Tuesday, June 20, 2023

ग्रामीण स्तर पर दिख रहा आत्मनिर्भरता का असर

 




ग्रामीण स्तर पर दिख रहा आत्मनिर्भरता का असर
रूबी सरकार
आत्मनिर्भरता के परिणाम अब ग्रामीण स्तर पर दिखाई देने लगा है। ग्रामीण अपनी जमीन पर खेती के साथ-साथ  आय बढ़ाने के अन्य साधन भी ढूंढ़ने लगे हैं।विशेषकर ग्रामीण महिलाएं अब मजदूरी छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू कर रही हैं। सीहोर जिले के दौरे पर इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिले। जब सड़क पर सरपट भागती गाड़ी एकाएक पानी के लिए माया के दुकान पर रूकी।
जी हाँ यह दुकान मायाबाई कुमरे की है। गांव लावापानी की  38 वर्षीय महिला माया स्वस्ति संस्था द्वारा गठित आस्था स्वयं सहायता समूह की सदस्य है,उसके सामने उस समय मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, जब उसके  एकमात्र कमाने वाले पति का अक्टूबर 2020 में एक्सीडेंट  में पैर टूट गया। उसने सोचा, मात्र दो एकड़ जमीन के भरोसे कैसे उसके परिवार का गुजारा होगा। ऐसे में मायाबाई मदद के लिए अपने स्वयं सहायता समूह के पास पहुंची, तो समूह की सदस्यों ने माया बाई की हिम्मत बढ़ाई और कहा, कि तुम्हारे पास  दो एकड़ का एक छोटा खेत है । वह  भी बटाई पर है । इससे तुम्हारा गुजारा नहीं होगा, लेकिन ये मत भूलो कि तुम्हारा खेत रेहटी से लाड़कुई होकर हाइवे को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर है, तुम उस पर कोई दुकान डाल लो, माया बाई को यह सुझाव बहुत अच्छा लगा, समूह ने एक साथ फैसला किया और मायाबाई को दस हजार रुपये का ऋण दिया जाये। स्वस्ति की जागृति महिला संगठन उद्यम से किराना सामान के साथ एक छोटा सा व्यवसाय खोलने के लिए उसने अपनी खेत जो सड़क से लगा हुआ है, उस पर झोपड़ी नुमा दुकान बनाकर किराने का सामान बेचना शुरू कर दिया। पहले ही महीने में उसे इस दुकान से आठ हजार रूपये का मुनाफा हुआ।  जिसे वह दुकान को बड़ा रूप देने के लिए बचत कर रही है। पिछले दो महीनो की बचत से उसने दूकान को बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब वह महिलाओं से जुडी अन्य सामग्री भी रखने का सोच रही है। गांव में एक महिला द्वारा आत्मनिर्भरता के लिए उठाये गये इस कदम को बड़ी सराहना मिल रही है। इस दुकान से न केवल परिवार , बल्कि पूरा  गाँव यहां तक कि सड़क से गुजरती गाडि़यों में बैठे लोग भी उसका सम्मान कर रहे हैं। माया केवल आर्थिक रूप से ही आत्मनिर्भर नहीं हुई, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी वह आत्मनिर्भर हुई है। उसके भीतर का डर और झिझक खत्म हो चुका है, वह एक साहसी महिला के रूप में सम्मान पा रही है। माया ने बताया, उसके दो बेटे हैं और दोनों पढ़ाई कर रहे है । उल्लेखनीय है, कि लावापानी ग्राम, सीहोर जिले के नसरुल्लागंज ब्लॉक के रेहटी तहसील का आदिवासी बाहुल्य गांव है।
माया से प्रेरित होकर रेहटी तहसील के कई गांवों की महिलाएं स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए आगे आकर स्व सहायता समूह से जुड़ी और समूह से ऋण लेकर अपना व्यवसाय शुरू किया। माया ने जो राह दिखाया उससे गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की पकड़ मजबूत हुई है। गांव की महिलाओं में साहस और संकल्प दिखाई देने लगा है। बबीताबाई और ममताबाई किराना सामग्री के साथ मनीहारी सामान को अपने गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों में लगने वाले हाट में भी बेचती हैं। ममता केवट सलकनपुर मंदिर के पास त्योहारों के मौके पर नारियल, अगरबत्ती, चुनरी आदि की दुकान लगाती हैं। सभी महिलाओं ने  व्यावसाय शुरू करने के लिए जागृति महिला संस्थान से ऋण लिया।  
अब तो इन विकास खण्डों के 33 गांवों के अलग-अलग लोकेशन पर कुल 120 दुकानों का संचालन महिलाएं कर रही है। इन दुकानों में रोजमर्रा की जरूरतों वाले किराना सामनों के साथ-साथ महिलाओं के श्रंगार की सामग्री भी उपलब्ध है। इतने कम समय मंे इन महिलाओं ने इतनी बड़ी संख्या में  अलग-अलग 200 समूहों का गठन कर लिया और इन छोटे-छोटे समूहों का एक बड़ा फेडरेषन जागृति महिला संस्थान के नाम से पंजीकृत करवाया।  समूह की महिलाओं ने अपने रोजमर्रा के खर्चों से बचत कर फेडरेशन के खाते में अब तक  3 लाख से अधिक की रकम जमा कर  चुकी है। व्यवसाय के साथ-साथ महिलाओं ने अपने स्वास्थ्य को बेहतर किया और डॉक्टरों पर होने वाले खर्च को भी बचाया। इसी बचत को वे समूह के खाते में जमा करती हैं और जरूरत पड़ने पर इसी से ऋण लेती हैं। इतना ही नहीं वे  ईमानदारी से ऋण लौटाती भी हैं।  आज तक समूहों की एक भी महिला  डिफाल्टर नहीं है।
फेडरेशन की अध्यक्ष कविता गौर एकल  मां है, वे बताती हैं, कि पति के निधन के बाद दो बच्चों की परवरिश और गुजारे के लिए उसके पास मात्र 5 एकड़ कृषि भूमि है। पति के निधन के बाद उसके आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। तब समूह की महिलाओं ने उसे हौसला दिया। लोगों के ताने भी सुनी, फिर भी घर की चौखट से बाहर निकलकर व्यवसाय की बात सोची। कविता ने कहा, हमलोग व्यवसाय शुरू करने से पहले समूह की बैठकों में इसकी चर्चा करते है, कि उन्हीं चीजों पर पैसा लगाया जाये, जिसकी जरूरत हमेशा पड़ती है। कविता ने स्वयं पहले दोना बनाने की मशीन के लिए समूह से ऋण लिया। उसने कहा, शादी-विवाह, त्योहार आदि में दोने की जरूरत पड़ती है। ऐसे व्यवसाय कभी ठप्प नहीं होता है। इसके अलावा वह चूड़ी बनाने की मशीन भी गांव में लाना चाहती है। फेडरेषन की सचिव सरोज भल्लावी कहती हैं, कि बकरी पालन में भी महिलाएं आगे आ रही हैं। क्योंकि आबादी के हिसाब से दूध की जरूरत कभी खत्म नहीं होगी।  समूह में हाथों से बने सामानों के व्यवसाय को बढ़ावा दिया जाता है।
फेडरेशन की कोषाध्यक्ष ज्योति गौर ने बताया, समूह से जुड़ने के बाद वह पैसे का हिसाब-किताब अच्छे से रख पाती हैं। साथ ही बचत का महत्व भी समझने लगी है। वह कहती है, कि सबसे बड़ी बात अब पति भी कभी-कभी खेती के लिए समूह से ऋण की मांग करते है। ज्योति ने कहा, कि  एक बड़ा परिवर्तन यह देखने में आया है, कि  हमलोगों की बचत की आदत देखकर पुरूष भी नषे से पैसे बचाने लगे है। बचत समूह की ओर से गांवों में यह बड़ा संदेश गया है।
स्वस्ति संस्था की कम्युनिटी वेलनेस  डायरेक्टर  संतोषी तिवारी बताती हैं, कि संस्था वर्ष 2017 को वंचित समुदाय को स्वास्थ्य और सशक्त बनाने के उद्देश्य से सीहोर जिले के दो विकासखण्डों क्रमशः बुदनी और नसरूल्लागंज  में काम शुरू किया गया। वंचित समुदाय की महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में  जब संस्था ने यहां विभिन्न  माध्यम से प्रयास शुरू किए थे, उस समय अधिकतर महिलाएं मजदूरी के लिए घर से दूर जाती थी। इसका उन महिलाओं और उनके बच्चों के सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता था। बच्चों की उपेक्षा तथा भविष्य दोनों प्रभावित हो रहा था। संस्था ने काम के लिए बहुसंख्यक आदिवासी वाले गांवों को चुना।  अब तक  33 गांवों में अलग-अलग समूहों में कुल 2157 सदस्य हैं। जिन गांवों में  महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं,,वह जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर है। इसलिए यहां ग्रामीणों की  सरकारी योजनाओं तक पहुंच बने , उन्हें और अधिक लाभ एवं सुविधाएं समयबद्ध तरीके से मिल पाये, इसी उद्देश्य से यहां काम शुरू किया है। साथ ही यहां वंचित समुदाय का स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका और व्यवहार परिवर्तन  हो , इसकी आवश्यकता संस्था को महसूस हुई । आज दूर-दूर मजदूरी के लिए जाने वाली महिलाएं अब अपने-अपने घरों में रहकर व्यवसाय कर रही है। दुकान में सामानों की आपूर्ति के लिए समूह ने एक वाट्सएप्प ग्रुप बना रखा है, इसमें वे जरूरत के सामानों की सूची भेज देती हैं और अगले दिन उनके पास सामान पहुंचा दिया जाता है।

