गैर बराबरी के खिलापफ लड़ाई जरूरीः पी साईनाथ
रूबी सरकार
देश के जाने-माने पत्रकार पी साईनाथ कहते हैं कि भारत में पिछले 10 सालों में असमानता की खाई ज्यादा गहरी हुई है। इसलिए आजादी के 75वें साल में कार्पोरेट पावर, अतार्किकता एवं गैर बराबरी के खिलाफ हमें एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी। पी साईनाथ का कहना है कि आजादी के अमृत महोत्सव में आजादी के मूल्यों और संवैधानिक मूल्यों की बात नहीं की जा रही है। पी साईनाथ की चिंता वाजिब है। क्योंकि जनपक्षधर पत्रकारिता हाशिए पर चली गई है। कुछ वैकल्पिक प्लेटफार्म ही है, जहां जनपक्षधर पत्रकार को महत्व दिया जा रहा है। पी साईनाथ ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिए बिना समानता, शिक्षा, स्वास्थ्य जेसे बुनियादी मुद्दों की समस्याओं का हल करना संभव नहीं होगा। उनका मानना है कि कार्पोरेट मीडिया के माध्यम से जनता की आवाज को सामने नहीं लाया जा सकता है।
दरअसल वे भोंपाल में 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में अपनी बात रख रहे थे। यहां मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विकास पर चर्चा हो रही थी।पी साईनाथ के साथ ही अनेक वक्ताओं ने कहा कि मध्यप्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता होने के बावजदू स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार में प्रदेश पिछड़ा हुआ है। विकास संवाद के निदेशक सचिन जैन ने कहा कि सामाजिक विकास के संकेतकों में मध्यप्रदेश पिछड़ा हुआ है। एक ओर केरल में जहां शिशु मृत्यु दर 6 है, वहीं मध्यप्रदेश में इसकी संख्या 43 है। स्वास्थ्य की स्थिति देखा जाए, तो प्रदेष में 14 हजार से ज्यादा उप स्वास्थ्य केन्द्र चाहिए, लेकिन पिछले 15 सालों से 4 हजार की कमी बनी हुई है। एनएफएचएस के नए आंकड़ों में देखा जाए तो गांवों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग मात्र 23 फीसदी घरों में है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र कोठारी ने कहा कि मध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय देश की तुलना में दो तिहाई ही है। प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कुपोषण, बेरोजगारी और अन्य समस्याएं हैं। मध्यप्रदेश के मानव विकास पर काम करने वाले वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप दीक्षित ने कहा कि प्रदेश के 95 फीसदी नेतृत्व यहां की संभावनाओं को छूते ही नहीं है। असीम संभावनाओं के बावजूद हम आगे नहीं बढ़ पाए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजनीतिक नेतृत्व प्रदेश के बजाय व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरदचन्द्र बेहार ने कहा कि प्रदेश में पंचायत राज को मजबूत करने के बजाय खत्म करने का प्रयास किया जाता रहा है, ऐसे में विकेंद्रीकृत विकास की संभावनाएं खत्म होती है। यह सारे मुद्दे मीडिया में क्यों नहीं दर्ज हो रहे हैं। जनपक्षधर पत्रकारिता की इस बदतर हालात के लिए कौन जिम्मेदार है।
फैजान मुस्तफा का कहना है कि असल में कानून का मतलब न्याय होता है, लेकिन कानून के केन्द्र में शक्ति हो गई है। आज स्थिति यह है कि लोगों के न्याय क्या है, बताना मुश्किल हो गया है। पर हमें अन्याय भी नहीं दिख रहा है। किसी के साथ हो रहे अन्याय को देखकर हम विचलित क्यों नहीं हो रहे हैं? यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो मनुष्यता पर प्रश्नचिह्न लगता है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी दी हुई है। इसका साफ मतलब है कि व्यक्ति के दिल में जो कुछ भी है, उसे बोलने दिया जाए। जो समाज बोलने से रोकता है, वह आगे नहीं बढ़ सकता। जनता की सहमति से सरकार है, तो जनता की भागीदारी सरकार की नीतियों पर बोलकर ही हो सकती है। यह प्रशंसा के रूप में भी हो सकता है , आलोचना के रूप में भी। उन्होंने कहा कि देश में वैज्ञानिक चेतना के बिना देश को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। देश में नफरती भाषणों के खिलाफ कड़े कानून बनाने की जरूरत है। आज देश में धर्म, सत्ता और कार्पोरेट का गठजोड़ है, इसे अगर लोग समझ पाएं, तो संभव है कि कुछ बेहतर कर पाएं।