कभी घूंघट में रहती थीं, अब बनीं सशक्तिकरण की मिसाल
Ruby Sarkarवर्ष 1993-94 से नरसिंहगढ़ विकासखंड में पर्यवेक्षक के पद पर काम कर रहीं प्रतिभा लकड़ा इन दिनों काफी खुश हैं, क्योंकि यहां की महिलाएं अब आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने के लिए खुद आगे आ रही हैं। प्रतिभा बताती हैं, कि करीब 22 साल पहले जब वह जसपुर, छत्तीसगढ़ से यहां नौकरी करने आईं, तो उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। उस वक्त वह अकेली थी, इसलिए उन्हें कोई रहने के लिए घर भी देेने को तैयार नहीं था । यहां की अधिकांश महिलाएं घूंघट में रहती थीं और उनसे बात करने से पहले पुरुषों से सामना होता था । धीरे-धीरे उन्होंने द्वारका समूह बनाकर महिलाओं को जोड़ना शुरू किया। इस तरह उन्होंने 58 समूह बनाये और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए झाड़ू, टोकरी और सिलाई का काम सिखाया। महिलाएं पूरी तरह स्वावलम्बी हो पातीं, इससे पहले ही द्वारका कार्यक्रम बंद हो गया । महिलाएं घरों में फिर से कैद हो गईं। वर्षों बाद इस विकास खण्ड में फिर से महिलाएं आर्थिक स्वावलंबन के लिए आगे आ रही हैं । इस बार वजह बनी मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना। यहां की एसडीएम प्रतिभा पॉल ने सबसे पहले महिला सशक्तिकरण के लिए एकीकृत बाल विकास परियोजना द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की महिलाओं से प्रारंभिक सिलाई सीखने का आह्वान किया । उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से कहा, कि ऐसी महिलाएं जो नरसिंहगढ़ आकर नियमित रूप से 7 दिन तक चलने वाले प्रशिक्षण में भाग लेने के इच्छुक हों, उनके नाम भेजें। नाम मिलने के बाद 90 महिलाओं की काउंसलिंग हुई और उनमें से 68 को एक सप्ताह तक स्कूली बच्चों के लिए गण वेष सिलाई का प्रषिक्षण दिया । जिसके अंतर्गत प्रतिदिन उन्हें कपड़ों की कटिंग तथा सिलाई सिखाई गई। इस प्रशिक्षण के बाद 20 महिलाओं ने एक समूह बनाकर 80 हजार रुपये इकट्ठा किये और काम करना शुरू किया। 45 प्रशिक्षणार्थियों ने मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना के अन्तर्गत विभन्न बैंकों से ़ण के लिए आवेदन दिया और समूह का नाम रखा ‘उड़ान’ ।
उड़ान ने 200 छात्राओं के गणवेष तैयार कर बतौर नमूना स्कूलों में शाला प्रबंधन समिति, शिक्षकों तथा पालकों को दिखाया । शंकर पुरा, गादिया, देवगढ़ और रघुनाथ पुरा से लगभग 200 गण वेष के आर्डर भी मिल गया। अब समूह को 7000 गणवेष तैयार करने थे । इस काम के लिए 3 सिलाई मशीन डीपीआईपी खिलचीपुर से तथा 2 उदल खेड़ी से मंगवाई गई। स्थान उपलब्ध न होने के कारण परियोजना कार्यालय से ही इसे संचालित किया जा रहा है । चूॅकि महिलाओं के लिए सलवार-कुर्ता सिलना आसान था, इसलिए इसका आर्डर लेना शुरू कर दिया । आज स्थिति यह है, कि आस-पास के गांव की सैकड़ों महिलाएं इस योजना से जुड़ चुकी हैं। फिर भी समय पर डिलीवरी नहीं दे पा रही हैं । समूह की सचिव फहमीदा कहती हैं, कि पहले हम दूसरों के घर पर काम किया करते थे, लेकिन मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना से हमें बड़ा सहारा दिया । इस समूह में जहां ममता जायसवाल जैसी अशिक्षित महिला हैं, तो एम कॉम कर चुकी इशरत भी हैं । इशरत बताती हैं, कि वह एक अच्छी डिजाइनर बनकर अपनी कंपनी खोलना चाहती हैं। उसने पढ़ाई के बाद कभी नौकरी ढूंढ़ी ही नहीं । वह स्वयं दूसरों को नौकरी पर रखना पसंद करती हैं ।
शुरू में ममता बमुष्किल दिनभर में एक सलवार तैयार कर पाती थी, आज वह 5 सलवार-कुर्ता सिलकर रोज 150 से 200 रुपये कमा लेती है। इसके अलावा कुर्तियों में पाइपिन लगा लेती है । जबकि वह पहले दूसरों के घर बर्तन, झाडू-पोछा किया करती थी। ममता का पति आज भी साइकिल का पंचर बनाता है , उनकी कमाई कोई खास नहीं है, इसलिए ममता पर अपने तीन बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी भी है ।
चार विभागों में बंटा उड़ान के सभी सहयोगी एक -दूसरे की मदद किया करते हैं। फिलहाल उड़ान के पास नरसिंहगढ़ के सारे स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए गण वेष तैयार करने का काम है ।
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