दोबारा बेटी पैदा हुईं तो फूट-फूट कर रोईं सास
रूबी सरकारबहुत लोगों के लिए बेटे और बेटी में भेद बीते दिनों की बात हो गई होगी , लेकिन देश में बहुत सारे ऐसे गांव हैं, जहां आज भी बेटे और बेटी में भेदभाव किया जाता है। वे बहुओं से बेटा पैदा करने के लिए दबाव बनाते हैं, जबकि उन्हें मालूम है, कि बेटा या बेटी पैदा करना अकेले बहू के ऊपर निर्भर नहीं है।
बुदनी तहसील के अंतर्गत नांदेर गांव की संगीता सराठे के साथ ऐसा ही कुछ हुआ, जब उसे दूसरी बार बेटी हुई, तो उसकी सास फूट-फूट कर रोने लगी। जैसे कोई अनहोनी हो गई हो। संगीता बताती हैं, कि पहली बार जब वह गर्भवती हुई, तब वह 21 साल की थी और वे अपनी देखभाल करने के लिए परिजनों पर निर्भर रहती थी। परिजनों को यह पता चल चुका था, कि उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण बेटी है। उम्मीद के मुताबिक गर्भ में बच्चा न होने से उसकी खूब उपेक्षा हुई। गर्भवती होने के बावजूद उसके खान-पान का ध्यान नहीं रखा गया। वह कमजोर होती चली गई। यहां तक कि जब एक निजी अस्पताल में सिजेरियन से उसका प्रसव हुआ, तो सासूमां निराश हुई और उसे अल्टीमेटम दे डाला, िक अगली बार पोता होना चाहिए। सिजेरियन प्रसव होने की वजह से वह नवजात पर ध्यान नहीं दे पायी ।नवजात को मां का स्पर्श नहीं मिला। वह अपने बच्चे को एक घण्टे के भीतर मां का पीला गाढ़ा दूध भी नहीं दे पायी। नवजात का वजन भी औसत से कम एक किलो , चार सौ ग्राम था। कमजोर होने की वजह से डॉक्टरों ने उसे स्पेशल केयर में रखा। वर्तमान में वह दो साल की है । आज भी वह औसत से कम वजन की है और बहुत चिड़चिड़ी है। सास लीलाबाई बताती है, कि इस बच्ची ने कभी मां के दूध को मुंह नहीं लगाया, इसलिए मां को दूध नहीं आया । लीलाबाई ने बताया, जब पहली बार छह माह के बाद उसे ऊपरी आहार दिया , तो उसे हलुवा-पुड़ी खिलाया, उसे इतना पसंद आया, कि आज भी वह खाने में हलुवा-पुड़ी ही मांगती है। बच्ची के कमजोर होने की वजह गिनाते हुए वह कहती हैं, कि जब संगीता गर्भवती हुई, उस समय उसके देवर का एक्सीडेंट हुआ था। हम सब उसके तीमारदारी में लगे थे। किसी का ध्यान संगीता के खान-पान उसकी देखभाल पर नहीं था। जब प्रसव का समय आया, तो उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया । जहां सिजेरियन से उसका प्रसव हुआ। लेकिन दोबारा जब वह गर्भवती हुई, तो पूरे परिवार ने उसका काफी ध्यान रखा। उसे आंगनबाड़ी केंद्र लेकर गये। वहां उसका कार्ड बनवाया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के कहने पर उसे सरकारी अस्पताल के डॉक्टर के पास मैं खूद बेटे के साथ ले गई । डॉक्टरों के निर्देश का पूरा पालन किया। पति धमंेद्र सराठे ने भी कहा, कि उसने संगीता के खान-पान ,दवा और टीके का इस बार बहुत ध्यान रखा था। समय-समय पर वजन करवाया। लेकिन दोबारा पोती को देखकर अस्पताल में ही लीलाबाई फूट-फूट कर खूब रोई। इस बार भी सिजेरियन से प्रसव हुआ, लेकिन डॉक्टरों ने ध्यान रखा और इसे एक घण्टे के भीतर मां का पीला गाढ़ा दूध पिलाया । वह अभी डेढ़ माह की है और पूरी तरह स्वस्थ है। संगीता बताती हैं, कि इस बार उसने आंगनबाड़ी के दिशा-निर्देशों का पूरा पालन किया। वह दबी जबान बताती है, कि हालांकि सासू मां ने नवजात का स्वागत नहीं किया, बल्कि अस्पताल में रो-रो कर हंगामा खड़ा कर दिया । उन्हें कुल की परवाह थी। उसे जिंदा रखने के लिए उन्हें पोता चाहिए था। आखिर उन्हें शांत करने के लिए दिलासा दिया , कि इस बार वह उन्हें तोहफे मंे पोता ही दंेगी।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गंगा मेहरा बताती है, कि संगीता की पहली बेटी निजी अस्पताल में पैदा हुई थी, जहां डॉक्टरों ने उसे ठीक से मार्गदर्शन नहीं किया। नवजात को डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया और उसे डिब्बे का दूध पिलाया गया । इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ा है।
आशा कार्यकर्ता वंदना दुबे बताती है, कि अभी भी गांवों में प्रसव होने के बाद तीन दिनों तक मां का दूध न पिलाने का रिवाज है। तब तक नवजात को ऊपर का दूध पिलाया जाता है। तीन दिनों के बाद ही नवजात को मां का दूध दिया जाता है। गांववाले कहते हैं, कि तीन दिनों के बाद ही मां को साफ दूध आता है। इससे पहले का दूध खराब होता है। डॉक्टरों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बार-बार उन्हें यह समझाना पड़ता है, कि प्रसव के एक घण्टे के भीतर मां का पीला गाढ़ा दूध नवजात के लिए अमृत है।
उल्लेखनीय है, कि नांदेर गांव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विधानसभा क्षेत्र है। बेटियों के लिए वे सदा मामा की भूमिका में रहते हैं। लेकिन उन्हीें के क्षेत्र में जागरूकता की इतनी कमी है। बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिए वे संवेदनशील हैं और उन्होंने प्रदेश में शासकीय कार्यक्रमों के लिए यह अनिवार्य कर दिया, कि आयोजन की शुरूआत कन्या पूजन से होगा। बेटियों की सुरक्षा , जागरूकता ,पोषण , ज्ञान तथा स्वास्थ्य उनके लिए अहम है, इसके लिए उन्होंने अनूठे अभियान ‘पंख‘ की ष्षुरूआत की है। जिससे बेटियां आकाश से आगे जाकर अंतरिक्ष तक उड़ान भर सकंे। बावजूद इसके वे अपने क्षेत्र के लोगों की मानसिकता नहीं बदल पा रहे हैं।
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