Saturday, June 10, 2023

रीना ने छेड़छाड़ करने वाले को भेजवाया जेल

रीना ने छेड़छाड़ करने वाले को भेजवाया जेल

    रूबी सरकार

रीना आदिवासी बाहुल बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी विकासखंड के जिल्पाढाना गांव एक बहुत ही छोटे से गांव  में रहती है. रीना कक्षा 11 वीं की छात्रा है और कन्या उच्चतर विद्यालय घोड़ाडोंगरी से अपनी पढ़ाई कर रही है. रीना के घर में कुल 8 सदस्य हैं, जिनमे उसकी 4 बहनें, 1 भाई, मम्मी एवं पापा शामिल हैं। शुरुआत में रीना एक बहुत ही शर्मीली एवं कम बोलने वाले स्वभाव की बच्ची थी, लेकिन जब से उसने स्कूल की गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया , उसमें बहुत तेजी से परिवर्तन आया। रीना रोज स्कूल जाती है और वहां की हर गतिविधि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती है । उसके माता पिता भी स्कूल में आयोजित पालक बैठक में भाग लेते हैं।
रीना के घर के पास विष्णु नाम का एक लड़का रहता है, जो रीना की सक्रियता देखकर अक्सर उसे परेशान किया करता था। पहले रीना उसकी किसी भी हरकत का कोई जवाब नही देती थी एवं उसके माता पिता भी उसे इन सब बातों पर ध्यान न देने के लिए कहते थे, लेकिन जब से रीना ने जीवन कौशल गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया, तो उसे वहां महिला हिंसा, यौन शोषण, यौन हिंसा एवं छेड़छाड़ से सम्बंधित जानकारी, जीवन कौशल सत्रों के माध्यम से दी गई, जिससे उसने जाना के अगर कोई उसे साथ छेड़छाड़ करता है तो वह उसके खिलाफ वह क्या- क्या  कर सकती है. रीना हमेशा जीवन कौशल सत्रों को बड़े ही ध्यान से सुनती एवं समझती है.
एक दिन रीना घर में अकेली थी, तभी अचानक विष्णु शराब पीकर जबरदस्ती घर में घुस आया और रीना के साथ छेड़छाड़ करने लगा और उसे जबरदस्ती अपने साथ शादी करने की धमकी देने लगा. रीना ने उसका विरोध किया और चिल्ला कर आस पास के लोगों को इकट्ठा करने की कोशिश की। रीना के चिल्लाने पर विष्णु डर गया और वहां से भाग गया। पर इतना सब होने के बाद रीना ने हमेशा कि तरह चुप नहीं बैठी। वह पुलिस में उसकी शिकायत करने की ठान ली। रीना के पिता ने रीना को शिकायत न करने के लिए कहा, परंतु रीना की माँ जो हमेशा पालक बैठक में भाग लेती थी, उसने रीना का साथ दिया और रीना ने पास के ही पुलिस स्टेशन में जाकर विष्णु के खिलाफ शिकायत दर्ज की। उस पुलिस थाने की इंचार्ज सब-इंस्पेक्टर नेहा चंद्रवंशी ने रीना का साथ दिया और उसकी शिकायत दर्ज की। साथ ही उसे यह भी समझाया कि वह किसी भी हालत में अपराधी के परिवारजनों के साथ कोई भी समझौता न करे। रीना ने सारी बातें समझ कर अपनी बात पर डटे रहने का निर्णय लिया एवं न्यायालय में विष्णु के खिलाफ मुकदमा लड़ा और विष्णु को 3 महीने की सजा दिलाई।  
रीना को यह पता था, कि शिकायत करने के बाद भी उसकी परेशानियां कम नहीं होंगी, बल्कि उसे और अधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा ।  फिर भी उसने हिम्मत से इन सबका सामना करने का फैसला लिया। विष्णु के घरवाले अक्सर रीना को धमकी देते थे, कि वह  शिकायत वापस ले लें, वरना विष्णु उसे छोड़ेंगे नहीं , उसके साथ कुछ भी अनहोनी हो सकता है । लेकिन  उसने अपनी शिकायत वापस नही ली।
विष्णु के घरवाले रीना को स्कूल आते -जाते धमकाने और परेशान करने लगे, तो रीना ने स्कूल में शिक्षकों से  इस बारे में बात की।  शिक्षा विभाग ने उसे आदिवासी छात्रावास में दाखिला दिलाया । अब रीना हॉस्टल में रह कर आराम से अपनी पढाई कर रही है. रीना के इस साहसिक कदम ने उसकी बाकी सहेलियों एवं आस पास की लड़कियों को छेड़छाड़ एवं हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने का हौसला दिया।