Avadhnama Hindi Online

https://avadhnama.com/article/the-effect-of-self-reliance-is-seen-at-the-rural-level/


National Thoughts

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Lok Prasang

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Jubleepost.Com

https://www.jubileepost.in/impact-of-self-reliance-seen-at-rural-level-in-madya-pradesh/


Navsanchar Samachar.Com

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Liveaaryavart

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Pratilipi Hindi

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Youth Ki Awaz

https://www.youthkiawaaz.com/2021/02/these-women-tell-the-real-meaning-of-self-reliance-at-the-village-level/


Voice Of Margin

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Ground Report

https://groundreport.in/the-effect-of-self-reliance-is-seen-at-the-rural-level/


Godhooli Chash

https://godhoolichash.blogspot.com/2021/02/blog-post_23.html


Gramtaru.Com

https://www.gramtaru.com/2021/02/blog-post_22.html


Tarun Mitra Newspaper 24 Feb 2021

http://epaper.tarunmitra.in/articlepage.php?articleid=TARUNM_LUC_20210224_4_3&width=453px&edition=Lucknow&curpage=4


Bharat Update

http://bharatupdate.com/bharatonlinenews/The-effect-of-self-reliance-is-seen-at-the-rural-level_2305.html


Pravakta.Com

https://www.pravakta.com/the-effect-of-self-reliance-is-seen-at-the-rural-level/



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