तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम
समाज में कमजोर समझी जाने वाली गरीब एवं ग्रामीण महिलाओं केा आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनाकर उनमें निर्णय क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश सरकार तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम संचालित कर रही है । तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला समूह के सदस्यों को एक उच्च सामुदायिक संस्था के रूप में संगठित कर उन्हें आर्थिक ,सामाजिक और राजनीतिक अवसरों का भरपूर उपयोग करने के लिए सशक्त करना है । इसके अंतर्गत महा संघ का गठन भी किया गया है । एक फेडरेशन के अंतर्गत उससे संबंधित सभी स्व सहायता समूह व सदस्य पंजीकृत किये जाते हैं। फेडरेशन की अपनी कार्यप्रणाली होती है, जिसमें सभी महिला सदस्य हैं । फेडरेशन की अपनी एक आजीविका गतिविधि भी है, जिसके चयन से लेकर संचालन तक का दायित्व महिलाओं के पास है। तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ने के लिए भी कृत संकल्पित हैं । इनका यह प्रयास सैकड़ों उपदेशों से अधिक प्रभावी होते हैं ।
तेजस्विनी कार्यक्रम इन फेडरेशन के प्रारंभिक कार्यों के लिए राषि एवं फर्नीचर आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करता है । कार्यक्रम द्वारा आजीविका गतिविधियों के माध्यम से महासंघों को सशक्त करने की दिशा में पहल की जाती है ।
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मण्डला
मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना का लाभ लेकर
बैगा महिलाएं बनीं आर्थिक रूप से सशक्त
समाज में कमजोर समझी जाने वाली गरीब एवं ग्रामीण महिलाओं केा आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनाकर उनमें निर्णय क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश सरकार तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम संचालित कर रही है । तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला समूह के सदस्यों को एक उच्च सामुदायिक संस्था के रूप में संगठित कर उन्हें आर्थिक ,सामाजिक और राजनीतिक अवसरों का भरपूर उपयोग करने के लिए सशक्त करना है । इसके अंतर्गत महा संघ का गठन भी किया गया है । एक फेडरेशन के अंतर्गत उससे संबंधित सभी स्व सहायता समूह व सदस्य पंजीकृत किये जाते हैं। फेडरेशन की अपनी कार्यप्रणाली होती है, जिसमें सभी महिला सदस्य हैं । फेडरेशन की अपनी एक आजीविका गतिविधि भी है, जिसके चयन से लेकर संचालन तक का दायित्व महिलाओं के पास है। तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ने के लिए भी कृत संकल्पित हैं । इनका यह प्रयास सैकड़ों उपदेशों से अधिक प्रभावी होते हैं ।
तेजस्विनी कार्यक्रम इन फेडरेशन के प्रारंभिक कार्यों के लिए राषि एवं फर्नीचर आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करता है । कार्यक्रम द्वारा आजीविका गतिविधियों के माध्यम से महासंघों को सशक्त करने की दिशा में पहल की जाती है ।
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मण्डला
मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना का लाभ लेकर
बैगा महिलाएं बनीं आर्थिक रूप से सशक्त
Ruby Sarkar
समाज में महिलाओं को सशक्त बनाकर उनमें निर्णय क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश सरकार ने विकास की दौड़ में महिलाओं को बराबरी से साथ लेकर चलने की दिशा में कई योजनाओं पर काम किया। सरकार की सोच है, कि अगर मध्य प्रदेश को हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना हैं, तो महिलाओं के सशक्तिकरण के बगैर यह संभव नहीं है।
