Monday, June 19, 2023

अधिग्रहित भूमि वापस दिलाने किसानों की पोस्ट कार्ड से उच्च न्यायालय को अपील





 अधिग्रहित भूमि वापस दिलाने किसानों  की पोस्ट कार्ड से उच्च न्यायालय को अपील


रूबी सरकार

दक्षिण कोरिया की कंपनी देवू ने लगभग 25 साल पहले कोरबा जिले के कुछ गांवों के किसानों की कृषि भूमि पावर प्लांट के लिए अधिग्रहित किया था।  अधिग्रहण करार में मुआवजे के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को रोजगार, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं देने की बात भी थी, लेकिन 25 सालों तक कंपनी ने उद्योग के काम को आगे नहीं बढ़ाया। लिहाजा भूमि किसानों के कब्जे में रहा और वे उस पर खेती करते रहे। इस तरह एक पीढ़ी गुजर गई। अब अचानक कंपनी ने अधिग्रहित भूमि पर अपना कब्जा दिखाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से मिलकर ग्रामीणों को सूचना दिये बिना कोविड-19 में लॉकडाउन के दौरान भूमि का सीमांकन शुरू कर दिया, जिसका आदिवासी किसानों ने सामूहिक रूप से जमकर विरोध किया।
आदिवासी किसानों ने बताया, कि कोरबा तहसीलदार ने उन्हें बताया, कि यह कार्रवाई बिलासपुर उच्च न्यायालय के आदेश से की जा रही है। लेकिन जब ग्रामीणों ने आदेश की प्रति मांगी, तो उन्हें उपलब्ध नहंीं करवाया गया।
किसानों ने बताया, अदालत ने संभवतः शासन से वर्तमान स्थिति की जानकारी मांगी होगी, इसलिए जिला और पुलिस प्रशासन  भूमि पर देवू का कब्जा दिखाने के लिए अधिग्रहित भूमि पर एक्सीवेटरों से खुदाई शुरू कर दी।
किसान खेतों को नुकसान पहुंचते देख  आंदोलनरत हो गये और वे अधिग्रहित भूमि  उनके मूल खातेदारों को लौटाने की मांग करने लगे। आदिवासियों ने कहा, कि भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत यदि कोई कंपनी भूमि अधिग्रहण के पांच सालों के अंदर अपना उद्योग लगाने में असफल रहती है, तो अधिग्रहित जमीन मूल खातेदार को लौटाने का प्रावधान है।

 इस तरह वे  बरसों पूर्व अधिग्रहित भूमि की खुदाई कर रहे एक्सीवेटरों को भगाने में सफल हो गये। इससे आदिवासी किसानों का मनोबल और न्याय पाने के लिए लड़ने का हौसला भी बढ़ गया । आंदोलन की कड़ी में बुधवार को सैकड़ों  किसानों ने बिलासपुर उच्च न्यायालय को पोस्ट कार्ड लिखकर अपनी भूमि वापस दिलाने की अपील की है। किसानों द्वारा पोस्ट कार्ड का सहारा लेकर न्याय पाने की गुहार जोर पकड़ने लगा है। पोस्टकार्ड अभियान के मसौदे में किसानों ने कोरबा जिला प्रशासन की मदद से देवू द्वारा उनकी भूमि हड़पने की कोशिश की शिकायत की है और न्यायालय से गरीबों  की जमीन को छीनने से बचाने की प्रार्थना की है।
इस संबंध में  रिस्दी गांव के किसान सुमित दान, संजय कंवर, हरिषंकर कंवर आदि ने कहा, कि दिवालिया होने और किसानों से किये गए करार को पूरा न कर पाने के बाद देवू का इस भूमि पर कोई अधिकार नहीं बनता और भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत अब यह भूमि उन्हें आदिवासियों को लौटा दी जानी चाहिए। वैसे भी इस भूमि पर पिछले 25 सालों से किसानों का भौतिक कब्जा  बरकरार है, जिस पर उन्हें अभी तक कृषि कार्यों के लिए बैंकों से ऋण मिल रहा है।
परणीपानी और रिस्दा गांव के किसान विजय यादव, भजन कंवर, भुवन कंवर, ष्षैलेन्द्र कंवर ने संदेह व्यक्त करते हुए बताया, कि  जिस प्रकार कोरबा  तहसीलदार देवू के पक्ष में खड़े हैं और खुदाई स्थल पर बाल्को के अधिकारी तैनात किये गये थे, उससे  उन्हें लगता है कि उनकी भूमि हड़पने के मामले में प्रशासन और बाल्को की भी देवू के साथ मिलीभगत है। उन्होंने कहा, कि अधिग्रहण होने के 25 साल बाद भी यह  भूमि आज भी उनके नाम से है और उनकी जीविका के एकमात्र साधन को छोड़ने के लिए वे तैयार नहीं है।
रिस्दी गांव के भूपेश कुमार साहू बताते हैं, कि देवू द्वारा वर्ष 1992 में उद्योग स्थापित करने की गतिविधि शुरू हुई और वर्ष 1997 में भूमि अधिग्रहण का काम शुरू हुआ, लेकिन  इतने सालों में कंपनी ने जमीन पर कोई काम नहीं किया। उनकी जानकारी में इस इलाके में पावर प्लांट लगाने में असफल होने के बाद दक्षिण कोरियाई कॉर्पोरेट कंपनी देवू ने बिलासपुर उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर इस भूमि का किसी अन्य औद्योगिक प्रयोजन या रियल एस्टेट व्यापार के लिए उपयोग की अनुमति मांगी है।


