Tuesday, June 20, 2023

सरपंच बनीं तो बदल दी गांव की सूरत

 




सरपंच बनीं तो बदल दी गांव की सूरत


रूबी सरकार

विलायत कलां, मध्य प्रदेश के कटनी जिले का एक छोटा सा गांव। कहते हैं कि जब भारत में अंग्रेजी राज था, तब बहुत से लोग विलायत से आते और इसी गांव में रुका करते थे। इसी वजह से और तबसे इसे विलायत कलां कहा जाने लगा। बाहरी लोगों के यहां आकर रुकने के कारण यह पर्दा प्रथा कुछ ज्यादा ही हुआ करती थी। यह प्रथा आजादी के बाद तक चलती रही। चूंकि यह एक छोटा गांव है और गांव के तौर-तरीके और सोच पुरानी थी, इसलिए यहां की महिलाओं को शौच और पानी लाने के अलावा बाहर निकलने की लगभग मनाही थी। लेकिन जब इसी गांव की एक आदिवासी बहू कृष्णा यहां सरपंच बनीं, तो गांव की दिषा व दषा दोनों बदल दी।  कृष्णा ने अपने गांव में विकास कार्यों के साथ-साथ प्रमुख रूप से महिला सशक्तिकरण पर खूब ध्यान दिया।
दरअसल आठ भाई-बहनों में कृष्णा सबसे बड़ी थीं। पिताजी की सरकारी नौकरी छत्तीसगढ़ में थी,तो बचपन बिलासपुर में ही बीता। उस जमाने में जब लड़कियों को ज्यादा पढ़ने के मौके नहीं दिए जाते थे। तब कृष्णा ने बी.ए. तक पढ़ाई की। कृष्णा का मन सरकारी नौकरी करने का था। आदिवासी होने के कारण उसे मौके भी मिले। लेकिन घर में सबसे बड़ी लड़की होने के नाते शादी का दबाव भी रहा । कॉलेज की पढ़ाई भी खींच-तान के पूरी हुई। मन में नौकरी करने की इच्छा को दबाकर कृष्णा ने माता-पिता की इच्छा के अनुरूप  शादी के लिए हामी भर दी। मायके में उसे बाहर आने-जाने, घूमने-फिरने की आजादी थी, लेकिन ससुराल पहुंचते ही  मामला एकदम उलट गया। वह घर पर कैद हो गई।
 कृष्णा समझ गई, कि अब उसे घर के भीतर ही रहना है। जैसे गांव में सारी महिलाएं रहती हैं। यानी एकदम परदे में। यहां नौकरी करने का सवाल ही पैदा नहीं होता । उघर कृष्णा के पिताजी इस बात पर जोर देते थे, कि वह गांव की महिलाओं के साथ बातचीत करें, समूह बनाए और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कुछ काम करे। लकिन यहां तो कृष्णा के हाथ बंधे थे। वह अपने पिता से ससुराल के माहौल के बारे में  कुछ कह भी नहीं पा रही थी । उसे लगने लगा, कि उसकी पढ़ाई अब किसी काम की नहीं रही। एक छोटे से गांव में, घर के भीतर ही  उसे पूरी जिंदगी बितानी होगी। कुछ सालों तक यूं ही चलता रहा। कृष्णा दो बच्चों की मां बन चुकीं थी। मां बनने के बाद धीरे-धीरे उसमें थोड़ा साहस आने लगा। वह घर से बाहर निकलकर महिलाओं से मिलना जुलना शुरू हुआ। कृष्णा के ससुराल में ज्यादातर लोग स्थानीय राजनीति का हिस्सा रहे। उन्हीं के परिवार का कोई न कोई सदस्य सरपंच चुना जाता रहा । कृष्णा के पति गांव के लिए आगे बढ़कर कुछ करना चाहते थे। इस बीच कृष्णा के पति का देहांत हो गया और जिम्मेदारी कृष्णा के कंधों पर आ गई।  कृष्णा को सरपंच बनने के लिए मनाया गया। क्योंकि तब यह महिला के लिए आरक्षित हो चुकी थी। कृष्णा ने अपना नामांकन भरा और एकतरफा जीत हासिल की। इस तरह गांव में पहली बार एक पढ़ी-लिखी महिला सरपंच बनी थी। गांव की कमान अब कृष्णा के हाथों में थी। यह वही गांव था, जहां बहुएं घूंघट में रहा करती थीं। कृष्णा के साथ कुछ महिला पंच भी चुनी गईं। इस तरह गांव में महिलाओं का एक ऐसा समूह बन गया, जिनके हाथों में पूरी पंचायत की जिम्मेदारी आ गई। इन्हें ही गांव का विकास करना था। इसलिए प्राथमिकताएं भी बदली। सरपंच कृष्णा तो पढ़ी लिखी थीं लेकिन शेष महिलाएं पढ़ी लिखी नहीं थी।  
