देश के अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा का मामला
रूबी सरकारविगत दिन जबलपुर के न्यू लाइफ हॉस्पिटल में आग लगने से करीब 10 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले नवंबर 2021 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक वार्ड में आग लगने से चार मासूमों की मौत ंहो गई थी। देष का वाइब्रेंड स्टेट गुजरात की बात करूं तो यहां नवंबर 20 में राजकोट के एक निजी कोविड अस्पताल में भीषण आग लगने से पांच मरीजों की जिंदा जलकर मौत हो गई थी तथा अन्य कई मरीज झुलस गए थे, उन्हें तुरंत दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस अस्पताल में करीब 33 मरीज भर्ती थे। प्रधानमंत्री ने भी इस दुर्घटना पर शोक व्यक्त किया था।
राजकोट में कोविड-19 अस्पताल में अग्निकांड पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था । न्यायमूर्ति ने कहा था कि बार-बार इस तरह की घटनाएं होने के बावजूद इन्हें कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। इस तरह की घटनाओं पर राज्यों की तीखी आलोचना भी की थी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने इस घटना को हतप्रभ करने वाला बताते हुए कहा था कि यह बहुत ही गंभीर मामला है । पीठ ने कहा कि यह घटना इस बात का प्रतीक है कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अग्नि सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त नहीं है साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस साल दिसंबर तक रिपोर्ट पेष करने का आदेश दिया था। बावजूद इसके भरूच में मई 2021 में पुनः कोविड-19 अस्पताल में आग लग जाती है , जिसमें 18 मरीजों की मौत हो जाती है।
अकेले मध्यप्रदेश में पिछले डेढ़ साल में छह अस्पतालों में आगजनी की घटना हुई है, जिसमें 23 मरीजों की जान गई है, इनमें अगस्त 2022 जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल में अग्निकांड से 10 लोगों की मौत के अलावा जनवरी 2022 इंदौर के मेदांता अस्पताल के आईसीयू में आग, मई 2021 में अशोकनगर जिला अस्पताल में आग, जून 2021 में खरगोन जिला अस्पताल आईसीयू में आग, नवंबर 2021 में भोपाल के कमला नेहरू चिल्ड्रन अस्पताल अग्निकांड में 12 बच्चों मौत, दिसंबर 2020 शिवपुरी जिला अस्पताल में आग से एक मरीज की मौत शामिल हैं। बावजूद इसके मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने कोई सबक नहीं लिया। हद यह है कि नया अस्पताल खोलने या पुराने के नवीनीकरण के लिए 12 दस्तावेज मांगे जाते है। परंतु दस्तावेज पूरे हो या न हो लाइसेंस लेने में कोई रुकावट नहीं आती।
ताज्जूब यह है कि पंजीयन के लिए ऑनलाइन आवेदन में स्वास्थ्य विभाग अस्पताल में आने वाले डॉक्टर्स की सूची, उपकरण के नाम, भवन का नक्शा, निगम की मंजूरी से लेकर मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट के इंतजाम की जानकारी अनिवार्य रूप से मांगा जाता है, लेकिन फायर एनओसी की तमाम अस्पतालों में फायर सेफ्टी नियमों की जमकर अनदेखी की जाती है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि देश में भ्रष्टाचार के साथ-साथ आम लोगों की सुविधाओं की अनदेखी हो रही है।
भारत सरकार की ओर से भी फायर मॉडल बिल 2019 संपूर्ण राज्यों को अपने क्षेत्र की परिस्थितियों अनुसार बदलाव कर लागू करने के निर्देश दिए गए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश में फायर इमरजेंसी,प्रिवेंशन एंड सेफ्टी एक्ट 2020 अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान द्वारा प्रदेश के संपूर्ण क्षेत्र जिसमें शहर व गांव शामिल हैं, में अग्नि अधिनियम 2020 फायर इमरजेंसी, प्रिवेंशन एंड सेफ्टी एक्ट का खाका तैयार कर नगरीय विकास एवं आवास विभाग को प्रस्तावित किया गया है। लेकिन इस इमरजेंसी, प्रिवेंशन एंड सेफ्टी एक्ट के उस खाका का क्या हुआ संबंधित विभागों के पास कोई जानकारी नहीं है । हालांकि स्वास्थ्य आयुक्त पी सुदामा खाड़े बताते है कि अस्पतालों में सुधार के लिए निर्देश जारी कर रहे हैं।
मई 2021 में नगर निगम भोपाल द्वारा जारी सार्वजनिक सूचना के मद्देनजर लगाई गई आरटीआई में भी खुलासा हुआ है कि नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के मुताबिक फायर एनओसी लेने में संस्थान कितने लापरवाह है और इससे ज्यादा लापरवाही जिम्मेदार विभागों की है जो समय रहते लापरवाही संस्थानों की जांच करने में कोताही बरत रहे हैं।
जबलपुर की घटना के बाद अस्पतालों में फायर सेफ्टी के बारे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक समन्वय समिति बनाई है। मुख्यमंत्री का कहना है कि यह समिति मौजूदा नियम कानूनों की समीक्षा करेगी। अस्पतालों को जरूरी अग्नि सुरक्षा इंतजामों के बाद ही लाइसेंस जारी किए जाएंगे। इससे जुड़ी प्रक्रिया में भी जल्द ही जरूरी सुधार किए जाएंगे।
जबलपुर की घटना के बाद अस्पतालों में आए दिन होने वाले अग्निकांडों को लेकर एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की गई है, जिसमें मुख्यतः तीन मांग की गई है, पहला, अस्पतालों के स्पॉट वेरिफिकेशन के बाद ही उन्हें लाइसेंस दिए जाएं और इलाज की अनुमति जारी रखने के लिए समय-समय पर निरीक्षण किए जाएं। दूसरी मांग ये है कि अस्पतालों की बिल्डिंगों को खूबसूरत दिखाने के लिए होने वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर बैन लगाया जाए और अस्पताल बिल्डिंग के निर्माण में इन-फ्लेमेबल यानि अग्नि रोधक सामग्री का इस्तेमाल किया जाए। वहीं तीसरी मांग की गई है कि हर अस्पताल में नियमित रूप से इलेक्ट्रीशियन और फायर सेफ्टी ऑफीसर की नियुक्ति की जाए ताकि अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं को रोका जा सके। याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता जनकल्याण परिषद के प्रवीण पाण्डेय ने उम्मीद जताई है कि मुख्य न्यायाधीश उनकी मांग पर संज्ञान लेंगे। हाईकोर्ट में इस पत्र याचिका पर आने वाले दिनों में जल्द सुनवाई होगी। परंतु सवाल यही है कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हो रही है तो फिर हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन कौन और किस तरह कराया जाएगा।
No comments:
Post a Comment