Saturday, June 24, 2023

भेडिय़ों से बचकर आई बेटी अग्रि परीक्षा देने को मजबूर

 


3 JANUARY 2019

भेडिय़ों से बचकर आई बेटी अग्रि परीक्षा देने को मजबूर 
 रूबी सरकार 
 बैतूल से लगभग 35 किलोमीटर दूर माकड़ा गांव के कोरकू समुदाय की  10वीं पास 17 वर्षीय किशोरी देविका दो माह पहले तक दिहाड़ी मजदूरी पर कटाई के लिए सुबह ट्रेन से होशंगाबाद जाती और देर रात वापस लौटती थी। एक दिन अचानक वापसी में उसका मोबाइल फोन गुम गया। उसने घर पर किसी को नहीं बताया और अगले दिन अपने नम्बर पर फोन लगाया। उधर से किसी पुरुष की आवाज़ आई, जिसने उससे कहा, फोन उसके पास है, जब वह मिलेगी, तो वह फोन वापस कर देगा। अगले दिन दो लड़के देविका को उसका फोन वापस देने की बात कहकर उसी ट्रेन में मिले, लेकिन फोन वापस करने के बजाय उससे इधर-उधर की बातें करने लगे। धीरे-धीरे उन लड़कों ने उसे झांसे में ले लिया और दीपावली के दिन देविका के गांव आकर उससे कहा, कि मेरी मां तुमसे मिलना चाहती है, चलो तुम्हे उनसे मिलवाकर वापस छोड़ देंगे। देविका उनकी बातों में आ गई और किसी को बिना बताये उन लड़कों के साथ चल दी। जब लड़कों ने उसे ट्रेन में बिठाया, तब वह डर गई और घर वापस लौटने की जि़द करने लगी। उस वक्त लड़कों ने न जाने उसे क्या खिला दिया , कि वह बेहोश हो गई। जब उसे होश आया, तो वह कूनी (राजस्थान)पहुंच चुकी थी। उसके बाद तो उसे एक घर में बंद कर दिया गया, जहां से भागने का कोई रास्ता ही नहीं था।  देविका समझ गई, कि वह अगवा हो चुकी है। उसे पता चला, कि  दोनों आपस में मामा -भांजा हैं और घर पर एक औरत भी है। दोनों लड़कों में से एक का नाम पवन था, जो लगातार 22 दिनों तक देविका से दुष्कर्म करता रहा। एक दिन उसे पता चला, कि उसे 2 लाख रुपये में नागौर जिले के लाडपुर  में मुन्नूराम को बेच दिया गया है। अब  मुन्नूराम ने उसे यह कहकर  बंधक रख लिया, कि तुम्हारी शादी अपने बेटे से करायेंगे। लगभग एक माह बीत चुका था, लेकिन न तो वह देविका की शादी करवा रहा था और न ही उसे आज़ाद कर रहा था। इस बीच एक दिन मुन्नूराम उसे एक शादी समारोह में ले गया, जहां उसने सूझ-बूझ दिखाते हुए एक औरत से अपने पिता शांताराम से बात करने के लिए फोन की मांग की और जैसे ही उसे फोन मिला , उसने तुरंत अपने पिता को फोन लगाकर अपने साथ हुई ज्यादतियों के बारे में बताया। तुरंत स्थानीय थाने पहुंचा, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। निराश होकर वह बैतूल पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचा और पूरी कहानी बताई। पुलिस अधीक्षक ने आरोपियों को पकडऩे और देविका को बरामद करने पुलिस की एक टीम को  तुरंत राजस्थान में दबिश दी और देविका को बरामद कर वापस बैतूल ले आये। लेकिन आरोपी फरार हो गये। 
 बैतूल पहुंचकर देविका  को पता चला, कि इन लड़कों का यही धंधा है। ये लड़कियों को अपनी जाल में फंसाकर उसे राजस्थान और हरियाणा में बेचने का काम करते हैं। उसने कहा, उसका फोन तो मिला नहीं, उल्टे पायल और बिछिया भी पवन ने उतार लिये। 
बहरहाल, अब गांव में शांताराम का परिवार अलग-थलग है। जब जात पंचायत नहीं बैठेगा, तब तक इस परिवार का हुक्का-पानी बंद रहेगा। न ही उसके यहां कोई चाय-पानी पीने आयेगा और न ही वह गांव के हैण्डपम्प या कुंए से पानी ले पायेंगे। शांताराम बताते हैं, कि जात पंचायत में कम से कम 50 हजार का खर्च आयेगा। इसके लिए उसे कर्ज लेना पड़ेगा। 

