अदम्य साहस से आटा-साटा से मुक्त हुई नाबालिग पूजा
Ruby Sarkar
मंदसौर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे कचनारा फ्लैग की पूजा अपने जीवन का मात्र सोलह बसंत ही देख पाई थी, कि अचानक उसकी खुशी में ग्रहण लग गया। उसके परिजनों ने आटा-साटा(अदला-बदली प्रथा) के तहत गांव के ही सुल्तान नामक अधेड़ उम्र के पुरुष के साथ कर दिया । इस शादी के बदले पूजा के भाई की शादी दूल्हे की बहन के साथ हो गई। भाई ने अपने स्वार्थ के चलते अपनी बहन की जिंदगी में आने वाले नये रंग को बदरंग कर दिया । उसने अपनी खुशी के लिए एक तरह से बहन का सौदा किया। यहां यह भी बताना जरूरी है, कि यह विवाह मात्र 50 रुपए के स्टाम्प पेपर पर नोटरी से कराया गया था। गांव का ही व्यक्ति होने के चलते सुल्तान के आचरणों से पूजा तो क्या , पूरे गांव के लोग परिचित थे। अन्य भारतीय महिलाओं की तरह पूजा भी त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर भाई की जिंदगी की खातिर चुप रह गई । लेकिन उसने मन से सुल्तान को कभी अपना पति स्वीकार नहीं किया । शादी के बाद जब सुल्तान उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बनाया, तो वह ससुराल जाने या मायके में रहने के बजाय थाने पहुंच गई । जहां से पुलिस ने उसे बाल कल्याण समिति के पास भेज दिया । बाल कल्याण समिति से जब पूजा ने अपनी पूरी कहानी बताई, तो समिति ने पूजा से कानूनन बाल विवाह शून्य कराने की प्रक्रिया से अवगत कराया । पूजा ने विवाह शून्य कराने की प्रक्रिया शुरू की और महिला सशक्तिकरण विभाग से उसे विवाह शून्य घोषित करवाने में कामयाबी मिली । उसने यह खुशखबरी अपनी सहेलियों के साथ साझा किया, जिससे गांव की अन्य लड़कियों में भी हिम्मत आये । विवाह शून्य होने के बाद नए नवाचारों के तहत आर्थिक सशक्तिकरण के लिए किये जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत पूजा को महिला सशक्तिकरण विभाग ने कम्प्यूटर प्रशिक्षण देना शुरू किया। जिससे उसे आर्थिक मजबूती मिल सके ।
पूजा कहती है, कि बाल विवाह की मुख्य वजह समुदाय के लोगों की मानसिकता में समय के साथ बदलाव न होना है। आज भी समुदाय बाल विवाह के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ है। लाडो अभियान ने इस दिशा में काफी काम किया है। फिर भी अभी लम्बा सफर तय करना बाकी है। पूजा ने यह भी कहा, कि अक्सर माता-पिता जवान लड़कियों की सुरक्षा कारणों से लड़कियों की कम उम्र में शादी कर देते हैं, इसलिए माता-पिता को यह भरोसा दिलाया भी होगा, कि प्रदेश की पुलिस और समाज लड़कियों की सुरक्षा के लिए सदा तैयार है । पूजा कम्प्यूटर प्रशिक्षण के बाद अपने पैर पर खड़ा होना चाहती है । वह जीवन में किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहती । उसके अनुसार जब तक लड़कियां पढ़-लिख कर अपनी जिम्मेदारी स्वयं नहीं उठायेंगी, उनके साथ इस तरह की जबरदस्ती होती रहेगी । लड़कियों को स्वयं आगे आकर इसका विरोध करना चाहिए । आज पूजा समाज के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती है। वह युवा ष्षक्ति के रूप में उभरी है । उसे एक चेंज एजेंट के रूप में देखा जा रहा है । लाडो अभियान के 3100 ब्रांड एम्बेसेडर में पूजा भी एक है । उसके नेक कार्यों से पूरा गांव उससे खुष है । वह लाडो अभियान का प्रचार-प्रसार भी करती है और कम उम्र में होने वाली शादी के खतरों से