विकास के लिए कटिबद्ध संघ की महिलाएं
स्वच्छ भारत मिशन द्वारा दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी सम्मानित
Ruby Sarkar
जनपद पंचायत घुघरी की ग्राम पंचायत डोंगर मंडला में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत ग्राम पंचायत डोंगर मण्डला को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए सक्रिय व सराहनीय सहयोग प्रदान करने के लिए दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी की अध्यक्ष गंगाबाई आर्माे एवं समन्वयक पंकज चौरसिया को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। इन्हें यह सम्मान स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत आयोजित गौरव यात्रा कार्यक्रम में प्रदान किया गया था ।
ग्राम कटंगी ,पंचायत डोंगर मंडला स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत चयनित तेजस्विनी ग्राम है। इस ग्राम में दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी में कुल 6 महिला स्व सहायता समूह-हीरा, जागृति, जय भवानी, मां केरपानी, मॉं लक्ष्मी, खेरमाई तथा महामाया तेजस्विनी ग्राम स्तरीय समिति संचालित हैं। इन समूहों के माध्यम से ग्राम के आर्थिक रूप से कमजोर 66 परिवार तेजस्विनी कार्यक्रम से जुड़े हैं। तेजस्विनी के 66 परिवारों में से अधिकतर परिवारों के घरों में पहले से ही शौचालय है तथा शेष महिला सदस्यों के घरों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत ले-आउट उपरांत शौचालय बनाया गया है।
डोंगर मण्डला को पूर्ण रूप से खुले में शौच से मुक्त करने के संकल्प के साथ ही दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी तथा महामाया ग्राम स्तरीय समिति कटंगी ने वातावरण बनाना शुरू किया । जिसके अंतर्गत स्वच्छता रैली व शौचालय निर्माण के लिए परिवारों से लिखित सहमति पत्र लिया गया।
ग्राम पंचायत डोंगर मण्डला में निर्माण कार्य को लेकर प्रमुख समस्या ईंट की थी। ईंट भट्टा संचालकों ने उधारी पर ईंट देने से इंकार कर दिया था। इस समस्या से निपटने के लिए संघ एवं व्ही.एल.सी. कटंगी ने पहली बार 50,000 ईंटें परिवहन सहित लगभग 2 लाख से अधिक तथा दूसरी बार 40,000 ईंटें परिवहन सहित लगभग डेढ़ लाख रुपये की राषि के लिए सहयोग किया ।
संघ की इस अनूठी पहल से आज 800 घरों में शौचालय बन गया है ।
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कोकून की माला और झालर का व्यवसाय
जनपद पंचायत घुघरी की ग्राम पंचायत डोंगर मंडला में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत ग्राम पंचायत डोंगर मण्डला को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए सक्रिय व सराहनीय सहयोग प्रदान करने के लिए दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी की अध्यक्ष गंगाबाई आर्माे एवं समन्वयक पंकज चौरसिया को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। इन्हें यह सम्मान स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत आयोजित गौरव यात्रा कार्यक्रम में प्रदान किया गया था ।
ग्राम कटंगी ,पंचायत डोंगर मंडला स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत चयनित तेजस्विनी ग्राम है। इस ग्राम में दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी में कुल 6 महिला स्व सहायता समूह-हीरा, जागृति, जय भवानी, मां केरपानी, मॉं लक्ष्मी, खेरमाई तथा महामाया तेजस्विनी ग्राम स्तरीय समिति संचालित हैं। इन समूहों के माध्यम से ग्राम के आर्थिक रूप से कमजोर 66 परिवार तेजस्विनी कार्यक्रम से जुड़े हैं। तेजस्विनी के 66 परिवारों में से अधिकतर परिवारों के घरों में पहले से ही शौचालय है तथा शेष महिला सदस्यों के घरों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत ले-आउट उपरांत शौचालय बनाया गया है।
डोंगर मण्डला को पूर्ण रूप से खुले में शौच से मुक्त करने के संकल्प के साथ ही दुर्गा शक्ति तेजस्विनी महिला संघ घुघरी तथा महामाया ग्राम स्तरीय समिति कटंगी ने वातावरण बनाना शुरू किया । जिसके अंतर्गत स्वच्छता रैली व शौचालय निर्माण के लिए परिवारों से लिखित सहमति पत्र लिया गया।
ग्राम पंचायत डोंगर मण्डला में निर्माण कार्य को लेकर प्रमुख समस्या ईंट की थी। ईंट भट्टा संचालकों ने उधारी पर ईंट देने से इंकार कर दिया था। इस समस्या से निपटने के लिए संघ एवं व्ही.एल.सी. कटंगी ने पहली बार 50,000 ईंटें परिवहन सहित लगभग 2 लाख से अधिक तथा दूसरी बार 40,000 ईंटें परिवहन सहित लगभग डेढ़ लाख रुपये की राषि के लिए सहयोग किया ।
संघ की इस अनूठी पहल से आज 800 घरों में शौचालय बन गया है ।
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कोकून की माला और झालर का व्यवसाय
Ruby Sarkar
मंडला के कजरवाड़ा गांव में नारी शक्ति स्व सहायता समूह एवं श्री गणेश स्व सहायता समूह की महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि इच्छा शक्ति हो तो परिवर्तन महज प्रक्रिया भर रह जाता है । आत्मविश्वास से बढ़कर कोई पहल नहीं होती ।
दरअसल इन दो समूह की महिलाओं को बेकार कोकून से माला, तोरण एवं झालर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, तो महिलाओं ने न केवल इसे तैयार करना सीखा, बल्कि स्थानीय स्तर पर मेले में जाकर माला और झालर बेचने का काम भी करने लगी। इससे भी आगे बढ़कर इन महिलाओं ने दीप मेला मण्डला, उत्सव मेला भोपाल तथा होटल, क्लब महिन्द्रा से संपर्क कर माला बेचने की बात की। महिला वित्त एवं विकास निगम द्वारा लगाये जाने वाले ममत्व मेले तथा सिंहस्थ, उज्जैन के वैचारिक कुम्भ में समूह की महिलाओं द्वारा कोकून से बनी आकर्षक मालाओं, तोरण का प्रदर्शन किया तथा इसकी बिक्री भी की । महिलाओं के इस नवाचार को भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों ने समान रूप से सराहा। विशेषकर विदेशी मेहमानों के लिए इस तरह का हस्तशिल्प आकर्षण का केंद्र रहता है। विदेशियों ने इसे खरीदा भी । ् कोकून की एक माला 60 रुपये से लेकर 100 रुपये तक की कीमत पर , जबकि तोरण को 300 रुपये तक की कीमत पर बेचा गया। प्रदेष सरकार ने इन संघर्षशील महिलाओं को सिंहस्थ मेले में आमंत्रित किया और इन्हें उज्जैन सिंहस्थ में स्टॉल भी लगाने का मौका दिया, जिससे उनकी इस अछूती कला से लोग परिचित हो सके। आज इनका यह व्यवसाय स्थापित हो चुका है । अब इन्हें रोजी-रोटी के लिए पलायन पर नहीं जाना पड़ता। पूरा परिवार एक साथ रहकर जीवन यापन कर रहे हैं ।
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वीएलसी के प्रयासों से पानी की समस्या हुई दूर
वीएलसी के प्रयासों से पानी की समस्या हुई दूर
Ruby Sarkar
मंडला जिले के लोकेशन चिरईडोंगरी ग्राम सर्री मंे ग्राम सर्री के वार्ड क्रमांक 5 व 6 में पानी की समस्या थी । वीएलसी सदस्यों ने पानी की समस्या को लेकर बैठक की एवं पंचायत में हैंडपंप लगाने की बात की, लेकिन इससे भी पानी की समस्या नहीं सुलझी । तब 5 स्वसहायता समूह को मिलाकर एक ग्राम स्तरीय समिति गठित की । समिति ने गांव मंे सार्वजनिक कुआं खोदने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया । समिति ने वार्ड क्रमांक 6 में चित्रलेखा सिंगौर की जमीन ं पर कुआँ खोदने का निर्णय लिया गया । चित्रलेखा ने भी इसके लिए अपने घर की बाड़ी में जगह दे दी ।
वीएलसी के सदस्यों श्रमदान कर कुआँ खोदने का निर्णय लिया। खुदाई में होने वाले व्यय वार्ड क्रमांक 5 में संचालित प्रेरणा स्वसहायता समूह व महिमा स्व सहायता समूह ने दिया । इस प्रकार ग्रामवासियों को वीएलसी के नेतृत्व में पानी की समस्या से निजात मिल गई।
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डिण्डोरी
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श्री विधि बना उन्नत खेती का साधन
मंडला जिले के लोकेशन चिरईडोंगरी ग्राम सर्री मंे ग्राम सर्री के वार्ड क्रमांक 5 व 6 में पानी की समस्या थी । वीएलसी सदस्यों ने पानी की समस्या को लेकर बैठक की एवं पंचायत में हैंडपंप लगाने की बात की, लेकिन इससे भी पानी की समस्या नहीं सुलझी । तब 5 स्वसहायता समूह को मिलाकर एक ग्राम स्तरीय समिति गठित की । समिति ने गांव मंे सार्वजनिक कुआं खोदने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया । समिति ने वार्ड क्रमांक 6 में चित्रलेखा सिंगौर की जमीन ं पर कुआँ खोदने का निर्णय लिया गया । चित्रलेखा ने भी इसके लिए अपने घर की बाड़ी में जगह दे दी ।
वीएलसी के सदस्यों श्रमदान कर कुआँ खोदने का निर्णय लिया। खुदाई में होने वाले व्यय वार्ड क्रमांक 5 में संचालित प्रेरणा स्वसहायता समूह व महिमा स्व सहायता समूह ने दिया । इस प्रकार ग्रामवासियों को वीएलसी के नेतृत्व में पानी की समस्या से निजात मिल गई।
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डिण्डोरी
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श्री विधि बना उन्नत खेती का साधन
Ruby Sarkar
धान खाद्य फसलों में सबसे प्रमुख फसल है । इसकी खेती प्राचीन काल से ही विश्व के अधिकांश देषों से होती है । इसकी सबसे खास विशेषता है कि कमोबेष तीनों ऋतुओं में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जाती है । यद्यपि अभी तक यही मान्यता रही है, कि अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत अधिक पानी एवं बीज की जरूरत होती है, परंतु 3.80 के दशक में सर्वप्रथम मेडागास्कर के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई तकनीक को अपनाया, जिस विधि में मात्र 2 किलोग्राम धान बीज प्रति एकड़ की जरूरत होती है । इसकी रोपाई के लिए बिचड़ा की उम्र मात्र 8 से 12 दिन होती है । उक्त तकनीक से न केवल बीज की कम मात्रा एवं रोपा तैयार होने में लगने वाला समय की बचत होती है, बल्कि पहले से प्रचलित विधि द्वारा रोपे गये धान की तुलना में अधिक उत्पादन भी होता है ।
इस विधा को अपनाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि धान के उत्पादन को बढ़ाना एवं अधिक पानी पर निर्भरता को कम करना । पिछले कई वर्षो से इस तकनीक को श्री लंका के 18 जिलों में अच्छा उत्पादन लेने के लिए सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है । इस तकनीक से धान की खेती करना आसान और अधिक फायदेमंद हो गया है । इस तकनीक से वैसे क्षेत्रों में भी आसानी से धान की खेती की जा सकती है । जहां पानी की उपलब्धता कम हो । इस तकनीक द्वारा दोगुना उत्पादन किया जा सकता है ।
लोकेशन गोरखपुर अन्तर्गत विभिन्न ग्राम गोरखपुर छापर टोला में तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम अंतर्गत गठित रेवा तेजस्विनी स्व.सहा.समूह में हालांकि 10 सदस्य हैं, लेकिन इनमें विद्या बाई मसराम ने श्री विधि से खेती करने का निर्णय लिया । समूह की जानकार मेकलसुता महासंघ गोरखपुर में आकर विस्तार पूर्वक इस विधि से खेती करने के संबंध मंें जानकारी उपलब्ध कराई । जानकारी के अनुसार विद्या ने लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर एवं कतार से कतार की दूरी 25 सेंटीमीटर रखकर खेती किया। इस तरह कतार धान लगाने से पौधों को अच्छी हवा पोषक तत्व मिलती है, जिससे फसल की पैदावार अधिक होती है। श्री विधि से खेती से प्राप्त उपज को देखते हुए समूह की अन्य महिलाओं ने भी इस श्रीविधि से खेती करने का निर्णय लिया और अधिक उपज प्राप्त कर आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रही हैं ।
बालाघाट
गांव में फैला उजियारा
