Saturday, June 10, 2023

मुख्यमंत्री से मिलकर दिलाई आदिवासियों को जमीन का पट्टा

 मुख्यमंत्री से मिलकर दिलाई आदिवासियों को जमीन का पट्टा

Ruby Sarkar
पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी ने सामाजिक न्याय  के संघर्ष को जन्म दिया है। इसका एक उदाहरण सतना जिले की जनपद पंचायत रामपुर बाघेलान  के अंतर्गत ग्राम पंचायत मरोहा की मुन्नी साकेत के रूप में हमारे सामने हैं । मुन्नी ने सरपंच बनने के बाद मुख्यमंत्री से मिलकर  पंचायत के 100 आदिवासी परिवारों को घर  और खेती के लिए जमीन का पट्टा और कब्जा  दिलवा दिया। मुन्नी इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानती हैं; वह कहती है, कि पंचायत की आदिवासी बस्ती में  20 सालों से रह रहे लोगों के पास जमीन का पट्टा नहीं था। उन्हें अपनी आजीविका के लिए पलायन करना पड़ता था। आदिवासी परिवारों को  जमीन का हक दिलवाने की प्रक्रिया में  सरपंच ने पहले सभी हकदार परिवारेां को ग्राम सभा में आकर अपना प्रस्ताव रखने को कहा। ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित होने के बाद उसने तहसीलदार के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया । तहसीलदार ने इस संबंध में पटवारी को आदेश दिया, लेकिन पटवारी द्वारा आदिवासियों को भूमि आवंटन के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई । इस स्थिति में मुन्नी ने प्रदेश के  मुख्यमंत्री के सामने मामले उठाने की रणनीति बनाई। मुन्नी को पता चला, कि मुख्यमंत्री इस क्षेत्र में गाड़ा गांव में आने वाले हैं, तो वह वहां पहुंच गई । उस वक्त तक उसे यह नहीं पता  था, कि इतनी आसानी से उसकी मुलाकात मुख्यमंत्री से हो जायेगी। उसने सोच रखा था, चाहे जितनी तकलीफ उठानी पड़े, वह मुख्यमंत्री से मिलकर ही गांव वापस जायेगी। लेकिन इतनी आसानी मुलाकात करने में सफल होने के बाद उसके भीतर आत्मविश्वास का संचार हुआ । वह बेझिझक मुख्यमंत्री के सामने कागजात प्रस्तुत करते हुए सारी बातें रखी। मुख्यमंत्री ने भी बिना देर किये उसे आश्वासन दिया, कि वह इस बारे में जिला कलेक्टर को आदेश देंगे । सरपंच मुन्नी उस समय भौचक्का रह गई, जब 5 दिन बाद ही आदिवासी परिवारों को जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। उसे यह नहीं मालूम था, कि इतनी आसानी से उसका काम बन जाएगा। कलेक्टर स्वयं एसडीएम और तहसीलदार के साथ मौका मुआयना करने आए । मुआयना के दौरान कलेक्टर को यह भी पता चला, कि पटवारी की लापरवाही के कारण जमीन आवंटन में विलंब हुआ है, तो उन्होंने पटवारी को निलंबित कर दिया  और जमीन आवंटन संबंधी कार्यवाही नए पटवारी को सौंप दिया । इस तरह 100 आदिवासी परिवारों को घर एवं खेती के लिए जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई ।  लेकिन संघर्ष यही खत्म नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया । अब मुन्नी का सामना गांव के दबंगों से हुआ, क्योंकि जमीन पर उन्हीं लोगों ने कब्जा था ।  जमीन को अतिक्रमण से मुक्त करवाकर उसके वास्तविक हकदार को दिलाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य था । मुख्यमंत्री से मिलने के बाद उसे समझ आ गया था, कि अगर वह न्याय की लड़ाई लड़ेगी, तो उसे कोई मात नहीं दे सकता। इसी आत्मविश्वास के साथ वह लड़ती रही । अंततः वह दिन भी आया, जब उसने जीत हासिल की और आदिवासियों को जमीन का पट्टा दिलवाया ।
मुन्नी साकेत को शुरुआती दौर में पंचायत में काम करते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा । पूर्व सरपंच इस बार पंच के रूप में पंचायत में शामिल है, वह अपना दबदबा कायम रखना चाहता था, वह चाहता था, पंचायत को उनकी मनमर्जी से चले। महिला होने के कारण मुन्नी पर कुछ ज्यादा ही दबाव बनाता था। दूसरी ओर मुन्नी को पंचायत के कामकाज की जानकारी नहीं थी । इसलिए उसने सोचा महिला नेतृत्व का थोड़ा प्रशिक्षण प्राप्त किया जाये, इससे पंचायत में काम करना आसान हो सकता है। उसने प्रशिक्षण हासिल किया । इसके बाद पंचायत में वह और सक्रिय हो गई। मुन्नी बाई का ज्यादातर समय पुराने  अधूरे कामों को पूरा करने में बीता। पंचायत के पिछले कार्यकाल के कुछ भवन ,तालाब और सड़क के काम अधूरे थे, जिसे पूरा करने के लिए वह जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी से मिली और उनसे अधूरे काम पूरे करने के लिए  राशि आवंटित करने का आग्रह किया। इसके बाद उसने अपनी पंचायत में उन मुद्दों  को उठाना शुरू  किया, जो वर्षों से लंबित थे और अब तक के किसी सरपंच  ने उसे हल करने की कोशिश नहीं की।
उसने विज्ञान के माध्यम से महिलाओं में वैज्ञानिक एवं तकनीकी सोच उत्पन्न कराना चाहती थी। इसके लिए उसने कई संगोष्ठियों में भागीदारी की।

