मध्यप्रदेश कोविड-19 के दौरान साढ़े पांच हजार बच्चों की गुमशुदगी
रूबी सरकार
मध्य प्रदेश में कोविड-19 के दौरान पहली लहर में बड़े पैमाने पर नाबालिग बच्चे लापता हो रहे हैं। ऑनलाक के दौरान गुम होने वाले बच्चों की संख्या लॉकडाउन की अपेक्षा अधिक पायी गई। जनवरी से जुलाई 2020 इन सात माह में रोजाना औसतन 26 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। इन 26 में से 21 रिपोर्ट लड़कियों को लेकर है। जनवरी से जुलाई 2020 तक बच्चों की गुमशुदगी के कुल संख्या 5446 दर्ज किए गए। चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की रिपोर्ट “कोविड एंड मिसिंग चाइल्डहुड- ए स्टेटस रिपोर्ट फ्रॉम 5 स्टेट्स” के मुताबिक इन 5446 मामलों में 4371 यानी लगभग 80 फीसदी मामले लड़कियों की गुमशुदगी को लेकर है। यह आंकड़ा अन्य 5 उत्तरी राज्यों के मुकाबले काफी अधिक है।
क्राई के अनुसार कोविड-19 महामारी में लॉकडाउन के कारण बच्चों की गुमशुदगी के बढ़ते मामलों को समझने के लिए यह शोध किया गया है। इस रिपोर्ट के जरिए यह पता चला की बच्चों की गुमशुदगी के कुल 9453 मामले जनवरी 2020 से जुलाई 2020 के दौरान पांच राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से दर्ज किए गए। इन 9453 मामलों में 57 फीसदी मामले अकेले मध्य प्रदेश से दर्ज किए गए।
मध्य प्रदेश में गुमशुदा हुए बच्चों से संबंधित आंकड़े
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने बताती हैं, कि रिपोर्ट यह दर्शाती है कि मार्च-अप्रैल 2020 के बीच जब लॉकडाउन सख्त था, तब प्रकरणों की संख्या में कमी आई थी, लेकिन लॉकडाउन में छूट के तुरंत बाद संख्या में वृद्धि देखी गई। बेहद चिंता का विषय यह है, कि लापता होने वाले बच्चों में 12-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। मध्य प्रदेश में लापता होने वाले बच्चों के 5446 मामलों में से 4562 मामले 12-18 वर्ष आयु वर्ग के थे। यह कुल मामलों का 84 फीसदी है। लड़कियों के लिए स्थिति और भी चिंताजनक है इन 4562 बच्चों में से 86 फीसदी यानि 3915 लड़कियां थीं।”।
उन्होने बताया कि “मध्य प्रदेश जैसे राज्य में प्रतिदिन औसतन 26 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट जनवरी से जुलाई 2020 के दौरान दर्ज की गयी है। इन 26 में से 21 मामले लड़कियों को लेकर है। यह आंकड़े अन्य 5 राज्यों से काफी अधिक है। अगर बात करें दिल्ली की जिसकी जनसंख्या अन्य 5 राज्यों के मुताबिक कम है, वहां भी औसतन रोजाना 9 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गयी, जिनमें 6 रिपोर्ट लड़कियों की गुमशुदगी को लेकर है। औसतन प्रतिदिन दर्ज हुए गुमशुदगी के मामलों में हरियाणा और यूपी में अन्य राज्यों की अपेक्षा कम मामले दर्ज किए गए”। दिल्ली राज्य में 1828 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज की गई, इनमें 660 लड़के हैं, जबकि लड़कियों की संख्या 1168 है। इसी तरह मध्यप्रदेश में 5446 में से 4371 लड़कियां हैं, जबकि हरियाणा में सबसे कम 359 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई । यहां भी लड़को की अपेक्षा लड़कियों की संख्या अधिक है। यहां 163 लड़कों के मुकाबले 196 लड़कियां गायब हुईं। इसी तरह उत्तर प्रदेश में इसी दौरान 804 बच्चों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई, जिनमें 558 लड़किया , जबकि मात्र 246 लड़के हैं । राजस्थान में 1016 बच्चों के गायब होने की सूचना है, इनमें से 772 लड़कियां हैं । सुश्री मोईत्रा ने कहा, कि उन्होंने यह आंकड़े महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से हासिल की है। इस रिपोर्ट में प्राइमरी और सेकेंडरी डाटा का इस्तेमाल किया गया है, जिससे कोविड-19 के दौरान बढ़ते गुमशुदगी के मामलों को दर्शाया जा सके। सेकेंडरी डाटा राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो के भारत में अपराध से लिए गए हैं।