धान खाद्य फसलों में सबसे प्रमुख फसल है । इसकी खेती प्राचीन काल से ही विश्व के अधिकांश देषों से होती है । इसकी सबसे खास विशेषता है कि कमोबेष तीनों ऋतुओं में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जाती है । यद्यपि अभी तक यही मान्यता रही है, कि अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत अधिक पानी एवं बीज की जरूरत होती है, परंतु 3.80 के दशक में सर्वप्रथम मेडागास्कर के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई तकनीक को अपनाया, जिस विधि में मात्र 2 किलोग्राम धान बीज प्रति एकड़ की जरूरत होती है । इसकी रोपाई के लिए बिचड़ा की उम्र मात्र 8 से 12 दिन होती है । उक्त तकनीक से न केवल बीज की कम मात्रा एवं रोपा तैयार होने में लगने वाला समय की बचत होती है, बल्कि पहले से प्रचलित विधि द्वारा रोपे गये धान की तुलना में अधिक उत्पादन भी होता है ।
इस विधा को अपनाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि धान के उत्पादन को बढ़ाना एवं अधिक पानी पर निर्भरता को कम करना । पिछले कई वर्षो से इस तकनीक को श्री लंका के 18 जिलों में अच्छा उत्पादन लेने के लिए सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है । इस तकनीक से धान की खेती करना आसान और अधिक फायदेमंद हो गया है । इस तकनीक से वैसे क्षेत्रों में भी आसानी से धान की खेती की जा सकती है । जहां पानी की उपलब्धता कम हो । इस तकनीक द्वारा दोगुना उत्पादन किया जा सकता है ।
लोकेशन गोरखपुर अन्तर्गत विभिन्न ग्राम गोरखपुर छापर टोला में तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम अंतर्गत गठित रेवा तेजस्विनी स्व.सहा.समूह में हालांकि 10 सदस्य हैं, लेकिन इनमें विद्या बाई मसराम ने श्री विधि से खेती करने का निर्णय लिया । समूह की जानकार मेकलसुता महासंघ गोरखपुर में आकर विस्तार पूर्वक इस विधि से खेती करने के संबंध मंें जानकारी उपलब्ध कराई । जानकारी के अनुसार विद्या ने लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर एवं कतार से कतार की दूरी 25 सेंटीमीटर रखकर खेती किया। इस तरह कतार धान लगाने से पौधों को अच्छी हवा पोषक तत्व मिलती है, जिससे फसल की पैदावार अधिक होती है। श्री विधि से खेती से प्राप्त उपज को देखते हुए समूह की अन्य महिलाओं ने भी इस श्रीविधि से खेती करने का निर्णय लिया और अधिक उपज प्राप्त कर आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रही हैं ।
बालाघाट
गांव में फैला उजियारा
Ruby Sarkar
बालाघाट जिले के साले टेकरी लांजी रोड पर मछुरदा ग्राम पंचायत पहले काले पानी के रूप में कुख्यात थी। किसी कर्मचारी को अगर सजा देनी होती थी, तो उसका तबादला इस ग्राम पंचायत में कर दिया जाता था, क्योंकि यहां पानी की समस्या के साथ ही बिजली की भी समस्या थी। यहां मुख्य रूप से बैगा और गोंड जनजाति की बसाहट है, जो काफी मेहनती हैं। इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासन की ओर से काफी प्रयास किए जाता है । यहां तेजस्विनी कार्यक्रम लागू होने के बाद से ही स्थानीय लोगों को काफी लाभ हुआ है। मछुरदा गांव की रहने वाली संगीता वाहने महिला मोबलाइजर हैं, शुरू में संगीता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां गांवों की दूरी बहुत अधिक है, बीच में जंगल हैं, जहां जंगली जानवरों का आना-जाना होता है। बावजूद इसके संगीता वाहने ने महिलाओं को आपस में जोड़ा और बचत तथा आजीविका के अन्य साधनों के बारे में जानकारी दी। ग्रामीणों को शासकीय योजना के अंतर्गत खाद्य वितरण प्रणाली के अंतर्गत अन्त्योदय कार्ड मिला था, लेकिन जब वे राशन लेने जाते थे, तो इन्हें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। ग्राम स्तरीय बैठक हुई, तो लोगों ने अपनी-अपनी परेशानी बताई । इसके बाद ग्रामीणों ने सारी समस्याओं को लेकर कलेक्टर से मिलने का निर्णय लिया। कलेक्टर के सामने इन लोगों ने अपनी परेशानी रखी और आवेदन सौंपा। इसके बाद अधिकारियों ने इनके इलाके में सौर ऊर्जा से सभी घरों में विद्युत व्यवस्था कर दी। आज पूरा गांव बिजली से जगमगा रहा हैं। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर देष में सबसे अधिक काम सौर ऊर्जा पर हुआ है ।
इसी तरह बिरसा विकासखण्ड के 50 गांवों में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत बोर खेड़ा गांव मलाजखंड ताम्र परियोजना के पूरे होने के काफी करीब है। जब ताम्र परियोजना का काम प्रारंभ हुआ था, इस परियोजना में जिन किसानों की जमीन आई, उन्हें या खाताधारकों को परियोजना के अंतर्गत नौकरी दिया गया । परियोजना लागू होने के फलस्वरूप बोर खेड़ा गांव की मिट्टी और पानी काफी विषैली हो गई , जिससे किसानों की खेती को काफी नुकसान हुआ। स्थानीय लोगों ने ग्राम स्तरीय बैठक में इस समस्या को कई बार उठाया, लेकिन कोई हल न निकला। इसके बाद जब तेजस्विनी कार्यक्रम के चलते महिलाएं जागरूक हुईं, तो उन्होने कलेक्टर, एसडीएम तथा स्थानीय विधायक को अपनी परेशानियों से भरा ज्ञापन सौंपा । मलाजखंड ताम्र परियोजना के यूनियन के सामने जब सारी बात आईं, तो यूनियन मध्यस्थता करते हुए मलाजखण्ड प्रबंधक को सारी बातें बताई। इसके बाद प्रबंधक एवं ग्रामीणों के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत गांव के योग्य व्यक्तियों को मलाजखंड ताम्र परियोजना में संविदा नियुक्ति पर रखा जायेगा। साथ ही गांव में एक सामुदायिक भवन भी बनवाया जायेगा, जिससे यहां गठित स्व सहायता समूहों को बैठक करने तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम करने के लिए एक उपयुक्त स्थान मिल सके । इसी तरह ग्राम स्तरीय समिति की पहल पर यहां 120 परिवारों को वाटर फिल्टर दिया गया, बोर खेड़ा गांव के साथ छिन्दी टोला गांव में भी 125 परिवारों को वाटर फिल्टर दिया गया है।
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आलू की सामूहिक खेती
बालाघाट जिले के साले टेकरी लांजी रोड पर मछुरदा ग्राम पंचायत पहले काले पानी के रूप में कुख्यात थी। किसी कर्मचारी को अगर सजा देनी होती थी, तो उसका तबादला इस ग्राम पंचायत में कर दिया जाता था, क्योंकि यहां पानी की समस्या के साथ ही बिजली की भी समस्या थी। यहां मुख्य रूप से बैगा और गोंड जनजाति की बसाहट है, जो काफी मेहनती हैं। इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शासन की ओर से काफी प्रयास किए जाता है । यहां तेजस्विनी कार्यक्रम लागू होने के बाद से ही स्थानीय लोगों को काफी लाभ हुआ है। मछुरदा गांव की रहने वाली संगीता वाहने महिला मोबलाइजर हैं, शुरू में संगीता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां गांवों की दूरी बहुत अधिक है, बीच में जंगल हैं, जहां जंगली जानवरों का आना-जाना होता है। बावजूद इसके संगीता वाहने ने महिलाओं को आपस में जोड़ा और बचत तथा आजीविका के अन्य साधनों के बारे में जानकारी दी। ग्रामीणों को शासकीय योजना के अंतर्गत खाद्य वितरण प्रणाली के अंतर्गत अन्त्योदय कार्ड मिला था, लेकिन जब वे राशन लेने जाते थे, तो इन्हें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। ग्राम स्तरीय बैठक हुई, तो लोगों ने अपनी-अपनी परेशानी बताई । इसके बाद ग्रामीणों ने सारी समस्याओं को लेकर कलेक्टर से मिलने का निर्णय लिया। कलेक्टर के सामने इन लोगों ने अपनी परेशानी रखी और आवेदन सौंपा। इसके बाद अधिकारियों ने इनके इलाके में सौर ऊर्जा से सभी घरों में विद्युत व्यवस्था कर दी। आज पूरा गांव बिजली से जगमगा रहा हैं। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर देष में सबसे अधिक काम सौर ऊर्जा पर हुआ है ।
इसी तरह बिरसा विकासखण्ड के 50 गांवों में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत बोर खेड़ा गांव मलाजखंड ताम्र परियोजना के पूरे होने के काफी करीब है। जब ताम्र परियोजना का काम प्रारंभ हुआ था, इस परियोजना में जिन किसानों की जमीन आई, उन्हें या खाताधारकों को परियोजना के अंतर्गत नौकरी दिया गया । परियोजना लागू होने के फलस्वरूप बोर खेड़ा गांव की मिट्टी और पानी काफी विषैली हो गई , जिससे किसानों की खेती को काफी नुकसान हुआ। स्थानीय लोगों ने ग्राम स्तरीय बैठक में इस समस्या को कई बार उठाया, लेकिन कोई हल न निकला। इसके बाद जब तेजस्विनी कार्यक्रम के चलते महिलाएं जागरूक हुईं, तो उन्होने कलेक्टर, एसडीएम तथा स्थानीय विधायक को अपनी परेशानियों से भरा ज्ञापन सौंपा । मलाजखंड ताम्र परियोजना के यूनियन के सामने जब सारी बात आईं, तो यूनियन मध्यस्थता करते हुए मलाजखण्ड प्रबंधक को सारी बातें बताई। इसके बाद प्रबंधक एवं ग्रामीणों के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत गांव के योग्य व्यक्तियों को मलाजखंड ताम्र परियोजना में संविदा नियुक्ति पर रखा जायेगा। साथ ही गांव में एक सामुदायिक भवन भी बनवाया जायेगा, जिससे यहां गठित स्व सहायता समूहों को बैठक करने तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम करने के लिए एक उपयुक्त स्थान मिल सके । इसी तरह ग्राम स्तरीय समिति की पहल पर यहां 120 परिवारों को वाटर फिल्टर दिया गया, बोर खेड़ा गांव के साथ छिन्दी टोला गांव में भी 125 परिवारों को वाटर फिल्टर दिया गया है।
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आलू की सामूहिक खेती
Ruby Sarkar
बालाघाट जिले के कटंगा गांव में 80 फीसदी महिलाएं सब्जी के उत्पादन से जुड़ी हैं। कुछ महिलाएं गन्ने की खेती भी करती हैं, तो कुछ गुड़ का उत्पादन कर उसे बाजार में बेचती हैं। वनांचल सखी तेजस्विनी महासंघ ने गांव में आजीविका के विकल्पों पर इन महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया । प्रशिक्षण के बाद 14 महिलाओं ने आलू की खेती करने का निर्णय लिया। संघ ने उद्यानिकी विभाग से इन महिलाओं को तकनीकी सहयोग व प्रशिक्षण दिलवाया। महिलाओं ने गांव में पानी की उपलब्धता वाली जमीन ठेके पर ली और 200 रुपये में डेढ़ क्विंटल आलू के बीज खरीदकर उसे 8 दिनों तक अंकुरित करने के लिए छोड़ दिया। जमीन को ट्रैक्टर से जोतने के 8-10 दिनों बाद क्यारियां बनाकर उनमें अंकुरित आलू की बुवाई कर दी । 15 दिनों तक सिंचाई के बाद पौधे बढ़ गए। इस तरह करीब 2 महीने में आलू की फसल तैयार हो गई। सभी महिलाओं ने मिलकर खुदाई कर आलू निकाले। करीब 7 क्विंटल आलू निकाले गये, जिसे महिलाओं ने आपस में बराबर बांट लिया और घर पर साल भर के लिए आलू रखने के बाद बचे हुए आलू को 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गांव में बेच दिया।
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मछली पालन से आजीविका
Ruby Sarkar
बालाघाट जिले के कुरेण्डा गांव में सजोरपेन तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं ऐसा व्यवसाय करना चाह रही थी, जो स्थायी हो। इन लोगों ने स्थाई व्यवसाय के रूप में मछली पालन को चुना । लेकिन समूह के पास इतना पैसा नहीं था और न ही इस काम का अनुभव। इसलिए महिलाओं ने पंचायत में आवेदन दिया, वे गांव के तालाब में मछली पालन करना चाहती हैं। पंचायत ने उन्हें इसकी स्वीकृति दे दी। इसके बाद महिलाओं ने समूह की बचत के 6 हजार रुपये और महिलाओं की निजी बचत के 4 हजार रुपये मिलाकर महिलाओं ने 550 रूपये प्रति किलो की दर से 5 किलो छोटी मछली खरीदी और उसे तालाब में डाल दिया। इस काम में गांव के पुरुषों ने भी उनका सहयोग किया। कुछ दिनों बाद ही मछलियां बड़ी हो गईं । समूह की महिलाओं ने मछलियों को तालाब से निकाल कर सप्ताह में दो दिन गांव में ही बेचने लगीं। सप्ताह में करीब 5 से 7 किलो मछली निकलने लगी । इसे बेचने के लिए महिलाओं को बाजार भी नहीं जाना पड़ा। लोग गांव में ही आकर मछली खरीदने लगे। इस कार्य से महिलाओं ने एक साल में करीब 35 हजार रुपये तक जमा कर लिये । महिलाओं का कहना है, कि यदि पंचायत समूह को भविष्य में भी तालाब में मछली पालने की अनुमति देती है, तो इस व्यवसाय को निरंतर बनी रहेगी ।
