पानी का बढ़ता बाजारीकरण पर वैश्विक चिंता
रूबी सरकार
बुंदेलखंड की जल सहेलियों की चर्चा अब भारत से बाहर एशिया और अफ्रीका में होने लगी है। गत दिन जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में बुंदेलखंड की जल सहेलियों पर एक चर्चा आयोजित की गई । 12 से 17 सितम्बर तक पेयजल एवं स्वच्छता विषय पर वैश्विक आयोजन किया गया। जिसमें भारत, पाकिस्तान, जिम्बाब्वे, सिरालॉन, मलावी, केन्या, नीदरलैंड, फ्रांस सहित एक दर्जन देशों के लोगों ने भाग लिया।
वैश्विक स्तर पर पेयजल और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण विषय के चिंतन किया जाना जल संकट की गंभीरता को दर्शाता है। इस चर्चा और चिंतन में बुंदेलखंड की जल सहेलियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की गई। चर्चा में यह निकलकर आया कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। बाढ़ और सूखें की स्थिति भयावह होती जा रही है। अनियमित वर्षा ,मानसून का चक्र बदल जाना जैसे कारणों से आम लोग ही नहीं , किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, उनकी उपज कम हो रही है , जिसके कारण उन्हें आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। यह सिर्फ भारत की बात नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इससे दो-चार हो रही है। दूसरी तरफ सरकारी के खजाने पर भी इसका बोझ बढ़ रहा है। सरकार का बहुत सारा धन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में चला जा रहा है।
जल सहेलियों के अगुआ और भारत का हरारे में प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ संजय सिंह बताते हैं कि अफ्रीका और एशिया के देश जो पहले से ही आर्थिक मंदी और महंगाई की मार से जूझ रहे है वही प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ोतरी कोढ में खाज का काम कर रही है। अफ्रीका के जिम्बाब्वे सहित अधिकांश देशों में भूगर्भीय जल का स्तर नीचे जा रहा है। वर्षा जल संरक्षित नहीं हो पा रहा है वन क्षेत्रों में लगातार कमी आ रही है। वनों की तेजी से कटान हो रही हैं जिसके कारण वन क्षेत्र में कमी आ रही है। गरीबी और बेरोजगारी के कारण लोग जंगल की कटान कर रहे है। अफ्रीका में इन दिनों जंगल बहुत तेजी के साथ काटे जा रहे है। इससे जंगली जानवरों की प्रजातियां विलुप्त हो रही है। बदलते मौसम के कारण खेती प्रभावित हो रही है। पूरी दुनिया पर जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ रहा है वह आने वाले दिनों की सबसे बड़ी चुनौती है। जिम्बाब्वे में सितंबर से लेकर फरवरी तक वर्षा होती है लेकिन इस वर्ष अभी तक वर्षा का प्रारम्भ नहीं हुई है, लेकिन सर्दी अधिक पड़ रही है। तापमान में आई गिरावट और सर्दी के कारण बीमारियां बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि इस वैश्विक कार्यशाला में निकलकर आया कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, इसके लिए आपसी सीख को बढ़ावा देना और अनुभवों को साझा करने की जरूरत है। पेयजल एवं स्वच्छता के स्तर मेें बदलाव लाने के लिए व्यवहार परिवर्तन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। जिसके लिए अपने- अपने अनुभवों को साझा किया जाए और क्षेत्रीय स्तर पर ज्ञान को महत्व दिया जाए। जो जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, उन्हें चिन्हित किया जाना आवश्यक है। उनकी क्षमता वृद्धि का आकलन आवश्यक है, राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषण किए जाना आवश्यक है। सरकारी व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सभी को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए ढांचागत व्यवस्था निर्मित की जाए। नीतिगत पैरवी को बढ़ावा दिया जाए। सामाजिक कार्यकर्ताओं का आंदोलनों से निकली सीख को अभियान में बदला जाए। वित्तीय व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए। इन सबके लिए संदर्भों को विशेष महत्व दिया जाए और आवश्यकताओं के साथ ही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए गठजोड़ स्थापित किए जाए।
