पहचानी सोशल मीडिया की ताकत अब गांव में खुद उठा रहे मुद्दे
रूबी सरकारडिजिटल तकनीक का पिछले 3 दषकों में बहुत तेजी से विकास हुआ है, इसकी विषिष्टताएं महत्वपूर्ण हैं और व्यक्ति के जीवन पर गहरा असर डाल रही है। पारंपरिक मीडिया से हट कर यह तकनीक व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति की बेहतरीन स्वतंत्रता मिल रही है । इसके प्रभावी उपयोग से समाचार, सूचना और संचार के बहुआयामी और व्यापक अवसर प्राप्त हो रहे हैं।
गांव-गांव में लोग डिजिटल डेमोक्रेसी के इस मॉडल को समझने लगे हैं, जो तसल्ली देती है, िक इंटरनेट की इस ताकत को सकारात्मकता के साथ समझा जाए और इसका उपयोग डिजिटल डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए किया जाये।
गांव में बिजली, घर, सड़क, रोजगार, छात्रवृत्ति, खेती, चिकित्सा आदि के लिए समुदाय ऑनलाइन आवेदन और षिकायत दर्ज कराने लगे हैं। आदिवासी बाहुल झाबुआ जिले के कचरोटिया गांव के सुखराम भाभर डिजिटल पाठषाला लगाने के कारण काफी चर्चा में हैं। वे इस पाठषाला में यू-ट्यूब पर जैविक खेती करने के तरीकों से जुड़े वीडियो दिखाते और उन पर किसानों से बात करते हैं। उनकी क्लास में शामिल होने वाले किसानों को जैविक खेती के फायदे भी बताएं जाते हैं । सुखराम किसानों को कम खर्च में अच्छी पैदावार और ज्यादा मुनाफे का गणित समझाते हैं । लोगों की मदद करते रहने के कारण गांव के सभी लोग सुखराम का सम्मान करते हैं।
डिंडोरी के 64 वर्षीय नारायण को किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा था, उसने डिजिटल का उपयोग कर जानकारी हासिल की और वृद्धावस्था पेंषन के हकदार बने । इसी तरह झाबुआ जिले के पेटलावाद विकास खण्ड के जामली गांव के राधेष्याम वसुनिया बैंक की लेटलतीफी से तंग आकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में ऑनलाइन षिकायत दर्ज करवा दिया । राधेष्याम ने बताया, षिकायत दर्ज करने के अगले दिन उनके पास बैंक से कॉल आया, कि आप अपना एटीएम कार्ड ले जाएं । इतना ही नहीं, जब राधेष्याम बैंक पहुंचे तो मैनेजर ने कहा, कि आपको षिकायत करने के पहले एक बार मुझे बताना था ।
राधेष्याम ने बताया, डिजिटल तकनीक के जरिये लोक-सेवाओं के प्रदाय एवं पारदर्षिता पर नजर रखने में प्रभावी मदद मिल सकती है।इसके लिए गांव के लागेों का तकनीकी ज्ञान एवं कौषल बढ़ाना होगा, ताकि वे स्वयं अपनी आवष्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ जन समुदाय के लिए व्यापक विकास योजनाओं के बेहतर, पारदर्षी तथा जवाबदेह नियोजन, क्रियान्वयन एवं उनकी निगरानी की शासन व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी कर सकें।
मध्यप्रदेष के अलग-अलग गांव के किषोरों ने कहा, कि हमारे गांव में नाले पर पुल नहीं बना था, हमने सोशल मीडिया के माध्यम से इस समस्या को उठाया, इसका हमें अच्छा परिणाम मिला। किसी ने कहा, हमारे क्षेत्र में कचरे की समस्या थी, हमने ट्विटर और फेसबुक पर इस समस्या को लिखा, इसका नतीजा यह हुआ कि वहां नगर निगम ने कचरे का डब्बा रखवा दिया। मध्यप्रदेश के चार जिलों पन्ना, झाबुआ , खण्डवा और भोपाल के 147 ई-वालेंटियर्स ने डिजिटल डेमाक्रेसी परियोजना के अनुभव साझा करते हुए बताया, कि सोषल मीडिया पर बेहतर समझ बनाने के लिए इनलोगों ने विकास संवाद और उसकी सहयोग संस्थाओं द्वारा चलाने जा रहे डिजिटल प्रषिक्षण और कार्यषालाओं में प्रषिक्षण प्राप्त किया। प्रषिक्षण के दौरान ही वे जान पाये कि साइबर क्राइम और इसके कितने प्रकार हैं तथा इसकी षिकायत कहां की जा सकती है। इस तरह गांव-गांव में 3 हजार ई- वालेंटियर तैयार हो गये, जिन्होंने अपने-अपने गांव को डिजिटल डेमोक्रेसी से जोड़ा तथा अपने गांव को डिजिटल साक्षर बनाने का बेहतरीन प्रयास कर रहे हैं । जिससे शासकीय परियोजना पर गांव में बेहतर समझ विकसित हुई है।