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मचान बनाकर उन्नत खेती
बालाघाट जिले के कुरेण्डा गांव में सजोरपेन तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं ऐसा व्यवसाय करना चाह रही थी, जो स्थायी हो। इन लोगों ने स्थाई व्यवसाय के रूप में मछली पालन को चुना । लेकिन समूह के पास इतना पैसा नहीं था और न ही इस काम का अनुभव। इसलिए महिलाओं ने पंचायत में आवेदन दिया, वे गांव के तालाब में मछली पालन करना चाहती हैं। पंचायत ने उन्हें इसकी स्वीकृति दे दी। इसके बाद महिलाओं ने समूह की बचत के 6 हजार रुपये और महिलाओं की निजी बचत के 4 हजार रुपये मिलाकर महिलाओं ने 550 रूपये प्रति किलो की दर से 5 किलो छोटी मछली खरीदी और उसे तालाब में डाल दिया। इस काम में गांव के पुरुषों ने भी उनका सहयोग किया। कुछ दिनों बाद ही मछलियां बड़ी हो गईं । समूह की महिलाओं ने मछलियों को तालाब से निकाल कर सप्ताह में दो दिन गांव में ही बेचने लगीं। सप्ताह में करीब 5 से 7 किलो मछली निकलने लगी । इसे बेचने के लिए महिलाओं को बाजार भी नहीं जाना पड़ा। लोग गांव में ही आकर मछली खरीदने लगे। इस कार्य से महिलाओं ने एक साल में करीब 35 हजार रुपये तक जमा कर लिये । महिलाओं का कहना है, कि यदि पंचायत समूह को भविष्य में भी तालाब में मछली पालने की अनुमति देती है, तो इस व्यवसाय को निरंतर बनी रहेगी ।
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मचान बनाकर उन्नत खेती
Ruby Sarkar
बालाघाट जिले के मदनपुर गांव में रहने वाली सरवन्ती तेकाम की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी । परसवाड़ा नारी भक्ति तेजस्विनी महिला संघ से जुड़ने के बाद उसे पैसे बचाने की कई तरकीबें समझ में आई । उसने न सिर्फ बचत करना शुरू की, बल्कि खेती में नवीन तकनीक अपनाकर स्वयं को आधुनिक युग के किसानों की श्रेणी मंे लाकर खड़ा कर लिया । उसकी खेती की मचान पद्धति गांव वालों के लिए एक नया तर्जुबा है । साथ ही उसने जैविक खेती करना शुरू किया , इससे फसल को सुरक्षित रखने के साथ ही अच्छा उत्पादन भी मिलना शुरू हो गया । तेकाम ने 52 खंभों को बांधकर मचान बनाया और इसके नीचे एक फीट गहरा और एक फीट चौड़ा गड्ढा खोदकर बेल वाली फसल लगाई। हर गड्ढे में वर्मी कम्पोस़््ड खाद और गोबर खाद डाली। इसके बाद टाइकोडर्मा से उपचार कर एक दो बीज डाले। समय समय पर इनकी निदाई.गुड़ाई कर नीमकांठ, गौमूत्र, अग्निअस्त्र डाला। साथ ही हर 15 दिन में मटका खाद, जैविक खाद और जीवामृत भी डाला। कुछ समय बाद बेल बढ़ने पर मचान पर चढ़ा दी। मचान पर बेल अच्छे से फैल जाने पर फल तोड़ने में आसानी रहती है। इस प्रकार करीब पांच डिसमिल जमीन खेती में सेम, बरबटी, लौकी, करेला, गिलकी आदि सब्जी लगाकर सरवन्ती तेकाम एक मौसम में 8 से 10 हजार रुपये कमा रही हैं। सरवन्ती की मचान को आदर्श मानकर दूसरी महिलाओं ने भी इसी पद्धति से मचान बनाना शुरू कर दिया है ।
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छतरपुर
फूलों सी रूपा परिश्रम से बनीं आत्मनिर्भर
बालाघाट जिले के मदनपुर गांव में रहने वाली सरवन्ती तेकाम की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी । परसवाड़ा नारी भक्ति तेजस्विनी महिला संघ से जुड़ने के बाद उसे पैसे बचाने की कई तरकीबें समझ में आई । उसने न सिर्फ बचत करना शुरू की, बल्कि खेती में नवीन तकनीक अपनाकर स्वयं को आधुनिक युग के किसानों की श्रेणी मंे लाकर खड़ा कर लिया । उसकी खेती की मचान पद्धति गांव वालों के लिए एक नया तर्जुबा है । साथ ही उसने जैविक खेती करना शुरू किया , इससे फसल को सुरक्षित रखने के साथ ही अच्छा उत्पादन भी मिलना शुरू हो गया । तेकाम ने 52 खंभों को बांधकर मचान बनाया और इसके नीचे एक फीट गहरा और एक फीट चौड़ा गड्ढा खोदकर बेल वाली फसल लगाई। हर गड्ढे में वर्मी कम्पोस़््ड खाद और गोबर खाद डाली। इसके बाद टाइकोडर्मा से उपचार कर एक दो बीज डाले। समय समय पर इनकी निदाई.गुड़ाई कर नीमकांठ, गौमूत्र, अग्निअस्त्र डाला। साथ ही हर 15 दिन में मटका खाद, जैविक खाद और जीवामृत भी डाला। कुछ समय बाद बेल बढ़ने पर मचान पर चढ़ा दी। मचान पर बेल अच्छे से फैल जाने पर फल तोड़ने में आसानी रहती है। इस प्रकार करीब पांच डिसमिल जमीन खेती में सेम, बरबटी, लौकी, करेला, गिलकी आदि सब्जी लगाकर सरवन्ती तेकाम एक मौसम में 8 से 10 हजार रुपये कमा रही हैं। सरवन्ती की मचान को आदर्श मानकर दूसरी महिलाओं ने भी इसी पद्धति से मचान बनाना शुरू कर दिया है ।
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छतरपुर
फूलों सी रूपा परिश्रम से बनीं आत्मनिर्भर
Ruby Sarkar
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में बसा है छोटा सा गांव अटारन पुरवा । जो अब फूलों की खेती के लिए पूरे बुन्देलखण्ड में लोकप्रिय हो रहा है । गांव को मिल रही लोकप्रियता के पीछे यहां की महिला किसान रूपा पटेल की एक छोटी सी आशा है , जिसने यहां के किसान और गांव की तस्वीर बदल दी है । रूपा ने कड़ी मेहनत और सार्थक प्रयास के फूलों की खेती कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है।
गांव चंद्रपुरा, अटारन पुरवा के किसान मुख्य रूप से सुगंधित फूलों की खेती कर बड़ा लाभ अर्जित कर रहे हैं । गांव में सुगंधित फूलों की खेती सबसे पहले यहां की महिला किसान रूपा पटेल ने प्रारंभ की और रूपा को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया यहां संचालित तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम ने । रूपा बताती हैं कि पहले ग्रामवासी पारंपरिक कृषि पर ही निर्भर थे । उन्नत फसल न होने पर हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर ही बनी रहती थी और कर्ज का बोझ अलग झेलते थे, परंतु जब से यहां तेजस्विनी कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, तब से हमारे गांव में कार्यक्रम की कम्युनिटी मोबिलाइजर रजनी सक्सेना को जाता है, जिसकी जगाई हुई एक आशा की किरण ने हमें आत्मनिर्भर बना दिया । रूपा बताती हैं कि हमारे गांव में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला स्व सहायता समूह का गठन किया गया है एक दिन जब समूह की बैठक हमारे घर पर हो रही थी, तभी ऑगन की क्यारी में गुलाब के कुछ पौधों को रजनी ने लगा देखा । पौधों में लगे देषी लाल गुलाब के फूल घर की सुंदरता को बढ़ा रहे थे । जिसे देखकर रजनी ने बताया कि कृषि की आधुनिक तकनीक व सही देखभाल से आप अपने खेतों में सुगंधित फूलों की खेती कर बड़ा लाभ कमा सकते हैं । बस फिर क्या था, समूह की बैठक में सहमति बनी और सबसे पहले मैंने अपने तीन एकड़ खेत के छोटे से हिस्से में सुगंधित फूलों की खेती करना प्रारंभ किया । कड़ी मेहनत रंग लाई और अच्छी किस्म के गुलाब, गेंदा व अन्य फूल प्राप्त हुए तथा हमें बाजार में जिनके अच्छे दाम मिले । मुझे मिली इस उपलब्धि को देखकर परिवार ने पूरे तीन एकड़ खेत में फूलों की खेती करने का निर्णय लिया । रूपा ने पहले 20 हजार रुपये की लागत से कलम लगायी , ेिजससे प्रतिदिन 10 से 20 किलो गंेदा फूल तथा 7 से 10 किलो गुलाब के फूल प्राप्त होते है, जबकि सीजन पर 40 किलो तक फूल प्राप्त होते है। स्थानीय बाजार में 50 रुपये किलो गुलाब व 20 से 30 रुपये किलो गंेदे का मूल्य प्राप्त होता है । मौसमी फूलों में गुलाब , गेंदे की खेती में लगभग एक हजार 200 किलोग्राम प्रतिमाह फूल निकलते है, जिसकी सीमित राशि रुपये 60 हजार प्रतिमाह है ।
वहीं कार्यक्रम की कम्युनिटी मोबिलाइजर रजनी बताती है, कि इस क्षेत्र के विकास में तेजस्विनी कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है । इस क्षेत्र की महिलाएं आधुनिक कृषि के प्रति जिज्ञासु है तथा कृषि में नये प्रयोग करने के जोखिम उठाने को तैयार है । इनकी सफलता के पीछे यही एक बढ़ा कारण है । इन महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र, नौगांव से प्रशिक्षण भी दिलवाया गया है । वह दिन दूर नहीं जब मुख्य सड़क से लगे ग्राम अटारन पुरवा को फूलों के गांव के नाम से जाना जाएगा और लोग इस विशेष रूप से देखने आयेंगे।
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बकरी पालन से आजीविका
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में बसा है छोटा सा गांव अटारन पुरवा । जो अब फूलों की खेती के लिए पूरे बुन्देलखण्ड में लोकप्रिय हो रहा है । गांव को मिल रही लोकप्रियता के पीछे यहां की महिला किसान रूपा पटेल की एक छोटी सी आशा है , जिसने यहां के किसान और गांव की तस्वीर बदल दी है । रूपा ने कड़ी मेहनत और सार्थक प्रयास के फूलों की खेती कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है।
गांव चंद्रपुरा, अटारन पुरवा के किसान मुख्य रूप से सुगंधित फूलों की खेती कर बड़ा लाभ अर्जित कर रहे हैं । गांव में सुगंधित फूलों की खेती सबसे पहले यहां की महिला किसान रूपा पटेल ने प्रारंभ की और रूपा को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया यहां संचालित तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम ने । रूपा बताती हैं कि पहले ग्रामवासी पारंपरिक कृषि पर ही निर्भर थे । उन्नत फसल न होने पर हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर ही बनी रहती थी और कर्ज का बोझ अलग झेलते थे, परंतु जब से यहां तेजस्विनी कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, तब से हमारे गांव में कार्यक्रम की कम्युनिटी मोबिलाइजर रजनी सक्सेना को जाता है, जिसकी जगाई हुई एक आशा की किरण ने हमें आत्मनिर्भर बना दिया । रूपा बताती हैं कि हमारे गांव में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला स्व सहायता समूह का गठन किया गया है एक दिन जब समूह की बैठक हमारे घर पर हो रही थी, तभी ऑगन की क्यारी में गुलाब के कुछ पौधों को रजनी ने लगा देखा । पौधों में लगे देषी लाल गुलाब के फूल घर की सुंदरता को बढ़ा रहे थे । जिसे देखकर रजनी ने बताया कि कृषि की आधुनिक तकनीक व सही देखभाल से आप अपने खेतों में सुगंधित फूलों की खेती कर बड़ा लाभ कमा सकते हैं । बस फिर क्या था, समूह की बैठक में सहमति बनी और सबसे पहले मैंने अपने तीन एकड़ खेत के छोटे से हिस्से में सुगंधित फूलों की खेती करना प्रारंभ किया । कड़ी मेहनत रंग लाई और अच्छी किस्म के गुलाब, गेंदा व अन्य फूल प्राप्त हुए तथा हमें बाजार में जिनके अच्छे दाम मिले । मुझे मिली इस उपलब्धि को देखकर परिवार ने पूरे तीन एकड़ खेत में फूलों की खेती करने का निर्णय लिया । रूपा ने पहले 20 हजार रुपये की लागत से कलम लगायी , ेिजससे प्रतिदिन 10 से 20 किलो गंेदा फूल तथा 7 से 10 किलो गुलाब के फूल प्राप्त होते है, जबकि सीजन पर 40 किलो तक फूल प्राप्त होते है। स्थानीय बाजार में 50 रुपये किलो गुलाब व 20 से 30 रुपये किलो गंेदे का मूल्य प्राप्त होता है । मौसमी फूलों में गुलाब , गेंदे की खेती में लगभग एक हजार 200 किलोग्राम प्रतिमाह फूल निकलते है, जिसकी सीमित राशि रुपये 60 हजार प्रतिमाह है ।
