खाद्य पदार्थों की पैकिंग पर जीएसटी के खिलाफ हैं समूह की महिलाएं
रूबी सरकारदेश में 18 जुलाई 2022 से जीएसटी काउंसिल ने आटा, दाल और अन्य खाद्य पदार्थों पर पांच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगाने का निर्णय लागू किया है। नए नियम के अनुसार पैकेट में मिलने वाले आटा, दाल, दही और पनीर,शहद जैसे रोजमर्रा के भोजन में शामिल खाद्य पदार्थों पर 5 फीसदी जीएसटी टैक्स लगेगा।
जीवित रहने के लिए पहली मूलभूत आवश्यकता भोजन ही है। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा 5 फीसदी जीएसटी आम लोगों को भारी पड़ रहा है और वे सरकार से भोजन की गारंटी मांग रहे हैं और यह एक संवेदनशील लोकतांत्रिक सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि वह अपने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य वर्धक शुद्ध पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास करे। गांधी ग्राम सेवा केंद्र चार मंडली के कर्ता-धर्ता एवं सेवा निवृत्त प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त डॉ आर के पालीवाल बताते हैं कि केंद्र व राज्य सरकारों ने कोरोना महामारी के दौरान बड़ी संख्या में गरीबों को मुफ्त राशन देकर यह सिद्ध कर दिया है कि उन्हें जनता की कितनी चिंता है। यह सराहनीय कार्य भी किया है। लेकिन जब हम इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष मना रहे हैं उस वक्त रोजमर्रा की खाने-पीने की वस्तुओं पर अतिरिक्त टैक्स लागू कर जनता पर बोझ डालना कितना न्यायोचित फैसला लगता है बताइए! हमारे लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि विगत साढ़े सात दशकों में हम अपने नागरिकों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा पाए।
उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों को याद होगा कि जब गुलामी के दौर में अंग्रेज सरकार ने नमक पर टैक्स लगाया था जिसके विरोध में गांधीजी ने ऐतिहासिक दांडी मार्च किया था और उनके साथ पूरा देश आंदोलनरत हो गया था । लेकिन अब तो खाने के आटे और दाल जैसी जीवन के लिए सबसे जरूरी खाद्य पदार्थों पर टैक्स लगा दिया गया है।
सबसे अहम बात यह है कि पैकेट वाले आटे जैसे खाद्य पदार्थों पर जीएसटी से बढ़ने वाला महंगाई न केवल पहले से बढ़ी चौतरफा महंगाई को और ज्यादा बढ़ा कर आम जनता की कमर तोडेगी, बल्कि सरकार के जनता और किसान हितैषी होने के दावों को भी झूठा साबित कर कर देगी।
दूसरी तरफ पैकेट बंद खाद्य पदार्थ वर्तमान में आजीविका मिशन के तहत गांवों की महिलाओं के स्व सहायता समूहों द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर बनाए जा रहे हैं। खुले खाद्य पदार्थों की तुलना में ऐसे खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहतर होते हैं। नए कर से बचने के लिए गरीब जनता और किसान फिर से खुले खाद्य पदार्थ खरीदने और बेचने के लिए मजबूर होंगे जिससे बहुत से महिला सेल्फ हेल्प समूहों के रोजगार और आम लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। जौरा विकास खंड के रूनीपुर गांव की सुनीता बाई कहती हैं कि उनके समूह की महिलाओं शहद निकालने और उसे पैकिंग कर उसे बाजार में बेचती हैं। अब शहद की शीशी पर टैक्स लगने से यह और महंगा हो जाएगा, इससे हमारे रोजगार पर असर पड़ेगा। जो हमारे परिचित हैं, वह तो खुला सामान खरीद लेंगे। लेकिन बाजार से हमें फायदा होता था, उस पर बहुत बुरा असर पड़ने वाला है।
इसी तरह दूध और उसके सह उत्पादों पनीर, दही, छाछ आदि पर भी 5 परसेंट जीएसटी लगाया गया है। देशभर के किसान इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि खेती के बाद किसानों की जीविका के लिए दूसरा मुख्य स्रोत दूध ही है। अखिल भारतीय किसान सभा ने गांव-गांव पहुंचकर किसानों को एकत्रित करना शुरू कर दिया है। साथ ही केंद्र की भाजपा सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जीएसटी वापस नहीं हुई तो कृषि कानून जैसा विरोध प्रदर्शन होगा।
किसान नेता दयाराम सिंह धाकड़ ने बताया कि दूध पर टैक्स लगाने से किसानों की हालत और ज्यादा खराब हो जाएगी तथा विदेशों से दुग्ध पाउडर का आयात और ज्यादा बढ़ जाएगा क्योंकि दुग्ध पाउडर की कीमत विदेशों में काफी कम है। इससे किसानों की जीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पहले से ही बदहाली में जी रहे किसान और ज्यादा बुरी हालत में पहुंच जाएंगे। इसके विरोध में किसानों के संगठन अखिल भारतीय किसान सभा और दूध फेडरेशन की ओर से संसद पर विरोध प्रदर्शन भी किया । इसके प्रति एकजुटता दिखाते हुए विभिन्न गांव में किसानों ने अपने-अपने स्तर पर विरोध दिवस आयोजित किया है। ग्राम बस्तौली में कार्यवाही का नेतृत्व किसान नेता पूर्व सोसायटी अध्यक्ष सुरेश धाकड़, सरवन लाल, सियाराम सिंह, रामदयाल, प्रभु दयाल धाकड़ आदि ने किया। किसान नेताओं ने केंद्र सरकार से दूध और उसके सह उत्पादों पर लगाए गए जीएसटी (टैक्स) को वापिस लेने की मांग की है।
किसान नेताओं ने कहा कि सरकार पेट्रोलियम पदार्थों और जीएसटी से संबंधित मामलों में अक्सर यह कहकर बचने की असफल कोशिश करती है कि जीएसटी से संबंधित निर्णय काउंसिल स्वतंत्र रूप से करती है। लेकिन देश की जनता को पता है कि इस काउंसिल के सभी सदस्य केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नामित किए जाते हैं, जो सरकार की नीतियों के अनुसार ही निर्णय करते हैं।
गांधीजी ने कहा है कि किसी भी निर्णय को परखने के लिए हमें यह फॉर्मूला अपनाना चाहिए कि हमारे फैसले से सबसे गरीब व्यक्ति को लाभ होगा या यह उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा। गांधी के कथन के लिहाज से भी यह निर्णय जन विरोधी है। इसीलिए रचनात्मक कार्य से जुड़ी देष की स्व सहायता समूह की महिलाओं ने कहा कि खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाना किसी भी दृष्टि से जनहित में नहीं है। केंद्र सरकार को तत्काल इसे निरस्त करना चाहिए।
उधर केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया है कि ये दरें खुद सरकार ने तय नहीं की हैं बल्कि राज्य सरकारों की सहमति के बाद ये फैसला लिया गया था। केंद्र सरकार का कहना है कि विभिन्न वस्तुओं पर लगाई गई जीएसटी का फैसला अकेले केंद्र सरकार का नहीं है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान संसद में ये जानकारी दी। इससे यह साफ हो जाता है कि महंगाई को कम करने में किसी भी पार्टी की कोई रुचि नहीं है।
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