प्रदेश में इस अभियान की मजबूत नींव विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रखी जा चुकी है। जो महिलाओं को शारीरिक,राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से सक्षम बनाने का काम कर रही है और उन्हें पुरुष के समकक्ष अधिकार प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इससे प्रदेश की महिलाओं को आगे बढ़ने के निरंतर अवसर मिल रहे हैं। इसी कड़ी में डिंडौरी जिले के मेंहदवानी विकासखंड में 41 गांवों की महिलाओं को जोड़कर तेजस्विनी कार्यक्रम अंतर्गत नारी चेतना महिला संघ का गठन किया गया । इन महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए क्षेत्र में विलुप्त होती जा रही कोदो,कुटकी का उन्नत तरीके से उत्पादन बढ़ाने तथा उसे बाज़ार तक पहुंचाने का उल्लेखनीय कार्य सरकार की पहल पर किया गया है।
बैगा जनजातीय लघु सीमांत किसानों के लिए तेजस्विनी कार्यक्रम अंतर्गत संघ आधारित आजीविका कार्यक्रम को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष वर्ष 2013-14 में डिंडोरी जिले के मेंहदवानी विकासखंड में गठित नारी चेतना महिला महासंघ को कोदो कुटकी की उन्नत कृषि पर प्रथम आजीविका प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया , जो आज एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का ब्रांड बन गया है। नारी चेतना महिला महासंघ मेंहदवानी विकासखंड के 41 गांवों के 204 समूह की 2 हजार, 785 महिलाएं , महासंघ की एक हजार, 497 महिला किसानों, जिनकी आजीविका मुख्य रूप से कोदो, कुटकी फसल पर आधारित थी तथा जिनके पास आजीविका का अन्य साधन उपलब्ध नहीं था, उन्हें हितग्राही के रूप में तेजस्विनी के इस परियोजना से जोड़कर संघ के सदस्यों में से ही कम्यूनिटी रिर्साेस पर्सन तैयार किया गया, जो जमीनी स्तर पर हितग्राहियों को मार्गदर्षन और प्रषिक्षण देने का कार्य किया ।
गांव स्तरीय प्रशिक्षण के अंतर्गत बीज का चयन, बीज एवं भूमि उपचार, सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन, एकीकृत कीट प्रबंधन,जैविक खाद का उपयोग सिखाया गया। साथ ही निदा नियंत्रण और कृषि विभाग से समन्वय कर संघ को कोदो, कुटकी की साफ-सफाई के लिए लगभग 4 लाख रुपये की मशीन उपलब्ध कराई गई। जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, के.वी.के से समन्वय कर विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली गई।
प्रारंभ में जमीन के अध्ययन के बाद धन वापसी की शर्त के साथ पहली बार समूह को महिला, बाल विकास विभाग की ओर से 16 लाख रुपये खेती के लिए दी गई थी । दोबारा विशेषज्ञों द्वारा राशि के सदुपयोग को देखते हुए 16 लाख रुपये की दूसरी किश्त उन्हें दी गई और उत्पादन बढ़ाने के लिए इन्हें हाइब्रिड बीज भी दिया गया ।
पहले एक एकड़ भूमि पर जितनी उपज प्राप्त होती थी, वहीं इस परियोजना का लाभ मिलने के बाद उत्पादन दोगुना हो गया। परियोजना के अंतर्गत उत्पादन में वृद्धि के साथ ही बिचौलियों को खत्म किया गया, जिससे पहले की अपेक्षा हितग्राहियों को चार गुना लाभ हुआ। बिचौलियों द्वारा पहले 10 रुपये प्रति किलों विक्रय मूल्य तय किए गए थे, वहीं इस परियोजना के अंतर्गत 40 रुपए प्रति किलों के मूल्य से उपज का विक्रय संभव हुआ।