वहीं कार्यक्रम की कम्युनिटी मोबिलाइजर रजनी बताती है, कि इस क्षेत्र के विकास में तेजस्विनी कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है । इस क्षेत्र की महिलाएं आधुनिक कृषि के प्रति जिज्ञासु है तथा कृषि में नये प्रयोग करने के जोखिम उठाने को तैयार है । इनकी सफलता के पीछे यही एक बढ़ा कारण है । इन महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र, नौगांव से प्रशिक्षण भी दिलवाया गया है । वह दिन दूर नहीं जब मुख्य सड़क से लगे ग्राम अटारन पुरवा को फूलों के गांव के नाम से जाना जाएगा और लोग इस विशेष रूप से देखने आयेंगे।
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बकरी पालन से आजीविका
Ruby Sarkar
तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत बकरी पालकर छतरपुर जिले की महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं। यह एक ऐसा पशु है, जिसे चलती-फिरती फसल या गरीबों का एटीएम भी कहा जाता है। सूखा से प्रभावित इस जिले की महिलाएं परंपरागत रूप से बकरी के व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं। बकरियों के दूध, मांस और खाल बेचकर वे अपनी आजीविका चला रही हैं। 2010 में अचानक बकरियों की बीमारियों से बड़ी संख्या में मौत से घबराकर महिलाओं ने बकरियां न पालने का मन बना लिया था। लेकिन एक निजी संस्था द गोट ट्रस्ट को जब यह पता चला, तो उसने गांव की महिलाओं को बकरी पालन के नये तरीकों और तकनीकी से जागरूक व प्रोत्साहन देने की पहल की । प्रशिक्षण में बमीठा के 40 गांवों में 10 महिलाओं को क्लस्टर में 10 पशु सखी बनाया गया, जो गांव की अन्य महिलाओं को पशु सखी निम्न गुणवत्ता वाली बकरियों की छांटने, जिससे उत्तम गुण वाले बकरी पालन को बढ़ावा मिल सके, पेट में पाये जाने वाले कीड़े की दवा देने, सम्पूर्ण आहार के रूप में बकरियों के लिए दाने का प्रयोग बढ़ाने, बकरियों के लिए खुले बाड़े का प्रयोग करके, शुद्ध और नियमित पीने की पानी की व्यवस्था, जिससे बकरियों के स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता में लाभदायक प्रभाव पड़े, बकरियों की समय-समय पर संक्रामक बीमारी का टीकाकरण, बरसात के दिनों में कृमिनाशक दवा के साथ ही शरीर के ऊपर के कीड़े के लिए दवा देना शामिल हैं। इसके साथ ही बकरी पालकों को बकरियों के लिए आवास व खुले में घूमने, बकरी आवास की प्रतिदिन साफ-सफाई तथा महीने में एक बार चूने से छिड़काव जिससे बकरियों में संक्रमण का भय कम हो और बकरियों का स्वास्थ्य अच्छा रहे जैसी बातें बताती हैं।
सलैया गांव की रेखा पाल पशु सखी हैं। कभी गरीबी और बकरियों की बीमारियों से मौत होने से रेखा टूट चुकी थी। उनके सामने बच्चों की परवरिश की चिंता थी। उन्हें अपने अरमान पूरे होने के आसार नहीं नजर आ रहे थे। रेखा गांव में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला समूह की सदस्य हैं। तीन महीने प्रशिक्षण के बाद वह गांव की पशु सखी बन गई। उसे बकरियों के इलाज के लिए एक किट भी दिया गया है। आज पशु सखी के रूप में उसे 700 रुपये के अलावा बकरियों के इलाज के लिए भी अलग से पैसे मिलते है। रेखा के साथ-साथ उसका परिवार भी खुश है, उसकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। उसके बच्चे स्कूल जाने लगे हैं।
एक अन्य समूह सलैया में 112 महिलाएं हैं और सभी बकरी पाल रही हैं। खजुराहो की हब्बीबाई कहती हैं, कि 2010 में बीमारी से करीब 700 बकरियों की मौत हो गई थी। पूरा गांव उस समय मातम में डूब गया था। गांव वाले भुखमरी की कगार पर आकर खड़े थे। बकरी पालना घाटे का सौदा हो गया था। लिहाजा गांव वालों ने बकरी पालना बंद कर दिया था। लेकिन प्रषिक्षण के बाद धीरे-धीरे गांव वालों का आत्मविश्वास लौटा और तकनीकी जानकारी के बाद बकरियों के स्वास्थ्य प्रबंधन तथा बीमारी से बचाव के तरीकों के साथ ही बकरियों के खानपान ज्ञान भी बढ़ा।
बकरियों के प्रजनन के लिए हमें उपयुक्त बकरे उपलब्ध कराये जाते हैं। पहले बिजू बकरा न मिलने से बकरियां गर्भवती नहीं हो पाती थीं या मजबूरन हमें खुले बकरे से प्रजनन के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता था, इससे कमजोर और बीमार मेमने पैदा होने लगेे। इधर कमजोर बकरों का बधियाकरण होने से जहां उनका वजन 4 किलो बढ़ गया , वहीं बिना बधियाकरण वाले बकरों का वजन एक से डेढ़ किलो तक ही रह जाता है। ज्यादा वजन वाले बकरों से हमारी आय भी बढ़ती है। विशेषज्ञों की सलाह से अब हमारी परंपरागत सोच को बदलने लगी है, इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं।
बकरी पालकों के लिए गांव सलैया में एक पाठशाला का निर्माण किया गया है, जिसमें 10 से 25 के समूह में बकरी पालक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं, अपने विचारों और अनुभव का आदान-प्रदान करने के साथ तैयार की गई सामग्री से अपना ज्ञान भी बढ़ा रहे हैं।
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ईंट भट्टे से स्वरोजगार
तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत बकरी पालकर छतरपुर जिले की महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं। यह एक ऐसा पशु है, जिसे चलती-फिरती फसल या गरीबों का एटीएम भी कहा जाता है। सूखा से प्रभावित इस जिले की महिलाएं परंपरागत रूप से बकरी के व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं। बकरियों के दूध, मांस और खाल बेचकर वे अपनी आजीविका चला रही हैं। 2010 में अचानक बकरियों की बीमारियों से बड़ी संख्या में मौत से घबराकर महिलाओं ने बकरियां न पालने का मन बना लिया था। लेकिन एक निजी संस्था द गोट ट्रस्ट को जब यह पता चला, तो उसने गांव की महिलाओं को बकरी पालन के नये तरीकों और तकनीकी से जागरूक व प्रोत्साहन देने की पहल की । प्रशिक्षण में बमीठा के 40 गांवों में 10 महिलाओं को क्लस्टर में 10 पशु सखी बनाया गया, जो गांव की अन्य महिलाओं को पशु सखी निम्न गुणवत्ता वाली बकरियों की छांटने, जिससे उत्तम गुण वाले बकरी पालन को बढ़ावा मिल सके, पेट में पाये जाने वाले कीड़े की दवा देने, सम्पूर्ण आहार के रूप में बकरियों के लिए दाने का प्रयोग बढ़ाने, बकरियों के लिए खुले बाड़े का प्रयोग करके, शुद्ध और नियमित पीने की पानी की व्यवस्था, जिससे बकरियों के स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता में लाभदायक प्रभाव पड़े, बकरियों की समय-समय पर संक्रामक बीमारी का टीकाकरण, बरसात के दिनों में कृमिनाशक दवा के साथ ही शरीर के ऊपर के कीड़े के लिए दवा देना शामिल हैं। इसके साथ ही बकरी पालकों को बकरियों के लिए आवास व खुले में घूमने, बकरी आवास की प्रतिदिन साफ-सफाई तथा महीने में एक बार चूने से छिड़काव जिससे बकरियों में संक्रमण का भय कम हो और बकरियों का स्वास्थ्य अच्छा रहे जैसी बातें बताती हैं।
सलैया गांव की रेखा पाल पशु सखी हैं। कभी गरीबी और बकरियों की बीमारियों से मौत होने से रेखा टूट चुकी थी। उनके सामने बच्चों की परवरिश की चिंता थी। उन्हें अपने अरमान पूरे होने के आसार नहीं नजर आ रहे थे। रेखा गांव में तेजस्विनी कार्यक्रम के अंतर्गत महिला समूह की सदस्य हैं। तीन महीने प्रशिक्षण के बाद वह गांव की पशु सखी बन गई। उसे बकरियों के इलाज के लिए एक किट भी दिया गया है। आज पशु सखी के रूप में उसे 700 रुपये के अलावा बकरियों के इलाज के लिए भी अलग से पैसे मिलते है। रेखा के साथ-साथ उसका परिवार भी खुश है, उसकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। उसके बच्चे स्कूल जाने लगे हैं।
एक अन्य समूह सलैया में 112 महिलाएं हैं और सभी बकरी पाल रही हैं। खजुराहो की हब्बीबाई कहती हैं, कि 2010 में बीमारी से करीब 700 बकरियों की मौत हो गई थी। पूरा गांव उस समय मातम में डूब गया था। गांव वाले भुखमरी की कगार पर आकर खड़े थे। बकरी पालना घाटे का सौदा हो गया था। लिहाजा गांव वालों ने बकरी पालना बंद कर दिया था। लेकिन प्रषिक्षण के बाद धीरे-धीरे गांव वालों का आत्मविश्वास लौटा और तकनीकी जानकारी के बाद बकरियों के स्वास्थ्य प्रबंधन तथा बीमारी से बचाव के तरीकों के साथ ही बकरियों के खानपान ज्ञान भी बढ़ा।
बकरियों के प्रजनन के लिए हमें उपयुक्त बकरे उपलब्ध कराये जाते हैं। पहले बिजू बकरा न मिलने से बकरियां गर्भवती नहीं हो पाती थीं या मजबूरन हमें खुले बकरे से प्रजनन के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता था, इससे कमजोर और बीमार मेमने पैदा होने लगेे। इधर कमजोर बकरों का बधियाकरण होने से जहां उनका वजन 4 किलो बढ़ गया , वहीं बिना बधियाकरण वाले बकरों का वजन एक से डेढ़ किलो तक ही रह जाता है। ज्यादा वजन वाले बकरों से हमारी आय भी बढ़ती है। विशेषज्ञों की सलाह से अब हमारी परंपरागत सोच को बदलने लगी है, इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं।
बकरी पालकों के लिए गांव सलैया में एक पाठशाला का निर्माण किया गया है, जिसमें 10 से 25 के समूह में बकरी पालक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं, अपने विचारों और अनुभव का आदान-प्रदान करने के साथ तैयार की गई सामग्री से अपना ज्ञान भी बढ़ा रहे हैं।
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ईंट भट्टे से स्वरोजगार
Ruby Sarkar
छतरपुर जिले के बाजना गांव मां सरस्वती एवं संस्कार स्व सहायता समूह की ज्यादातर महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती थीं। एक दिन समूह की बैठक में इन महिलाओं ने निर्णय लिया, कि इन्हें आजीविका गतिविधि के अलग अलग व्यवसाय की ओर ध्यान देना चाहिए । आपस में ही तय कर इन महिलाओं ने अलग-अलग आजीविका गतिविधियां शुरू की । कुछ महिलाएं ईंट बनाने का काम पहले से जानती थी, इसलिए इन्होने ईंट भट्टा डालने पर विचार किया। समन्वयक एवं कम्युनिटी मोबिलाइज़र ने उनकी सहायता की और स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना अंतर्गत समूह को 50 हजार रुपये की राशि दिलवाई। इस राशि से महिलाओं ने ईंट भट्टे का काम शुरू किया। इस काम में इनके पति भी सहयोग करने लगे। ईंट बनाने के लिए पूरा साधन इन्हें सुलभ होने के कारण सदस्यों की आय में वृद्धि हुई और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया। आज समूह के पास 70 हजार से अधिक की बचत है। जिसमें से महिलाएं समय समय पर आवश्यकतानुसार ऋण लेती हैं । इससे वे साहूकारों के चंगुल में फंसने से बच जाती है।
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डेयरी व्यवसाय ने बदली जिंदगी
छतरपुर जिले के बाजना गांव मां सरस्वती एवं संस्कार स्व सहायता समूह की ज्यादातर महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती थीं। एक दिन समूह की बैठक में इन महिलाओं ने निर्णय लिया, कि इन्हें आजीविका गतिविधि के अलग अलग व्यवसाय की ओर ध्यान देना चाहिए । आपस में ही तय कर इन महिलाओं ने अलग-अलग आजीविका गतिविधियां शुरू की । कुछ महिलाएं ईंट बनाने का काम पहले से जानती थी, इसलिए इन्होने ईंट भट्टा डालने पर विचार किया। समन्वयक एवं कम्युनिटी मोबिलाइज़र ने उनकी सहायता की और स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना अंतर्गत समूह को 50 हजार रुपये की राशि दिलवाई। इस राशि से महिलाओं ने ईंट भट्टे का काम शुरू किया। इस काम में इनके पति भी सहयोग करने लगे। ईंट बनाने के लिए पूरा साधन इन्हें सुलभ होने के कारण सदस्यों की आय में वृद्धि हुई और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया। आज समूह के पास 70 हजार से अधिक की बचत है। जिसमें से महिलाएं समय समय पर आवश्यकतानुसार ऋण लेती हैं । इससे वे साहूकारों के चंगुल में फंसने से बच जाती है।
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डेयरी व्यवसाय ने बदली जिंदगी
Ruby Sarkar