षिक्षाविद् पुष्पेन्द्र पाल सिंह बताते है, कि यह बहुत सुखद है, कि जमीनी रूप से अब लोग डिजिटल की ताकत को पहचान रहे हैं और उसका उपयोग कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि अब ऐसे हजारों , लाखों ई-वालेंटियर्स तैयार हों, जो योजनाओं को जमीन तक पहुंचाएं । उसके लिए आवाज उठाएं।उन्होंने कहा, कि ग्रामीण क्षेत्र में सभी के हाथों में डिजिटल उपकरण आसानी से देखने को मिलते हैं, परंतु इन क्षेत्रों में रह रहे समुदाय आज भी इंटरनेट और उसका सुरक्षित उपयोग कर पाने में बहुत पिछड़े हुए हैं। यह सिर्फ दूर-दराज के आदिवासी या ग्रामीण क्षेत्र की बात नहीं है, बल्कि ष्षहरी क्षेत्रों में भी यही स्थिति देखी जाती है । शहरों में पलायन करके आये और झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले वंचित समुदाय के बीच यह स्थिति अधिक है । उन्हांेने कहा, कि जानकारी, पात्रता और सेवाएं हासिल कर सकने के लिए डिजिटल तकनीक और उसके टूल्स का सक्षम उपयोग कर सकने में समुदाय के लोगों की क्षमता और आत्मविष्वास विकसित करना शेष है। ई-वालेंटियरर्स और ई-दस्तक केंद्रों का सहायक ढांचा उपलब्ध कराना होगा। समुदाय को इंटरनेट के सुरक्षित एवं जिम्मेदार उपयोग की विधाओं से अवगत कराना होगा।
चार जिलों के उर्जावान किषोरों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, कि पहले स्वयं इंटरनेट का बेहतर और प्रभावी इस्तेमाल सीखा, अपने काम में लिया और अब सामुदायिक परिवर्तन में इंटरनेट टूल्स का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही समुदाय की समस्याओं को दूर करने में मदद कर रहे हैं, जैसे समग्र आईडी, खसरा-खतौनी, आधार कार्ड या वृद्धावस्था पेंषन या पीडीएस दुकान से राषन की जानकारी अपने मोबाइल फोन से ही निकाल रहे हैं और गांव वालों को अवगत करा रहे हैं। किषोरों ने बताया, कि डिजिटल अज्ञानता की वजह से वर्तमान में शासकीय सेवाओं और योजनाओं का लाभ ले सकने में 43 फीसदी लोगों की अपेक्षायें पूरी नहीं हो पा रही हैं। शासकीय सेवाओं और योजनाओं की जानकारी ले सकने में 68फीसदी लोगों की अपेक्षाएं आज भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। शिकाययें दर्ज करने में 71फीसदी लोगों की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं। बिल भुगतान, टिकिट बुकिंग, ई-कॉमर्स जैसी लोक सहायक सेवाओं में 74 फीसदी लोगों की अपेक्षायें पूरी नहीं हो पा रही हैं। 83फीसदी लोग सेवाएं प्राप्त करने, 14 फीसदी जानकारी के लिये और 2 फीसदी लोग शिकायत दर्ज करने के लिये लोक सेवा केन्द्र गये। सेवाएं प्राप्त करने के लिये फॉलो अप विजिट करने 63 फीसदी दो बार गये, 24 फीसदी तीन बार और 13 फीसदी एक बार फॉलो अप के लिये गये। 63 फीसदी लोग विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्र लेने और 28 फीसदी लोग राशन कार्ड बनवाने के लिये लोक सेवा केन्द्र गये. 2 फीसदी लोगों ने बिल भुगतान और 2 फीसदी लोगों ने रोजगार के लिये सेवाएं हासिल कीं।
मध्यप्रदेष ष्षासन की मौजूदा व्यवस्था का आकलन पर चर्चा करते हुए इन युवाओं ने कहा, कि 40 फीसदी लोग बस या जीप से एमपी ऑनलाइन पहुॅचे, 21 फीसदी लोग स्वयं के वाहन और 35 फीसदी लोग पैदल पहुंचे। 43 फीसदी लोगों को एमपी ऑनलाइन पहुंचने के लिए 100 रूप्ये तक का खर्च उठाना पड़ा। 33 फीसदी लोगों को एमपी ऑनलाइन में 3 घण्टे से अधिक का समय लगा, 33 फीसदी लोागेंा को 2 से 3 घण्टे और 35 फीसदी लोगों को एक घटे का समय लगा । 32 फीसदी लोगों को भ्रमण पर डेढ सौ से 300 तक की मजदूरी का नुकसान हुआ है। युवाओं ने कहा, कि ग्रामीण समुदाय के लिए एमपी ऑनलाइन एवं लोक सेवा केंद्र की दूरी औसतन 10 किलोमीटर से अधिक होने से सुगम पहुंच में बाधा होती है । 49 फीसदी लोग इन केंद्रों पर डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग स्वयं करना चाहते हैं, लेकिन जानकारी, क्षमता, लक्षता एवं अूल्स के अभाव में बाधित होते हैं । साथ ही इन केंद्रों पर क्षमता विकास का कोई इंतजाम नहीं है।
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