इस परियोजना के अंतर्गत 1497 महिला किसानों द्वारा 7485 एकड़ कृषि भूमि पर कोदो, कुटकी की कुल 2246 क्ंिवटल उपज ली गई, जिसका कुल विक्रय मूल्य 40 रुपये के हिसाब से 89,82000 रहा। इससे प्रति किसान 5 हजार,200 रुपये लाभ प्राप्त हुआ। सभी सदस्यों द्वारा 20-20 किलों कोदा,े कुटकी संघ में जमा किए गए। इस प्रकार 300 क्विंटल बीज संघ के गोदाम में एकत्र हुए जिनका मूल्य लगभग 12 लाख रुपये हैं। इसी तरह वर्ष 2014-15 में संघ द्वारा संघ के 2 हजार, 700 किसान सदस्यों तथा 3 हजार,800 अन्य किसानों के साथ कोदो, कुटकी की कृषि की गई। इन कृषकों को बीज उपलब्ध कराने का कार्य संघ द्वारा किया गया। इससे संघ की आय बढ़ी ।
वर्ष 2014-15 में 6 हजार, 500 किसानों द्वारा 20-20 किलो बीज संघ में जमा किये जाने के फलस्वरूप कुल एक हजार,300 क्विंटल बीज संघ के पास एकत्र हो गया, जिनका मूल्य लगभग 52 लाख रुपये था। इस तरह प्रति वर्ष संघ की आय में वृद्धि होती गई और किसानों को उन्नत किस्म के बीज स्थानीय स्तर पर उचित मूल्य पर प्राप्त होने लगे।
इतना ही नहीं, किसानों ने यहां अभी तक एसआरई पद्धति का उपयोग धान व गेहूँ की कृषि तक ही सीमित कर रखा था, किन्तु अब इस तकनीक को अन्य उपजों में भी प्रयोग में लाने लगी हैं। यहां किसानों ने एसआरई पद्धति अपना कर सरसों की उन्नत फसल प्राप्त कर रही हैं। इस पद्धति से कृषि का मुख्य उद्देष्य कम से कम बीज तथा भूमि में अधिक से अधिक उत्पादन लेना है इसके लिए पहले उन्हें बीज का उपचार करने से लेकर नर्सरी में उपचारित बीज का कृषि में उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया । अब ये महिलाएं पौधों का ट्रांसप्लांटेशन करना भी प्रारंभ कर दिया है। इस तरह गांव की महिलाओं द्वारा कृषि में नई तकनीक अपनाया जाना वैज्ञानिक कृषि की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। आदिवासी महिला किसानों द्वारा किए जा रहे प्रयास निश्चित ही कृषि जगत के विकास में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
महिलाओं को उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए संघ की महिलाओं द्वारा तेजस्विनी कार्यक्रम के सहयोग से प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना कर कोदो.कुटकी चावल को परिष्कृत रूप में बाज़ार तक पहुंचाने का कार्य के अंतर्गत यहां कोदो कुटकी प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गई है। जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह ने इस प्रोसेसिंग यूनिट का औपचारिक उद्घाटन किया।
इस यूनिट में मशीन से कच्चे माल से परिष्कृत चावल निकाला जाता है। चावल निकालने के लिए कच्चे माल को मशीन में डालते हैं, इसके बाद उसे निकालकर दो बार दराई कर दोबारा मशीन में डाला जाता है। इसके बाद चावल को धोकर सुखाते हैं। सूखने के बाद इस सामग्री की 200 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलोग्राम की पैकिंग की जाती है, जो बाजार में बचने के लिए भेजा जाता है।
बैगा महिलाओं के लिए ई- ट्रेडिंग का अनुबंध
समाज में महिलाओं को सशक्त बनाकर उनमें निर्णय क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश सरकार ने विकास की दौड़ में महिलाओं को बराबरी से साथ लेकर चलने की दिशा में कई योजनाओं पर काम किया। सरकार की सोच है, कि अगर मध्य प्रदेश को हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ना हैं, तो महिलाओं के सशक्तिकरण के बगैर यह संभव नहीं है।