छतरपुर जिले के नौगांव लोकेशन के मदारी गांव में सरस्वती तेजस्विनी स्व सहायता समूह में 12 सदस्य हैं। समूह गठन के समय इन सभी की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी, कि महिलाएं हर बैठक में प्रति सदस्य केवल 10 रुपये की राशि जमा कर पाती थीं। इन्होने अपनी हालत में सुधार लाने के लिए कोई आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने का सोचा। समूह सदस्य अभिलाषा रावत चित्रकूट के दीनदयाल संस्थान का भ्रमण करके आई थी। उसने वहां डेयरी के व्यवसाय को देखा और उसके बारे में काफी गहरी जानकारी हासिल की। वहीं अभिलाषा केा इसी व्यवसाय को अपनाने का सुझाव दिया गया। इस पर सभी की सहमति बन गई। कार्य की शुरुआत अभिलाषा ने की। उसने समूह से एक हजार रुपये की राशि का ऋण लिया और अपने घर से 6 हजार रुपये मिलाकर दूध से पनीर व क्रीम बनाने की मशीन खरीदी। समूह के सभी सदस्य दूध इकट्ठा करने में उनकी सहायता करने लगे। इस प्रकार डेयरी के कार्य की शुरुआत हुई। इन्हें सबसे पहला आर्डर आर्मी कैंप से मिला। यहां दूध, पनीर एवं क्रीम सप्लाई की। इसी तरह धीरे धीरे अभिलाषा का व्यवसाय बढ़ने लगा। शादी एवं अन्य आयोजनों के आर्डर भी उसे मिलने लगे। काम बढ़ने पर उसने गांव से 6 किलोमीटर दूर गढ़ी मलहरा में एक किराये की दुकान लेकर डेयरी का काम शुरू कर दिया है। आज यह सारी महिलाएं प्रतिदिन दो से तीन क्विंटल दूध और उससे बनी सामग्री की सप्लाई कर रही हैं और प्रतिमाह 6 से 7 हजार रुपये तक कमा भी कर रही हैं।
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संगठन की शक्ति से सूदखोर चित्त
छतरपुर जिले के नौगांव लोकेशन के मदारी गांव में सरस्वती तेजस्विनी स्व सहायता समूह में 12 सदस्य हैं। समूह गठन के समय इन सभी की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी, कि महिलाएं हर बैठक में प्रति सदस्य केवल 10 रुपये की राशि जमा कर पाती थीं। इन्होने अपनी हालत में सुधार लाने के लिए कोई आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने का सोचा। समूह सदस्य अभिलाषा रावत चित्रकूट के दीनदयाल संस्थान का भ्रमण करके आई थी। उसने वहां डेयरी के व्यवसाय को देखा और उसके बारे में काफी गहरी जानकारी हासिल की। वहीं अभिलाषा केा इसी व्यवसाय को अपनाने का सुझाव दिया गया। इस पर सभी की सहमति बन गई। कार्य की शुरुआत अभिलाषा ने की। उसने समूह से एक हजार रुपये की राशि का ऋण लिया और अपने घर से 6 हजार रुपये मिलाकर दूध से पनीर व क्रीम बनाने की मशीन खरीदी। समूह के सभी सदस्य दूध इकट्ठा करने में उनकी सहायता करने लगे। इस प्रकार डेयरी के कार्य की शुरुआत हुई। इन्हें सबसे पहला आर्डर आर्मी कैंप से मिला। यहां दूध, पनीर एवं क्रीम सप्लाई की। इसी तरह धीरे धीरे अभिलाषा का व्यवसाय बढ़ने लगा। शादी एवं अन्य आयोजनों के आर्डर भी उसे मिलने लगे। काम बढ़ने पर उसने गांव से 6 किलोमीटर दूर गढ़ी मलहरा में एक किराये की दुकान लेकर डेयरी का काम शुरू कर दिया है। आज यह सारी महिलाएं प्रतिदिन दो से तीन क्विंटल दूध और उससे बनी सामग्री की सप्लाई कर रही हैं और प्रतिमाह 6 से 7 हजार रुपये तक कमा भी कर रही हैं।
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संगठन की शक्ति से सूदखोर चित्त
Ruby Sarkar
तेजस्विनी से आई आत्मनिर्भरता ने स्व सहायता समूहों में नई इच्छाशक्ति का सूत्रपात कर दिया है । वहीं आर्थिक मोर्चे पर आई ताकत के कारण सूदखोर साहूकार महिलाओं के निशाने पर आ गए हैं । 5 रुपये सैकड़ा सूद वसूलने वाले साहूकार अब चारों खाने चित्त है ।
समूह बनने से पहले छतरपुर जिले के कई गांव सूदखोरों के चंगुल में थे। जरूरत पड़ने पर ग्रामीण इनसे ऋण तो ले लेते थे, लेकिन इसके बदले सूदखोर उनसे कई गुणा ब्याज वसूलते और कई बार तो ग्रामीणों की जमीन और अन्य सामान भी अपने कब्जे में कर लेते थे। लेकिन तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम लागू होने के बाद से ग्रामीणों में जागरूकता आई है और उन्होंने संगठन की शक्ति के महत्व को स्वीकारा है। ऐसे ही गुलगंज लोकेशन के बाजना गांव में संस्कार तेजस्विनी स्व सहायता समूह ने अपने इलाके में एक नई पहचान कायम की है। इस समय समूह की बचत ९६ ९०० रूपये है। इस 12 सदस्यीय समूह ने अब तक 4 लाख 16 हजार 5 सौ रुपये का आंतरिक लेनदेन किया है। जिसके फलस्वरूप समूह को 40 हजार रुपये की राशि ब्याज के रूप में प्राप्त हुई है। इस समूह की कामयाबी के फलस्वरूप गांव में सूदखोरों का धंधा ठप हो गया है और समूह के कार्य को प्रशासकीय अधिकारियों ने भी सराहा है।
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झाड़ू बनाकर आजीविका अर्जन
Ruby Sarkar
छतरपुर जिले के गुलगंज लोकेशन के महुआ झाला गांव में गणेश तेजस्विनी स्व सहायता समूह की सदस्य तिजिया कुशवाहा बेहद तंगहाली में जीवन गुजार रही थीं। तिजियाबाई झाड़ू बनाती थी और इनके पति मजदूरी करते थे। अपनी आर्थिक स्थिति से परेशान होकर तिजिया बाई ने समूह के सामने अपनी समस्या रखी, तो अन्य महिलाओं ने उन्हें कुछ और आजीविका गतिविधि करने का सुझाव दिया। इस पर तिजिया बाई ने अपनी समस्या को उनकी सलाह पर समाधान करने को सोचा। तिजिया को महिलाओं ने सलाह दी, कि वह झाड़ू बनाकर बिना बिचौलिए के स्वयं उसे बेचे । समूह ने एमएफआई से लिंकेज कराकर तिजिया बाई को कर्ज दिलाया, जिससे उसने साइकिल व जरूरत का अन्य सामान खरीदा। अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से उसने झाड़ू बनाकर स्वयं आसपास के बाजारों में जाकर बेचना शुरू किया। इस तरह तिजिया बाई की स्थिति धीरे -धीरे सुधरने लगी और अब वह 4 से 5 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने लगी । तिजिया अब अपने बच्चों को स्कूल भेजती है । वह चाहती है, कि उसके बच्चे पढ़-लिख कर कुछ अलग करे, जिससे झाडू के साथ-साथ कुछ और व्यवसाय कर पाना संभव हो सके । झाडू बनाना तो उसका पुश्तैनी काम है, उसे वह संभाल लेगी । पर समय के अनुसार कुछ नया सीखते रहना चाहिए ।
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गांव में शुरू हुआ हाट बाज़ार
छतरपुर जिले के गुलगंज लोकेशन के महुआ झाला गांव में गणेश तेजस्विनी स्व सहायता समूह की सदस्य तिजिया कुशवाहा बेहद तंगहाली में जीवन गुजार रही थीं। तिजियाबाई झाड़ू बनाती थी और इनके पति मजदूरी करते थे। अपनी आर्थिक स्थिति से परेशान होकर तिजिया बाई ने समूह के सामने अपनी समस्या रखी, तो अन्य महिलाओं ने उन्हें कुछ और आजीविका गतिविधि करने का सुझाव दिया। इस पर तिजिया बाई ने अपनी समस्या को उनकी सलाह पर समाधान करने को सोचा। तिजिया को महिलाओं ने सलाह दी, कि वह झाड़ू बनाकर बिना बिचौलिए के स्वयं उसे बेचे । समूह ने एमएफआई से लिंकेज कराकर तिजिया बाई को कर्ज दिलाया, जिससे उसने साइकिल व जरूरत का अन्य सामान खरीदा। अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से उसने झाड़ू बनाकर स्वयं आसपास के बाजारों में जाकर बेचना शुरू किया। इस तरह तिजिया बाई की स्थिति धीरे -धीरे सुधरने लगी और अब वह 4 से 5 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने लगी । तिजिया अब अपने बच्चों को स्कूल भेजती है । वह चाहती है, कि उसके बच्चे पढ़-लिख कर कुछ अलग करे, जिससे झाडू के साथ-साथ कुछ और व्यवसाय कर पाना संभव हो सके । झाडू बनाना तो उसका पुश्तैनी काम है, उसे वह संभाल लेगी । पर समय के अनुसार कुछ नया सीखते रहना चाहिए ।
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गांव में शुरू हुआ हाट बाज़ार
Ruby Sarkar
छतरपुर जिले के सलैया गांव में और आसपास कोई हाट बाजार नहीं था। इस कारण ग्रामीणों को सामान खरीदने करीब 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। इस कारण जहां आने जाने के लिए 20 रुपये किराए में खर्च हो जाते थे। वहीं ग्रामीणों का काफी समय इसमें बर्बाद हो जाता था। यहां तेजस्विनी स्व सहायता समूह की महिलाओं ने ग्राम स्तरीय बैठक में इस बात को रखा। काफी चर्चा के बाद सप्ताह में दो दिन गांव में हाट बाजार लगाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया । प्रस्ताव पर पंचायत सचिव ने सभी के हस्ताक्षर करवाए और इसे जनपद पंचायत को अनुमोदन के लिए भेजा । अनुमोदन मिलने के बाद तेजस्विनी कार्यक्रम एवं ग्राम पंचायत सलैया के संयुक्त प्रयास से 12 जनवरी, 2016 से सलैया गांव में हाट बाजार लगना शुरू हो गया । इससे गांव के लोगों को काफी सुविधा हो गई । साथ ही समूह के सदस्यों सहित गांव के अन्य लोगों को भी यहां रोजगार मिला ।
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हजारों महिलाओं ने लगाये किचन गार्डन
Ruby Sarkar
विभागीय समन्वय का लाभ उठाने मं तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम की उपलब्धियां उल्लेखनीय है । ग्रामीण महिलाओं ने अनुपयोगी पड़ी जमीन का उपयोग करने और पोषण प्राप्त करने की इस पहल के सार्थक परिणाम आ रहे हैं । हजारों महिलाओं ने अपने घरों के पास किचन गार्डन विकसित किए हैं।
तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के अंतर्गत ष्गठित स्व सहायता समूहों से बात करने पर पता चलता है, कि क्या यह वहीं महिलाएं हैं , जिन्हें साल भर पहले सिर्फ अपने घर के चूल्हा चौका तथा अपने खेती की चिंता रहती थी । परंतु आज उन्हें अपने परिवार के स्वास्थ्य के साथ आर्थिक उन्नति की भी चिंता रहती है । उद्यानिकी विभाग की मिनिकिट वितरण योजना का लाभ स्व सहायता समूहों को मिलने से जहां समूह अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई हैं, वहीं दूसरी ओर वे इसे आजीविका के साथ के रूप् में भी अपना रहीं हैं ।
जिला छतरपुर के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले परिवारों को किचन गार्डन के लिए मिनि किट प्रदान किया गया । इन बीजों को जिस जगह उन्होंने बोया है उसे स्व सहायता समूह सदस्यों ने तेजस्विनी उद्यान का नाम दिया है । इन मिनिकिट्स में लौकी, पालक, गिलकी, कद्दू, भिंडी आदि के बीज उन्हें लोकेशन के माध्यम से उपलब्ध कराये गये हैं । महिलाओं ने इन बीजों को अपने घर की खाली पड़ी जमीन पर बोया आज इन बीजों से उन्हें अपने परिवार के लिए भरपूर हरी व ताजी सब्जी मिल रही है । ग्राम परा की उम्दीबाई बताती हैं, कि हमारे गांव से बाजार 7 किलोमीटर दूर है , जहां पर उन्हें साप्ताहिक हाट बाजार से सिर्फ सब्जी खरीदने जाना पड़ता था तथा इसके लिए उन्हें पूरे दिन का समय व 10 रुपये किया देना पड़ता था और पूरे 7 दिनों के लिए सब्जी खरीद कर लानी पड़ती थी, जो घर में आने के एक दो दिन में ही बासी हो जाती थी । अब जब सब्जी का उत्पादन उनके घर पर ही होता है तो उन्हें बाजार से सब्जी नहीं खीदनी पड़ती । किराए के साथ-साथ उसका दिन का समय भी बच जाता है तथा घर परिवार और बच्चों के लिए ताजी सब्जी भी मिल जाती है । वहीं पानबाई कहती है, कि हरी व ताजी सब्जी घर में ही उपलब्ध होने से महंगी सब्जी खरीदने बाजार भी नहीं जाना पड़ता , जिससे पैसे की बचत तो होती ही है साथ ही हरी सब्जी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है । इसलिए उनके बच्चों केा कुपोषण से भी बचाया संभव हो गया है ।
पन्ना
भैंस पालन से बदली घर की तस्वीर
पन्ना जिले के अजयगढ़ लोकेशन के निजामपुर गांव में रहने वाली खेमरानी किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। खेमरानी खेती में अपने पति का हाथ बंटाती हैं, इनके पास करीब 2 एकड़ सिंचित जमीन है, जिसमें आधुनिक तकनीक से खेती कर इससे साल भर में करीब 30 हजार रुपये की आमदनी हो जाती थी।
