Tuesday, June 13, 2023

दृष्टिबाधित लड़कियों का जोश व जज्बा

 

दृष्टिबाधित लड़कियों का जोश व जज्बा

रूबी सरकार


इन दिनों खेलों   इंडिया  वाक्य लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। फिर चाहे वह दृष्टिबाधित लड़कियां ही क्यों न हो। देश के कोने कोने में यह वाक्य लोगों को प्रेरित कर रहा है। दृष्टि बाधित लड़कियां भी इससे इतनी प्रेरित हुईं  कि खेलों में अपना भविष्य तलाशने लगीं।  ये लड़किया अब क्रिकेट खेलने का जोखिम उठा रही हैं । ये सिर्फ अपने गांव, शहर या राज्य में नहीं, बल्कि नेशनल टूर्नामेंट खेल चुकी हैं और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टूर्नामेंट खेलने की तैयारी कर रही हैं। इन्ही में से एक खिलाड़ी है होशंगाबाद की प्रिया कीर।

प्रिया क्रिकेट टीम की सबसे लम्बी और बीए तृतीय वर्ष की 20 वर्षीय छात्रा है । प्रिया क्रिकेट ही नहीं, जूडो में भी राष्ट्रीय चैम्पियन हैं। उसने तीन गोल्ड, दो सिल्वर और एक कांस्य  अपने नाम किया हैं। इतना ही नहीं तीन बार अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए उसे न्योता मिल चुका है, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह विदेश में खेलने नहीं जा सकीं । समाज की दकियानुसी सोच के चलते उसे कहीं से भी आर्थिक मदद नहीं मिली। हालांकि प्रिया को आगे लाने में सोहागपुर की दलित संस्था की अहम भूमिका रही है। संस्था ने ही प्रिया की प्रतिभा को पहली बार पहचाना और उसे प्रोत्साहित किया। तब तक प्रिया के मन से डर था कि वह शायद समाज की मुख्यधारा में शामिल न हो पाए। संस्था की मदद से वह जूडो खिलाड़ी बन पाईं। इसके बाद जब क्रिकेट में संभावना दिखी तो प्रिया आगे बढ़ कर क्रिकेट खेलने के लिए तैयार हो गईं। क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन मध्यप्रदेश की महासचिव केपी सोनू गोलकर से उसे मदद मिली।

दरअसल उस समय क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन मध्यप्रदेश की महासचिव केपी सोनू गोलकर

मध्यप्रदेश में ऐसी  लड़कियों को तलाश कर एक क्रिकेट टीम बनाने का सपना देख रहे थे । जाहिर है सोनू के लिए यह जोखिम भरा काम था। एक तो दृष्टि बाधित , उपर से लड़की, गांव और दूर दराज परिवारों से उन्हें राजधानी भोपाल लाकर  तराशना चुनौती भरा काम था। साथ में इन लड़कियों  के लिए क्रिकेट उपकरणों की व्यवस्था भी उसे करना था।  इनकी सुरक्षा से सोनू  को कोई समझौता नहीं करना, यानी कदम कदम पर चुनौतियां रहीं। लेकिन सोनू की दृढ़ इच्छा शक्ति ने काम को आसान बना दिया। उन्होंने जोखिम उठाया और स्पांसर की तलाश शुरू की।  सोनू कहते हैं, इस तरह के टूर्नामेंट के लिए आसानी से कोई स्पांसर मिलता  नहीं । बहरहाल सोनू और उनकी टीम के अमित, कृतिका, आशुतोष और निधि सब मिलकर इस दिशा में प्रयास करने लगे।

सोनू वर्ष 2015 में गठित क्रिकेट एसोसिएषन द ब्लाइंट इन इंडिया के सदस्य बनें और वह स्वयं क्रिकेट के नेशनल क्रिकेट खिलाड़ी हैं। जब  एसोसिएषन का पहला महिला नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट दिल्ली में आयोजित हुआ और देश के 7 राज्यों की लड़कियों ने इसमें भाग लिया । तभी सोनू ने मध्यप्रदेश में टीम बनाने का संकल्प ले लिया था। सोनू  और उनकी टीम ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर, इंदौर, भोपाल जैसे शहरों में क्रिकेट खेलने में रुचि रखने वाली दृष्टि बाधित लड़कियो की तलाश  करने लगे। सोनू बताते हैं कि  आश्चर्य तब हुआ, जब शहरों की अपेक्षा गांव से लड़कियां बड़ी संख्या में बाहर निकलकर  आईं।