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पिस्टल से निशाना साधकर आदिवासी गीता ने जीता स्वर्ण
  रूबी सरकार

बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने में माता-पिता और अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका हैं । बालाघाट जिले की अत्यन्त पिछड़े और दुर्गम इलाके के एक छोटे से गांव कोपरो की रहने वाली गीता मरकाम के पिता ने जब उसका साथ दिया, तो वह अचानक 61वीं राज्य स्तरीय शालेय क्रीड़ा प्रतियोगिता में भाग लेकर पिस्टल शूटिंग में स्वर्ण पदक हासिल कर इस गांव का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया । गीता की इस उपलब्धि से गांव वालों की आंखें फटी की फटी रह गई। किसी ने नहीं सोचा होगा,  िक इस छोटे से साधन विहीन गांव की लड़की ने पूरे राज्य की लड़कियों को पछाड़ कर गांव का नाम रोशन करेगी।
दरअसल प्रदेश में तीन विशेष जनजाति में से एक बैगा जनजाति की गीता  बचपन में ही अपनी मां को खो चुकी थी । इसी वजह से उसे अपनी पढ़ाई बीच मंे ही छोड़नी पड़ी थी । गीता के पिता मानसिंह मरकाम गांव में आवागमन की  सुविधा न होने और अपनी अत्यंत दयनीय आर्थिक स्थिति के चलते अपनी बेटी को पढ़ाना नहीं चाहते थे । उन्हें सबसे ज्यादा अपनी बेटी की सुरक्षा का डर था । शाला त्यागी गीता को दोबारा स्कूल भेजने के लिए जिला परियोजना समन्वयक जीएल साहू को शिक्षा का महत्व एवं छात्रावास में मिलने वाली सुविधा के साथ ही बेटियों के शिक्षा के अनगिनत लाभ गिनाए । उन्होंने गीता के पिता को यह भी समझाया, कि बच्चियों के सपनों को साकार करने में पिता कैसे उनका सहयोग कर सकते हैं। कैसे लड़की शिक्षित हो, तो अपनी समस्याओं का समाधान खुद ढूंढ़ सकती है । तब जाकर किसी तरह समन्वयक साहू के धैर्य और सकारात्मक सोच से प्रभावित होकर मानसिंह अपनी बेटी को बैहर बालिका छात्रावास भेजने को राजी हुए । पिता के इस निर्णय के बाद गीता की मुरझाई आंखों में चमक लौट आई। उसके शिक्षित होने के सारे बिखरे सपने एक बार फिर से समेटने लगी ।
गीता ने छात्रावास में प्रवेश  करते ही अपनी प्रतिभा का परिचय दिया । खेल में उसकी रुचि को देखते हुए छात्रावास की छत पर अस्थाई शूटिंग रेंज बनाकर खेल परिसर में पदस्थ पीटीआई ने उसे प्रशिक्षण देना शुरू किया । फिर वह दिन भी आया, जब गीता राज्य स्तरीय शालेय प्रतियोगिता में भाग लेकर अपने गांव का नाम पूरे राज्य में रोशन किया। वह स्वर्ण पदक प्राप्त कर गांव की प्रेरणास्रोत बन गई ।   गीता की साहस और प्रेरणा से ग्राम कोपरो के बैगा जनजाति के साथ ही अन्य समुदाय के पालकों ने भी अपनी-अपनी बेटियों को बालिका छात्रावास में प्रवेश दिलाना शुरू किया। आज हालत यह है, कि बैगा जनजाति की अन्य जिलों से भी 26 बालिकाओं ने छात्रावास में प्रवेश लिया है, जबकि पहले बैगा समाज अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए बिलकुल भी सहमत नहीं थे । अब  बैगा समुदाय भी लड़कियों को शिक्षित होने की अहमियत समझने लगे है और खुद ही लड़कियों को पढ़ाने का आग्रह करने लगे हैं।

