तनाव मुक्त रखने युवाओं के प्रतिभा को बढ़ावा देना होगा
रूबी सरकार
कोरोना संक्रमण के दौरान और उसके बाद का समय हर आयु वर्ग के लिए तनाव भरा है। युवाओं के सामने बेरोजगारी, पढ़ाई, विश्वविद्यालयों में दाखिला, मनपसंद विषय बहुत सारी समस्याएं हैं, जिसे वह किसी से साझा नहीं कर पाते। वे अंदर ही अंदर घुटते रहते थे, जो उनके सेहत के लिए हानिकारक है। इससे अलग उन्हें खुद नहीं पता होता है कि उनमें कौन सी छिपी प्रतिभा है, जिसे वह भविष्य में अपना करियर बना सकते हैं। इसी छिपी प्रतिभा को उभारने के लिए विश्वविद्यालयों में प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की पत्रकारिता विभाग से मास्टर्स कर रही 22 वर्षीय रिसिका रघुवंशी ऐसी ही एक छात्रा है। जिन्हें विश्वविद्यालय ने प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में मंच मिला और उसने अपने हुनर से लोगों को परिचित करवाया। शिक्षिका डॉ राखी तिवारी की भी इसमें अहम भूमिका रही। रिसिका स्वास्थ्य संसद में चित्रकला प्रतियोगिता में अव्वल रहीं। साथ ही प्रतिभा प्रतियोगिता में रंगोली और अन्य विधाओं में अपना हुनर दिखाया। रिसिका सिर्फ पढ़ाई में ही दूसरे विद्यार्थियों से बेहतर नहीं है, बल्कि पढ़ाई के अलावा वह अपने भविष्य के सपने भी बुनती है। रिसिका कहती है कि उसे खुद नहीं पता था िक उसके भीतर एक कलाकार है। जिसे उसे दिशा देनी है।
दरअसल वह कोरोना संक्रमण का दौर था यानी 2020 । पूरे देश में घरबंदी थी , दुनिया निराशा में जी रही थी । टीवी देखना या समाचार सुनने से लोगों का मन भारी हो जाता था। तनाव से उबरने को कोई रास्ता लोगों को समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे में छिंदवाड़ा जिले की एक किसान की बेटी अपने परिवार को उदास देखकर उनके चेहरे में उम्मीद जगाने के लिए पूरे परिवार का कैनवास पर प्रतिकृति बनाने लगती है। जिसे देखकर माता-पिता उम्मीद से भर जाते हैं। उन्हें लगता है कि इसे तो फाइन आर्ट्स की पढ़ाई करनी थी। रिसिका ने इससे पहले कभी कोई प्रतिकृति नहीं बनाई थी। न ही कोई विधिवत इसकी षिक्षा ली थी। सिर्फ तनाव दूर करने के लिए उसने लोगों की तस्वीर देखकर उसे कैनवास पर उतारती और उसमें रंग भरने लगती। पहला कैनवास मां, मौसी के साथ रिसिका खड़ी हुई दिखती है। जिसे मां ने सोशल नेटवर्किंग साइट में आईकॉन बनाया। फिर क्या था , परिचित तारीफों की बरसात करने लगे। उसे प्रोत्साहन मिलने लगा और वह आगे बढ़ती गई।
उसे अकेले में बैठकर पेंटिंग बनाते देख उसका इकलौता भाई भी उसका साथ देने लगा। फिर तो पता ही नहीं चला कि कब कोरोना का खौफ निकल गया। मात्र दो साल के भीतर वह इतनी मंझ गई कि अब बैठे-बैठे 5 मिनट में किसी की भी प्रतिकृति (पोर्ट्रेट) बना लेती है। जिसमें नाक, कान, ऑख न होते हुए भी लोग उसे आसानी से पहचान लेते हैं। अब तक वह सैकड़ों प्रतिकृति बना चुकी हैं।
रिसिका कहती है कि मुझे दरअसल कार्टूनिस्ट बनना था,मैं पत्रकारिता की पढ़ाई ही इसलिए कर रही हूं। मेरी दिषा बदल सकती है, क्योंकि मेरे पास फेब्रिक कलर से बैग, मैटेरियल और साड़ियों के लिए ऑफर आने लगे। संभवतः मैं आगे चलकर ग्राफिक्स डिजाइनर बनूं। मैं अब अपनी कला को प्रोफेशन का रूप देने के लिए इसी विधा में पढ़ाई करना चाहूंगी, ताकि मैं अपने साथ-साथ दूसरे युवाओं को भी जोड़ सकूं। उसने कहा, मेरी कला को पहचान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने दी। मैंने प्रतिभा प्रतियोगिता में भाग लिया। स्वास्थ्य संसद में पेंटिंग बनाई, जिसके लिए मुझे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । इससे मेरा मनोबल बढा। अब तक तो एक्रेलिक रंगों से पोट््रेट तैयार करती थी। अब मैं वॉटर, फेब्रिक आदि कलर्स का इस्तेमाल कर अन्य विधाओं में भी हाथ अजमाउंगी। यही मेरा स्वंय का स्कील्ड है, मैं इसे और विस्तार दूंगी।
ताज्जुब यह है कि रिसिका ने कभी सुव्यवस्थित कला शिक्षा नहीं लिया, न ही किसी गुरु से दीक्षा ली। स्वयं के प्रयास से इतने सधे हुए हाथों से प्रतिकृति की लंबी श्रृंखला तैयार करना कोई मामूली बात नहीं है। वह अभी कला की उठा-पटक, विचार की दुनिया से अंजान है। उसके पोट््रेट में मासूमियत साफ झलकती है। उसमें ठहराव है। वह शोर से दूर रहना पसंद करती है । वह जितनी बेहतर कलाकार है उतनी अच्छी विद्यार्थी भी है। रिसिका को कला के प्रोफेशन में कदम रखने के लिए चित्रण का पाठ, अवधारणा, प्रक्रिया की सजावट, दृश्य व्याख्या सब सिखना होगा। रिसिका का मानना है कि हर बच्चों में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होता है। उसे आकार देना अभिभावक व शिक्षकों का काम है। इससे बच्चा हमेशा तनाव मुक्त रहेगा और उसे गलत दिशा में जाने से भी बचाया जा सकता है।
कला में बहुत संभावना है । बैग और कपड़ों के अलावा भी पोस्टर, फलायर्स, पत्रिकाओं, पुस्तकों, ष्षक्षिण सामग्री, एनीमेशन, वीडियो गेम में एकीकरण, फिल्म, वेबसाइट और ऐप्स को अधिक उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाने के लिए भी इस तरह के डिजाइन किया जाता है । दरअसल चित्रण का अर्थ ही है उदाहरण प्रस्तुत करना या तो लिखित रूप में हो या फिर चित्र के रूप में। अब लोगों के पास समय कम है, इसलिए वे पढ़ने की अपेक्षा देखना अधिक पसंद करते हैं।
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