भी गांव वालों को अवगत कराती है । पूजा कहती है, कि यदि कहीं बाल विवाह होने जा रहा है, तो कोई भी व्यक्ति पुलिस या न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट या परिवाद दायर कर सकता है । पुलिस आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार कर सकती है । न्यायालय बाल विवाह रोकने के लिए अविलम्ब स्टे जारी कर सकता है । बाल विवाह के अपराध पर इसमें सहयोग व प्रेरित करने वाले परिवारों, पंडित, नाई, बाराती, बैंड वाले व अन्य सभी दोषियों को 2 वर्ष की अवधि का कारावास या एक लाख रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित भी किया जा सकता है।
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साहसी काजल बनीं दूसरों की प्रेरणा
अनूपपुर जिले का धर्मदास अहिरवार की बेटी काजल का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में अवधेष नाम युवक के साथ कर दिया गया था । कुछ दिन ससुराल रहने के बाद जब उसे ससुराल रास नहीं आया, तो बिना किसी से पूछे वापस मायके भाग आई । मायके आने के बाद भी उसने अपनी परेषानी किसी से साझा नहीं किया , बस गुमसुम इस विवाह से मुक्त होने की बात सोचती रही। इस बीच जब उसे लाडो अभियान के तहत होने वाले प्रचार-प्रसार के जरिये बाल विवाह निषेध कानून की जानकारी मिली, तब उसेन आयन्दा ससुराल न जाने की ठान ली और इस बात पर अड़ गई, कि वह अब कभी ससुराल नहीं जायेगी । मायके और ससुराल वालों के लाख समझाने पर वह नहीं मानी, उल्टे महिला सषक्तीकरण विभाग पहुॅचकर अधिकारियों से अपनी परेषानी बताई । अधिकारी मंजूषा ने उसे मदद देने की बात कही। तब काजल ने विवाह शून्य घोषित किये जाने के लिए आवेदन दिया। उसके आवेदन पर कार्यवाही करते हुए महिला सषक्तीकरण विभाग के अधिकारी ने संरक्षण अधिकारी को तुरंत जांच करने के आदेष दिये। संरक्षण अधिकारी ने जांच के बाद दस्तावेजों के जरिये यह साबित कर दिया, कि शादी के वक्त काजल नाबालिग थी। फिर क्या था, काजल ने बाल विवाह का विरोध करते हुए अपने विवाह को शून्य घोषित करवाने जैसा साहसिक कदम उठाया । उसके इस साहसिक कदम से खूब चर्चे होने लगे । लोगों ने तरह-तरह की बातें बनाने लगे । उस पर लाछंन भी लगे, लेकिन काजल पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ । वह कानून जान चुकी थी, लिहाजा वह अपनी बात पर अड़ी रही । अततः इस विवाह से पूरी तरह मुक्त होने के बाद ही उसने दम लिया । उसके साहसिक कदम का सम्मान करते हुए अंतराष्ट््रीय महिला दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान ने उसे 51,000 रुपये की राषि प्रदान कर उसे सम्मानित किया। सम्मान हासिल करने के बाद तो काजल के बारे में सबके सुर बदल गये । आज इस सम्मान से काजल ही नहीं, उसके पिता भी गर्व महसूस करते है । पिता धर्मदास कहते है, कि मेरी बेटी ने मेरी ऑखें खोल दी । उन्होंने कहा, काजल न सिर्फ बाल विवाह जैसे अभिषाप से स्वयं बाहर निकली, बल्कि उसने अपनी लड़ाई स्वयं लड़कर हमें भी अपनी गल्ती का एहसास कराया । धर्मदास ने कहा, काजल जैसी लड़कियां जिस प्रदेष रहती हो, उस प्रदेष पिछड़ा नहीं कहा जा सकता । आज इस प्रदेष की बेटियां , बेटों से आगे निकल रही हैं । हमारा सोचना गलत है, कि बेटियों की सुरक्षा और कौमार्य सुरक्षित रखने के लिए उसकी जल्दी से जल्दी शादी कर दी जानी चाहिए । इस तरह माता-पिता अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं, जबकि आज कई ऐसे उदाहरण है, जहां बेटियां ही माता-पिता का सहारा बन रही हैं ।
