रूबी सरकार
भोपाल से करीब 140 किलोमीटर दूर राजगढ़ जिले में बना गोरखपुरा डेम लबालब है। डेम से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बना है पानी शोधन करने की पूरी प्रक्रिया। यही से राजगढ़ और खिलचीपुर विकासखंड के 157 गांवों में पेयजल की सप्लाई की जा रही है। पहली बार नल से जल टपकते देख ग्रामीणों के खुशी का ठिकाना नहीं था। जब पिछले चार सालों से नल से जल देने की पूरी प्रक्रिया चल रही थी, तब उन्हें विश्वास ही नहीं था कि कभी ऐसा संभव हो पाएगा।
दरअसल केंद्र सरकार हर घर नल योजना का काम किसी भी सूरत में 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। वहीं राजगढ़ जिले के लिए काम पूरा करने का लक्ष्य 2023 है। लेकिन निर्धारित समय से पहले ही गोरखपुरा ग्रामीण जल प्रदाय योजना के तहत करीब 157 गांवों में नल जल योजना का काम पूरा कर लिया गया। इनमें राजगढ़ ब्लाक के 125 तथा खिलचीपुर 25 गांव शामिल है।
राजगढ़ जनपद पंचायत का कुंडी बे गांव की सबसे वृद्ध 85 वर्षीय महिला रतन बाई ने कहा कि 80 साल तक उन्होंने अपने सर पर मटका और मटके के ऊपर गगरा रखकर एक बार में 40 लीटर पानी हैंडपंप या कुआं से लेकर तेज कदमों से चलकर एक किलोमीटर का सफर तय करती थीं। रतनबाई कहती हैं कि गर्मी के दिनों में जब गांव के आस-पास कहीं पानी नहीं मिलता था, तब परिवार के लड़के मोटर साइकिल पर कई-कई किलोमीटर दूर से पानी लाते थे। हम लोगों ने पशुओं के लिए गंदे पानी को इकट्ठा कर उसे फिटकरी डालकर साफ करते थें । घरों में नल से जल तो हमारे लिए एक सपना था। इससे पहले आखिर में दो साल तक गांव के कुछ परिवारों ने पैसे जोड़कर एक पंप खरीदा और उसी पंप को कुंए डालकर उससे पानी खींचने लगे। लेकिन उसमें पहले आओ, पहले पाओ जैसी स्थिति बन गई। जिसकी सुबह सबसे पहले नींद खुली, वह पानी खींच लेते थे। जिसके लिए रोज लड़ाई होने लगी। यह लड़ाई इतनी बढ़ गई कि अंत तक पंप को उखाड़ फेक दिया गया। लोग सुबह के इंतजार में रात-रात भर जागने लगे थे। हैंडपंप पर पानी के बर्तनों की लंबी लाइन लगी रहती थी। यानी पूरा दिन और रात भी पानी को लेकर ग्रामीण तनाव रहते थे। अब जब एक साल से नल से पानी मिलने लगा, तो मानो गांव में खुशहाली आ गई। औरतें शैम्पू से बाल धोने लगी है। जिन्हें कभी सिर धोने के लिए पानी नसीब नहीं था। अभी सुबह आठ से साढ़े नौ तक भरपूर पानी मिलता है।
कुंडी बे गांव की सरपंच हुकम बाई बताती है कि हमारे गांव में 135 नल कनेक्शन है, इनमें दो स्कूल और आंगनबाड़ी को छोड़कर हर घर से पेयजल के लिए 100 रुपए का अंशदान लिया जाता है। इसे देने में किसी को कोई परहेज नहीं है। समय पर प्रत्येक घर से अंशदान मिल जाता है। इसके लिए अलग से कहना नहीं पड़ता।