ज्ञानदेवी तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह से जुड़़ने के बाद खेमरानी ने अपनी आय बढ़ाने के बारे में सोचा। उन्हांेने समूह से ऋण लेकर भैंस पालन करने की इच्छा जताई। उस समय समूह की कुल बचत 19,199 रुपये थे, फेडरेशन के सहयोग से समूह की सदस्यों को संघमित्रा फायनेंस एजेंसी ने 40 हजार रुपये का ऋण दिया । 20 हजार रुपये खेमरानी को तथा 20 हजार अन्य सदस्यों को 16 फीसदी वार्षिक ब्याज दर पर ऋण दिया । खेमरानी ने 20 हजार ऋण राशि तथा 15 हजार रुपये अपनी बचत मिलाकर 35 हजार की भैंस खरीदी। खेमरानी और उनके पति को कार्यक्रम के अंतर्गत पशुपालन विभाग की ओर से प्रशिक्षण भी दिया गया। आज इनकी भैंस एक दिन में 6 से 8 लीटर दूध देती है, जिसे खेमरानी 30 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचती हैं। इसके अलावा घी बनाकर 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचने पर उनकी आमदनी में और इज़ाफा हुआ है।
आपको बताते चले, कि पहले जहां खेमरानी के परिवार की वार्षिक आय 30 हजार रुपये थी, वहीं अब उसकी आय बढ़कर करीब 52 हजार रुपये हो गई है, जिससे उसने एक और भैंस खरीद ली है । अब तो आय में और भी बढ़ोतरी हो रही है। अब खेमरानी का बैंक में स्वयं का बचत खाता है । जो खेमरानी कभी खुले में शौच के लिए जाती थी , अब बड़ गर्व से कहती है, मेरे घर पर भी शौचालय है । न वह खुद खुले में शौच के लिए जाती है और न ही किसी को जाने देती है। वह कहती है, अपनी कमाई बढ़ाओ और अपने लिए सुख-सुविधा जुटाओ ।
खेमरानी की तरह ही टीकमगढ़ जिले के बम्हौरी कला के पहाड़ी बुजुर्ग गांव की पार्वती कुशवाहा, जो साईं बाबा तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह की सदस्य हैं । पार्वती पहले सब्जी की खेती करती थी, जिससे मुश्किल पविार का गुजारा होता था। उसने समूह की बैठक में कहा, कि वह ऋण लेकर भैंस पालना चाहती है । समूह ने संघमित्रा फायनेंस से ऋण के लिए बात की और यहां से समूह को एक लाख रुपये का ऋण स्वीकृत हुआ। पार्वती ने 30 हजार रुपये ऋण लिया और अपनी बचत से 10 हजार रुपये मिलाकर 40 हजार रुपये से एक भैंस खरीदी। जो प्रतिदिन 3 से 4 लीटर दूध दे रही है। पार्वती इसे बेचकर ऋण की किश्तें अदा कर रही है और स्वयं के लिए भी बचत कर रही है। धीरे-धीरे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही पार्वती ने अपने भविष्य की योजना भी बना ली है । आत्मविश्वास से भरी पार्वती कहती है, कि ऋण चुकता होने के बाद वह दोबारा ऋण लेकर आटा चक्की लगाना चाहती है ।
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छतरपुर जिले के सलैया गांव में और आसपास कोई हाट बाजार नहीं था। इस कारण ग्रामीणों को सामान खरीदने करीब 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। इस कारण जहां आने जाने के लिए 20 रुपये किराए में खर्च हो जाते थे। वहीं ग्रामीणों का काफी समय इसमें बर्बाद हो जाता था। यहां तेजस्विनी स्व सहायता समूह की महिलाओं ने ग्राम स्तरीय बैठक में इस बात को रखा। काफी चर्चा के बाद सप्ताह में दो दिन गांव में हाट बाजार लगाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया । प्रस्ताव पर पंचायत सचिव ने सभी के हस्ताक्षर करवाए और इसे जनपद पंचायत को अनुमोदन के लिए भेजा । अनुमोदन मिलने के बाद तेजस्विनी कार्यक्रम एवं ग्राम पंचायत सलैया के संयुक्त प्रयास से 12 जनवरी, 2016 से सलैया गांव में हाट बाजार लगना शुरू हो गया । इससे गांव के लोगों को काफी सुविधा हो गई । साथ ही समूह के सदस्यों सहित गांव के अन्य लोगों को भी यहां रोजगार मिला ।
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हजारों महिलाओं ने लगाये किचन गार्डन
Ruby Sarkar
विभागीय समन्वय का लाभ उठाने मं तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम की उपलब्धियां उल्लेखनीय है । ग्रामीण महिलाओं ने अनुपयोगी पड़ी जमीन का उपयोग करने और पोषण प्राप्त करने की इस पहल के सार्थक परिणाम आ रहे हैं । हजारों महिलाओं ने अपने घरों के पास किचन गार्डन विकसित किए हैं।
तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के अंतर्गत ष्गठित स्व सहायता समूहों से बात करने पर पता चलता है, कि क्या यह वहीं महिलाएं हैं , जिन्हें साल भर पहले सिर्फ अपने घर के चूल्हा चौका तथा अपने खेती की चिंता रहती थी । परंतु आज उन्हें अपने परिवार के स्वास्थ्य के साथ आर्थिक उन्नति की भी चिंता रहती है । उद्यानिकी विभाग की मिनिकिट वितरण योजना का लाभ स्व सहायता समूहों को मिलने से जहां समूह अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई हैं, वहीं दूसरी ओर वे इसे आजीविका के साथ के रूप् में भी अपना रहीं हैं ।
जिला छतरपुर के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग द्वारा गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले परिवारों को किचन गार्डन के लिए मिनि किट प्रदान किया गया । इन बीजों को जिस जगह उन्होंने बोया है उसे स्व सहायता समूह सदस्यों ने तेजस्विनी उद्यान का नाम दिया है । इन मिनिकिट्स में लौकी, पालक, गिलकी, कद्दू, भिंडी आदि के बीज उन्हें लोकेशन के माध्यम से उपलब्ध कराये गये हैं । महिलाओं ने इन बीजों को अपने घर की खाली पड़ी जमीन पर बोया आज इन बीजों से उन्हें अपने परिवार के लिए भरपूर हरी व ताजी सब्जी मिल रही है । ग्राम परा की उम्दीबाई बताती हैं, कि हमारे गांव से बाजार 7 किलोमीटर दूर है , जहां पर उन्हें साप्ताहिक हाट बाजार से सिर्फ सब्जी खरीदने जाना पड़ता था तथा इसके लिए उन्हें पूरे दिन का समय व 10 रुपये किया देना पड़ता था और पूरे 7 दिनों के लिए सब्जी खरीद कर लानी पड़ती थी, जो घर में आने के एक दो दिन में ही बासी हो जाती थी । अब जब सब्जी का उत्पादन उनके घर पर ही होता है तो उन्हें बाजार से सब्जी नहीं खीदनी पड़ती । किराए के साथ-साथ उसका दिन का समय भी बच जाता है तथा घर परिवार और बच्चों के लिए ताजी सब्जी भी मिल जाती है । वहीं पानबाई कहती है, कि हरी व ताजी सब्जी घर में ही उपलब्ध होने से महंगी सब्जी खरीदने बाजार भी नहीं जाना पड़ता , जिससे पैसे की बचत तो होती ही है साथ ही हरी सब्जी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है । इसलिए उनके बच्चों केा कुपोषण से भी बचाया संभव हो गया है ।
पन्ना
भैंस पालन से बदली घर की तस्वीर
पन्ना जिले के अजयगढ़ लोकेशन के निजामपुर गांव में रहने वाली खेमरानी किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। खेमरानी खेती में अपने पति का हाथ बंटाती हैं, इनके पास करीब 2 एकड़ सिंचित जमीन है, जिसमें आधुनिक तकनीक से खेती कर इससे साल भर में करीब 30 हजार रुपये की आमदनी हो जाती थी।
ज्ञानदेवी तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह से जुड़़ने के बाद खेमरानी ने अपनी आय बढ़ाने के बारे में सोचा। उन्हांेने समूह से ऋण लेकर भैंस पालन करने की इच्छा जताई। उस समय समूह की कुल बचत 19,199 रुपये थे, फेडरेशन के सहयोग से समूह की सदस्यों को संघमित्रा फायनेंस एजेंसी ने 40 हजार रुपये का ऋण दिया । 20 हजार रुपये खेमरानी को तथा 20 हजार अन्य सदस्यों को 16 फीसदी वार्षिक ब्याज दर पर ऋण दिया । खेमरानी ने 20 हजार ऋण राशि तथा 15 हजार रुपये अपनी बचत मिलाकर 35 हजार की भैंस खरीदी। खेमरानी और उनके पति को कार्यक्रम के अंतर्गत पशुपालन विभाग की ओर से प्रशिक्षण भी दिया गया। आज इनकी भैंस एक दिन में 6 से 8 लीटर दूध देती है, जिसे खेमरानी 30 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचती हैं। इसके अलावा घी बनाकर 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचने पर उनकी आमदनी में और इज़ाफा हुआ है।
आपको बताते चले, कि पहले जहां खेमरानी के परिवार की वार्षिक आय 30 हजार रुपये थी, वहीं अब उसकी आय बढ़कर करीब 52 हजार रुपये हो गई है, जिससे उसने एक और भैंस खरीद ली है । अब तो आय में और भी बढ़ोतरी हो रही है। अब खेमरानी का बैंक में स्वयं का बचत खाता है । जो खेमरानी कभी खुले में शौच के लिए जाती थी , अब बड़ गर्व से कहती है, मेरे घर पर भी शौचालय है । न वह खुद खुले में शौच के लिए जाती है और न ही किसी को जाने देती है। वह कहती है, अपनी कमाई बढ़ाओ और अपने लिए सुख-सुविधा जुटाओ ।
खेमरानी की तरह ही टीकमगढ़ जिले के बम्हौरी कला के पहाड़ी बुजुर्ग गांव की पार्वती कुशवाहा, जो साईं बाबा तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह की सदस्य हैं । पार्वती पहले सब्जी की खेती करती थी, जिससे मुश्किल पविार का गुजारा होता था। उसने समूह की बैठक में कहा, कि वह ऋण लेकर भैंस पालना चाहती है । समूह ने संघमित्रा फायनेंस से ऋण के लिए बात की और यहां से समूह को एक लाख रुपये का ऋण स्वीकृत हुआ। पार्वती ने 30 हजार रुपये ऋण लिया और अपनी बचत से 10 हजार रुपये मिलाकर 40 हजार रुपये से एक भैंस खरीदी। जो प्रतिदिन 3 से 4 लीटर दूध दे रही है। पार्वती इसे बेचकर ऋण की किश्तें अदा कर रही है और स्वयं के लिए भी बचत कर रही है। धीरे-धीरे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही पार्वती ने अपने भविष्य की योजना भी बना ली है । आत्मविश्वास से भरी पार्वती कहती है, कि ऋण चुकता होने के बाद वह दोबारा ऋण लेकर आटा चक्की लगाना चाहती है ।
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मुर्गी पालन से आर्थिक स्थिति में आया परिवर्तन
Ruby Sarkar
पन्ना जिले के अजयगढ़ लोकेशन के जिगनी बल्दू पुरवा गांव की है । यहां एक महिला किसान सुशीला, जो एकता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्य हैं। समूह से जुड़ने से पहले इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। समूह से जुड़ने के बाद उसने अपनी आजीविका को बढ़ाने की दिशा में सोचा और समूह के सामने बात रखी। समूह की सहायता से सुशीला लोधी ने संघमित्रा फाइनेंस से 50 हजार का ऋण लिया। अपनी बचत से 25 हजार रुपये मिलाकर सुशीला ने कुल 75 हजार की धनराशि से बड़े स्तर पर मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया। 25 हजार रुपये से शेड बनवाया, 50 हजार से 500 चूजे, दवा, दाना, डिब्बे जैसी मुर्गी पालन के लिए जरूरी चीजें खरीदी । पहली बार जब 35 चूजे मर गए , तो उसे बहुत दुःख हुआ, लेकिन इस बीच उसे इसी व्यवसाय से 5 हजार रुपये का लाभ भी हुआ। इसके बाद उसने 500 चूजे और खरीदे,। इस बात उसे एक महीने करीब 9 हजार रुपये का लाभ हुआ। आज उसके पास 900 चूजे हैं। मुर्गियों की संख्या बढ़ने से उसने एक नया शेड बनाया । अ ब वह दोगुने लाभ की उम्मीद कर रही हैं।इसके साथ ही वे संघमित्रा संस्था से लिया हुआ ऋण भी क्रमशः लौटा रही है ।
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किराने की दुकान से आजीविका
Ruby Sarkar
पन्ना जिले के अजयगढ़ लोकेशन के जिगनी बल्दू पुरवा गांव की है । यहां एक महिला किसान सुशीला, जो एकता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्य हैं। समूह से जुड़ने से पहले इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। समूह से जुड़ने के बाद उसने अपनी आजीविका को बढ़ाने की दिशा में सोचा और समूह के सामने बात रखी। समूह की सहायता से सुशीला लोधी ने संघमित्रा फाइनेंस से 50 हजार का ऋण लिया। अपनी बचत से 25 हजार रुपये मिलाकर सुशीला ने कुल 75 हजार की धनराशि से बड़े स्तर पर मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया। 25 हजार रुपये से शेड बनवाया, 50 हजार से 500 चूजे, दवा, दाना, डिब्बे जैसी मुर्गी पालन के लिए जरूरी चीजें खरीदी । पहली बार जब 35 चूजे मर गए , तो उसे बहुत दुःख हुआ, लेकिन इस बीच उसे इसी व्यवसाय से 5 हजार रुपये का लाभ भी हुआ। इसके बाद उसने 500 चूजे और खरीदे,। इस बात उसे एक महीने करीब 9 हजार रुपये का लाभ हुआ। आज उसके पास 900 चूजे हैं। मुर्गियों की संख्या बढ़ने से उसने एक नया शेड बनाया । अ ब वह दोगुने लाभ की उम्मीद कर रही हैं।इसके साथ ही वे संघमित्रा संस्था से लिया हुआ ऋण भी क्रमशः लौटा रही है ।