महिला सशक्तीकरण के लिए इस कुप्रथा को रोकना ही होगा
इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए लगातार 7-8 सालों से जात पंचायत के बुजुर्ग, ग्राम सभा और महिलाओं के बीच बातचीत चल रही है। खासकर उन लोगों से जो निर्णायक की भूमिका में होते हैं।  इस तरह की प्रथा आदिवासी रीति-रिवाजों में भी नहीं हैं। हम लोगों ने यह भी कहा है, कि इस तरह के मामले ग्राम सभा में जाना चाहिए। 
अगर महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो इस तरह की पंचायत में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता। जबकि समाज के भीतर व बाहर आदिवासी महिलाएं ज्यादा सशक्त मानी जाती हैं। यहां महिलाएं आज़ाद है और इस तरह की व्यवस्थाएं उन्हें पितृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर धकेलने का प्रयास करती है तथा महिलाओं को आगे बढऩे से रोकती है।  लगातार बातचीत का नतीजा है, कि बैतूल जिले के कुछ आदिवासी महिलाएं इस कुप्रथा का विरोध भी करने लगी है। इनमें शशिकलाबाई का नाम उभर कर सामने आया है, जिन्होंने पंचायत में सवाल उठाये थे। इस तरह की प्रक्रिया किसी भी महिला के अधिकार और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है। 
जहां तक लड़कियों की खरीद-$फरोक्त का सवाल है, तो इसके लिए ग्राम सभा और प्रदेश सरकार से पैरवी की जा रही है, कि लड़कियों को पढ़ाई और रोजगार गांव में ही मिले। वह स्वयं तय करें, कि वे क्या करना चाहती हैं। तभी महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल सकता है। 
इस कुप्रथा को आने में लम्बा समय लगा और इसे दूर करने में भी लम्बा समय लगेगा। लेकिन उम्मीद है, कि धीरे-धीरे यह समाप्त होगा। इसके लिए समुदाय के भीतर और बाहर दोनेां स्तरों पर बात चल रही है। 

                                   रेखा गुजरे
                                    प्रदीपन संस्था
                                        बैतूल   
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क्या है जात पंचायत 
अन्य समाज के साथ शारीरिक संबंध होने पर कोरकू समाज लड़की और उसके परिवार को अशुद्ध मानता हैं। जब लड़की स्वयं अपनी गलती स्वीकार करती है और कहती है, कि वह अपने सामाजिक रीति-रिवाज से पंचायत की बात से सहमत है, तब गांव के बुजुर्ग कोई तिथि निश्चित करती है। उस दिन लड़की को नदी के पास ले जाया जाता है, जहां एक गड्ढा खोदकर उसमें लड़की को खड़ा कर दिया जाता है। फिर उसके ऊपर घास-फूस की एक झोपड़ी बनाई जाती है और उसमें आग लगा दी जाती है। जब थोड़ी बहुत आग लड़की के बालों को छूने लगती है, तो उसे वापस निकालकर नदी में स्नान करवाया जाता है और लड़की पानी में खड़े होकर अपनी गलती मानकर माफी मांगती है । उसके बाद वह अपने सारे गीले वस्त्र वहीं नदी किनारे छोड़कर शुद्ध कपड़े पहनती है। यह सारी प्रक्रिया भूमका (पंडित) की उपस्थिति में होता है। इसके बाद पूरे गांव वालों को उनकी मांग के अनुसार सामूहिक भोज करवाया जाता है। तब जाकर कहीं लड़की पुन: अपने जात में शामिल हो पाती है। 


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