मुख्यमंत्री षिवराजसिह चौहान के हाथों सम्मानित होने के बाद काजल अनूपपुर की प्रेरणास्रोत बन गई हैं । वह कहती है, कि लड़कियों को सुरक्षित वातावरण मिले, तो वह बहुत कुछ कर सकती है । यह अभियान लोगों को झकझोर देने का इरादा रखता है । सैकड़ों स्कूल-कॉलेज के युवाओं को जाति-धर्म का भेद भुलाकर इस अभियान से जोड़ने की जरूरत है , क्योंकि बाल विवाह सिर्फ हिन्दुओं में नहीं, बल्कि सभी धर्मों में यह कुप्रथा आज भी मौजूद है। इसलिए अभियान के माध्यम से आम लोगों का जुड़ाव और जागरूकता कार्यक्रम जारी रहनी चाहिए । जिससे लोग बाल विवाह के कानूनी प्रावधानों से परिचित हो सकें । अभियान के प्रचार-प्रसार से आये दिन होने वाले सामूहिक विवाह और निकाह में भी अब आयोजक आयु प्रमाण पत्र के साथ उपस्थित रहते हैं । --------------------------------------------------
अनूपपुर की आईकान पिंकी
अनुपपूर की पिंकी के पिता का निधन बचपन में ही हो गया था । वह बिन बाप मां के साथ किसी तरह जीवन यापन कर रही थी ं । एक दिन उसे अचानक पता चला, कि उसकी मां ने उसका विवाह किसी लड़के से तय कर दी है, तो उसने साहस का परिचय देते हुए इसका विरोध किया । वह मां का सहारा बनना चाहती थी, लेकिन मां को बेटी की सुरक्षा का डर सता रहा था । पिंकी ने मां की एक न सुनी और सीधे महिला बाल विकास पर्यवेक्षक एवं थाना बिजुरी को अपनी शादी की सूचना दे दी । बस फिर क्या था, चारों ओर हंगामा खड़ा हो गया । लाड़ो अभियान के तहत् महिला सषक्तीकरण विभाग एवं थाना बिजुरी के पुलिस मौके पर पहुंचकर पिंकी के परिजनों को बाल विवाह न करने की समझाईष दी। काफी समझाने के बाद जब उन्हें अपनी जिम्मेदारी पर जवाबदारी का पता चला, तो उन्होंने नाबालिग पिंकी की शादी रोकवाई । उसकी मां ने कहा, कि बाल विवाह नैसर्गिक और प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ है , यह बात उन्हें अब समझ आ गई हैं । उन्होंने कहा, पिंकी का विरोध जायज है उसने यह साहसिक कदम उठाकर न केवल अपनी जिंदगी सुरक्षित की है, बल्कि अब वह समाज के अन्य लोगों के लिए भी एक उदाहरण बनकर सामने आई है। वहीं पिंकी कहती है, कि लाडो अभियान ने उसका जीवन बदल दिया ।
मॉ के मुॅह से अपनी तारीफ सुनकर पिंकी बहुत भावुक हो उठती है, वह कहती है, कि लड़कियों के प्रति समाज का गलत नजरिया की जड़े बहुत गहरी है। इसे समाप्त करने में समय तो लगेगा ही, लेकिन जिस तरह आज उसकी मॉ बाल विवाह के खिलाफ खड़ी हुईं, आने वाले दिनों मंे सभी माता-पिता स्वयं आगे बढ़कर इस कुप्रथा को खत्म करने में अपनी भूमिका अदा करेंगे । सचाई तो यह है कि बालविवाह केवल गरीब के घरों में ही नहीं हो रहे हैं , बल्कि खाते-पीते घरों में भी यह कुप्रथा जीवित हैं। जिसके घातक परिणाम के कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद है। उसने कभी नहीं सोचा था, कि वह अपनी मां को समझा पायेंगी, लेकिन महिला सषक्तीकरण अधिकारियों ने मां को इस तरह समझाया, िक वह केवल मान ही नहंी गई, बल्कि बेटियों के प्रति उनका नजरिया ही बदल गया। यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है ।