सोनू ने प्रदेश भर से 160 लड़कियों को ढूंढ़ निकाला और उन्हें क्रिकेट  का प्रशिक्षण देना शुरू किया। ताकि अगले नेशनल टूर्नामेंट में मध्यप्रदेश की भागीदारी  संभव हो सके । सोनू के इस प्रयास से  वर्ष 2022 में बैगलुरु में आयोजित नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए लड़कियां तैयार हो गईं। वर्ष 2020 में जहां 7 राज्यों की टीम ने भागीदारी की थी , वहीं वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 14 राज्यों तक पहुंच गई। 14 राज्यों के टूर्नामेंट में मध्यप्रदेश की टीम हरियाणा की टीम को हराकर तीसरा स्थान प्राप्त किया। सोनू यही नहीं रूके, बल्कि अगस्त 2023 में इंग्लैण्ड में आयोजित अंतरराष्ट्ररीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए लड़कियों को तैयार करने में जुट गए । सोनू बताते हैं कि उनका सपना है कि अगस्त 2023 में इंग्लैण्ड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में मध्यप्रदेश की खिलाड़ी भाग लें। कम से कम दो खिलाड़ी मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व अवश्य करें।

प्रिया दृष्टि बाधित होते हुए भी गजब की साहसी और आत्मविश्वासी है। वह बीए तृतीय वर्ष की छात्रा है। वह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए रोज मैदान में पसीना बहा रही हैं। प्रिया कहती है कि वह जन्म से ही ब्लाइंड है । इसलिए शुरू में डर और झिझक उसके भीतर भी रहा। लेकिन जब एक बार घर से बाहर खेलने निकल गई, तो धीरे-धीरे डर समाप्त हो गया और प्रतियोगिता की भावना मन में आने लगी। इससे अपने आप आत्मविष्वास बढ़ने लगा ।   मजदूर पिता ब्रजलाल कीर के  पांच बच्चों में से एक है प्रिया । यहां यह बताना जरूरी है कि पांचों भाई-बहनों में से चार दृष्टि बाधित हैं। फिर भी प्रिया कभी संसाधनों की कमी को सपनों के आड़े नहीं आने दिया। पिता की शंका, डर सब कुछ पर विजय हासिल करते हुए उसने बैगलुरु टूर्नामेंट में भाग लिया ।

प्रिया की ही तरह सपना अहिरवाल भी दृष्टिबाधित हैं। वह भी बैंगलुरु टूर्नामेंट की हिस्सेदार रहीं। ग्वालियर की रहने वाली सपना के पिता भजनलाल अहिरवार ठेकेदार हैं।  सपना कहती हैं कि जन्म से वह दृष्टिबाधित नहीं है, बल्कि 6 साल की उम्र में अचानक पढ़ाई के दौरान उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। पिता ने काफी इलाज करवाया। परंतु उसकी आंखों की ज्योति वापस नहीं आई। सपना इसे लेकर कभी विचलित नहीं हुई, इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं माना,बल्कि वह अपनी जिंदगी पहले जैसी ही जीने लगी।  वह एक अच्छी एथलीट हैं । उसने 2018 में उसने नेशनल एथलीट चैंपियन में सिल्वर और कांस्य मेडल जीता । इसके अलावा 2019 में उसने राज्य स्तरीय योग प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। उसका सपना ही है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट में भाग ले। अपनी सकारात्म सोच से सपना कहती है कि शायद मैं सामान्य लड़की होती , तो मुझे इतना मौका नहीं मिलता। इसलिए मैं इसे कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत मानती हूं। सपना अभी 12वीं की पढ़ाई भी कर रही है।

                                                                     26 June 2022, Amrit Sandesh Raipur






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