प्रदेश में इस अभियान की मजबूत नींव विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रखी जा चुकी है। जो महिलाओं को शारीरिक,राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से सक्षम बनाने का काम कर रही है और उन्हें पुरुष के समकक्ष अधिकार प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इससे प्रदेश की महिलाओं को आगे बढ़ने के निरंतर अवसर मिल रहे हैं। इसी कड़ी में डिंडौरी जिले के मेंहदवानी विकासखंड में 41 गांवों की महिलाओं को जोड़कर तेजस्विनी कार्यक्रम अंतर्गत नारी चेतना महिला संघ का गठन किया गया । इन महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए क्षेत्र में विलुप्त होती जा रही कोदो,कुटकी का उन्नत तरीके से उत्पादन बढ़ाने तथा उसे बाज़ार तक पहुंचाने का उल्लेखनीय कार्य सरकार की पहल पर किया गया है।
बैगा जनजातीय लघु सीमांत किसानों के लिए तेजस्विनी कार्यक्रम अंतर्गत संघ आधारित आजीविका कार्यक्रम को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष वर्ष 2013-14 में डिंडोरी जिले के मेंहदवानी विकासखंड में गठित नारी चेतना महिला महासंघ को कोदो कुटकी की उन्नत कृषि पर प्रथम आजीविका प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया , जो आज एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का ब्रांड बन गया है। नारी चेतना महिला महासंघ मेंहदवानी विकासखंड के 41 गांवों के 204 समूह की 2 हजार, 785 महिलाएं , महासंघ की एक हजार, 497 महिला किसानों, जिनकी आजीविका मुख्य रूप से कोदो, कुटकी फसल पर आधारित थी तथा जिनके पास आजीविका का अन्य साधन उपलब्ध नहीं था, उन्हें हितग्राही के रूप में तेजस्विनी के इस परियोजना से जोड़कर संघ के सदस्यों में से ही कम्यूनिटी रिर्साेस पर्सन तैयार किया गया, जो जमीनी स्तर पर हितग्राहियों को मार्गदर्षन और प्रषिक्षण देने का कार्य किया ।
गांव स्तरीय प्रशिक्षण के अंतर्गत बीज का चयन, बीज एवं भूमि उपचार, सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन, एकीकृत कीट प्रबंधन,जैविक खाद का उपयोग सिखाया गया। साथ ही निदा नियंत्रण और कृषि विभाग से समन्वय कर संघ को कोदो, कुटकी की साफ-सफाई के लिए लगभग 4 लाख रुपये की मशीन उपलब्ध कराई गई। जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, के.वी.के से समन्वय कर विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली गई।
प्रारंभ में जमीन के अध्ययन के बाद धन वापसी की शर्त के साथ पहली बार समूह को महिला, बाल विकास विभाग की ओर से 16 लाख रुपये खेती के लिए दी गई थी । दोबारा विशेषज्ञों द्वारा राशि के सदुपयोग को देखते हुए 16 लाख रुपये की दूसरी किश्त उन्हें दी गई और उत्पादन बढ़ाने के लिए इन्हें हाइब्रिड बीज भी दिया गया ।
पहले एक एकड़ भूमि पर जितनी उपज प्राप्त होती थी, वहीं इस परियोजना का लाभ मिलने के बाद उत्पादन दोगुना हो गया। परियोजना के अंतर्गत उत्पादन में वृद्धि के साथ ही बिचौलियों को खत्म किया गया, जिससे पहले की अपेक्षा हितग्राहियों को चार गुना लाभ हुआ। बिचौलियों द्वारा पहले 10 रुपये प्रति किलों विक्रय मूल्य तय किए गए थे, वहीं इस परियोजना के अंतर्गत 40 रुपए प्रति किलों के मूल्य से उपज का विक्रय संभव हुआ।
