Apr 22, 2019 Pratham Prawakta Magazine Delhi
ग्रामीण महिलाओं को भी चाहिए सेनिटरी पैड वेंडिंग मशीन
रूबी सरकार
माहवारी को लेकर जागरुकता का अभाव है, जो स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं कारण बनता है। अक्सर इस विषय पर समाज में खुलकर बात नहीं की जाती। किशोरी बालिकाएं तो इस पर बोलने से झिझक होती हैं । खासतौर से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। यही वजह है, कि ग्रामीण इलाकों में अब तक सेनिटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर बहुत कम जागरुकता है। हालांकि इसके पीछे एक कारण सेनिटरी पैड की लागत भी है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हर महिला इसका खर्च नहीं उठा सकती।
माहवारी पर भ्रांतियां खत्म करने के उद्देश्य से स्वच्छता अभियान के तहत महात्मा गांधी सेवा आश्रम नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और वाटर एड के सहयोग से प्रदेश के कुछ चुनिंदा जिलों जैसे- अनूपपुर, उमरिया, शहडोल, सिवनी, छिंदवाड़ा और खण्डवा में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की किशोरियों के साथ माहवारी के साथ-साथ जल, और स्वच्छता जागरूकता अभियान चला रहा हैं । जिसके अंतर्गत किशोरियों को हाथ धोने से लेकर माहवारी में सेनिटरी पैड इस्तेमाल की भी जानकारी दिया जा रहा है।
अनूपपुर जिले का विकास खण्ड पुष्पराजगढ़ स्थित कस्तूरबा छात्रावास लखवारा की उत्प्रेरक किरण सिंह बताती है, कि बहुत मुश्किल से एक छात्रा ने अपनी बात साझा करते हुए बताया था, कि उसके घर पर मां , दीदी माहवारी में पुराने कपड़ों का इस्तेमाल पैड के रूप में करती हैं। यहां तक कि एक ही कपड़े का इस्तेमाल उन्हें बार-बार करना पड़ता है, जिसे वे घोकर अंधेरे कमरे में छिपाकर सूखाती हैं, ताकि उन कपड़ों पर किसी की नज़र न पड़े। किरण ने बताया, यही हाल अन्य बालिका छात्रावासोंं का है। इन छात्रावासों में अधिकतर अनुसूचित जाति व जनजाति की बालिकाएं हैं। किरण ने बताया, हमने लड़कियों को सेनिटरी पैड इस्तेमाल और उस कचरे के भण्डार से शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाने और उसके सुरक्षित निपटारे का प्रशिक्षण भी लड़कियों को दिया। क्योंकि छात्रावासों में भस्मीकरण (इंसीनरेटर) मशीन नहीं है, जिससे अपशिष्ट को जलाया जा सके और उसके बड़े भाग को राख व धूएं में बदला जा सके, जो पर्यावरण के लिए एक बड़ा संकट बनती है।
इसी विकासखण्ड में स्थित खिलजी रोड कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास की उत्प्रेरक दीपा श्रीवास्तव बताती हैं, कि गांव में 5वीं तक की पढ़ाई के बाद लड़कियां माहवारी के चलते आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पातीं। 13 वर्षीय निहारिका गुप्ता ने बताया, कि उसके साथ 5वीं में 20 लड़कियां थी, उनमें से मात्र 11 लड़कियों ने ही 6वीं में दाखिला लिया। दीपा ने बताया, शुरू में उसे लड़कियों का झिझक मिटाने में बहुत समय लगा। फिर एक तरकीब निकाली, कि खेल-खेल के ज़रिये लड़कियां अपनी बात पर्ची पर बिना नाम लिखे बतायें। इस तरह पर्ची पढ़कर हम समाधान बताने लगे। जिसकी जो समस्या थी, वे समझ जाती थी। इस तरह धीरे-धीरे वह खुलने लगी।
खण्डवा जिले के हरसूद विकास खण्ड के छनेरा के छात्रावास अधीक्षिका बताती है, कि छात्रावास में बालिकाएं पहले शौचालय का उपयोग नहीं करती थीं, न ही सफ ाई का ध्यान रखती थी। इसी तरह से सेनिटरी पैड को बाथरूम में ही डाल देती थी। हालांकि इस अभियान के बाद अब परिस्थितियां बदल गयी है, बालिकाओं में शौचालय उपयोग को लेकर समझ विकसित हुई है।
लेकिन कक्षा 8वीें की छात्रा ज्योति बताती है, कि घर के स्तर पर अभी भी समस्या है। जैसे- घर में मां या बड़ी बहन कपड़े का ही उपयोग करती हैं और कपड़ा भी धोने के बाद घर में अंधेरे में सुखाती हैं। हम यहां की जानकारी घर पर बताते हैं, तो वह सुनती नहीं हैं। छात्रावास में हमें पैड मुफ्त में मिल जाती है, परंतु गांव में कहां मिलेगी। रेलवे स्टेशन की तरह गांव के पंचायतों में भी सेनिटरी पैड वेंडिंग मशीन लगानी चाहिए, जहां से हमें 5 रुपये में पैड मिल जाये। वरना ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में सेनिटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर यूं ही बहुत कम जागरुकता है। ऊपर से इसकी लागत भी ज्यादा है, जिसे ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हर महिला इतना खर्च नहीं उठा सकती । इसलिए ग्रामीण महिलाएं हमेशा इन खतरों की जद में रहती हैं।
अभियान के समन्वयक अनिल गुप्ता ने बताया, कि जल और स्वच्छता के लिए बनाये गये मोड्यूल के 6 अध्यायों में सुरक्षित पेय जल का उपयोग व रख-रखाव, शौचालय का उपयोग, व्यक्तिगत स्वच्छता, हाथों की स्वच्छता, ठोस व तरल कचरा प्रबंधन तथा मल से मुख तक के संक्रमण मार्ग व बीमारियां की जानकारी दी जाती है। इसी तरह से माहवारी स्वच्छता प्रबंधन में व्यवहार परिवर्तन के लिए भी मोड्यूल बनाया गया था, जिसके 6 अध्यायों में माहवारी के सम्बन्ध में मिथक एवं भ्रांतियां, किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन, माहवारी का उचित प्रबंधन, माहवारी स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं पोषण, उपयोग में लायी गयी पैड या कपड़े का सुरक्षित निपटान (जिसमें गड्ढा खोदकर उसे जला देना शामिल है), विद्यालयों तथा छात्रावासों में माहवारी स्वच्छता संबंधी व्यवस्थाओं पर जागरूक किया जाना शामिल हैं।
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