माफी की आस में नहीं चुकाया कर्ज, अब मिल रही नोटिस
रूबी सरकार
राष्ट्रीयकृत और सहकारी बैंकों के अनुसार मध्यप्रदेश में करीब 34 लाख से अधिक किसान ऐसे हैं, जिन्होंने बैंकों का ़ऋण नहीं चुकाया है। डिफाल्टर किसानों की संख्या लगातार बढ़ने से नॉन परफॉर्मिंग एसेट एनपीए पर असर पड़ रहा है। जबकि किसानों का कहना है कि खाद-बीज की जो सुविधा पहले सोसाइटी से मिल जाती थी, उसे बंद करने और नकद राशि से खाद-बीज, पानी आदि खरीदने से उन पर बहुत आर्थिक बोझ बढ़ गया है। दूसरी तरफ बेमौसम बारिश , सूखा जैसी प्राकृतिक कारणों से फसल नष्ट हो जाए, तो बीमा की रकम समय पर नहीं मिल पाता। इससे भी किसान आर्थिक रूप से परेशान रहते हैं और अगली फसल के लिए फिर से उन्हें कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है । इस तरह किसानों के जीवन में कर्ज और ब्याज का चक्र चलता रहता है।
होशंगाबाद मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर डोलरिया गांव का किसान आशीष भदौरिया के पास 5 एकड़ कृषि भूमि है। वे बताते हैं कि उन्होंने खेती के लिए बैंक से 50 हजार का ऋण लिया था। ऋण लेने के बाद अगले फसल तक उस पर ब्याज नहीं लगाया जाता। इसके बाद 14 फीसदी ब्याज देना पड़ता है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने जब 2018 में दो लाख रुपए तक की कर्ज माफी की घोषणा की, तो किसानों को उम्मीद थी कि अधिकतर किसानों का कर्ज पट जाएगा। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद घोषणा के मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने की प्रक्रिया शुरू की। पहली कैबिनेट की बैठक में ही इस प्रस्ताव को पास कराया और फाइल पर दस्तखत किए। किसानों के 50 हजार तक के कर्ज करीब-करीब माफ भी हो गए। लगभग 27 लाख किसानों के 50 हजार तक के कर्ज माफ हुए। इस बीच कांग्रेस की सरकार गिर गई। जिसके चलते कर्ज माफी की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई। उन पर आरोप भी लगे कि उन्होंने 2 लाख रुपए तक के कर्ज माफी की बात की थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जबकि कमलनाथ का कहना है कि उन्होंने 50 हजार से शुरू की थी और धीरे-धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन भाजपा ने मंत्री व एमएलए की खरीद-फरोख्त कर उनकी सरकार गिरा दी और भाजपा की सरकार बना ली। वे किसानों की कर्ज माफी का ब्यौरा पेन ड्राइव में प्रमाण के तौर पर लेकर चलते हैं।
भदौरिया बताते हैं कि किसानों की कर्ज माफी का आदेश तो मध्यप्रदेश शासन का था, न कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ का । दूसरी बात जब भाजपा कमलनाथ सरकार पर आरोप लगाती रही कि उन्होंने कर्ज माफी का वादा पूरा नहीं किया, तो फिर भाजपा सरकार को किसानों का कर्ज माफ कर देना चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कर्ज माफी के इंतजार में किसानों का ब्याज बढ़ता गया। अब किसानों के पास ऋण अदायगी के लिए तहसीलदार के नोटिस आने लगे हैं। किसान परेशान है। कमलनाथ ने फिर से एक बार आश्वासन दिया है कि कांग्रेस की सरकार आएगी, तो फिर से कर्ज माफी की प्रक्रिया शुरू होगी।
चुनावी साल होने की वजह से कर्जमाफी के इंतजार में प्रदेश के ज्यादातर किसानों ने अपना बकाया कर्ज अदा करना बंद कर दिया है। इससे डिफाल्टर किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है और प्रदेश में डिफाल्टर किसानों की संख्या 34 लाख से अधिक हो गई है।
इससे सहकारी सहित राष्ट्रीयकृत बैंकों का एनपीए बढ़ रहा है। सूत्र बताते हैं कि बैंकों का किसानों पर एनपीए 21 हजार करोड़ रुपए हो गया है। गुजरात में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार ने किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की। इससे भी किसानों को भरोसा हो गया है कि विधानसभा चुनाव से पहले कर्जमाफी की घोषणा हो सकती है।
दो चरणों में शुरू हुई थी कर्ज माफी
प्रदेश में कर्ज माफी की शुरुआत दो चरणों में हुई थी। पहले चरण में प्रदेश के 21 लाख किसानों का 6 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ हुआ था। दूसरे चरण की शुरुआत 1 मार्च 2020 को हुई थी। दूसरे चरण में प्रदेश के 7 लाख किसानों के 4500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ होना था । कर्ज माफी वाले किसानों की कुल संख्या को 55 लाख बताया गया है, जिनका कर्ज माफ होना था। इसमें लघु और सीमांत 35 लाख किसानों को प्राथमिकता से ऋण माफी का लाभ मिलना था। गौरतलब है कि केवल खेती के लिए उठाए कर्ज माफ करने का प्रावधान था यानी जिन्होंने फसल के नाम पर कर्ज लिया था उन्हीं का कर्ज माफ करने का निर्णय लिया गया था।
किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने के वादे के साथ आई कमलनाथ सरकार ने कर्जमाफी की ष्षुरुआत रतलाम के नामली से की थी। सीएम कमलनाथ 20 फरवरी 2019 को रतलाम पहुंचे थे और यहां समारोह में किसानों की कर्जमाफी के प्रमाण पत्र बांट कर इसकी शुरुआत की थी।
क्रांतिकारी किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष लीलाधर सिंह राजपूत बताते हैं कि किसानों के सिर्फ कर्ज माफ कर देने भर से समस्या का हल नहीं होगा। बल्कि किसानों पर सरकार की ओर से कई तरह से आर्थिक बोझ बढ़ाया जा रहा है। कम से कम शिवराज सरकार को किसानों के ब्याज अदायगी माफ कर देना चाहिए, वरना किसान 14 फीसदी बैंकों को ब्याज नहीं दे पाएंगे। राजपूत बताते हैं कि सरकारी समर्थन मूल्य खरीदी प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है। किसान बैंक खाते की ई केवाईसी नहीं होने के कारण अपनी उपज बेचने वंचित रह जाते हैं। जबकि ई केवाईसी के बगैर किसी भी बैंकों में खाता नहीं खुलती। फिर भी ई केवाईसी के नाम पर पोर्टल पर स्लॉट बुक नहीं हो पाता और किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार का रासायनिक खाद वितरण प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। सरकार किसानों को नैनो यूरिया लेने को बाध्य कर रही है। जबकि नैनो यूरिया की गुणवत्ता दानेदार यूरिया के समान नहीं है।इससे किसानों की लागत बढ़ रही है। सरकार को इस बाध्यता को खत्म कर देना चाहिए। राजपूत ने बताया कि उन्होंने इन सब बातों को लेकर होशंगाबाद कलेक्टर को एक ज्ञापन भी सौंपा है।
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