इस परियोजना के अंतर्गत 1497 महिला किसानों द्वारा 7485 एकड़ कृषि भूमि पर कोदो, कुटकी की कुल 2246 क्ंिवटल उपज ली गई, जिसका कुल विक्रय मूल्य 40 रुपये के हिसाब से 89,82000 रहा। इससे प्रति किसान 5 हजार,200 रुपये लाभ प्राप्त हुआ। सभी सदस्यों द्वारा 20-20 किलों कोदा,े कुटकी संघ में जमा किए गए। इस प्रकार 300 क्विंटल बीज संघ के गोदाम में एकत्र हुए जिनका मूल्य लगभग 12 लाख रुपये हैं। इसी तरह वर्ष 2014-15 में संघ द्वारा संघ के 2 हजार, 700 किसान सदस्यों तथा 3 हजार,800 अन्य किसानों के साथ कोदो, कुटकी की कृषि की गई। इन कृषकों को बीज उपलब्ध कराने का कार्य संघ द्वारा किया गया। इससे संघ की आय बढ़ी ।
वर्ष 2014-15 में 6 हजार, 500 किसानों द्वारा 20-20 किलो बीज संघ में जमा किये जाने के फलस्वरूप कुल एक हजार,300 क्विंटल बीज संघ के पास एकत्र हो गया, जिनका मूल्य लगभग 52 लाख रुपये था। इस तरह प्रति वर्ष संघ की आय में वृद्धि होती गई और किसानों को उन्नत किस्म के बीज स्थानीय स्तर पर उचित मूल्य पर प्राप्त होने लगे।
इतना ही नहीं, किसानों ने यहां अभी तक एसआरई पद्धति का उपयोग धान व गेहूँ की कृषि तक ही सीमित कर रखा था, किन्तु अब इस तकनीक को अन्य उपजों में भी प्रयोग में लाने लगी हैं। यहां किसानों ने एसआरई पद्धति अपना कर सरसों की उन्नत फसल प्राप्त कर रही हैं। इस पद्धति से कृषि का मुख्य उद्देष्य कम से कम बीज तथा भूमि में अधिक से अधिक उत्पादन लेना है इसके लिए पहले उन्हें बीज का उपचार करने से लेकर नर्सरी में उपचारित बीज का कृषि में उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया । अब ये महिलाएं पौधों का ट्रांसप्लांटेशन करना भी प्रारंभ कर दिया है। इस तरह गांव की महिलाओं द्वारा कृषि में नई तकनीक अपनाया जाना वैज्ञानिक कृषि की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। आदिवासी महिला किसानों द्वारा किए जा रहे प्रयास निश्चित ही कृषि जगत के विकास में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
महिलाओं को उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए संघ की महिलाओं द्वारा तेजस्विनी कार्यक्रम के सहयोग से प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना कर कोदो.कुटकी चावल को परिष्कृत रूप में बाज़ार तक पहुंचाने का कार्य के अंतर्गत यहां कोदो कुटकी प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गई है। जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह ने इस प्रोसेसिंग यूनिट का औपचारिक उद्घाटन किया।
इस यूनिट में मशीन से कच्चे माल से परिष्कृत चावल निकाला जाता है। चावल निकालने के लिए कच्चे माल को मशीन में डालते हैं, इसके बाद उसे निकालकर दो बार दराई कर दोबारा मशीन में डाला जाता है। इसके बाद चावल को धोकर सुखाते हैं। सूखने के बाद इस सामग्री की 200 ग्राम, 500 ग्राम और एक किलोग्राम की पैकिंग की जाती है, जो बाजार में बचने के लिए भेजा जाता है।
बैगा महिलाओं के लिए ई- ट्रेडिंग का अनुबंध
इस उत्पाद को बेचने के लिए स्नेपडिल, अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी ई कॉमर्स साइट के साथ महिला संघ ने अनुबंध किया । इससे आदिवासी महिलाएं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजार मिला । जिन महिलाओं की मुट्ठी में कभी दो सौ रुपए एक साथ नहीं आया, वे आज लाखों रुपए का हिसाब-किताब रखती हैं। सभी सदस्यों के पास बैंक खाते हैं । आज इनके बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं। बैगा आदिवासी महिलाएं घर की चारदीवारी से निकलकर पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याओं साथ ही देश की राजनीति पर बात करती हैं। मुद्दों को समझती हैं। इनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।