कुन्डीबे पंचायत के चौकीदार बताते हैं कि गर्मी के दिनों में जब आस-पास कहीं पानी नसीब होता था, तब हमें चंदा करके 500 रुपए में टैंकर मंगवाना पड़ता था । गर्मी के दिनों में टैंकर मालिक गांवों में पानी सप्लाई कर लाखों रुपए कमा लेते थे। कुंतला पंवार और रामकला बाई चौकीदार की बातें में हामी भरती हैं और कहती है कि पहले पानी के चक्कर में कभी हम लोग इस तरह सखियों संग झुंड में बैठकर गप्पे नहीं मार सकते थे। हमें अपनी सुख दुख बांटने का समय ही नहीं मिलता था। सभी पानी को लेकर तनाव में रहते थे और पहले पानी लेने की होड़ लगी रहती थी। इससे आपस में संबंध भी खराब हो जाते थे।
एमपी जल निगम के जीएम प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि राजगढ़ आकांक्षी जिला है और यह जिला देश के सूखाग्रस्त जिलों में से एक है। यहां के ग्रामीणों को ष्षुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना एक चुनौतीपूर्ण काम था। जल जीवन मिशन के तहत हम लोगों ने युद्धस्तर पर काम शुरू किया। हालांकि कोविड 19 पेंडेमिक के दौरान थोड़े समय के लिए काम प्रभावित हुआ था, लेकिन उसके बाद काम ने रफ्तार पकड़ ली थी। काकेन नदी से गोरखपुरा डैम से लिंक किया गया। 2018 में यह काम शुरू हुआ, जो 31 मार्च, 2022 को पूरा हो गया । इसका डीपीआर 2,4854 करोड़ रुपए था। नल जल योजना में पानी की गुणवत्ता का बहुत ध्यान रखा जाता है। जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा और वे कम बीमार रहने लगे। उन्होंने कहा कि राजगढ़ में कुल 5 स्कीम है, गोरखपुरा के अलावा बागपुर-कुशलपुरा, जहां 125 गांवों में से 120 गांवों में पानी की आपूर्ति की जा रही है। यहां पेयजल के लिए घोड़ा पछाड़ नदी से पानी को लिंक किया गया है। इसी तरह पहाड़गढ़ जहां 79 गांवों में से 74 गांवों में नल कनेक्शन का काम पूरा हो चुका है। यहां पार्वती नदी से लिंक किया गया है। इसी तरह मोहनपुरा में 215 गांवों में से कुछ गांवों के पानी का टेस्टिंग चालू है, शेष में सप्लाई हो रहा है, यहां नेवच नदी से लिंक किया गया है। वहीं कुंडालिया परियोजना के लिए कालीसिंधी नदी से पानी लाया जा रहा है, यहां 7 गांवों में नल कनेक्शन का काम जारी है।
समाधान के प्रधानमंत्री के 5पी मंत्र में से एक का किया इस्तेमाल
समुदाय भागीदारी प्रबंधक प्रियंका जैन गुप्ता बताती है कि पहले ग्रामीणों को एक्टिविटी के जरिए इस योजना से जोड़ा गया। इसके लिए प्रधानमंत्री के ‘5पी’ का मंत्र में से एक मंत्र काम आया, जिसमें साझेदारी व जन भागीदारी की बात कही गई है। ग्रामीणों से 100 रुपए का अंशदान लिया, जिससे इस योजना से उनका जुड़ाव हो । ग्रामीण महिलाएं हमेशा घर के कामों में व्यस्त रहती हैं, उनके लिए समय निकाल पाना कठिन होता है। फिर भी हमने प्रयास किया और समिति बनवाई, जो हर घर से पानी का नियमित शुल्क लेकर जमा करने का काम करती है। पानी बर्बाद न हो इसकी निगरानी करती है और छोटे-मोटे मरम्मत का काम भी स्वयं कर लेती हैं। उन्होंने कहा कि कोई योजना तभी कामयाब हो सकती है, जब उसमें समुदाय का जुड़ाव हो।
कलेक्टर भी गांव-गांव जाकर करते हैं निगरानी
