Tuesday, June 13, 2023

आदिवासी अपनी आजीविका, संस्कृति बचाने को एकजुट



 आदिवासी अपनी आजीविका, संस्कृति बचाने को एकजुट


रूबी सरकार

छत्तीसगढ़ के कोरबा सरगुजा बार्डर पर स्थित हसदेव अरण्य को बचाने वहां की 24 ग्राम सभा एकजुट होकर आखिरी कोशिश कर रहे हैं। जैव विविधता से परिपूर्ण हसदेव अरण्य में  हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है-जो जांजगीर, चांपा, कोरबा, बिलासपुर जिले के नागरिकों और खेती की प्यास बुझाता है।
वर्ष 2010 में स्वयं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित करते हुए (नो-गो) क्षेत्र घोषित किया था। कॉर्पोरेट के दबाव में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे वर्ष 2014 में माननीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निरस्त भी कर दिया था।
हाल ही में भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई जिसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘‘हसदेव अरण्य समृद्ध, जैव विविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है इसमें कई विलुप्त वन्य प्राणी आज भी मौजूद है। वर्तमान संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए शेष सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल नो गो घोषित किया जाए। इस रिपोर्ट में एक चेतावनी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव हाथी संघर्ष की स्थिति को संभालना लगभग नामुमकिन होगा‘‘ ।
स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि हसदेव अरण्य के नए क्षेत्रों में कोयला खनन से लगभग 6 हजार एकड़ क्षेत्रफल में 4 लाख 50 हजार पेड़ों को काटा जाएगा तथा 3000 से अधिक आदिवासी परिवार विस्थापन के शिकार होंगे। बावजूद इसके  हसदेव अरण्य क्षेत्र की समृद्धता, पर्यावरणीय महत्व और उसकी आवश्यकता को समझते हुए केन्द्र सरकार खनन के लिए उसका विनाश करने पर उतारू है। जबकि यह साल के प्राकृतिक जंगल है जिनका आज तक पौधा रोपण संभव नहीं हो सका है।
हसदेव अरण्य को बचाने के एक दशक से चल रहे आन्दोलन में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को हमेशा नजरअंदाज किया गया है। हसदेव अरण्य संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र है। अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को अपने जल, जंगल, जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का संवैधानिक अधिकार है। भारतीय संसद द्वारा बनाए गए पेसा अधिनियम 1996 और वन अधिकार मान्यता कानून 2006 ग्राम सभाओं के अधिकारों को और अधिक शक्ति प्रदान करते हैं। परसा कोल ब्लॉक के लिए बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है वह भी बिना ग्राम सभा सहमती के। इसी कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति भी ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई है। इन्हीं फर्जी ग्राम सभाओं की जांच कराने के लिए हसदेव अरण्य के लोगों ने अक्टूबर 2021 में 300 किलोमीटर की पदयात्रा की थी और राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा था। चूंकि पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र के लिए प्रदेश के राज्यपाल को अभिभावक की भूमिका सौंपी गई है तो इनका संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके ने जिला कलेक्टर को जांच के आदेश भी दिये थे। हसदेव जंगल में बसे गांव-गांव  के बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग अब वहीं रहे हैं और जंगल में घूम घूम कर पहरा दे रहे हैं। फिर भी चोरी-छिपे पेड़ की कटाई जारी है।  आधी रात को पेड़ों की कटाई को लेकर छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की है उसके इस कदम की आलोचना की है। उच्च न्यायालय ने 30 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि अगर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया ही गैर-कानूनी साबित हो गई तब क्या इन कटे हुए पेड़ों को वापिस पुनर्जीवित किया जा सकेगा? आखिर सरकार को पेड़ काटने की इतनी जल्दबाजी क्यों है?

आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार की रक्षा और केंद्र सरकार की इस कोशिश के खिलाफ अब किसानों का देशव्यापी आंदोलन शुरू हो चुका है। हसदेव अरण्य संघर्ष समिति के अध्यक्ष उमेश्वर सिंह ने बताया कि देश के सभी राज्यों में कम से कम पांच सौ से ज्यादा जगहों पर हसदेव अरण्य के समर्थन में प्रदर्शन किए जा रहे हैं।  
कान्हा टाइगर रिजर्व और पलामू टाइगर रिजर्व के मध्य में स्थित हसदेव जंगल
इसी मामले को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण व राष्ट्रीय वन्य जीव परिषद ने भी राज्य सरकार की भर्तस्ना की है और इस तरह पेड़ काटने को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज की है। हसदेव अरण्य मध्य प्रदेश में मौजूद कान्हा टाइगर रिजर्व और झारखंड में अवस्थित पलामू टाइगर रिजर्व के बीच का हिस्सा है इन दोनों महत्वपूर्ण अभयारण्यों को जोड़ता है। इसलिए बिना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भरोसे में लिए और उनकी सहमति लिए जंगलों को नहीं काटा जा सकता।
गौरतलब है कि इस खदान के खिलाफ तीन गांव क्रमशः साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर की ग्रामसभा  पुनः खनन के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि समस्त ग्रामीण और ग्राम सभा इस खदान के खिलाफ हैं और वन अधिकार मान्यता कानून, 2006 के तहत प्राप्त अपने जंगल बचाने, उनके प्रबंधन और पुनरुत्पादन के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी प्रतिबद्धता के साथ ग्राम सभाएं सत्याग्रह भी कर रही हैं।
                                                                               8 May 2022, Amrit Sandesh



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