22 हजार किसानों ने फूंका
ऑर्गेनिक फूड का मंत्र
रूबी सरकार
निरंतर वैश्विक अनिश्चितताओं और खाद्य प्रणाली
के लिए बढ़े खतरे को देखते हुए जी-20 की
तरफ से सामूहिक प्रयास की ओर ध्यान दिया जा रहा है। भारत अपने कृषि अनुभव के आधार
पर इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत के पास गंभीर खाद्य सुरक्षा से
निकलने का अनुभव है।भारत को जी-20 की
अध्यक्षता ऐसे समय मिली जब विश्व मानव इतिहास के सबसे अनिश्चित दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली देशों की अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ
प्राथमिकताएं भी बताई। उन्होंने कहा कि भारत का एजेंडा भोजन, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति
का अराजनीतिकरण करके जी-20 देशों
के बीच सहयोग और समन्वय को मजबूत किया जाना है।
विकासशील देशों में भूख और खाद्य असुरक्षा की
समस्या कोई नई नहीं है। इसके समाधान के लिए जी-20 देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अध्यक्षता में कदम उठाए। टिकाऊ खेती और खाद्य आपूर्ति प्रणाली की आवश्यकता पर विशेष
बल दिया गया। हालांकि भारत के किसानों को जैविक खेती के बारे में पहले से मालूम था, लेकिन वे बाजार के प्रभाव में आकर रासायनिक खेती
करने लगे थे। जिससे उनकी जमीन की उर्वरा शक्ति कम होने लगी। अब जब जी-20 के कॉन्क्लेव के जरिए इसका प्रचार-प्रसार होने
लगा, तो देश
के कोने- कोने में किसानों को यह समझ आने लगा कि जैविक विधि से खेती करने से
उत्पादन की लागत तो कम होती ही है साथ ही किसानों की आय भी बढ़ती है ।
अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा
में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं तथा सामान्य उत्पादन की अपेक्षा किसानों को अधिक
लाभ प्राप्त हो रहा है। लेकिन इसके लिए उन्हें श्रम अधिक करना पड़ेगा। उन्हें
स्वयं प्राकृतिक दवाइयां तैयार करनी होगी।
मध्यप्रदेश के कटनी जिले के मानव जीवन विकास
समिति ने यह बीड़ा उठाया और कटनी के साथ-साथ दमोह जिले के किसानों को प्राकृतिक
दवाइयों का प्रशिक्षण देना शुरू किया। इस समिति से जुड़ी मिलन धुर्वे ने बताती है
कि किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने और उनकी लागत कम करने के उद्देष्य
से उन्होंने प्राकृतिक दवाइयां तैयार करने का प्रशिक्षण देने महिला समूहों को अपने
साथ जोड़ा और उन्हें 25 तरह की प्राकृतिक दवाइयां बनाने की ट्रेनिंग
निशुल्क देना प्रारंभ की । धीरे-धीरे महिला समूह की संख्या बढ़ने लगी। वह कटनी के
साथ-साथ दमोह जिले में भी दवाइयों का प्रशिक्षण देने जाने लगीं । इस तरह वह मास्टर
ट्रेनर बन गईं। मिलन बताती हैं कि वह दमोह जिले के ग्राम पंचायत धनेटामॉल, मगदूपुरा और सहरी के महिला समूह को प्राकृतिक
दवाइयां तैयार करने का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की है। जब
महिला समूह ने प्राकृतिक दवाइयां बनाना सीख लिया, तो वे इसे किसानों को बेचने लगी, जिससे उन्हें एक सीजन में 10 से 15 हजार रुपए तक की आय होने लगी। प्रशिक्षित
महिलाएं इतनी जागरूक हो गई िक वे अपने खेत के एक
हिस्से में परिवार के लिए जैविक का उत्पादन करने लगी।
बाजार के लिए तो वे धान, मूंग, उड़द
बो रही हैं, लेकिन अपनी थाली के लिए जैविक को ही प्राथमिकता
देने लगी हैं। समिति ने अब तक इन दो जिलें के करीब 200 गांवों
में 22 हजार
किसानों को गैर कीटनाशक प्रबंधन आधारित खेती करने के
लिए प्रोत्साहित किया है। समिति की ओर से
किसानों व समितियों को नाडेप, भू-नाडेप, हरी खाद, वर्मी
कम्पोस्ट बनाने की विधि बताई जा रही है। इसके अलावा सुपर कंपोस्ट खाद, मटका खाद, खरपतवार नियंत्रण, जैविक
कीट एवं रोग प्रबंधन, आग्नेयास्त्र तैयार करने की विधि, मठास्त्र, नीमास्त्र, हींगास्त्र, लमित रस, चूसक, पीली पट्टी, दशपर्णी पोषक तत्व प्रबंधन, पंचगव्य, फसल एवं फल वर्धक टॉनिक, बीजामृत, बीज शोधक के बारे में भी बताया जा रहा है।
जैविक खेती के साथ ही समिति बिजौली विकासखंड में
पानी, पर्यावरण और आजीविका के सिद्धांत को भी आगे बढ़ा
रही है। यहां किसानों को बीजामृत से बीज शोधन, गुड़
से बीज शोधन, जीवामृत, अजोला, जैव उर्वरक, धान सघनीकरण के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता
है। इसमें खेत का चयन, तैयारी, बीज चयन, बीजोपचार, नर्सरी की तैयारी, पौधे की रोपाई, खरपतवार नियंत्रण, रोग व
कीट नियंत्रण , श्रीविधि से धान की खेती जैसी जानकारी देकर कई एकड़ में जैविक
का उत्पादन किया जा रहा है और औषधियां तैयार की जा रही है। समिति के
सचिव निर्भय सिंह बताते हैं कि गांव में यह एक बेहतर
स्टार्टअप होता जा रहा है।
जल संरक्षण पर विशेष जोर
वर्षा जल को सहेजने के लिए किसानों को प्रेरित
किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पौधा रोपण पर जोर दिया जा रहा है।
सचिव निर्भय सिंह का कहना है कि लोगों को समझना होगा कि खेती में रासायनिक खाद का
उपयोग जिंदगी में जहर घोलने जैसा है। जैविक खेती को बढ़ावा देने और पर्यावरण
संतुलन बनाए रखने के लिए पौधरोपण, जल संचय बहुत आवश्यक है। हर व्यक्ति को अपनी
जिम्मेदारी समझनी होगी। मोटे
अनाज मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदो-कुटकी के उत्पादन और उपयोग पर जोर देने के लिए समिति किसानों
को लगातार जोड़ रही है।
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