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दस्तक अभियान कुपोषण के खिलाफ जंग

रूबी सरकार


किसी भी राज्य में बच्चों की स्थिति उसके भविष्य का निर्धारण करती है । बच्चे स्वस्थ हैं, तो समाज स्वस्थ होगा। बच्चे मजबूत हैं, तो समाज मजबूत होगा । लेकिन जिस प्रदेश के 42 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हों , तो उस प्रदेश के मुखिया का चिंतित होना स्वाभाविक है । मध्यप्रदेष के बच्चों का कुपोषण और भूख से नाता बहुत पुराना है । इसे  दूर करने के लिए भारी रकम खर्च हुए हैं , लेकिन अपेक्षित सुधार नहीं हुआ हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुपोषण को कलंक माना और प्राथमिकता के आधार पर इसे शून्य स्तर तक ले जाने के लिए कई कदम उठाये । इन्हीं में से एक अहम कदम हाल ही में उनके द्वारा उठाया गया दस्तक अभियान  है। इसके अंतर्गत उन्होंने स्वास्थ्य एवं महिला-बाल विकास विभाग को संयुक्त रूप से अभियान चलाकर काम करने के निर्देश दिये हैं। इस अभियान  का पहला चरण 16 नवम्बर,2016 से शुरू हुआ है, जो 30 नवम्बर,2016 तक चलेगा।
दरअसल, 2016 में जारी राष्ट्रीय  परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों ने संवेदनशील मुख्यमंत्री को झकझोर दिया है । आंकड़ों के अनुसार प्रदेष में अभी भी 42 फीसदी से अधिक बच्चे कम वजन के हैं और 5 साल से कम उम्र के लगभग 26 फीसदी बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में कम वजन के हैं, जो गंभीर कुपोषण को दर्शाता है । इसके अलावा 5 साल से कम उम्र के लगभग 42 फीसदी बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, जो अति गंभीर कुपोषण को दर्शाता है । शिशु मृत्यु दर प्रति हजार बच्चों पर 51 और बाल मृत्यु दर 65 है ।  5 से 6 माह के लगभग 67 फीसदी बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं । इसी तरह प्रदेश में साढ़े 52 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है । मुख्यमंत्री ने इसे कलंक माना और भारत के अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश में कुपोषण का स्तर कम करने के लिए व्यापक स्तर पर कार्य करने की जरूरत को महसूस किया  । हालांकि उनके कार्यकाल में पिछले दषकों की अपेक्षा काफी सुधार  हुआ है। लेकिन उन्होंने इसे बहुत ही धीमी गति से सुधार माना है। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में कुपोषण नियंत्रित करने के लिए नवाचारी प्रयास अंतर्गत संयुक्त रूप से चलाये जा रहे दस्तक अभियान में लगभग 10 लाख परिवार तक बच्चों के लिये स्वास्थ्य एवं पोषण गतिविधियों की जानकारी पहुंचाने का लक्ष्य रखा है । अभियान के अंतर्गत आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम संयुक्त रूप से घर-घर जाकर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के पोषण की जानकारी देंगी। दल के साथ सरपंच और पंचायत प्रतिनिधि भी रहेंगे। प्रदेश में लगभग 50 लाख बच्चे 5 वर्ष से कम आयु के हैं।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला टीकाकरण अधिकारी और महिला-बाल विकास जिला कार्यक्रम अधिकारी को निर्देश जारी कर उनकी अलग-अलग भूमिका तय कर दी गई है। अभियान में टीकाकरण, बाल्यकालीन एनीमिया की स्क्रीनिंग एवं रोकथाम, दस्त रोग नियंत्रण, शिशु एवं बाल आहार पूर्ति संबंधी जानकारी के साथ ही  गंभीर कुपोषित बच्चों की सक्रिय रूप से पहचान, निमोनिया की त्वरित पहचान एवं रेफरल तथा 14 जिले में नमक में आयोडीन की पर्याप्तता की जांच भी  की जायेगी। प्रथम चरण में 80 फीसदी से कम टीकाकरण वाले चिन्हांकित विकासखण्डों तथा उप स्वास्थ्य केन्द्रों में यह अभियान चलाया  जायेगा।