पिंकी के इस साहसिक कदम के लिए अंतराष्ट््रीय महिला दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान ने उसे 51,000 रुपये की राषि प्रदान कर सम्मानित किया । पिंकी द्वारा सम्मान ग्रहण करने के बाद प्रतिक्रिया देती हुई उसकी मां ने कहा, अब बेटी की शादी 18 उम्र पूरे होने के बाद ही करेंगी । उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी गलती मानते हुए कहा, कि बेटे को जन्म के बाद माताएं नाड़ा काटने के लिए सोने की छुरी का इस्तेमाल करती हैं, जबकि बेटियों के जन्म के बाद झटककर स्वयं ही नाड़ा काट लेती है। कन्या को अभिषाप मानकर इस तरह की घटनाएं आज भी समाज में होती है । वह कहती हैं, कि जब शासन ने मदद मिल रहा हो, तो बेटियों के अरमानों का गला न घोटा जाये, बल्कि उसे सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक सुरक्षा प्रदान कर उनमें खुली सोच का विकास किये जाने की जरूरत है, जिससे वे भविष्य में देष व माता-पिता का नाम रोषन कर सकें और हम जैसे माता-पिता बाल विवाह जैसे अपराध करने से बच जाये। सबसे खुषी की बात यह है, कि अब वे अपनी बेटी को पहले से ज्यादा दुलार करती हैं।
विभागीय अधिकारी टिनी पाण्डेय बताती हैं, कि यह अभियान एक जन अभियान बनकर उभरा है । इससे बाल विवाह के प्रति सोच मंे अमूलचूल परिवर्तन आया है । इस अभियान को प्रदेष के सभी विभागों जैसे - पंचायत, स्कूल षिक्षा, गृह, स्वास्थ्य, नगरीय प्रषासन और जनसंपर्क से सहयोग भी मिल रहा है । यह बहुत ही मितव्ययता से संचालित किया जाने वाला कार्यक्रम है ।उन्होंने कहा, किसी भी कुरीति को दूर करने के लिए समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए समाज का हर वर्ग इस अभियान से जुड़े और अपना कर्तव्य समझकर ऐसी सामाजिक कुरीतियों को दूर कर राज्य की प्रगति में सहयोग करें।
मंदसौर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे कचनारा फ्लैग की पूजा अपने जीवन का मात्र सोलह बसंत ही देख पाई थी, कि अचानक उसकी खुशी में ग्रहण लग गया। उसके परिजनों ने आटा-साटा(अदला-बदली प्रथा) के तहत गांव के ही सुल्तान नामक अधेड़ उम्र के पुरुष के साथ कर दिया । इस शादी के बदले पूजा के भाई की शादी दूल्हे की बहन के साथ हो गई। भाई ने अपने स्वार्थ के चलते अपनी बहन की जिंदगी में आने वाले नये रंग को बदरंग कर दिया । उसने अपनी खुशी के लिए एक तरह से बहन का सौदा किया। यहां यह भी बताना जरूरी है, कि यह विवाह मात्र 50 रुपए के स्टाम्प पेपर पर नोटरी से कराया गया था। गांव का ही व्यक्ति होने के चलते सुल्तान के आचरणों से पूजा तो क्या , पूरे गांव के लोग परिचित थे। अन्य भारतीय महिलाओं की तरह पूजा भी त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर भाई की जिंदगी की खातिर चुप रह गई । लेकिन उसने मन से सुल्तान को कभी अपना पति स्वीकार नहीं किया । शादी के बाद जब सुल्तान उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बनाया, तो वह ससुराल जाने या मायके में रहने के बजाय थाने पहुंच गई । जहां से पुलिस ने उसे बाल कल्याण समिति के पास भेज दिया । बाल कल्याण समिति से जब पूजा ने अपनी पूरी कहानी बताई, तो समिति ने पूजा से कानूनन बाल विवाह शून्य कराने की प्रक्रिया से अवगत कराया । पूजा ने विवाह शून्य कराने की प्रक्रिया शुरू की और महिला सशक्तिकरण विभाग से उसे विवाह शून्य घोषित करवाने में कामयाबी मिली । उसने यह खुशखबरी अपनी सहेलियों के साथ साझा किया, जिससे गांव की अन्य लड़कियों में भी हिम्मत आये । विवाह शून्य होने के बाद नए नवाचारों के तहत आर्थिक सशक्तिकरण के लिए किये जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत पूजा को महिला सशक्तिकरण विभाग ने कम्प्यूटर प्रशिक्षण देना शुरू किया। जिससे उसे आर्थिक मजबूती मिल सके ।