अच्छी बात यह है कि राजगढ़ कलेक्टर हर्ष दीक्षित भी नल-जल योजना की गांव-गांव जाकर निगरानी करते हैं। लोगों से पानी को लेकर बातचीत करते है और उन्हें नियमित पानी का शुल्क अदा करने की हिदायत भी हैं। उन्होंने चाटूखेड़ा व मुरारिया गांव का दौरा कर ग्रामीणों को पानी की बर्बादी को लेकर जागरूक किया। इस बीच किसी ने नल में पानी न आने की शिकायत भी की, तो उस समस्या का हल भी निकाला। उन्होंने गांवों में बड़ों के साथ-साथ बच्चों से भी पानी की शुद्धता और स्वाद को लेकर बात की। कलेक्टर को अपने बीच पाकर ग्रामीण बहुत उत्साहित दिखे।
राजगढ़ जनपद पंचायत का कुंडी बे गांव की सबसे वृद्ध 85 वर्षीय महिला रतन बाई ने कहा कि 80 साल तक उन्होंने अपने सर पर मटका और मटके के ऊपर गगरा रखकर एक बार में 40 लीटर पानी हैंडपंप या कुआं से लेकर तेज कदमों से चलकर एक किलोमीटर का सफर तय करती थीं। रतनबाई कहती हैं कि गर्मी के दिनों में जब गांव के आस-पास कहीं पानी नहीं मिलता था, तब परिवार के लड़के मोटर साइकिल पर कई-कई किलोमीटर दूर से पानी लाते थे। हम लोगों ने पशुओं के लिए गंदे पानी को इकट्ठा कर उसे फिटकरी डालकर साफ करते थें । घरों में नल से जल तो हमारे लिए एक सपना था। इससे पहले आखिर में दो साल तक गांव के कुछ परिवारों ने पैसे जोड़कर एक पंप खरीदा और उसी पंप को कुंए डालकर उससे पानी खींचने लगे। लेकिन उसमें पहले आओ, पहले पाओ जैसी स्थिति बन गई। जिसकी सुबह सबसे पहले नींद खुली, वह पानी खींच लेते थे। जिसके लिए रोज लड़ाई होने लगी। यह लड़ाई इतनी बढ़ गई कि अंत तक पंप को उखाड़ फेक दिया गया। लोग सुबह के इंतजार में रात-रात भर जागने लगे थे। हैंडपंप पर पानी के बर्तनों की लंबी लाइन लगी रहती थी। यानी पूरा दिन और रात भी पानी को लेकर ग्रामीण तनाव रहते थे। अब जब एक साल से नल से पानी मिलने लगा, तो मानो गांव में खुशहाली आ गई। औरतें शैम्पू से बाल धोने लगी है। जिन्हें कभी सिर धोने के लिए पानी नसीब नहीं था। अभी सुबह आठ से साढ़े नौ तक भरपूर पानी मिलता है।
कुंडी बे गांव की सरपंच हुकम बाई बताती है कि हमारे गांव में 135 नल कनेक्शन है, इनमें दो स्कूल और आंगनबाड़ी को छोड़कर हर घर से पेयजल के लिए 100 रुपए का अंशदान लिया जाता है। इसे देने में किसी को कोई परहेज नहीं है। समय पर प्रत्येक घर से अंशदान मिल जाता है। इसके लिए अलग से कहना नहीं पड़ता।
कुन्डीबे पंचायत के चौकीदार बताते हैं कि गर्मी के दिनों में जब आस-पास कहीं पानी नसीब होता था, तब हमें चंदा करके 500 रुपए में टैंकर मंगवाना पड़ता था । गर्मी के दिनों में टैंकर मालिक गांवों में पानी सप्लाई कर लाखों रुपए कमा लेते थे। कुंतला पंवार और रामकला बाई चौकीदार की बातें में हामी भरती हैं और कहती है कि पहले पानी के चक्कर में कभी हम लोग इस तरह सखियों संग झुंड में बैठकर गप्पे नहीं मार सकते थे। हमें अपनी सुख दुख बांटने का समय ही नहीं मिलता था। सभी पानी को लेकर तनाव में रहते थे और पहले पानी लेने की होड़ लगी रहती थी। इससे आपस में संबंध भी खराब हो जाते थे।