दस्तक अभियान का उद्देश्य प्रदेश में 5 वर्ष तक के बच्चों का अच्छा मानसिक और शारीरिक विकास करना है। प्रदेश में यद्यपि संस्थागत प्रसव बढ़कर 80 फीसदी से अधिक हो गया है, फिर भी टीकाकरण अभी भी काफी कम है। अभियान से ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों के बच्चों पर नजर रखी जायेगी।  उनका स्वस्थ विकास पूरे तन-मन-धन लगाकर किया जायेगा।

 
अभियान के लिए लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और महिला-बाल विकास विभाग ने जो साझा रणनीति तैयार की है। उसमें अभियान में स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला टीकाकरण अधिकारी, विकासखण्ड चिकित्सा अधिकारी और महिला-बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी और परियोजना अधिकारी के उत्तरदायित्व निर्धारित कर दिये गये हैं।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के दायित्व
 
दस्तक अभियान का अपने जिले के चिन्हित एवं उप स्वास्थ्य केन्द्र क्षेत्रों में क्रियान्वयन के साथ ही आवश्यक औषधि, सामग्री और मुद्रण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करना, कलेक्टर को जानकारी देकर कलेक्टर कार्यालय से कर्मचारियों की नामजद ड्यूटी लगाना, जिला टीकाकरण अधिकारी के जरिये अभियान की सूचना विकास खण्डों एवं ग्राम-स्तरीय कर्मचारियों तक पहुँचाना, अभियान की दैनिक रिपोर्टिंग और निगरानी करना,रेफरल के लिए चिन्हांकित बच्चों की रेफरल एवं समुचित प्रबंधन की निगरानी करना।

जिला टीकाकरण अधिकारी
 
 टीकाकरण की सूक्ष्म कार्य-योजना की तर्ज पर नामजद ग्रामवार माइक्रो प्लान बनाना एवं मूल्यांकन, जिला एवं विकासखण्ड-स्तरीय स्वास्थ्य एवं महिला-बाल विकास विभाग के कर्मचारियों से सतत समन्वय बनाना, समग्र पोर्टल आधारित राज्य-स्तर से भेजे गये विकास खण्ड एवं ग्राम वार डेटा को महिला-बाल विकास विभाग के जिला अधिकारियों से साझा करना, अभियान के क्रियान्वयन के लिये अधिकारी-कर्मचारियों का उन्मुखीकरण करना, रेफरल बच्चों की चिकित्सकीय जाँच तथा समुचित प्रबंधन की निगरानी करने के साथ ही दस्तक अभियान की रिपोर्टिंग के लिये राज्य-स्तर से सतत संपर्क में रहना।

जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला-बाल विकास विभाग
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के साथ अभियान की समन्वित कार्य-योजना तैयार करना, विभाग के विकासखण्ड-स्तरीय एवं मैदानी कार्यकर्ताओं को अभियान की जानकारी देना,अधीनस्थ कर्मचारियों की नामजद ड्यूटी निर्धारण,
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का विकास खण्ड-स्तर पर उन्मुखीकरण सुनिश्चित करना, सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को एमयूएसी टेप उपलब्ध करवाना, दैनिक रिपोर्टिंग के लिये विकासखण्ड परियोजना अधिकारी एवं चिकित्सा अधिकारी से सतत संपर्क बनाना, दस्तक अभियान में चिन्हांकित बच्चों की रेफरल एवं समुचित प्रबंधन की निगरानी करना ।

विकासखण्ड चिकित्सा अधिकारी:
दस्तक अभियान का चिन्हित विकासखण्ड एवं उप स्वास्थ्य केन्द्र क्षेत्रों में क्रियान्वयन, अभियान के लिये आवश्यक सभी निर्धारित औषधि, सामग्री और माँ कार्यक्रम की आशा इन्फो किट, रेफरल के लिये निःशुक्ल परिवहन का टोल-फ्री नम्बर, निकटस्थ स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक का नाम एवं मोबाइल नम्बर की उपलब्धता मैदानी कर्मियों तक सुनिश्चित करना, अधीनस्थ कर्मचारियों की नामजद ड्यूटी लगाना ।
इसके अतिरिक्त आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा अभियान की गतिविधि का प्रसार सुनिश्चित करने के लिये ग्राम में समय से पहले सूचना पहुँचाना,अभियान के उद्देश्यों के प्रति कर्मचारियों का उन्मुखीकरण करना, ग्राम-स्तर पर चिन्हांकित गंभीर एनेमिक बच्चों को रक्त आधान के लिये उचित संस्थान तक निशुल्क परिवहन की व्यवस्था सुनिश्चित करना, चिन्हांकित गंभीर कुपोषित बच्चों के लिये पोषण पुनर्वास केन्द्रों में पर्याप्त बिस्तरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, यदि केंद्र में उपलब्ध बिस्तरों से अधिक बच्चे चिन्हांकित होते हैं, तो स्थानीय प्रशासन की मदद से अतिरिक्त बिस्तरों की व्यवस्था करना,संभावित निमोनिया से पीड़ित बच्चों की सबसे पहले उप स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर एवं सुधार न होने की दशा में प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर उपचार सुनिश्चित करने के अलावा मॉ कार्यक्रम के लिये सभी आशा कार्यकर्ता का उन्मुखीकरण और आशा पोर्टल में इसकी जानकारी दर्ज करना, दैनिक रिपोर्टिंग की निगरानी करना और चिन्हांकित रेफरल बच्चों की निगरानी करना ।

परियोजना अधिकारी महिला-बाल विकास: विकासखण्ड चिकित्सा अधिकारी के साथ दस्तक अभियान की संयुक्त रणनीति तैयार करना, गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान के लिये आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का उन्मुखीकरण करना, चिन्हांकित गंभीर कुपोषित बच्चों की रेफरल एवं भर्ती व्यवस्था सुनिश्चित करना, चिन्हांकित गंभीर कुपोषित बच्चों की जानकारी अद्यतन करना, दस्तक अभियान के उद्देश्यों के प्रति आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं एवं आईसीडीएस सुपरवाइजर का उन्मुखीकरण करना, नवजात शिशुओं की माताओं और समुदाय को मॉ कार्यक्रम में स्तनपान की जानकारी देने के लिये कर्मचारियों को निर्देशित करना, अभियान की दैनिक रिपोर्टिंग और चिन्हांकित बच्चों की रेफरल एवं समुचित प्रबंधन की निगरानी करना।