कटनी की एक प्रमुख संस्था मानव जीवन विकास समिति ने इन चुनी हुई महिलाओं के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया । इस प्रशिक्षण में जनप्रतिनिधियों को पंचायत की बारीकियां सिखाई गईं । इस प्रशिक्षण के लिए  कुछ महिलाएं तो पहली बार कृष्णा के साथ अपने घर से बाहर निकलीं थीं। प्रशिक्षण के बहाने घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की दुनिया ही बदल गई।उनके भीतर गांव के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा हुआ ।बाहर की दुनिया देखकर उन्हें लगा, कि स्वयं के साथ-साथ महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। उनकी शिक्षा, सुरक्षा, आजीविका, स्वास्थ्य और सम्मान के लिए सुनियोजित तरीके से कुछ करना है। प्रशिक्षण प्राप्त कर जब ये महिलाएं गांव पहुंची, तब वे बिल्कुल बदल चुकी थी। अब वे पंचायत चलाने में अपने को सक्षम पा रही थीं। सरपंच कृष्णा के नेतृत्व में गांव में अधूरे पड़े काम को न केवल इन महिलाओं ने मिलकर पूरे किये, बल्कि कई नवाचार भी किये। इनके भीतर से डर और झिझक खत्म हो चुका था। अब रोज सुबह कृष्णा के नेतृत्व में सभी पंच एक साथ गांव में पैदल दौरा करने लगी।  ग्रामीणों से मिलना, उनकी समस्याओं को सुनना और उसे हल करने का पूरा प्रयास करना। यही इनकी दिनचर्या बन गई। ग्रामीण अपनी अर्जी लेकर पंचायत आये, इससे पहले ही पंच- सरपंच उनके पास पहुंच जाती है। इससे सरपंच की लोकप्रियता बढ़ने लगी। अब घर के बड़े बुजुर्ग , महिलाओं को घर से निकलने में बाधा नहीं बनते, बल्कि उन्हें  कृष्णा पर इतना भरोसा हो गया था,  िक वे सरपंच के साथ घर की महिलाओं को देखकर इत्मीनान हो जाते थे।  विलायत कलां का पंचायत भवन जो पहले वीरान पड़ा रहता था। अब रोज सुबह 10 बजे खुलने लगा और शाम 5 बजे से पहले कभी बंद नहीं होता था। धीरे-धीरे विलायत कलां की पंचायत एक आदर्श पंचायत में गिना जाने लगा।
स्कूलों में कोई कार्यक्रम हो या कोई सार्वजनिक कार्यक्रम सभी में महिलाओं को ही बतौर मुख्य अतिथि बनाया जाने लगा। महिलाओं की इतनी शोहरत कुछ दबंगों को रास नहीं आई। उनलोगों ने रोड़े अटकाने की जी-तोड़ कोशिश की। लेकिन एक पढ़ी-लिखी और समझदार महिला सरपंच के आगे वो सारे रोड़े कमजोर पड़ने लगे। पंचायत द्वारा किये जाने वाले कामों का निर्णय महिलाएं स्वयं लेने लगी थीं । इसमें परिवार के किसी पुरुष का कोई हस्तक्षेप नहीं था।  जब तक काम पूरा न हो जाये। तब तक लगातार उसका फॉलोअप करती। इतने सालों के बाद  कृष्णा के मन की दबी इच्छाएं पूरी हो रही थी। उसे लगने लगा, कि आखिर उसकी पढ़ाई बेकार नहीं गयी । गांव की महिलाओं को  लगा, कि उन्हें एक सच्चा और अच्छा मार्गदर्षक मिल गया। जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। आज बिलायत कलां बिल्कुल बदला हुआ नजर आता है । गांव वाले इसका पूरा श्रेय कृष्णा को देते है। एक आदिवासी महिला होकर उसने दबंगों से लोहा लिया और गांव की महिलाओं को स्वयं निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया, उन्हें सक्षम बनाया। ग्रामीणों को उम्मीद है, कि आने वाले चुनाव में इसी तरह महिलाएं पंचायत में चुनकर आयेंगी और अपने-अपने गांवों का विकास करेंगी।
                                                                           9 May 2021 Amrit Sandesh Raipur


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