जल जीवन मिशन - आगे बढ़ाने में चैंपियन बन रहीं महिलाएं
रूबी सरकार
ग्रामीण जल जीवन मिशन के अंतर्गत घरों में नल से जल उपलब्ध होने से महिलाओं और किशोरी बालिकाओं को सबसे अधिक लाभ मिलने लगा है। किशोरियां स्कूल जाने लगी है, तो महिलाओं ने रोजगार के नए.नए साधन ढूंढ़कर अपनी आजीविका में सुधार ला रही हैं। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। पानी के लिए दशकों तक ग्रामीण महिलाओं ने संघर्ष किया है। कलेक्टरों को आवेदन, ज्ञापन, आंदोलन, घेराव तक करना पड़ा है। तब जाकर जल जीवन मिशन के तहत उनके घरों में पेयजल की आपूर्ति संभव हो पाया है। वहीं जल निगम की ओर से ग्रामीण महिलाओं को शुद्ध पेयजल की जांच, जल की बर्बादी रोकना, जलकर वसूली कर निर्धारित समय पर सरकार के खाते में पैसे जमा करने के साथ ही जल से संबंधित किसी भी शिकायत हो तो तुरंत स्मार्ट फोन से अधिकारियों को सूचित करना और जल जनित बीमारियों की जानकारी आदि के लिए प्रशिक्षित किया गया है। यहाँ तक कि पेयजल परीक्षण के लिए उन्हें किट भी उपलब्ध करवाया गया है। यानी पेयजल के मामले में ग्रामीण महिलाएं अब पूरी तरह चैंपियन बन चुकी हैं। हर गांव में महिला समूहों ने मिलकर जल समिति का गठन किया है, जो ग्रामीणों के जलप्रदाय की देखरेख कर रही हैं।
आम तौर पर समाज में घरेलू पानी की व्यवस्था करना महिलाओं का काम माना जाता है और इसके लिए वह दिन.रात जूझती हैं। इससे उनके सेहत के साथ.साथ अन्य घरेलू काम प्रभावित होता है। न जाने कितने घरों में जल को लेकर झगड़े होते थे, परिवारों में दरार पड़ने यहां तक कि गर्भवती महिलाओं का गर्भपात तक की नौबत आ जाती है। इसी तरह किशोरियों की पढ़ाई तक छूट जाती थी। बच्चे उपेक्षित रहते थे। मां के कई किलोमीटर दूर से पानी लाने के कारण अक्सर घरों में सबसे बड़ा भाई या बहन अन्य छोटे भाई.बहनों की देखभाल करते हैं। जबकि वह स्वयं उम्र में बहुत छोटे होते हैं। ऐसी अनेक दुख भरी कहानियां छिंदवाड़ा जिले के मऊ ग्राम पंचायत की महिलाओं ने साझा किया।
ग्राम पंचायत गडमऊ की अनिता चौधरी जल समिति की अध्यक्ष हैं। उन्होंने बताया कि मोहखेड़ ग्रामीण जल प्रदाय योजना में सिर्फ डेम में बरसात का पानी स्टोर कर इसे शोधन के बाद मऊ ग्राम पंचायत सहित 30 गांवों की प्यास बुझाई जा रही है। दशकों तक संघर्ष करने के बाद उन्हें यह दिन नसीब हुआ है। ग्रामीण महिलाओं को पानी की अहमियत मालूम है। फिलहाल गडमऊ ग्राम पंचायत में करीब 623 नल कनेक्शन हैं।
सरपंच ममता सुदामा डोबले बताती हैं कि पेयजल के लिए मारामारी को देखकर वर्ष 2012 में सरपंच के लिए चुनाव लड़ी, लेकिन दुर्भाग्य से हार गई। इस बार चुनकर सरपंच बनी, लेकिन पहले ही सरकार ने नल.जल योजना के तहत गांव में पेयजल का समाधान कर दिया। सरकार की इच्छाशक्ति और अधिकारियों की संवेदनशीलता से सब कुछ आसान हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब गर्मी के दिनों में कहीं से पानी नहीं मिलता था, तो पंचायत की तरफ से टैंक मंगाए जाते थे। उस टैंकर के पीछे महिलाएं बदहवाश भागती हैं। एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि गांव की एक महिला इसी तरह पानी के पीछे भागते हुए पत्थर से टकरा गई और उनका पैर ही टूट गया । वह हमेशा हमेशा के लिए दिव्यांग हो गईं।
वहीं अनिता बताती हैं कि उनकी सास ने उन्हें बताया था कि पानी की तलाश में भटकने के दौरान छोटे बच्चों को बड़े बच्चों के हवाले कर घर से निकलना पड़ता था। एक बार उनकी सास के 3 माह के देवर को बड़े बेटे के हवाले कर जो अभी मात्र 3 साल का ही था, पानी के लिए निकल गई थी । छोटा भाई रोने लगा, तो बड़े ने उसे झूले पर झुलाना शुरू किया । ऐसे में छोटे के गले में रस्सी फंस गई। पड़ोसी ने देखा और तुरंत उसे रस्सी से आजाद कर अस्पताल ले गया, जहां किसी तरह उसकी जान बच पाई। देवर अब 29 साल का हो गया है, परंतु सास को वह डरावनी कहानी अब भी अच्छी तरह याद हैँ। अनिता ने कहा कि जितना समय पहले पानी के पीछे चला जाता था, उसे अब महिलाएं रोजगार में लगाकर अपनी आय बढ़ा रही हैं । अनिता की एक दुकान है, जहां से उन्हें प्रतिमाह 4000 रुपए की आय हो रही है। इस आय से वह परिवार की मदद करती है और उनका जीवन स्तर भी पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हुआ है। इन सब कारणों से वह जलकर वसूली में ज्यादा रुचि लेती हैं, ताकि यह सिलसिला थमे नहीं।