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किराने की दुकान से आजीविका
Ruby Sarkar
पन्ना जिले के गुनौर लोकेशन के जिगनी गांव में रहने वाली शांति बाई का परिवार बहुत गरीब था। पूजा तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह से जुड़ने से पहले शांति बाई और उनके पति मजदूरी कर जीवन यापन करते थे। आर्थिक अभाव के कारण इनके बच्चे स्कूल भी नहीं जाते थे। समूह से जुड़ने के बाद शांति बाई ने समूह की बचत से ऋण लिया और अपने घर में छोटी सी किराने की दुकान खोल ली, जिसमें वे रोजमर्रा की चीजों के साथ पान भी बेचने लगी। इस दुकान से उसकी आर्थिक स्थिति थोड़ी सुधरी । इसके बाद शांतिबाई ने संघमित्रा से 16 फीसदी वार्षिक ब्याज दर से 10 हजार रुपये का लोन लिया। अब वह गांव के नजदीकी हाट बाजार से दुकान के लिए सामान खरीद कर लाती हैं और उसे दुकान में रखकर बेचती है । इसमें दैनिक उपयोग की कोल्डड्रिंक्स, चाय तथा पान आदि शामिल है । दुकान खुलने के बाद से अब तक शांति बााई की आमदनी प्रतिमाह 5 हजार से 6 हजार रुपये तक हो गई है। शांतिबाई ने संघमित्रा से लिया ऋण भी चुका दिया है तथा अगले ऋण के लिए आवेदन भी दिया है। अब शांति बाई का मध्यांचल ग्रामीण बैंक में स्वयं का बचत खाता भी है। इनके बच्चे अब स्कूल जाते हैं और इन्होने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अपने घर में शौचालय बनाने के लिए आवेदन दिया है।
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मनिहारी दुकान को बनाया आजीविका का साधन
Ruby Sarkar
पन्ना जिले के पड़रियाकलां गांव में रहने वाली मालती लखेरा की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। कहते है, जिंदगी हर किसी को एक मौका जरूर देती है । मालती को भी ज्ञान एकता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्यता के रूप में एक मौका मिला और उसने समूह से एक हजार रुपये का लोन लिया। इस राशि से उसने मनिहारी दुकान खोली। एक माह में ही उसें इतनी आमदनी हो गई, कि उसने ऋण वापस कर दिया। अगली बैठक में मालती ने फिर 5 हजार का ऋण लिया और दुकान बढ़ाने के साथ सिलाई मशीन खरीद ली। अब मालती प्रतिदिन डेढ़ सौ से ढाई सौ रुपये तक कमा लेती हैं। काम में उनके पति भी सहयोग करते हैं और अब नियमित आय होने से परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है।
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टीकमगढ़
इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचकर कमाया मुनाफा
Ruby Sarkar
महिलाएं किसी भी काम में पुरुषों से पीछे नहीं है । चाहे वह बिजली का सामान बेचने का काम ही क्यों न हो । जिसमें पुरुषों का एकाधिकार माना जाता है ।
टीकमगढ़ जिले के नैगुवां के सकेरा गांव में रानी लक्ष्मीबाई तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्य कविता और राजेश्वरी की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी। दोनों के पति मजदूरी करते थे, लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते मजदूरी भी कम आने लगी थी। समूह की बैठक में कविता और राजेश्वरी ने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई, तो समन्वयक सुनील कुमार रावत ने माइक्रो फाइनेंस के बारे में जानकारी दी। सभी सदस्यों की सहमति से लिंकेज कराकर आजीविका गतिविधि के बारे में बताया गया और फिर कविता तथा राजेश्वनी ने 20-20 हजार रुपये का लोन लिया। इस राशि से इन लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक सामग्री खरीद कर नैगुवां बस स्टैंड पर बेचना शुरू किया। इस कार्य से इन्हें प्रतिदिन 200 से लेकर 400 रुपये मिलने लगे, तो इनके घर की आर्थिक स्थिति काफी सुधर गई।
मछली पालन को बनाया आजीविका का ज़रिया
महिलाएं किसी भी काम में पुरुषों से पीछे नहीं है । चाहे वह बिजली का सामान बेचने का काम ही क्यों न हो । जिसमें पुरुषों का एकाधिकार माना जाता है ।
टीकमगढ़ जिले के नैगुवां के सकेरा गांव में रानी लक्ष्मीबाई तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्य कविता और राजेश्वरी की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी। दोनों के पति मजदूरी करते थे, लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते मजदूरी भी कम आने लगी थी। समूह की बैठक में कविता और राजेश्वरी ने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई, तो समन्वयक सुनील कुमार रावत ने माइक्रो फाइनेंस के बारे में जानकारी दी। सभी सदस्यों की सहमति से लिंकेज कराकर आजीविका गतिविधि के बारे में बताया गया और फिर कविता तथा राजेश्वनी ने 20-20 हजार रुपये का लोन लिया। इस राशि से इन लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक सामग्री खरीद कर नैगुवां बस स्टैंड पर बेचना शुरू किया। इस कार्य से इन्हें प्रतिदिन 200 से लेकर 400 रुपये मिलने लगे, तो इनके घर की आर्थिक स्थिति काफी सुधर गई।
मछली पालन को बनाया आजीविका का ज़रिया
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ के दिगौड़ा लोकेशन के मुरारा गांव में बुन्देलखण्ड इंदिरा तेजस्विनी महिला महासंघ दिगौड़ा के माध्यम से संघमित्र फाइनेंस कम्पनी द्वारा मोना तेजस्विनी स्व सहायता समूह मुहारा को आजीविका गतिविधि अंतर्गत ऋण मुहैया कराया गया। जिसमंे समूह की सदस्य जूली केवट एवं शान्ति केवट ने 30,000 रुपये की धनराशि संयुक्त रूप से उपलब्ध कराई गई । इस राषि का उपयोग दोनों महिलाओं ने अपने परंपरागत व्यवसाय मछली के पालन व्यवसाय के लिए किया।
जूली एवं शान्ति गॉव मुहारा के उस परिवार से हैं, जहॉ महिलाओं को गाँव के हाट बाजार मे जाने की मनाही है । लेकिन जब जूली और शान्ति ने समूह की बैठक मे संघमित्र फाइनेंस की बात सुनी, तो दोनों ने अन्य सदस्यों की तरह अपने लिए भी ऋण के लिए आवेदन किया। जूली ने 20 हजार तथा शान्ति ने 10 हजार रुपये ऋण की मांग संघमित्रा फाइनेंस से की । राशि मिलने पर दोनों ने बल्देवगढ़ के तालाब से 20 हजार रुपये की मछली खरीदा और उसे झाँसी की मछली मंडी में बेचा। मछली बेचने से दोनों को 4 हजार रुपये का फायदा हुआ। जूली और शांति हर सप्ताह शनिवार के दिन बल्देवगढ़ के तालाब से मछली लोड कराकर रविवार की सुबह झाँसी की मछली मंडी में अपना माल बेचती हैं। साथ ही दोनों समय पर ऋण की मासिक किस्त भी अदा कर रही हैं।
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मुर्गी पालन से सुधरी आर्थिक स्थिति
टीकमगढ़ के दिगौड़ा लोकेशन के मुरारा गांव में बुन्देलखण्ड इंदिरा तेजस्विनी महिला महासंघ दिगौड़ा के माध्यम से संघमित्र फाइनेंस कम्पनी द्वारा मोना तेजस्विनी स्व सहायता समूह मुहारा को आजीविका गतिविधि अंतर्गत ऋण मुहैया कराया गया। जिसमंे समूह की सदस्य जूली केवट एवं शान्ति केवट ने 30,000 रुपये की धनराशि संयुक्त रूप से उपलब्ध कराई गई । इस राषि का उपयोग दोनों महिलाओं ने अपने परंपरागत व्यवसाय मछली के पालन व्यवसाय के लिए किया।
जूली एवं शान्ति गॉव मुहारा के उस परिवार से हैं, जहॉ महिलाओं को गाँव के हाट बाजार मे जाने की मनाही है । लेकिन जब जूली और शान्ति ने समूह की बैठक मे संघमित्र फाइनेंस की बात सुनी, तो दोनों ने अन्य सदस्यों की तरह अपने लिए भी ऋण के लिए आवेदन किया। जूली ने 20 हजार तथा शान्ति ने 10 हजार रुपये ऋण की मांग संघमित्रा फाइनेंस से की । राशि मिलने पर दोनों ने बल्देवगढ़ के तालाब से 20 हजार रुपये की मछली खरीदा और उसे झाँसी की मछली मंडी में बेचा। मछली बेचने से दोनों को 4 हजार रुपये का फायदा हुआ। जूली और शांति हर सप्ताह शनिवार के दिन बल्देवगढ़ के तालाब से मछली लोड कराकर रविवार की सुबह झाँसी की मछली मंडी में अपना माल बेचती हैं। साथ ही दोनों समय पर ऋण की मासिक किस्त भी अदा कर रही हैं।
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मुर्गी पालन से सुधरी आर्थिक स्थिति
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ के मलगुवां गांव की रहने वाली जनक बाई, संतोषी माता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। इनके समूह में 7 वर्ष की बचत के फलस्वरूप 20 हजार की राशि जमा हो पाई थी, लेकिन इतनी राशि से समूह की 13 महिला सदस्यों के लिए आजीविका गतिविधि प्रारंभ करना संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने समूह का सीसीएल प्रस्ताव बनाकर संघमित्रा फाइनेंस को दिया। यहां से इन्हें 75 हजार रुपये का ऋण लिया , इसके बाद समूह की 28 महिलाओं ने मिलकर एक साथ मुर्गी पालन करने का निर्णय लिया। आज इनके पास करीब 15 हजार चूजे हैं और ये रोजाना 100 से डेढ़ हजार रुपये तक चूजे बेच लेती हैं। इससे जहां उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, वहीं इन्हें क्षेत्र में एक नई पहचान भी मिली है।
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बीज की दुकान बनी आय का जरिया
टीकमगढ़ के मलगुवां गांव की रहने वाली जनक बाई, संतोषी माता तेजस्विनी महिला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। इनके समूह में 7 वर्ष की बचत के फलस्वरूप 20 हजार की राशि जमा हो पाई थी, लेकिन इतनी राशि से समूह की 13 महिला सदस्यों के लिए आजीविका गतिविधि प्रारंभ करना संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने समूह का सीसीएल प्रस्ताव बनाकर संघमित्रा फाइनेंस को दिया। यहां से इन्हें 75 हजार रुपये का ऋण लिया , इसके बाद समूह की 28 महिलाओं ने मिलकर एक साथ मुर्गी पालन करने का निर्णय लिया। आज इनके पास करीब 15 हजार चूजे हैं और ये रोजाना 100 से डेढ़ हजार रुपये तक चूजे बेच लेती हैं। इससे जहां उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, वहीं इन्हें क्षेत्र में एक नई पहचान भी मिली है।
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बीज की दुकान बनी आय का जरिया
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ जिले के लोकेशन मडिया केे ग्राम बोडेरा में हरदौल तेजस्विनी स्व सहायता समूह की सदस्या जयन्ती कुशवाहा द्वारा संघमित्रा ग्रामीण फाइनेंस से 38 हजार रुपये का ऋण लिया और इससे सब्जी के बीज की दुकान खोली। अब इस दुकान मंे रोज दो हजार रुपये की बिक्री हो रही है। इसी आय से जयन्ती ने बीज की दुकान के साथ किराना दुकान भी खोल ली है। आज जयन्ती 5 हजार रुपये प्रतिमाह कमा रही है ।
केवल बीज ही नहीं सब्जी व्यवसाय से भी केाई आत्मनिर्भर बन सकता है । यह साबित किया रमाबाई ने । टीकमगढ़ जिले के बलदेवगढ़ के ग्राम चंदूली की रहने वाली रामाबाई आदिवासी की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। पति का स्वास्थ्य लंबे समय से खराब चल रहा था जिससे आय के साधन लगभग समाप्त हो चुके थे। एक दिन देवेन्द्र अहिरवार के द्वारा हिंगलाज माता समूह की बैठक ली जा रही थी जिसमें सदस्य रामा ने अपनी आपबीती सुनाई। फेडरेशन स्टाफ देवेन्द्र अहिरवार ने समूह में संघमित्रा माइक्रो फाइनेंस ऐजेन्सी से ऋण लेकर अजीविका गतिविधि किये जाने के बारे में उसे विस्तार से बताया। सदस्यों की सहमति से रामाबाई को संघमित्रा से 20,000 रुपये का ऋण मिला, जिससे उसने सब्जी का व्यवसाय प्रारंभ किया। आज वह बल्देवगढ स्टेंड पर सब्जी बेचती है, जिससे उसे दिन में 600 से 700 रुपये की आय हो रही है। सब्जी का व्यवसाय से ठीक ठाक आमदानी के बाद रामा अपने पति का इलाज झांसी जिले में जाकर करा रही है । इसके साथ ही उसने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया है।