इस अभियान के परिणाम भी सामने आने लगे हैं । शहडोल जिले के खरपा गाँव में  स्वास्थ्य एवं एकीकृत बाल विकास सेवाओं की संयुक्त टीम जब पहुॅची, तो वहां अभियानद ल का सामना उदयराज कोल नामक बच्चा गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे से हुआ। जाँच करने पर भरतराज कोल के 11 माह के पुत्र उदय राज का वजन मात्र 5 किलो और हीमोग्लोबिन लगभग 6 ग्राम पाया । तुरंत निशुल्क  जननी एक्सप्रेस से उदयराज को पोषण पुनर्वास केंद्र पहुंचने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उसके माता-पिता आनाकानी करने लगे । दस्तक दल ने उसके माता पिता को गंभीर कुपोषण के दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से बताया, जिससे वे जागरूक हो सके । बीमारी की गंभीरता को समझ सकें । हालांकि इस काम में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी । अंततः उन्हें यह समझ आया और वे उदयराज को ब्यौहारी के पोषण पुनर्वास केंद्र में 15 दिन के लिए भर्ती करवाने को  राजी हुए । इसके बाद उसे स्वास्थ्य एवं महिला-बाल विकास विभाग का अमला जननी एक्सप्रेस से पोषण पुनर्वास केन्द्र ब्यौहारी में ले गये , जहां बच्चे की विशेष देखभाल हो रही हैं। इलाज के बाद उदय की हालत में सुधार को देखते हुए आस-पास के लोग भी प्रभावित होने लगे ।  

उदयराज अपने माता-पिता का पहला संतान है। उसे आठवें माह से दाल का पानी और सूखी रोटी भी देना शुरू किया था । उदय की माँ ने बताया, कि कुछ महीनों से उसे सर्दी-खांसी, बुखार हो रहा है।  दल के विशेषज्ञों ने समझाया, कि  बच्चों में कम वजन एवं गंभीर कुपोषण का एक प्रमुख कारण माँ के दूध में कमी के साथ ही अपर्याप्त आहार  है। बच्चे की सेहत के लिए जरूरी है कि 6 माह की उम्र होने पर उसे माँ के दूध के साथ-साथ घर में पका हुआ स्वच्छ ताजा भोजन और फल भी खिलाए जायें। दल ने माता-पिता को उपयुक्त आहार से बचपन में होने वाली बीमारियां , जैसे -उल्टी- दस्त , निमोनिया आदि से बचाव की भी जानकारी  दी।
इसी तरह जब दस्तक अभियान ग्वालियर जिले के आमपुरा मजरे में पहुंचे, तो उन्हें  भारी सफलता मिली, जब वे यहाँ रहने वाले बंजारा समुदाय के लोगों को  स्वास्थ्य सुविधाओं का महत्व समझाने  के साथ-साथ अपने बच्चों के टीकाकरण से किस तरह जानलेवा बीमारियों में निजात पाया जा सकता है, समझाने में कामयाब हुए । बंजारा समुदाय ने बच्चों के टीकाकरण वाली बात तुरंत मान गये । घाटीगांव विकासखण्ड के दूरस्थ एवं पहुँच विहीन क्षेत्र में इस मजरे में बंजारा समुदाय के लगभग ढाई सौ परिवार लम्बे समय से यहां बसे हुए हैं । बीमार पड़ने पर ये अपने परंपरागत नुस्खों से इलाज करते आ रहे हैंे। बहुत मुश्किल से वे सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेना पसंद करते हैं। पहले भी नजदीक उप स्वास्थ्य केन्द्र सिमरिया टॉक की एएनएम एवं आशा कार्यकर्ता  यहाँ के बच्चों को टीकाकरण के लिये चिन्हित किया था। उस समय केवल तीन परिवार को छोड़कर किसी ने भी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई ।