बैगा महिलाओं को रेकार्ड कोदो-कुटकी उत्पादन के लिए दिल्ली में सीताराम राव व स्कॉच अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है। अवार्ड लेने के लिए पहली बार आदिवासी महिलाएं डिंडोरी से भोपाल पहुॅची और फिर दिल्ली अवार्ड लेने गईं। महिलाओं की इस उपलब्धि से प्रभावित होकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आवास में इन्हें मिलने के लिए बुलाया। ऑनलाईन ट्रेडिंग करने का सुझाव भी मुख्यमंत्री का था, जिससे कम समय में महिलाएं अधिक से अधिक ग्राहकों तक पहुंच बना सकें। महिलाओं ने कोदो-कुटकी से इडली, ढोकला, चावल और खीर की खूबसूरत पैकेजिंग भी सीख ली हैं।
ई-हाट के पीछे मुख्यमंत्री का उद्देश्य महिलाओं द्वारा उत्पादित सामग्री को उचित मूल्य के साथ-साथ उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले। इस तरह उन्हें बिचौलियों के चंगुल से बचाया जा सके। जो पहले उनके श्रम का सर्वाधिक हिस्सा हड़प लेते हैं।
इस गतिविधि की सबसे खास बात यह है, कि यह पूर्णतः महिला किसानों द्वारा निर्मित फेडरेशन संचालित कर रहा है और पूरी गतिविधि का संचालन एवं प्रबंधन महिलाओं के हाथों में है। महिलाएं इस उत्साह और साहस को बनाये रखना चाहती है।
बैगा महिलाओं द्वारा उत्पादित कोदो-कुटकी भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन एपीडा से मान्यता प्राप्त है। यह स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य से भी भरपूर है।इसमें कई सूक्ष्म पोषक तत्व एवं रेशे पाएं जाते हैं साथ ही यह कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसके साथ-साथ यह मधुमेह गॉल स्टोन और कैंसर जैसी बीमारियों को कम करने में अत्यंत लाभकारी है।
बैगा आदिवासी विशेष जनजाति की श्रेणी में हैं और इन महिलाओं की गतिविधि से बैगा जनजाति की महिलाएं आर्थिक सशक्तिकरण के साथ विकास की मुख्यधारा में शामिल हो गई हैं।
समूह की उपलब्धि का सारा श्रेय रेखा पंदराम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को देना चाहती है। वह कहती है, कि 2 साल पहले 2 हजार 785 महिलाओं के समूह ने इसकी शुरुआत की थी। जिससे हमें 39 लाख रुपये मुनाफा मिला था। अधिक उत्पादन होने से जहां उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है, वहीं कुपोषण का कलंक भी घटा है। शशि लारिया कहती हैं, कि पैदा होने के बाद पहली बार दुनिया देख रही हूं, दुनिया में करने के लिए बहुत कुछ है, सिर्फ अज्ञानता की वजह से लोग परेशान रहते हैं । यह मौका पहले के मुख्यमंत्रियों ने दिया होता, तो शायद हमारे बच्चे अच्छे से पढ़-लिख लेते, आज बच्चों को रोजगार के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता ।
रोजगार के लिए पलायन पर उर्मिला भरावी कहती है, कि इससे असुरक्षा तो है ही, साथ ही परिवार बिखर जाता है । विनीता नामदेव और भागवती बरकड़े एक स्वर में कहती हैं, कि इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़़ा है और हम पहली बार डिंडोरी जिले से निकलकर प्रदेश की राजधानी भोपाल आये है, यहां से अवार्ड लेने हम दिल्ली जा रहे हैं। इस उपलब्धि के बाद हम सब अपने-अपने गांव की विशिष्ट महिलाएं बन गये हैं। हमारी सक्रियता देख दूसरे गांव की महिलाएं भी सक्रिय हो रही हैं। यही हमारी उपलब्धि है । शीघ्र ही हम कम्बोडिया भी जाएंगे।
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