अपने प्रसास ने उसने शासकीय महाविद्यालय सतना में दो दिवसीय विज्ञान एवं तकनीकी विषय पर संगोष्ठी का आयोजन की। जिससे महिलाओं मे वैज्ञानिक एवं तकनीकी सोच उत्पन्न हो।   इस संगोष्ठी में उसने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, कि पहले वह कुछ नहीं जानती थी। लेकिन  संस्थागत प्रशिक्षण के बाद पंचायत में काम और अधिकार की समझ बनी। प्रषिक्षण से ही अन्दर बदलाव आया। उसकी बातों का गांव की महिलाओं ने ताली बजाकर स्वागत किया। उसने कहा, कि गांव की महिलाओं में शहरों से अपेक्षा घर संभालने की अधिक को समझ-बूझ होती है। डिलीवरी के समय जच्चा को हल्दी, घी, गुड के लड्डू जिसमें मेवा, गोद, चंसूर, सोठ, आदि सब डाला जाता है, जिससे धात्री माता को अधिक ताकत मिले और बच्चा मां के दूध से वंचित न रह जाये। यह जानकारी गांव में आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी वाचिक परंपरा से पहुॅच रही है।
उसने यह भी कहा, कि पहले माइक पर बोलने में घबराहट होती थी, लेकिन आज आप सब मुझे माइक पर बोलते सुन रहे है। अभी तो हम मोबाइल पर भी बातें करते है। इस तरह पंचायत के काम ठीक और जल्दी हो पाता है । जब वह बोल रही थी, तो उसमें गजब का आत्मविश्वास झलक रहा था। वह स्वयं पर गर्व महसूस कर ही थी। उसने कहा,  कि मै अपने पंचायत की सरपंच हॅू, मुखिया हूॅ। मै अपना काम खुद करती हूॅ।  विकास खण्ड जाकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी से मिलती हूॅ, जिला मुख्यालय जाकर कलेक्टर से मिलती हूॅ।  उसने कहा, हालांकि  इसमें विरोधी और दबंग लोग अड़ंगा जरूर लगाते हैं।   काम  चाहे कितना अच्छा क्यों न करूं, वह नहीं स्वीकारते और न ही सराहते हैं। उल्टे दबाब बनाने की कोशिश करते हैं। इसलिए हमें दोगुनी मेहनत से काम करनी पड़ती है और  लड़ाई भी लड़नी पडती है, परंतु जब तक हम लड़ेंगे नहीं, तो जीतेंगे कैसे।
मुन्नी के विचारों और प्रस्तुतीकरण से सभी का दिल जीत लिया था। विद्यार्थी भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाये।  कालेज के प्राचार्य ने तो कह भी दिया, कि कौन कहता है कि सिर्फ पढ़े लिखे लोग ही राजनीति में आ सकते है। आज  मुन्नी   जी ने जिस प्रकार अपनी बात को हम सभी के समक्ष रखा, उससे यह साबित होता है, कि महिलाओं में काम करने की एवं चीजों को समझने की वैज्ञानिक पद्धति मौजूद है और वह बेहतर काम कर सकती है।
मुन्नी के इस भागीदारी  और विचार दूसरे दिन अखबारों की  हेड लाईन बनी। मुन्नी ने तमाम पढ़े- लिखे प्रबुद्धजनां के साथ-साथ राजनेताओं  के सामने खुद को साबित किया। उसे सरपंच पद संभालने के बाद एक के बाद एक कामयाबी मिलती गई। कई सामाजिक संगठनों से उसे प्रतिसाद मिला। मुन्नी इसका श्रेय प्रदेश के मुख्यमंत्री को देना चाहती है। वह कहती है कि अगर पहली बार वह मुख्यमंत्री से नहीं मिल पाती और आदिवासियों को जमीन का पट्टा नहीं दिला पाती , तो उसका मनोबल गिरता  और इसका असर उसके काम पर पड़ता । सतना की सावित्री सिंह बताती है, कि मुन्नी ने अपने पंचायत में जो कर दिखाया, वह बाद में अन्य पंचायतों ने भी अपनाया। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री का हर गांव तक पहुॅच बहुत मुश्किल है, लेकिन एक गांव की महिला से मिलकर उनकी बात सुने , तो हर गांव  स्माट बन जायेगा।  

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