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा आज जो देशमें धर्मान्धता फैली है, उसे वैज्ञानिक चेतना से खत्म किया जा सकता है। वैज्ञानिक चेतना के लिए जन विज्ञान आंदोलन से जुड़े लोगों को सामूहिक रूप से आगे आकर काम करना होगा। शिक्षाविद प्रो. आर. रामानुजम ने कहा कि आज जनता डेटा बन गई है। हमें तकनीक के सही इस्तेमाल के लिए लोगों को जागरूक करना होगा। सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज ने कहा कि समाज के उन आयामों की पहचान की जाए, जहां वैज्ञानिक चेतना में कमी है और फिर हमें उन क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है।
वहीं पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज ने कहा कि हर गांव तक प्राथमिक स्कूल की पहुंच हो गई है, भले ही वह स्कूल अत्याधुनिक न हो , लेकिन इन स्कूलों में शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण, समानता और समावेशीकरण के लक्ष्यों को पाया जा सकता है, बस उन स्कूली शिक्षा के क्लासरूम से भेदभाव हटाना होगा। स्कूलों में भाषा, पहनावा, लिंग एवं रंग के आधार पर भेदभाव न हो।
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. अनिता रामपाल ने कहा कि नईशिक्षा नीति में कई खामियां हैं, जो एक बड़े वर्ग को शिक्षा से वंचित कर सकती है। शिक्षा नीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में बाजार का हस्तक्षेप है। भारत के शिक्षा मॉडल में बाजारीकरण की झलक मिलती है। सरकारी स्कूलों की इतनी श्रेणियां बना दी गई है, जो अपने आप में भेदभाव को दर्शाता है। इसी तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बात करते हुए साइंस डॉक्युमेंट्री निर्माता एवं वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा कि जरूरी नहीं कि जिन तक विज्ञान पहुंचे उन तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी पहुंचे। यह हमारी बड़ी जवाबदेही है कि इस वर्ग तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पहुंचाया जाए।
इसी तरह स्वास्थ्य कार्यकर्ता समीर गर्ग कहते है कि आयुष्मान कार्ड जैसी योजना से निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को लाभ हो रहा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा कमजोर हो रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सत्यजीत रथ ने कहा कि महामारी या सामान्य समय में भी हम तक दवाइयों के पहुंचने के साथ-साथ इसकी जानकारियों का भी पहुंचना जरूरी है। जानकारी के अभाव में हम उन बातों को नहीं जान पाते, जिनकी वजह से हमारा स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के चेयर प्रो. एन. रघुराम ने कहा कि कृषि क्षेत्र की विदेशी निजी कंपनियों एवं ईस्ट इंडिया कंपनी में कोई अंतर नहीं है। ये सारी कंपनियां किसानों को लूटकर यहां की पूंजी विदेश ले जा रही है। आज कृषि क्षेत्र के कई समझौते पूंजीवादी पूंजी को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, इसका किसानों को कोई फायदा नहीं है। आश्चर्यजनक बात यह है कि देश में आजादी के बाद उत्पादन बढ़ा है, लेकिन भूखमरी खत्म नहीं हुई। यह वितरण प्रणाली के असफल होने के कारण है।
12 June 2022 Amrit Sandesh Raipur
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