Monday, June 12, 2023

वनमित्र पोर्टल की सुस्त चाल से निराश आदिवासी

 वनमित्र पोर्टल की सुस्त चाल से निराश आदिवासी


रूबी सरकार

तेंदूखेड़ा विकासखंड जिला दमोह से करीब 28 किलोमीटर फुलर वनग्राम का रहने वाला रामचरण गोंड आदिवासी को वर्ष 2011-12 से वन अधिकार समिति की ओर से 9 एकड़ कृषि भूमि और आवास का पट्टा मिला ।हालांकि रामचरण का इस भूमि पर तीन पीढ़ी से कब्जा है। लेकिन पट्टा न होने के कारण वन विभाग अतिक्रमणकारी बताकर हर साल जुर्माना वसूलते रहे । पट्टा मिलने के बाद रामचरण केा लगा उसकी परेशानी खत्म हो गई, लेकिन ऐसा कुछ भी उसके साथ नहीं हुआ । रामचरण को अतिक्रमणकारी बताकर वन विभाग ने उन पर मुकदमा चलाया, रामचरण और उनके बेटों को जेल भेजा गया। आज भी वह जमानत पर हैं। इसके बाद मध्यप्रदेश शासन की ओर से 2019-20 में वन मित्र पोर्टल शुरू किया गया। रामचरण से कहा गया  िक वे वनमित्र पोर्टल पर इसी जमीन के पट्टे के लिए आवेदन करे। उन्होंने आवेदन किया , परंतु आज तक उस आवेदन पर कोई फैसला नहीं हुआ। ताज्जुब इस बात की है कि इसी भूमि  को राजस्व विभाग अपनी भूमि बताकर रामचरण से हर साल कभी तीन हजार, कभी दो हजार और कभी एक हजार रुपए जुर्माना वसूल रहा है। रसीद दिखाते हुए रामचरण ने बताया, ऐसी अंधेरगर्दी कहीं देखी है क्या! जिस भूमि पर तीन पीढ़ी से रह रहे है, खेती कर रहे हैं। बाद में उसी भूमि का वनाधिकार समिति ने पट्टा दे दिया। फिर भी सालों साल मुझसे जुर्माना वसूला जा रहा है। यहां तक कि इसी जमीन पर कब्जे को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में  मेरी तरफ से दायर याचिका लंबित है। फिर भी मुझे जंगल से भगाने की नाकाम कोशिश हो रही है। यह अकेले रामचरण का प्रकरण नहीं है, बल्कि इसी जिले के 12 हजार,600 आदिवासियों की यही कहानी है। लगभग सभी आदिवासी सदियों से वन भूमि पर रहते आ रहे हैं। वनाधिकार कानून बनने के बाद 2006 से अपने कब्जे की भूमि पर वन अधिकारी समिति की ओर से पट्टा अनिवार्य किया गया। फिर शासन ने वर्ष 2019-20 में वनमित्र पोर्टल शुरू कर कब्जे वाली भूमि के लिए पुनः ऑनलाइन आवेदन मांगा, लेकिन वनमित्र पोर्टल पर आवेदन करने वाले आदिवासियों में से कुछ का ही भूमि का मसला हल नहीं हुआ।
फुलर गांव में 165 आदिवासी परिवार निवास करते हैं। इसी गांव का सेवालाल गोंड बताते हैं  िक वह 1980 से इसी जंगल में रह रहे हैं। सेवालाल ने बताया कि आदिवासियों को केवल वोट बैंक समझकर राजनेता इस्तेमाल करते हैं। हर बार जमीन , रोजगार देने की बात करते हैं, परंतु देते कुछ नहीं। हमारी परिस्थिति जस की तस है। सेवालाल के पास भी पट्टे और कब्जे की रसीद है। फिर भी वनमित्र पोर्टल पर ओवदन के लिए कहा गया। उन्होंने आवेदन किया, पर नतीजा सिफर रहा। अभी तक उसके पास कार्यवाही की कोई सूचना नहीं आई है।
दमोह के सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम रैकवार बताते हैं कि दरअसल यह पूरा गांव 2000 से पहले अपनी आजीविका के लिए पलायन पर जाते थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का ध्यान इस ओर गया और उन्होंने जंगल में आदिवासियों के रहने और कृषि के लिए  पट्टे देने की व्यवस्था शुरू की । फिर 2006 में वनाधिकार कानून आया , पुनः कब्जे वाली जमीन पर पट्टे के लिए वन अधिकार समिति के पास आदिवासियों को आवेदन देने के लिए कहा गया। समिति की ओर से आदिवासियों केा पट्टा भी मिल गया, अब फिर से शासन की ओर से कहा जा रहा है कि वनमित्र पोर्टल पर पट्टे के लिए आवेदन देना होगा। जबकि दमोह जिले के 12 हजार से अधिक आवेदन लंबित हैं। इसके लिए हम सब संघर्ष कर रहे हैं। कलेक्टर के यहां धरना से लेकर मंत्रियों तक घेराव कर रहे हैं, ताकि कोई तो ठहर कर हमारी परेषानी सुन लें। उन्होंने एक जानकारी और दी कि आदिवासियों की आजीविका के लिए 1976 में अधिक अन्न उपजाओ योजना अंतर्गत कृषि सहकारी समिति बनाई गई थी, इस समिति में आदिवासियों के अलावा अनुसूचित जाति के लोगों को भी शामिल किया गया था, समिति से जुड़े 26 परिवारों की आजीविका इसी कृषि भूमि पर निर्भर थी । अचानक 1996 में इसे निरस्त कर दिया गया। इस तरह कृषि सहकारी समिति की भूमि पर वन विभाग ने कब्जा जमा लिया और इस भूमि से आदिवासियों को भगाना शुरू कर दिया।
गौरतलब है कि दमोह जिला चारों ओर जंगलों से घिरा है । इन जंगलों में 56 हजार आदिवासी निवास करते हैं। रायकवार ने बताया वर्ष 2008 से 2017 तक  केवल तीन हजार हक प्रमाण पत्र ही आदिवासियों को वितरित किए गए । वर्ष 2019-20 में एमपी वनमित्र पोर्टल पर 12 हजार ,600 आवेदन दर्ज हुए। अभी तक मात्र 411 हीक प्रमाण पत्र ही आदिवासियों को दिए गए।
                                                                      18 Sep 2022, Amrit Sandesh Raipur



No comments:

Post a Comment