सब कुछ बेचने पर आमादा सरकार
रूबी सरकार
कभी डाकू ग्रस्त क्षेत्र चंबल घाटी सुनसान रहा करता था। यहां से गुजरने से लोग डरते थे। 60 के दशक में भू-दान आंदोलन के जनक बिनोवा भावे ने यहां डाकुओं के हृदय परिवर्तन करने का काम शुरू किया था। उन्हें सफलता भी मिली थी। उन्हीं के प्रयास से जयप्रकाश नारायण के सामने 400 डाकुओं ने वर्ष 1971-72 आत्मसमर्पण किया था। डाकुओं को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए क्षेत्र में विकास और आजीविका के प्रयास शुरू हुए। इसी कड़ी में मुरैना जिले के जौरा तहसील से 20 किलोमीटर दूर दी मुरैना सहकारी शक्कर कारखाना लिमिटेड का पंजीयन वर्ष 1966 में किया गया। हालांकि कारखाना बनकर तैयार हुआ वर्ष 1971 में। कारखाने के लिए भिंड, मुरैना और शिवपुर के 23 हजार किसानों के 240 सोसाइटीज ने करीब 5 करोड़ रुपए इकट्ठा करके दिए थे । इसी तरह 5 करोड़ ऋण और 5 करोड़ राज्य सरकार के सहयोग से कुल 15 करोड़ रुपए लागत से यह कारखाना शुरु किया गया था। इसके बनने से इस क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिला । किसानों को फायदा हुआ। साल भर में यह शक्कर कारखाना 4 करोड़ रुपए कमाकर देने लगा। इस सब के बावजूद भाजपा सरकार वर्ष 2011 में इसे बंद करने निर्णय ले लिया और अब तो यहां की जमीन व मशीनरी बेचकर पैसे कमाने की जुगत में लगी है। कारखाने को बचाने के लिए किसान-मजदूर , राजनीतिक दलों के नेता व जनता पिछले कई महीनों से आंदोलनरत हैं। दिनों दिन आंदोलन गति पकड़ रहा है । पहले विरोध में विश्वासघात दिवस, उसके बाद धिक्कार दिवस और अब 22 व 23 फरवरी को घेरा डालो डेरा डालो आंदोलन किया है। जिसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, आजाद समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, अखिल भारतीय किसान सभा,कई पूर्व विधायक,एसएफआई के साथ बड़ी संख्या में समाज के बुद्धिजीवी और जनता शामिल हुई।
15 करोड़ रुपए की लागत से बने इस कारखाने में भिंड, मुरैना और शिवपुर के 23 हजार किसानों ने जमीन, गहने बेचकर रुपए इकट्ठे किए थे। सभी इस कारखाने में आज भी शेयर होल्डर हैं। गन्ना इकट्ठा करने के लिए कई जिलों में 65 कलेक्षन सेंटर बनाए गए थे। सबलगढ़, विजयपुर, जौरा और कैलारस, ग्वालियर में बड़ी संख्या में किसान गन्ना बोने लगे थे। 1500 से अधिक लोगों सीधे कारखाने में रोजगार से जुड़े थे। इसके अलावा गन्ना कलेकशन सेंटरों और ढुलाई, तुलाई आदि में काफी मजदूरों की आजीविका चल रही थी करीब 50 हजार किसान परिवार सीधे इससे जुड़े थे।
पूर्व कांग्रेस विधायक महेश दत्त मिश्र बताते हैं कि शुरू में आस-पास के क्षेत्र में गन्ना न मिलने के कारण चुकंदर से 8 किलो गुड़ निकाला गया था, तब किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस कामयाबी से उत्साहित किसानों ने अपने खेतों में गन्ना बोने लगे थे। सालभर में यह कारखाना आठ करोड़ कमा कर देने लगा था। इससे क्षेत्र का विकास हो रहा था और किसानों की माली हालत भी सुधर रही थी, कि अचानक अचानक 2008 में भाजपा सरकार ने इस कारखाने को घाटे का सौदा बताकर बंद करने का निर्णय ले लिया। शेयर होल्डर किसानों ने इसका विरोध किया, तो साधारण सभा की बैठक बुलाई गई। लेकिन प्रोसेसिंग में किसानों की बात न रखते हुए कहा गया कि किसान इस सहकारी मिल को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पीपीपी मोड में चलाना चाहते हैं। किसानों ने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों के साथ बैठक कर इसे बंद करने का विरोध शुरू कर दिया, वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार ने वर्ष 2011 में इसे पूरी तरह बंद करने का निर्णय ले लिया। बावजूद इसके खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2018 के विधानसभा चुनाव में, 2019 के लोकसभा चुनाव में तथा स्थानीय विधायक के कार्यक्रम में शक्कर कारखाने को चलाने का किसानों और जनता से वादा किया। भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी जौरा की आम सभा में कारखाने को चलाने का वादा किया, लेकिन अब सरकार वादे से मुकर रही है और 10 साल से बंद रखकर कारखाने को कौड़ियों के मोल बेचना चाहती है। पिछले 8 फरवरी के आंदोलन से पहले 5 फरवरी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहां आना था, लेकिन आंदोलन के चलते उन्होंने अपना कार्यक्रम ही निरस्त कर दिया।