पूजा कहती है, कि बाल विवाह की मुख्य वजह समुदाय के लोगों की मानसिकता में समय के साथ बदलाव न होना है। आज भी समुदाय बाल विवाह के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ है। लाडो अभियान ने इस दिशा में काफी काम किया है। फिर भी अभी लम्बा सफर तय करना बाकी है। पूजा ने यह भी कहा, कि अक्सर माता-पिता जवान लड़कियों की सुरक्षा कारणों से लड़कियों की कम उम्र में शादी कर देते हैं, इसलिए माता-पिता को यह भरोसा दिलाया भी होगा, कि प्रदेश की पुलिस और समाज लड़कियों की सुरक्षा के लिए सदा तैयार है । पूजा कम्प्यूटर प्रशिक्षण के बाद अपने पैर पर खड़ा होना चाहती है । वह जीवन में किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहती । उसके अनुसार जब तक लड़कियां पढ़-लिख कर अपनी जिम्मेदारी स्वयं नहीं उठायेंगी, उनके साथ इस तरह की जबरदस्ती होती रहेगी । लड़कियों को स्वयं आगे आकर इसका विरोध करना चाहिए । आज पूजा समाज के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती है। वह युवा ष्षक्ति के रूप में उभरी है । उसे एक चेंज एजेंट के रूप में देखा जा रहा है । लाडो अभियान के 3100 ब्रांड एम्बेसेडर में पूजा भी एक है । उसके नेक कार्यों से पूरा गांव उससे खुष है । वह लाडो अभियान का प्रचार-प्रसार भी करती है और कम उम्र में होने वाली शादी के खतरों से भी गांव वालों को अवगत कराती है । पूजा कहती है, कि यदि कहीं बाल विवाह होने जा रहा है, तो कोई भी व्यक्ति पुलिस या न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट या परिवाद दायर कर सकता है । पुलिस आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार कर सकती है । न्यायालय बाल विवाह रोकने के लिए अविलम्ब स्टे जारी कर सकता है । बाल विवाह के अपराध पर इसमें सहयोग व प्रेरित करने वाले परिवारों, पंडित, नाई, बाराती, बैंड वाले व अन्य सभी दोषियों को 2 वर्ष की अवधि का कारावास या एक लाख रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित भी किया जा सकता है।
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साहसी काजल बनीं दूसरों की प्रेरणा
अनूपपुर जिले का धर्मदास अहिरवार की बेटी काजल का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में अवधेष नाम युवक के साथ कर दिया गया था । कुछ दिन ससुराल रहने के बाद जब उसे ससुराल रास नहीं आया, तो बिना किसी से पूछे वापस मायके भाग आई । मायके आने के बाद भी उसने अपनी परेषानी किसी से साझा नहीं किया , बस गुमसुम इस विवाह से मुक्त होने की बात सोचती रही। इस बीच जब उसे लाडो अभियान के तहत होने वाले प्रचार-प्रसार के जरिये बाल विवाह निषेध कानून की जानकारी मिली, तब उसेन आयन्दा ससुराल न जाने की ठान ली और इस बात पर अड़ गई, कि वह अब कभी ससुराल नहीं जायेगी । मायके और ससुराल वालों के लाख समझाने पर वह नहीं मानी, उल्टे महिला सषक्तीकरण विभाग पहुॅचकर अधिकारियों से अपनी परेषानी बताई । अधिकारी मंजूषा ने उसे मदद देने की बात कही। तब काजल ने विवाह शून्य घोषित किये जाने के लिए आवेदन दिया। उसके आवेदन पर कार्यवाही करते हुए महिला सषक्तीकरण