दस्तक अभियान टीम ने स्थिति को समझकर मजरे के एक-एक घर में जाकर लोगों को बच्चों की असामयिक मृत्यु और उनके स्वस्थ विकास में टीके की महत्ता को समझाया । अथक प्रयास के बाद बंजारा समुदाय के मन में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति विश्वास पैदा हुआ है और वे एएनएम से स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने एवं बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों का तत्काल निवारण की मांग की है ।
दस्तक दल ने मजरावासियों से चर्चा के बाद ऐसे दो स्थल का चयन किया है, जहां एएनएम नियमित टीकाकरण करेंगी। इसमें सिमरिया गांव की आशा कार्यकर्ता मदद करेगी। मजरावासियों को गंभीर स्थितियों के निवारण के लिए सी.एम. हेल्पलाइन-181 सहित मुख्य अधिकारियों, एएनएम, आशा का टेलीफोन नंबर भी दिया गया है। टीकाकरण के साथ महिलाओं एवं बच्चों को अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं और आयोडीन युक्त नमक की महत्ता के बारे में भी बताया जा रहा है।
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                             शौर्या दल
Ruby Sarkar

भारत की सभ्यता मुख्यतः हिंसक सभ्यता है, यह सभी महापुरुषों ने बारंबार कहा है । अनेक लेखक एवं बौद्धिक समाज इस बात से उदास है, कि विदेशी आक्रांताओं के प्रभाव में आकर  आधुनिक दौर में  जिस तरह की हिंसक व्यवस्था बन गई है , क्या किया जाये, कि इससे निजात मिल सके । इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश सरकार ने हिंसा की शिकार और सामाजिक कुरीतियों से पीड़ित महिलाओं को ताकत देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देश पर प्रदेश के 51 जिलों में शौर्या दलों का गठन किया गया है , जो समाज में होने वाली हिंसक घटनाओं को आपसी सामंजस्य या फिर कानून की मदद से निपटा जा सके। इस तरह के प्रयास से बेहतर परिणाम और महिलाओं के पक्ष में वातावरण बनने लगे है। प्रदेश में महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके प्रति समाज का नजरिया बदलने में इस दल की महिलाओं की बड़ी भूमिका है ।  टीकमगढ़ में टैक्सी चालकों के आतंक के खिलाफ आवाज उठाने की बात हो या गांव में शराबबंदी की बात हो, दल की महिलाएं ही अगवा बनी । यहां तक कि प्रेम विवाह के बाद अपने परिवार से निर्वासित कर दिये गये बहू-बेटे को इस दल ने मध्यस्थता कर वापस उन्हें अपने परिवार से मिलवाया। यह दल की सक्रियता से पितृसत्तात्मक और सामंतवादी सोच में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है । शौर्या दल ने जहां महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों का विरोध किया, वहीं सामाजिक बुराइयों को दूर करने में भी योगदान दिया। इसके साथ ही महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें दिलवाया। बेटे-बेटी में भेद न हो इसके लिये जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें दल सफल रहा। इन्हीं प्रेरक महिलाओं कुछ कहानियों से आपको परिचित कराते हैं ---

बिखरते परिवार को ‘‘शौर्या दल ने समेटा


सदियों से प्रेम विवाह करने वालों को समाज सूली पर चढ़ाने को तैयार रहता हैं । अब यह मान्यता सरकारी प्रयास से धीरे-धीरे कम होने लगे हैं ।
 टीकमगढ़ जिले के सेंदरी ग्राम में रहने वाला हँसता -खेलता एक परिवार सिर्फ‘प्रेम विवाह‘ की वजह से बिखरने की कगार पर आकर खड़ा हो गया था। परिवार के सदस्यों का छोटा सा मन यह समझने को तैयार नहीं था, कि बहू के हाथ में जो फल या उसके भाग्यफल से ही परिवार की बेल बढ़ती है।