सिर्फ मशीन की लगी 13 करोड़ रुपए की बोली
दरअसल इस कारखाने का परिसर 300 बीघा में फैला है। 200 बीघे में कारखाना और 100 बीघा कृषि भूमि । मध्यप्रदेश किसान सभा के उपाध्यक्ष अशोक तिवारी ने बताया कि राज्य सरकार ने 8 फरवरी,22 को सिर्फ कारखाने की मशीन की नीलामी की। राज्य सरकार ने 2 करोड़, 78 लाख दाम तय किया था, जबकि मुंबई की एक बड़ी कंपनी ने इन्हीं मशीनों की 13 करोड़ रुपए बोली लगाई। लिहाजा सरकार को बहुत फायदा दिखा। हालांकि आंदोलन के चलते प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। इसके अलावा कारखाना राष्ट्रीय राजमार्ग 552 पर स्थित है। यहां की जमीन का मूल्य किसी बड़े शहरों के मुकाबले कम नहीं है। राज्य सरकार 300 बीघा जमीन प्लाटिंग कर किसी बिल्डर को बेचने की फिराक में है। उन्होंने कहा भाजपा सरकार सब कुछ बेचने पर आमादा है। उन्हें माफियाओं की चिंता है, जनता की नहीं।
तिवारी ने कहा, कारखाना बंद होने से किसान दाने-दाने को मोहताज हो गए। उनके गहने-जमीन सब चली गई। किसानों को गन्ने का बकाया नहीं मिला तो किसानों ने गन्ना बोना बंद कर दिया। मजदूरों केा तनख्वाह नहीं मिली। राज्य सरकार ने एक पैसा नहीं दिया। पीएफ जमा न होने से कामगारों को पेंशन नहीं मिला । आजीविका व चिकित्सा के अभाव 60 से अधिक लोग दम तोड़ चुके हैं।
किसान नेता गयाराम सिंह धाकड़ ने बताया िक कारखाने को बचाने के लिए किसान-मजदूर व जनता का आंदोलन दिनों दिन गति पकड़ रहा है।
यह आंदोलन सरकार की आंखों की किरकिरी बन गया है। इसके अलावा भी राज्य सरकार मुरैना बस स्टैंड, पोरसा बस स्टैंड सहित अन्य संपत्तियों को बेचने के निर्णय के खिलाफ जनता के मन में आक्रोश है।
50 हजार के करीब किसानों की आर्थिक स्थिति में हुआ था सुधार
ब्लॉक कांग्रेस कमेटी जौरा के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह सिकरवार ने कहा है कि सहकारी स्तर पर किसानों को शेयर होल्डर बनाकर निर्वतमान कांग्रेस सरकार ने ग्वालियर चंबल अंचल की समृद्धि के लिए शक्कर कारखाने को स्थापित किया था। आज बिकने की कगार पर है। शक्कर कारखाना स्थापित होने के बाद ग्वालियर चंबल अंचल के 50 हजार के करीब परिवार गन्नो की खेती किया करते थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ था। इतना ही नहीं करीब 1500 मजदूर भी शक्कर कारखाने में कार्यरत थे। मुरैना-ग्वालियर के बाजार भी गुलजार रहता था। कैलारस शक्कर कारखाने की शक्कर की मिठास की गूंज पूरे देश में बनी हुई थी, लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार की ऐसी मंशा है कि शक्कर कारखाने को बेचकर अपने पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाया जा सके। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार की देन शक्कर कारखाना कैलारस को किसी भी सूरत पर बिकने नहीं दिया जाएगा। इसके लिए हम कांग्रेस की ओर से बड़ा आंदोलन करेंगे और कैलारस के शक्कर कारखाने को बचाने का प्रयास करेंगे।
किसान सभा व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस सबसे बड़े उद्योग को बचाने के लिए जनवरी में यहां के बाजार में एक विशाल मानव श्रृंखला बनाई थी। जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हुई थी। साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों को मुख्यमंत्री के नाम एक खुला पत्र जारी किया था।
बहरहाल कैलारस शक्कर कारखाना बचाओ आंदोलन जारी है। यह आंदोलन नई ऊंचाइयों पर पहुंचने लगा है। इस आंदोलन में अब कई संगठन, राजनीतिक दल, बुद्धिजीवी, जनता सब जुड़ चुके हैं। आंदोलन में शामिल सभी दलों ने मुख्यमंत्री के नाम लगातार तहसीलदार को ज्ञापन सौंप रहे हैं। सभी का एक ही संदेश है कि इस कारखाने को बेचने से रोका जाए, उसे दोबारा शुरू किया जाए, किसानों व कर्मचारियों का बकाया भुगतान किया जाए, अंश धारकों का नामांतरण करने जैसे कई मांगों पर गंभीरता से अमल किया जाए।
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