिए यह एक चुनौती है, कि वे बहते पानी को नियंत्रित कर भूमि कटाव को रोकें तथा पानी को उसी स्थान पर उपयोग में लाये। इससे पूर्व बारवाखेड़ी गांव में एक पक्का जलाशय कोलांस नदी के बेक वाटर के रास्ते जन-निजी भागीदारी से बनाया गया है, जिससे लगभग 14 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई हो रही है। यह बहुत सफल परियोजना रहा ।
(राजेश कुमार वर्मा)
टीम लीडर,
आई.डब्ल्यू.एम.पी.
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