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पलायन छोड़ गांव में ही तलाशी आजीविका
टीकमगढ़ जिले के लोकेशन मडिया केे ग्राम बोडेरा में हरदौल तेजस्विनी स्व सहायता समूह की सदस्या जयन्ती कुशवाहा द्वारा संघमित्रा ग्रामीण फाइनेंस से 38 हजार रुपये का ऋण लिया और इससे सब्जी के बीज की दुकान खोली। अब इस दुकान मंे रोज दो हजार रुपये की बिक्री हो रही है। इसी आय से जयन्ती ने बीज की दुकान के साथ किराना दुकान भी खोल ली है। आज जयन्ती 5 हजार रुपये प्रतिमाह कमा रही है ।
केवल बीज ही नहीं सब्जी व्यवसाय से भी केाई आत्मनिर्भर बन सकता है । यह साबित किया रमाबाई ने । टीकमगढ़ जिले के बलदेवगढ़ के ग्राम चंदूली की रहने वाली रामाबाई आदिवासी की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। पति का स्वास्थ्य लंबे समय से खराब चल रहा था जिससे आय के साधन लगभग समाप्त हो चुके थे। एक दिन देवेन्द्र अहिरवार के द्वारा हिंगलाज माता समूह की बैठक ली जा रही थी जिसमें सदस्य रामा ने अपनी आपबीती सुनाई। फेडरेशन स्टाफ देवेन्द्र अहिरवार ने समूह में संघमित्रा माइक्रो फाइनेंस ऐजेन्सी से ऋण लेकर अजीविका गतिविधि किये जाने के बारे में उसे विस्तार से बताया। सदस्यों की सहमति से रामाबाई को संघमित्रा से 20,000 रुपये का ऋण मिला, जिससे उसने सब्जी का व्यवसाय प्रारंभ किया। आज वह बल्देवगढ स्टेंड पर सब्जी बेचती है, जिससे उसे दिन में 600 से 700 रुपये की आय हो रही है। सब्जी का व्यवसाय से ठीक ठाक आमदानी के बाद रामा अपने पति का इलाज झांसी जिले में जाकर करा रही है । इसके साथ ही उसने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया है।
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पलायन छोड़ गांव में ही तलाशी आजीविका
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ के नैगुवां लोकेशन के पनिहारी गांव में सूखा पड़ने के कारण कई लोग पलायन कर रहे थे। रतनगढ़ वाली माता तेजस्विनी स्व सहायता समूह के कुछ सदस्यों ने भी रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने की बात कही, लेकिन समूह की बैठक के दौरान कर्मचारियों ने सदस्यों को गांव में ही रहकर कोई आजीविका तलाशने को कहा। उन्हें संघमित्रा माइक्रो फाइनेंस से कम ब्याज पर बचत राशि का 4 गुना तक ऋण मुहैया कराने की बात कही। तब सदस्यों ने दस्तावेज के आधार पर ऋण के लिए आवेदन दिये, जिसमें 80 हजार का ऋण प्राप्त हुआ। इसके बाद रजनी अहिरवार, राजकुमारी अहिरवार, सावित्री सौंर और तेजा अहिरवार ने आजीविका गतिविधि से जुड़कर ईंट भट्टा एवं किराने की दुकान खोलने के लिए 20-20 हजार रुपये का ऋण लिया और व्यवसाय शुरू कर दिया। आज यही महिलाएं एक सफल व्यवसायी हैं । महिलाएं यहां 4 रुपये प्रति ईंट के हिसाब से बेच रही हैं ।
इसी तरह जिले के जतारा लोकेशन के बाजितपुर गांव की सविता कुम्हार भी अपनी आर्थिक बदहाली से इतनी परेशान थी, कि उसने गांव छोड़कर पलायन करने का मन बना लिया था। लेकिन जय मां संतोषी स्व सहायता समूह से जुड़ने के बाद समूह के अन्य महिलाओं ने उसका मनोबल बढ़ाया और गांव में ही कोई व्यवसाय करने की सुझाव दिया। इसके बाद सविता ने संघमित्रा फाइनेंस से 10 हजार का ऋण लिया और किराने की दुकान खोली। अब वह प्रतिदिन डेढ़ से 200 रुपये कमा लेती हैं। उसका मन अब बदल गया है । वह गांव में ही रहकर सलीके से अपना घर चला रही हैं।
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माइक्रो फाइनेंस से आत्मनिर्भरता
टीकमगढ़ के नैगुवां लोकेशन के पनिहारी गांव में सूखा पड़ने के कारण कई लोग पलायन कर रहे थे। रतनगढ़ वाली माता तेजस्विनी स्व सहायता समूह के कुछ सदस्यों ने भी रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने की बात कही, लेकिन समूह की बैठक के दौरान कर्मचारियों ने सदस्यों को गांव में ही रहकर कोई आजीविका तलाशने को कहा। उन्हें संघमित्रा माइक्रो फाइनेंस से कम ब्याज पर बचत राशि का 4 गुना तक ऋण मुहैया कराने की बात कही। तब सदस्यों ने दस्तावेज के आधार पर ऋण के लिए आवेदन दिये, जिसमें 80 हजार का ऋण प्राप्त हुआ। इसके बाद रजनी अहिरवार, राजकुमारी अहिरवार, सावित्री सौंर और तेजा अहिरवार ने आजीविका गतिविधि से जुड़कर ईंट भट्टा एवं किराने की दुकान खोलने के लिए 20-20 हजार रुपये का ऋण लिया और व्यवसाय शुरू कर दिया। आज यही महिलाएं एक सफल व्यवसायी हैं । महिलाएं यहां 4 रुपये प्रति ईंट के हिसाब से बेच रही हैं ।
इसी तरह जिले के जतारा लोकेशन के बाजितपुर गांव की सविता कुम्हार भी अपनी आर्थिक बदहाली से इतनी परेशान थी, कि उसने गांव छोड़कर पलायन करने का मन बना लिया था। लेकिन जय मां संतोषी स्व सहायता समूह से जुड़ने के बाद समूह के अन्य महिलाओं ने उसका मनोबल बढ़ाया और गांव में ही कोई व्यवसाय करने की सुझाव दिया। इसके बाद सविता ने संघमित्रा फाइनेंस से 10 हजार का ऋण लिया और किराने की दुकान खोली। अब वह प्रतिदिन डेढ़ से 200 रुपये कमा लेती हैं। उसका मन अब बदल गया है । वह गांव में ही रहकर सलीके से अपना घर चला रही हैं।
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माइक्रो फाइनेंस से आत्मनिर्भरता
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ जिले के अनंतपुरा लोकेशन के नयाखेरा में रामा तेजस्विनी स्व सहायता समूह ने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं। समूह में 11 अनुसूचित जाति की महिलाएं जुड़ी हैं। प्रारंभ से ही इन महिलाअेां ने प्रति सदस्य 5 रुपये बचत करना शुरू किया। रामा तेजस्विनी स्व सहायता समूह ने 500 रुपये में बैंक में खाता खुलवाया । इसके बाद सदस्यों ने बचत राशि बढ़ाकर 100 रुपये प्रतिमाह कर दिये। वर्तमान में प्रति सदस्य बचत राशि 3,900 रुपये जमा हो गई है और समूह की कुल बचत 45,000 रुपये हैं। समूह सदस्यों ने आजीविका प्रारंभ करने के लिए संघमित्रा ग्रामीण फाइनेंस से लगभग डेढ़ फीसदी ब्याज पर एक लाख,20 हजार रुपये ऋण लिया, उसमें से राम रती अहिरवार ने 25 हजार, वती बाई अहिरवार ने 10 हजार, भुमान बाई अहिरवार ने 20 हजार, गणेशी अहिरवार ने 15 हजार, रामकुंवर अहिरवार ने 15 हजार, खरगी अहिरवार ने 25 हजार और मीरा अहिरवार ने 10 हजार रुपये का लोन लिया। लोन की राशि से उन्होंने क्रमशः किराना दुकान, भैंस पालन, सिलाई मशीन तथा बकरी पालन का व्यवसाय प्रारंभ किये । यही व्यवसाय करते हुए आज सारी महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हैं।
इन महिलाओं ने कभी सोचा भी नहीं होगा, कि उन्हें यह रुपये ऋण के रूप में इतनी आसानी से मिल सकेगा। उनके सपनों को साकार करने में तेजस्विनी कार्यक्रम ने एक सेतु का काम किया ।
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जहां चाह वहां राह
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ जिले के अनंतपुरा लोकेशन के नयाखेरा में रामा तेजस्विनी स्व सहायता समूह ने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं। समूह में 11 अनुसूचित जाति की महिलाएं जुड़ी हैं। प्रारंभ से ही इन महिलाअेां ने प्रति सदस्य 5 रुपये बचत करना शुरू किया। रामा तेजस्विनी स्व सहायता समूह ने 500 रुपये में बैंक में खाता खुलवाया । इसके बाद सदस्यों ने बचत राशि बढ़ाकर 100 रुपये प्रतिमाह कर दिये। वर्तमान में प्रति सदस्य बचत राशि 3,900 रुपये जमा हो गई है और समूह की कुल बचत 45,000 रुपये हैं। समूह सदस्यों ने आजीविका प्रारंभ करने के लिए संघमित्रा ग्रामीण फाइनेंस से लगभग डेढ़ फीसदी ब्याज पर एक लाख,20 हजार रुपये ऋण लिया, उसमें से राम रती अहिरवार ने 25 हजार, वती बाई अहिरवार ने 10 हजार, भुमान बाई अहिरवार ने 20 हजार, गणेशी अहिरवार ने 15 हजार, रामकुंवर अहिरवार ने 15 हजार, खरगी अहिरवार ने 25 हजार और मीरा अहिरवार ने 10 हजार रुपये का लोन लिया। लोन की राशि से उन्होंने क्रमशः किराना दुकान, भैंस पालन, सिलाई मशीन तथा बकरी पालन का व्यवसाय प्रारंभ किये । यही व्यवसाय करते हुए आज सारी महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हैं।
इन महिलाओं ने कभी सोचा भी नहीं होगा, कि उन्हें यह रुपये ऋण के रूप में इतनी आसानी से मिल सकेगा। उनके सपनों को साकार करने में तेजस्विनी कार्यक्रम ने एक सेतु का काम किया ।
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जहां चाह वहां राह
Ruby Sarkar
भले ही दुनिया वैज्ञानिक तकनीकी व आर्थिक दृष्टिकोण से प्रगति की ओर अग्रसर हो, लेकिन अभी भी गांव की महिलाएं सभी देशों में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं । आधी आबादी अभी भी स्वावलंबन की ओर अग्रसर होने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं । उनकी इस लड़ाई को आसान बनाने के लिए सरकार ने तेजस्विनी जैसे कार्यक्रम शुरू कर उनका हौसला बढ़ाया है । टीकमगढ़ के जतारा लोकेशन के शाहपुरा गांव में रहने वाली ममता बाई ने जहां चाह वहां राह की कहावत को सही साबित कर दिखाया है। मां वैष्णो देवी स्वसहायता समूह से जुड़ने के बाद ममता बाई ने संघ मित्रा से 50 हजार रुपये का ऋण लिया। स्वयं के 10 हजार रुपये मिलाकर कुल 60 हजार रुपये में एक भैंस खरीदी। भैंस खरीदने के बाद से ममता की आर्थिक स्थिति में लगातार सुधार आने लगा । अब वह दूध बेचकर हर महीने 6 हजार से अधिक रुपये कमा लेती है ।
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गांव की सबसे बड़ी दुकान
गांव की सबसे बड़ी दुकान
Ruby Sarkar
टीकमगढ़ के जतारा लोकेशन के बाजीतपुरा गांव में रहने वाली लक्ष्मीबाई प्रजापति रतनगढ़ तेजस्विनी स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं। लक्ष्मी समूह की बचत 50 हजार रुपये थी। लक्ष्मी ने समूह से 5 हजार रुपये का ऋण लिया और छोटी सी किराने की दुकान खोली। इस दुकान से उसे रोजाना करीब 50 रुपये की आय होने लगी। इस आय से उसने 5 हजार रुपये का ऋण चुकाया और दोबारा 10 हजार रुपये ऋण लिये। इस राशि से लक्ष्मीबाई ने एक जनरल स्टोर खोल ली है और अब उसने रोजाना करीब 300 रुपये की आय होने लगी है। लक्ष्मी की दुकान बढ़़कर अब करीब एक लाख रुपये की हो गई है और आज यह दुकान गांव में सबसे बड़ी है। इस तरह समूह की सहायता से लक्ष्मीबाई ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लिया है।
टीकमगढ़ के जतारा लोकेशन के बाजीतपुरा गांव में रहने वाली लक्ष्मीबाई प्रजापति रतनगढ़ तेजस्विनी स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं। लक्ष्मी समूह की बचत 50 हजार रुपये थी। लक्ष्मी ने समूह से 5 हजार रुपये का ऋण लिया और छोटी सी किराने की दुकान खोली। इस दुकान से उसे रोजाना करीब 50 रुपये की आय होने लगी। इस आय से उसने 5 हजार रुपये का ऋण चुकाया और दोबारा 10 हजार रुपये ऋण लिये। इस राशि से लक्ष्मीबाई ने एक जनरल स्टोर खोल ली है और अब उसने रोजाना करीब 300 रुपये की आय होने लगी है। लक्ष्मी की दुकान बढ़़कर अब करीब एक लाख रुपये की हो गई है और आज यह दुकान गांव में सबसे बड़ी है। इस तरह समूह की सहायता से लक्ष्मीबाई ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लिया है।
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