स्वच्छता के लिए सरपंच प्रभा को मुख्यमंत्री से मिला 50 हजार रुपये का पुरस्कार
Ruby Sarkarस्थानीय निकायों में महिलाओं की 50 फीसदी भागीदारी के अभूतपूर्व फैसले के सकारात्मक परिणाम अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं। स्वयं परिवार, समाज और राजसत्ता के ताने-बाने में वजूद बनाती इन महिलाओं के नेतृत्व के मायने भी परंपरागत नेतृत्व से अलग हैं। कहीं वे जटिल व परंपरागत नेतृत्व को चुनौती देते हुए नेतृत्व के मायनों के अनुरूप अपने को ढालने की कोशिश कर रही हैं , तो कहीं परंपरागत नेतृत्व को आत्मसात करने की। विपरीत और विषम परिस्थितियों के बावजूद आरक्षण के बलबूते सत्ता में आई कुछ नामचीन महिलाओं ने परंपरा को तोड़कर कठिन संघर्ष का रास्ता चुनते हुए , अपने महत्व को पहचाना है। इन्हीं में से सतना जिले की ग्राम पंचायत मतहा की सरपंच प्रभा कौल। मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर रामपुर बाघेलान विकास खण्ड का ग्राम पंचायत मतहा की सरपंच प्रभा अपने पंचायत में विकास के कई काम किये।
उसने गाांव की सार्वजनिक सेवाओं पर निगरानी की प्रक्रिया शुरू की, गांव में शराबबंदी की तथा ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास किया। हाल ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपील से प्रेरित होकर उन्होंने एक और महत्वपूर्ण काम को अंजाम दिया है, जिससे उनकी पंचायत को स्वच्छ एवं निर्मल पंचायत के रूप में पहचान मिली और मध्य प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें इस सराहनीय कार्य के लिए 50 हजार रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रभा ने अपनी पंचायत के सभी घरों में शौचालय का निर्माण करवाया तथा पंचायत को खुले में ष्षौच से मुक्त करवाया । इससे उसकी पंचायत पूरी तरह गंदगी से मुक्त हो गया है। साथ ही लोग घरों का कचरा भी सड़क पर नहीं फंेकते। सरपंच बनने के बाद प्रभा के सामने गांव को स्वच्छ और साफ-सुथरा बनाना एक बड़ी चुनौती थी । क्योंकि पंचायत में चारों तरफ गंदगी का आलम रहता था । लोग घरों का कचरा, गोबर सब सड़क पर फेंकते, जिससे सड़क के दोनों और इतनी गंदगी फैल जाती थी, कि लोगों का वहां से गुजरना मुश्किल होता था। इससे कई तरह की बीमारियां भी फैलने लगी थी । सरपंच जब भी अपने पंचायत का भ्रमण के लिए जाती, तो गंदगी में चलना उनके लिए भी मुश्किल होता और यदि पंचायत में कोई बाहर का व्यक्ति आता, तो उसके मुँह से पहला शब्द निकला, कि छिः कितनी गंदगी है । इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 तक देश को खुले में शौच से मुक्त करने का नारा दिया है । मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की अपील का उस पर काफी प्रभाव पड़ा और उसने सोच लिया, कि किसी भी कीमत पर पंचायत को गंदगी से मुक्त करवायेंगे। लेकिन प्रभा के लिए यह काम इतना आसान नहीं था । गॉव में दबंगों और ज्यादातर उच्च जाति एवं असरदारांे का दबदबा था, जिनके इषारे पर गांव की छोटी जाति के लोग काम करते थे। ऐसे मे गांव की मुखिया की कमान एक अनुसूचित जनजाति की महिला के पास हो, वे बरदास्त नहीं कर पा रहे थे। लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री ने त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत सरपंचों को काम करने की खुली छूट दे रखे थे, जिसका लाभ उठाकर प्रभा ने ग्राम सभा में पंचों के सामने प्रस्ताव रखा और घर-घर ष्षौचालय बनवाने की बात रखी। सभी पंचों ने भी इस बात को माना और अपनी सहमति दी । इसके बाद ग्राम सभा से यह प्रस्ताव पारित कर जनपद कार्यालय भेजा गया । जनपद पंचायत से भी इसे पारित होना ही था, प्रस्ताव पारित होने के बाद शौचालय निर्माण के लिए राशि आवंटित कर दी गई।
शौचालय निर्माण के बाद इसके उपयोग को लेकर प्रभा के सामने एक बड़ी चुनौती थी। शौचालय बनने के बाद भी लोग खुले में शौच जाना बंद नहीं किया था। लोगों ने अपने शौचालय में लकड़ी के कण्डे व पशुओं का चारा भर रखा था । प्रभा के सामने यह चुनौती थी, कि लोगों को शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए कैसे प्रेरित किया जाये । इस चुनौती का सामना करते हुए उसने सबसे पहले पंचायत की अन्य महिला पंचों को साथ लेकर घर-घर जाकर लोगों को समझाया, लेकिन जब सरपंच की बातों का भी लोगों पर खास असर नहीं पड़ा, तो सरपंच ने अपनी पंच बहनों से चर्चा कर कोई ठोस कदम उठाने की ठानी। प्रभा ने ग्राम सभा बुलाई और शौचालय का उपयोग न करने पर सवाल किया और खुले में शौच से होने वाली बीमारियों और गांव में फैलने वाली गंदगी के बारे में बताया । साथ ही इस फैसले पर भी सबसे सहमति ली, कि खुले में शौच करने वालों से 50 रुपये जुर्माना वसूला जाएगा । अर्थदण्ड के बाद धीरे-धीरे गांव वालों को भी समझ में आने लगा । अब आलम यह है, कि लोग अपने घरों का कचरा एवं गोबर भी सड़क पर डालना बंद कर दिया है । आज यह पंचायत इस क्षेत्र की एक स्वच्छ व साफ-सुथरी पंचायतों में गिनी जाती है । सरपंच प्रभा कौल एवं पंचायत की महिला पंच भी अब इसकी सतत निगरानी करती है, ताकि ग्राम सभा के फैसले का उल्लंघन न हो। प्रभा की दो बेटियां हैं , जिसे वह सामाजिक कार्यों में लगाना चाहती है । पति सरकारी नौकरी करते हैं। चाहकर भी वह पति से कोई मदद नहीं ले पातीं । इसी ग्राम पंचायत का एक युवा ने बताया, कि सरकारी नीतियों और योजनाओं के कारण पिछले एक दशक में गांव की महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है । जिससे उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ । अब वह स्वयं निर्णय लेती हैं। महिलाओं को कमतर आंकना अब टेड़ी खीर है । क्योंकि गांव की महिलाओं का सीधे मुख्यमंत्री से भाई का नाता बन गया है । किसी भी परिवार में जाइये, महिलाएं भाई या मामा कहकर संबोधित करती हैं । पिछले एक दशक में महिलाओं ने अपने को साबित किया है, कि अगर उन्हें मौका दिया जाये, तो वह बेहतर परिणाम दे सकती हैं । मुझे यह कहने में गुरेज नहीं है, कि अगर यही सरकार रही, तो आने वाली सदी महिलाओं की होगी ।
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