विभाग के अधिकारी ने संरक्षण अधिकारी को तुरंत जांच करने के आदेष दिये। संरक्षण अधिकारी ने जांच के बाद दस्तावेजों के जरिये यह साबित कर दिया, कि शादी के वक्त काजल नाबालिग थी। फिर क्या था, काजल ने बाल विवाह का विरोध करते हुए अपने विवाह को शून्य घोषित करवाने जैसा साहसिक कदम उठाया । उसके इस साहसिक कदम से खूब चर्चे होने लगे । लोगों ने तरह-तरह की बातें बनाने लगे । उस पर लाछंन भी लगे, लेकिन काजल पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ । वह कानून जान चुकी थी, लिहाजा वह अपनी बात पर अड़ी रही । अततः इस विवाह से पूरी तरह मुक्त होने के बाद ही उसने दम लिया । उसके साहसिक कदम का सम्मान करते हुए अंतराष्ट््रीय महिला दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान ने उसे 51,000 रुपये की राषि प्रदान कर उसे सम्मानित किया। सम्मान हासिल करने के बाद तो काजल के बारे में सबके सुर बदल गये । आज इस सम्मान से काजल ही नहीं, उसके पिता भी गर्व महसूस करते है । पिता धर्मदास कहते है, कि मेरी बेटी ने मेरी ऑखें खोल दी । उन्होंने कहा, काजल न सिर्फ बाल विवाह जैसे अभिषाप से स्वयं बाहर निकली, बल्कि उसने अपनी लड़ाई स्वयं लड़कर हमें भी अपनी गल्ती का एहसास कराया । धर्मदास ने कहा, काजल जैसी लड़कियां जिस प्रदेष रहती हो, उस प्रदेष पिछड़ा नहीं कहा जा सकता । आज इस प्रदेष की बेटियां , बेटों से आगे निकल रही हैं । हमारा सोचना गलत है, कि बेटियों की सुरक्षा और कौमार्य सुरक्षित रखने के लिए उसकी जल्दी से जल्दी शादी कर दी जानी चाहिए । इस तरह माता-पिता अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं, जबकि आज कई ऐसे उदाहरण है, जहां बेटियां ही माता-पिता का सहारा बन रही हैं ।
मुख्यमंत्री षिवराजसिह चौहान के हाथों सम्मानित होने के बाद काजल अनूपपुर की प्रेरणास्रोत बन गई हैं । वह कहती है, कि लड़कियों को सुरक्षित वातावरण मिले, तो वह बहुत कुछ कर सकती है । यह अभियान लोगों को झकझोर देने का इरादा रखता है । सैकड़ों स्कूल-कॉलेज के युवाओं को जाति-धर्म का भेद भुलाकर इस अभियान से जोड़ने की जरूरत है , क्योंकि बाल विवाह सिर्फ हिन्दुओं में नहीं, बल्कि सभी धर्मों में यह कुप्रथा आज भी मौजूद है। इसलिए अभियान के माध्यम से आम लोगों का जुड़ाव और जागरूकता कार्यक्रम जारी रहनी चाहिए । जिससे लोग बाल विवाह के कानूनी प्रावधानों से परिचित हो सकें । अभियान के प्रचार-प्रसार से आये दिन होने वाले सामूहिक विवाह और निकाह में भी अब आयोजक आयु प्रमाण पत्र के साथ उपस्थित रहते हैं । --------------------------------------------------
अनूपपुर की आईकान पिंकी
अनुपपूर की पिंकी के पिता का निधन बचपन में ही हो गया था । वह बिन बाप मां के साथ किसी तरह जीवन यापन कर रही थी ं । एक दिन उसे अचानक पता चला, कि उसकी मां ने उसका विवाह किसी लड़के से तय कर दी है, तो उसने साहस का परिचय देते हुए इसका विरोध किया । वह मां का सहारा बनना चाहती थी, लेकिन मां को बेटी की सुरक्षा का डर सता रहा था । पिंकी ने मां की एक न सुनी और सीधे महिला बाल विकास पर्यवेक्षक एवं थाना बिजुरी को अपनी शादी की सूचना दे दी । बस फिर क्या था, चारों ओर हंगामा खड़ा हो गया । लाड़ो अभियान के तहत् महिला सषक्तीकरण विभाग एवं थाना बिजुरी के पुलिस मौके पर पहुंचकर पिंकी के परिजनों को बाल विवाह न करने की समझाईष दी। काफी