एमपी जल निगम के जीएम प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि राजगढ़ आकांक्षी जिला है और यह जिला देश के सूखाग्रस्त जिलों में से एक है। यहां के ग्रामीणों को ष्षुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना एक चुनौतीपूर्ण काम था। जल जीवन मिशन के तहत हम लोगों ने युद्धस्तर पर काम शुरू किया। हालांकि कोविड 19 पेंडेमिक के दौरान थोड़े समय के लिए काम प्रभावित हुआ था, लेकिन उसके बाद काम ने रफ्तार पकड़ ली थी। काकेन नदी से गोरखपुरा डैम से लिंक किया गया। 2018 में यह काम शुरू हुआ, जो 31 मार्च, 2022 को पूरा हो गया । इसका डीपीआर 2,4854 करोड़ रुपए था। नल जल योजना में पानी की गुणवत्ता का बहुत ध्यान रखा जाता है। जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा और वे कम बीमार रहने लगे। उन्होंने कहा कि राजगढ़ में कुल 5 स्कीम है, गोरखपुरा के अलावा बागपुर-कुशलपुरा, जहां 125 गांवों में से 120 गांवों में पानी की आपूर्ति की जा रही है। यहां पेयजल के लिए घोड़ा पछाड़ नदी से पानी को लिंक किया गया है। इसी तरह पहाड़गढ़ जहां 79 गांवों में से 74 गांवों में नल कनेक्शन का काम पूरा हो चुका है। यहां पार्वती नदी से लिंक किया गया है। इसी तरह मोहनपुरा में 215 गांवों में से कुछ गांवों के पानी का टेस्टिंग चालू है, शेष में सप्लाई हो रहा है, यहां नेवच नदी से लिंक किया गया है। वहीं कुंडालिया परियोजना के लिए कालीसिंधी नदी से पानी लाया जा रहा है, यहां 7 गांवों में नल कनेक्शन का काम जारी है।
समाधान के प्रधानमंत्री के 5पी मंत्र में से एक का किया इस्तेमाल
समुदाय भागीदारी प्रबंधक प्रियंका जैन गुप्ता बताती है कि पहले ग्रामीणों को एक्टिविटी के जरिए इस योजना से जोड़ा गया। इसके लिए प्रधानमंत्री के ‘5पी’ का मंत्र में से एक मंत्र काम आया, जिसमें साझेदारी व जन भागीदारी की बात कही गई है। ग्रामीणों से 100 रुपए का अंशदान लिया, जिससे इस योजना से उनका जुड़ाव हो । ग्रामीण महिलाएं हमेशा घर के कामों में व्यस्त रहती हैं, उनके लिए समय निकाल पाना कठिन होता है। फिर भी हमने प्रयास किया और समिति बनवाई, जो हर घर से पानी का नियमित शुल्क लेकर जमा करने का काम करती है। पानी बर्बाद न हो इसकी निगरानी करती है और छोटे-मोटे मरम्मत का काम भी स्वयं कर लेती हैं। उन्होंने कहा कि कोई योजना तभी कामयाब हो सकती है, जब उसमें समुदाय का जुड़ाव हो।
कलेक्टर भी गांव-गांव जाकर करते हैं निगरानी
अच्छी बात यह है कि राजगढ़ कलेक्टर हर्ष दीक्षित भी नल-जल योजना की गांव-गांव जाकर निगरानी करते हैं। लोगों से पानी को लेकर बातचीत करते है और उन्हें नियमित पानी का शुल्क अदा करने की हिदायत भी हैं। उन्होंने चाटूखेड़ा व मुरारिया गांव का दौरा कर ग्रामीणों को पानी की बर्बादी को लेकर जागरूक किया। इस बीच किसी ने नल में पानी न आने की शिकायत भी की, तो उस समस्या का हल भी निकाला। उन्होंने गांवों में बड़ों के साथ-साथ बच्चों से भी पानी की शुद्धता और स्वाद को लेकर बात की। कलेक्टर को अपने बीच पाकर ग्रामीण बहुत उत्साहित दिखे।
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