इसी तरह ग्राम मऊ से प्रेरणा स्व सहायता समूह की सचिव सविता ढोबले बताती है कि पानी के लिए दो किलोमीटर तक का सफर तीन गुंडी घड़ा सिर पर रखकर तेज कदमों चलकर जाना पड़ता था। वहां कुएँ में रस्सी डालकर पानी खींचने से हाथों में छाले पड़ जाते थे, लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आता था, उसी तकलीफ में 25 लीटर पानी सर पर रखकर लाना पड़ता था। इसके अलावा पानी के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती थी, इससे समय अधिक लग जाता था। कुएं से चार.पांच महिलाएं इकट्ठे पानी खींचने लगती थी, यह सोचकर कि कहीं पानी खत्म न हो जाए। ऐसा भी होता था, जिनका कुआं है, वह पानी भरने से मना करते थे, अगर महिलाएं नहीं मानी, तब वे कुएं में गोबर डाल देते थे, महिलाओं को अपमानित करते थे। ऐसे में आए दिन खाली गुंडी वापस घर लाना पड़ता था। कभी.कभी तो गुंडी को ही फोड़ देते थे। वह दर्द कभी भूलाया नहीं जा सकता। यहां लोगों के पास बहुत छोटे.छोटे खेत है, जिसके चलते पुरुषों को काम के लिए पलायन करना पड़ता है और महिलाएं दिन भर पानी के पीछे भाग दौड़ करती थी। इससे बच्चों का जीवन प्रभावित होता था।
प्रीति प्रेरणा स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं । वह बताती है कि घर पर पानी मिलने से वह सिलाई का काम करने लगी। अब परिवारों में पहले जैसा तनाव नहीं है। गांव में अब पानी को लेकर चर्चा कम होने लगी। प्रीति भी अन्य महिलाओं के साथ जल कर वसूलने में साथ देती है। वह कहती हैं कि महिलाएं अपनी कमाई से ही जलकर अदा कर देती हैं।
संत रविदास स्व सहायता समूह की सचिव संध्या बघेल अब अपना समय गांव में लैंगिक समानता के लिए जागरूक करने में लगाती हैं। उन्होंने कहा कि दूषित पानी से होने वाली डायरिया, उल्टी दस्त जैसी बीमारियां भी अब गांव में नहीं देखी जाती। बच्चे भी पहले की अपेक्षा कम कुपोषित हैं। घरेलू हिंसा में भी कमी आई है। कुल मिलाकर महिलाएं जागरूक हुई हैं ।
मोहखेड़ समूह जल प्रदाय योजना के प्रबंधक बसंत कुमार बेलवंशी बताते हैं दरअसल वर्ष 2012 में मोहखेड ब्लॉक में पानी की समस्या को देखते हुए पीएचई ने वर्ष 2012 में काम करना शुरू कर दिया था। पीएचई ने वर्ष 2013 में यह जिम्मेदारी जल निगम को दे दी। प्रारंभ में इस परियोजना में 18 गांव को जोड़ा गया था। जल निगम को जुलाई 2013 में इस योजना के लिए तकनीकी स्वीकृति और 2015 में प्रशासकीय स्वीकृति के बाद कार्य प्रारंभ किया गया । इसे पूरा होने में 2 साल का समय लगा। मार्च 2018 में यह योजना पूरी तरह तैयार हुई और मार्च 2018 में ही पानी की सप्लाई शुरू कर दी गई। जल संसाधन की ओर से पानी के आवंटन के बाद पानी की उपलब्धता को देखते हुए इस परियोजना में 29 राजस्व गांवों को शामिल कर लिया गया। इसके अलावा गांव में नए बने घरों में पानी का कनेक्शन देने के लिए रेट्रोफिटिंग का काम चल रहा है। इस योजना के तहत तगभग 8500 कनेक्शन है और सीधे तौर पर लगळाग 50 हजार आबादी इससे लाभान्वित हो रही है । मुझे बताते हुए गर्व हो रहा है कि जलकर में एक भी समिति डिफाल्टर नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि माचागोरा समूह जल प्रदाय योजना का काम पूरा होने के बाद छिंदवाड़ा जिले के और 711 ग्रामों में भी पानी की समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।
जल निगम के इंजीनियर युवराज वर्मा और यश दोदानी ने बताया कि जल निगम प्रति व्यक्ति न्यूनतम 55 लीटर पानी उपलब्ध कराती है लेकिन जल कर और जल से संबंधी कोई भी निर्णय जल समिति को लेने का पूरा अधिकार है।
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