जिस तेजी से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही है उससे निपटने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। जल संरचनाओं में नियमित रूप से पानी मिले इसके लिए सॉर्स सस्टेनेबिलिटी पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इन सभी बातों के लिए जल अधिकार वाटर राइट को प्राथमिकता दी जाए साथ ही साथ पानी के बाजारीकरण को रोका जाए। पानी सामुदायिक अधिकार की संपत्ति है। इसे वस्तु की तरह नहीं बल्कि प्राकृतिक, नैसर्गिक संसाधन समझकर इसका इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए वैश्विक स्तर पर मजबूत लामबंदी करने की आवश्यकता है। इसके लिए जन पैरवी का बढ़ावा देना होगा। अपने कार्यों में शोध का बढ़ावा देना होगा। सरकारी स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी होगी, वहीं दूसरी तरफ संगठनों को भी अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास करने होंगे। जिससे समयबद्ध कार्यक्रमों का निर्माण हो , साथ ही वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
ज्ञान के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि व्यवस्थागत परिवर्तन सरकार के साथ जुड़ाव, ताकि समयबद्ध ढंग से बदलाव के माध्यम से परिवर्तन दिखाई दे।
इस वैश्विक चर्चा में परमार्थ संस्था के द्वारा बुन्देलखण्ड में किए जा रहे जल संरक्षण के प्रयासों एवं नीतिगत बदलावों को साझा किया गया।
परमार्थ द्वारा बनाए गए पेयजल सुरक्षा कार्य योजनाओं के माध्यम से गांव स्तर पर हो रहे बदलावों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया । जल सहेलियों द्वारा किए जा रहे परंपरागत जल संसाधनों के संरक्षण से ग्रामीण स्तर पर हो रही पेयजल सुरक्षा के मॉडल को अफ्रीकी एवं एशियाई देशों में भी लागू लागू किए जाने पर सहमति बनीं।
बुंदेलखंड की जल सहेलियों की चर्चा अब भारत से बाहर एशिया और अफ्रीका में होने लगी है। गत दिन जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में बुंदेलखंड की जल सहेलियों पर एक चर्चा आयोजित की गई । 12 से 17 सितम्बर तक पेयजल एवं स्वच्छता विषय पर वैश्विक आयोजन किया गया। जिसमें भारत, पाकिस्तान, जिम्बाब्वे, सिरालॉन, मलावी, केन्या, नीदरलैंड, फ्रांस सहित एक दर्जन देशों के लोगों ने भाग लिया।
वैश्विक स्तर पर पेयजल और स्वच्छता जैसे महत्वपूर्ण विषय के चिंतन किया जाना जल संकट की गंभीरता को दर्शाता है। इस चर्चा और चिंतन में बुंदेलखंड की जल सहेलियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की गई। चर्चा में यह निकलकर आया कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। बाढ़ और सूखें की स्थिति भयावह होती जा रही है। अनियमित वर्षा ,मानसून का चक्र बदल जाना जैसे कारणों से आम लोग ही नहीं , किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, उनकी उपज कम हो रही है , जिसके कारण उन्हें आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। यह सिर्फ भारत की बात नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इससे दो-चार हो रही है। दूसरी तरफ सरकारी के खजाने पर भी इसका बोझ बढ़ रहा है। सरकार का बहुत सारा धन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में चला जा रहा है।