किसान भुवन सिंह बताते हैं, कि अगर समय पर काम शुरू हो जाता और हमें सुविधाएं मिल जाती, फिर हम जमीन पर खेती-बाड़ी नहीं करते। उसने कहा, कि देवू ने कुछ शासकीय भूमि भी अधिग्रहित की थी, लेकिन तहसीलदार शासकीय भूमि पर तोड़-फोड़ नहीं कर रहे हैं, बल्कि हमें जमीन से बेदखल करने के लिए बिना नोटिस के हमारी जमीन का मेढ़ तोडने का काम कर रहे हैं। जबकि अभी खेतों में अगली बुवाई का काम चल रहा है। यहां तक कि जमीन पर शासकीय कब्जा दिखाने के लिए सरकार यहां के किसानों से समर्थन मूल्य पर केवल उतना ही उपज क्रय करती है, जितने से उनका लिया ऋण पट जाये। शेष उपज हमें बाजार में औने-पौने दामों पर बेचना पड़ता है।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय पराते बताते हैं, कि अपने आपको दिवालिया घोषित करने के बाद देवू का इस जमीन पर कोई स्वामित्व नहीं रह गया है और जमीन का सीमांकन कराने का उसका आवेदन ही अवैध है।
ग्रामीणों से बातचीत में पता चला, कि इस भूमि का सौदा उस समय साढ़े आठ करोड़ में हुआ था, जबकि आज इसकी कीमत 850 करोड़ रुपये से अधिक  हैै । श्री पराते ने कहा, कि जिस तरह प्रशासन ने एक्सीवेटर से जमीन की खुदाई करने में हड़बड़ी दिखाई है, इससे स्पष्ट है, कि मामला केवल सीमांकन का नहीं है, बल्कि इसका मूल मकसद भूमि पर काबिज आदिवासी किसानों को बेदखल करने का है, ताकि दिवालिया कंपनी इस जमीन का उपयोग रियल एस्टेट व्यापार के लिए कर सके। जबकि कोरबा जिले में सीमांकन के हजारों प्रकरण सालों से लंबित पड़े हुए हैं। उन्होंने आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा के पक्ष में लोगों को आगे आने की अपील की है और कहा है, कि जिस तरह बस्तर के आदिवासियों को टाटा के लिए अधिग्रहित जमीन को वापस किया गया है, कोरबा जिले के इस  मामले में भी आदिवासियों को जमीन वापसी की प्रक्रिया को शुरू होनी चाहिए।

 20 May 2021 Down to Earth
https://www.downtoearth.org.in/hindistory/development/rural-development/tribal-farmers-of-korba-started-agitation-against-foreign-company-returned-to-acquire-land-after-25-years-77021

No comments:

Post a Comment