क्राई ने कोविड-19 के दौरान, बच्चों की गुमशुदगी से संबंधित घटनाओं को समझने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) की भी मदद ली है, जिसके जरिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राज्यों की सरकारी एवं राज्य की पुलिस विभाग के पास मौजूद डाटा से यह जानकारियां प्राप्त हुई है।
राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार मध्य प्रदेश में ज्यादा भिन्नताएं है, जहां 2019 में रोजाना औसतन 30 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई, जिनमें से 23 मामले लड़कियों के थे और 7 लड़कों के। यही हाल 2020 में भी देखने को मिलता है।
यह भी तथ्य सामने आये, कि लॉकडाउन के समय बच्चों की गुमशुदगी के मामले में गिरावट आई। लॉकडाउन लगने से पहले फरवरी 2020 में बच्चों की गुमशुदगी की ज्यादातर रिपोर्ट दर्ज की गई थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद मार्च, अप्रैल और मई के दौरान इन मामलों में कमी देखने को मिली, जहां अप्रैल माह में सिर्फ 271 मामले ही देखने को मिले। जून के महीने में हुए पहले अनलॉक के बाद गुमशुदा हुए बच्चों के मामले अचानक बढ़कर 750 हो गए।
बैतूल जिले की चाइल्ड लाइन की संचालिका रेखा गुजरे इस संबंध में बताती हैं, कि लॉकडाउन के दौरान चूंकि गांव , शहर में यातायात बंद रहता है। सड़कों पर समुदाय , पुलिस और परिवार की निगरानी रहती हैं । किसी भी तरह के यातायात के साधनों की उपलब्धता कम हो जाती है। रेलवे स्टेशनों पर भी चौकसी बढ़ जाती है और चौकसी करने वाले रक्षकों पर भी दबाव रहता है। इसलिए उस समय बच्चों का भागना या भगाना मुश्किल होता है। अनलॉक में लोगों का आना-जाना यातायात की उपलब्धता, काम धंधे, सब खुल जाते है, ऐसे समय में मानव तस्करी करने वालों को अवसर मिल जाता है िक वे बच्चों को रोजगार, ष्षादी , नौकरी, अधिक मजदूरी दिलाने और दार्शनिक स्थलों पर घूमाने , लुभावनी तोहफे और पैसे देकर फंसाते हैं। इस तरह के प्रलोभन गरीब जरूरतमंद लड़कियों को अधिक दिया जाता है।तस्कर इन बच्चों के परिवार को भी विश्वास में लेते हैं और उनकी छोटी-छोटी जरूरत को पूरा करने में मदद करते हैं।
सोहा मोइत्रा ने बताया “क्राई पिछले 9 वर्षों से गुमशुदा बच्चों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी कर रहा है और हर रिपोर्ट में कुछ ऐसे तथ्य मिलते हैं, जो इस मुद्दे पर और अधिक सख्ती से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। महामारी की वर्तमान स्थिति ने इसमें और चुनौतियां जोड दी हैं। उन्होंने बताया, लापता बच्चों के मुद्दे से निपटने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है। कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों के मामलों को देखते हुए यह मुद्दा और भी जरूरी हो जाता है। इसके अलावा, समुदाय और पंचायत आधारित मॉडलों की व्यवस्था को मजबूत करने की भी आवश्यकता है।
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