समझाने के बाद जब उन्हें अपनी जिम्मेदारी पर जवाबदारी का पता चला, तो उन्होंने नाबालिग पिंकी की शादी रोकवाई । उसकी मां ने कहा, कि बाल विवाह नैसर्गिक और प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ है , यह बात उन्हें अब समझ आ गई हैं । उन्होंने कहा, पिंकी का विरोध जायज है उसने यह साहसिक कदम उठाकर न केवल अपनी जिंदगी सुरक्षित की है, बल्कि अब वह समाज के अन्य लोगों के लिए भी एक उदाहरण बनकर सामने आई है। वहीं पिंकी कहती है, कि लाडो अभियान ने उसका जीवन बदल दिया ।
मॉ के मुॅह से अपनी तारीफ सुनकर पिंकी बहुत भावुक हो उठती है, वह कहती है, कि लड़कियों के प्रति समाज का गलत नजरिया की जड़े बहुत गहरी है। इसे समाप्त करने में समय तो लगेगा ही, लेकिन जिस तरह आज उसकी मॉ बाल विवाह के खिलाफ खड़ी हुईं, आने वाले दिनों मंे सभी माता-पिता स्वयं आगे बढ़कर इस कुप्रथा को खत्म करने में अपनी भूमिका अदा करेंगे । सचाई तो यह है कि बालविवाह केवल गरीब के घरों में ही नहीं हो रहे हैं , बल्कि खाते-पीते घरों में भी यह कुप्रथा जीवित हैं। जिसके घातक परिणाम के कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद है। उसने कभी नहीं सोचा था, कि वह अपनी मां को समझा पायेंगी, लेकिन महिला सषक्तीकरण अधिकारियों ने मां को इस तरह समझाया, िक वह केवल मान ही नहंी गई, बल्कि बेटियों के प्रति उनका नजरिया ही बदल गया। यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है ।
पिंकी के इस साहसिक कदम के लिए अंतराष्ट््रीय महिला दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान ने उसे 51,000 रुपये की राषि प्रदान कर सम्मानित किया । पिंकी द्वारा सम्मान ग्रहण करने के बाद प्रतिक्रिया देती हुई उसकी मां ने कहा, अब बेटी की शादी 18 उम्र पूरे होने के बाद ही करेंगी । उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी गलती मानते हुए कहा, कि बेटे को जन्म के बाद माताएं नाड़ा काटने के लिए सोने की छुरी का इस्तेमाल करती हैं, जबकि बेटियों के जन्म के बाद झटककर स्वयं ही नाड़ा काट लेती है। कन्या को अभिषाप मानकर इस तरह की घटनाएं आज भी समाज में होती है । वह कहती हैं, कि जब शासन ने मदद मिल रहा हो, तो बेटियों के अरमानों का गला न घोटा जाये, बल्कि उसे सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक सुरक्षा प्रदान कर उनमें खुली सोच का विकास किये जाने की जरूरत है, जिससे वे भविष्य में देष व माता-पिता का नाम रोषन कर सकें और हम जैसे माता-पिता बाल विवाह जैसे अपराध करने से बच जाये। सबसे खुषी की बात यह है, कि अब वे अपनी बेटी को पहले से ज्यादा दुलार करती हैं।
विभागीय अधिकारी टिनी पाण्डेय बताती हैं, कि यह अभियान एक जन अभियान बनकर उभरा है । इससे बाल विवाह के प्रति सोच मंे अमूलचूल परिवर्तन आया है । इस अभियान को प्रदेष के सभी विभागों जैसे - पंचायत, स्कूल षिक्षा, गृह, स्वास्थ्य, नगरीय प्रषासन और जनसंपर्क से सहयोग भी मिल रहा है । यह बहुत ही मितव्ययता से संचालित किया जाने वाला कार्यक्रम है ।उन्होंने कहा, किसी भी कुरीति को दूर करने के लिए समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए समाज का हर वर्ग इस अभियान से जुड़े और अपना कर्तव्य समझकर ऐसी सामाजिक कुरीतियों को दूर कर राज्य की प्रगति में सहयोग करें।
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