जल सहेलियों के अगुआ और भारत का हरारे में प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ संजय सिंह बताते हैं कि अफ्रीका और एशिया के देश जो पहले से ही आर्थिक मंदी और महंगाई की मार से जूझ रहे है वही प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ोतरी कोढ में खाज का काम कर रही है। अफ्रीका के जिम्बाब्वे सहित अधिकांश देशों में भूगर्भीय जल का स्तर नीचे जा रहा है। वर्षा जल संरक्षित नहीं हो पा रहा है वन क्षेत्रों में लगातार कमी आ रही है। वनों की तेजी से कटान हो रही हैं जिसके कारण वन क्षेत्र में कमी आ रही है। गरीबी और बेरोजगारी के कारण लोग जंगल की कटान कर रहे है। अफ्रीका में इन दिनों जंगल बहुत तेजी के साथ काटे जा रहे है। इससे जंगली जानवरों की प्रजातियां विलुप्त हो रही है। बदलते मौसम के कारण खेती प्रभावित हो रही है। पूरी दुनिया पर जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ रहा है वह आने वाले दिनों की सबसे बड़ी चुनौती है। जिम्बाब्वे में सितंबर से लेकर फरवरी तक वर्षा होती है लेकिन इस वर्ष अभी तक वर्षा का प्रारम्भ नहीं हुई है, लेकिन सर्दी अधिक पड़ रही है। तापमान में आई गिरावट और सर्दी के कारण बीमारियां बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि इस वैश्विक कार्यशाला में निकलकर आया कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, इसके लिए आपसी सीख को बढ़ावा देना और अनुभवों को साझा करने की जरूरत है। पेयजल एवं स्वच्छता के स्तर मेें बदलाव लाने के लिए व्यवहार परिवर्तन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। जिसके लिए अपने- अपने अनुभवों को साझा किया जाए और क्षेत्रीय स्तर पर ज्ञान को महत्व दिया जाए। जो जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, उन्हें चिन्हित किया जाना आवश्यक है। उनकी क्षमता वृद्धि का आकलन आवश्यक है, राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषण किए जाना आवश्यक है। सरकारी व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सभी को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए ढांचागत व्यवस्था निर्मित की जाए। नीतिगत पैरवी को बढ़ावा दिया जाए। सामाजिक कार्यकर्ताओं का आंदोलनों से निकली सीख को अभियान में बदला जाए। वित्तीय व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए। इन सबके लिए संदर्भों को विशेष महत्व दिया जाए और आवश्यकताओं के साथ ही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए गठजोड़ स्थापित किए जाए।
जिस तेजी से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही है उससे निपटने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। जल संरचनाओं में नियमित रूप से पानी मिले इसके लिए सॉर्स सस्टेनेबिलिटी पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इन सभी बातों के लिए जल अधिकार वाटर राइट को प्राथमिकता दी जाए साथ ही साथ पानी के बाजारीकरण को रोका जाए। पानी सामुदायिक अधिकार की संपत्ति है। इसे वस्तु की तरह नहीं बल्कि प्राकृतिक, नैसर्गिक संसाधन समझकर इसका इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए वैश्विक स्तर पर मजबूत लामबंदी करने की आवश्यकता है। इसके लिए जन पैरवी का बढ़ावा देना होगा। अपने कार्यों में शोध का बढ़ावा देना होगा। सरकारी स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी होगी, वहीं दूसरी तरफ संगठनों को भी अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास करने होंगे। जिससे समयबद्ध कार्यक्रमों का निर्माण हो , साथ ही वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
ज्ञान के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि व्यवस्थागत परिवर्तन सरकार के साथ जुड़ाव, ताकि समयबद्ध ढंग से बदलाव के माध्यम से परिवर्तन दिखाई दे।
इस वैश्विक चर्चा में परमार्थ संस्था के द्वारा बुन्देलखण्ड में किए जा रहे जल संरक्षण के प्रयासों एवं नीतिगत बदलावों को साझा किया गया।
परमार्थ द्वारा बनाए गए पेयजल सुरक्षा कार्य योजनाओं के माध्यम से गांव स्तर पर हो रहे बदलावों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया । जल सहेलियों द्वारा किए जा रहे परंपरागत जल संसाधनों के संरक्षण से ग्रामीण स्तर पर हो रही पेयजल सुरक्षा के मॉडल को अफ्रीकी एवं एशियाई देशों में भी लागू लागू किए जाने पर सहमति बनीं।
23 Sep 2022, Amrit Sandesh
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