ग्राम केना में मेवा नापित अपने बेटा व परिवार के साथ खुशी से रह रही थी। इस बीच  उनके बेटे को दूर के एक रिश्तेदार की बेटी से गजब का प्यार हो गया । वह इसके अलावा किसी से शादी करने को तैयार नहीं था । जब उसने प्रेम विवाह करने का प्रस्ताव परिवार के सामने रखा, तो हंगामा खड़ा हो गया। परिवार के सदस्यों ने  बेटे की इस बात का सख्ती से विरोध किया।  परिवार का बढ़ता विरोध देखते हुए युगल प्रेमी अपने घरों से कहीं दूर चले गये और उन्होंने वहां  शादी रचा ली ।  विवाह के करीब एक माह बाद दोनों गांव में वापस लौटे और घर पहुंचकर वहां ठीक से रहने की बात कही, तो परिवार वाले विरोध में खड़े हो गये और बुजुर्ग सदस्यों ने गुस्से में आकर  नवविवाहित जोड़े को घर से बाहर निकाल दिया। बन्द पलकों के भीतर चार  चमकती आँखें हताश-निराश होकर देखा, कि अब यहां बात बिगड़ चुकी है, यहां उसके प्रति परिवार के सदस्यों की संवेदनाएं मर चुकी है,तो  दोनों ने गांव  में ही अलग घर लेकर रहने फैसला लिया । जब वे उसी गांव में अलग घर लेकर  रहने लगे, तो पूरे गांव में इसकी चर्चा होने लगी  और बात शौर्या दल की महिलाओं के कानों तक पहुंची ।  दल की सदस्य कुन्जन राय ने दल का नेतृत्व कर परिवार के बीच मध्यस्थता कर पूरे परिवार को एक साथ रहने को राजी कराने का निश्चय किया। इसके लिए ‘‘शौर्या दल’’ ने दोनों पक्षों से अलग-अलग बात की। दल ने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को समझाया कि अब तो विवाह हो ही चुका है,  परिवार की भलाई इसी में है, कि उन्हंे प्यार से स्वीकार कर ले । आखिर वह इसी परिवार का सदस्य है। कुन्जन ने समझाया परिवार का बेटा-बहू परिवार का महत्वपूर्ण अंग है। अगर  दोनों ने अपनी पसंद से विवाह कर भी लिया है और दोनों बालिग तथा दोनों के बीच अच्छा तालमेल है, फिर तो कानून भी इन लोगों को अलग नहीं कर सकेगा । ऐसे में यदि परिवार वाले इन लोगों का साथ नहीं देंगे, तो समाज में गलत संदेश जाएगा ।  दूसरी ओर बेटा और बहू परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए तड़प रहे थे । उन्हें उम्मीद थी, कि शादी के बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा । लेकिन उनका सोचा हुआ कुछ भी पूरा नहीं हुआ। आखिर शौर्या दल को माता-पिता को समझाने के लिए आगे आना पड़ा । मुख्यमंत्री की मन की बातों से उन लोगों को अवगत कराया, कि अब इस तरह बे सिर-पैर की कुरीति नहीं चलेगी।  काफी विचार-विमर्श के बाद  बेटा और बहू को साथ लेकर एक साथ रहने को राजी हो गये। उनकी रजामंदी से एक बार फिर परिवार में खुशियां लौट आई। शौर्या दल की सार्थक पहल ने बेटा बहू को तो मिलाया ही, साथ में एक संदेष भी समाज तक पहुॅचाया, कि इस तरह अहम के टकराव से तो सिर्फ परिवार बिखरेगा । दल के इस सफल प्रयास से पूरा गांव दल की महत्ता के गुण गा रहे हैं और उनके प्रयास से खुष हो रहे हैं । अपने नेक कामों के जरिये शौर्या दल ने  गांव के लोगों से तादात्म्य स्थापित कर लिया है । दल के इस प्रयास से नवविवाहित जोड़ा कृतज्ञता से मुस्कुरा कर उन्हें धन्यवाद देते हुए खुषी जाहिर कर रहे हैं।  

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