Monday, June 12, 2023

मजदूरी भले ही छूट जाए, पर पानी तो महिलाओं को ही ढोना है





मजदूरी भले ही छूट जाए, पर पानी तो महिलाओं को ही ढोना है

रूबी सरकार

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पीने एवं निस्तार का पानी जुटाने का जिम्मा घर की महिला सदस्यों पर हैजबकि उस पानी का इस्तेमाल  पुरुष भी करते हैं। पानी चाहे जितनी दूर से लाना पड़े, 7 महीने की गर्भवती  हो या 8 महीने की किशोरियों की स्कूल छूट जाए फिर भी सिर पर घड़ा रखकर या साकिल पर 15-15 लीटर के प्लास्टिक के डिब्बे में पानी ढोते उन्हें ही देखा जाता है। पुरुषवादी सोच का यही  नजरिया है कि पीने और निस्तार का पानी लाना औरतों का काम है और सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम पुरुषों के जिम्मे हैं।

मध्यप्रदे की राजधानी भोपाल से करीब 140 किलोमीटर दूर देवास जिले की टॉक खुर्द विकासखंडगांव पिपलिया की सविता परिहार बताती है कि उसकी बहन सविता परिहार पढ़ने में बहुत तेज थीलेकिन हर रोज दो किलोमीटर घाटी का सफर तय कर उसे रसोई के लिए हैंडपंप से पानी लाना पड़ता था इससे उसकी स्कूल प्रायः छूट जाया करती थी। इस तरह कविता बस आठवीं तक ही पढ़ पाई। पानी की वजह से उसकी पढ़ाई छूट गई जबकि भाई घर पर बैठा रहता थालेकिन उसे कभी किसी ने पानी लाने के लिए नहीं कहा। कविता की 16 की उम्र में शादी कर दी जाती है और उसकी छोटी बहन सविता  यह काम करने लगती है। इस गांव में करीब 300 परिवार है और सभी  परिवार की यही कहानी हैँ।  

देवास से कुछ ही दूरी पर सोनकक्ष विकासखंड है। यहां  बुदलाई गांव की महिलाएं तीन किलोमीटर दूर हैण्डपम्प से इसी प्रकार रसोई के लिए पानी लाती है। इस गांव की किरण मालवीय कहती हैं कि कभी-कभी तो छोटे बच्चे को घर पर ताले में बंद करके पानी लेने जाना पड़ता है। हैण्डपम्प पर अगर बड़ी लाइन लगी हो तो रूकना भी पड़ता है। इस तरह दिन में चार-पांच घंटा पानी ढोने में चला जाता हैँ। बाकी घर का सारा काम तो महिला को ही करना  है।  समय पर मर्द को खाना न मिलेतो मर्द पहाड़ सर पर उठा लेते हैंतुरंत झगडा शुरू हो जाता है किरण कहती है  कि उसका सातवां महीना चल रहा थापरंतु क्या मजाल की पति रसोई के लिए पानी लाएं। कहते है लोग देखेंगे तो जोरू का गुलाम है। इससे उसका अपमान होगा।  समाज में उसकी नाक कट जाएगी।  

राधाबाई पटेल मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की पजरिया गांव की हैं। वह कहती है कि हमारे गांव की किशोरियां और औरतें बैलगाड़ी से पानी लाती है। 12-12 साल की लड़कियां यही करती है। आपको स्कूल यूनिफॉर्म में पानी लाते लड़कियां सड़कों पर दिख जाएगी। हैण्डपम्पकुआं जहां पानी मिल जाए। वहीं से भर लेते है। पानी की वजह से औरतों के बीच अक्सर झगड़े भी हो जाते हैं। राधाबाई से पूछा गया कि आदमी को क्यों नहीं इस काम में लगाती। उसने कहा खेती कौन करेगा । घर कैसे चलेगा। आदमी बाहर का काम करता है। जब पूछा गया कि पानी भी तो बाहर से ही लाती हो! सने कहा यह तो घर के लिए ला रही हूं । उसका यह तर्क मेरे समझ में नहीं आई ।

इंदौर से 30 किलोमीटर दूर गोवाखेड़ी गांव की पवित्र विश्वकर्मा के पति सुबह दुकान के लिए निकल जाते हैंइसलिए पानी का इंतजाम उसे ही करनी है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की 70 वर्षीय अतरवती के पैर में तो पानी लाते-लाते पैर में छाले पड़ गए है।

पानी की वजह से मजदूरी छूटी

इसी तरह भोपाल से सटे बुदनी तहसील से 10 किलोमीर दूर तालपुरा गांव में नर्मदा जल पहुंचाने का संकल्प तो पूरा हो गया बावजूद इसके पानी का संकट कम नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया, 20 साल पहले डीपीआर बनाई गई। तब से लेकर अब तक आबादी में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। इसलिए टंकी छोटी पड़ गई। बात वहीं अटक गई। दूर हैण्डपम्प से पानी लाना पड़ रहा है। यहां लोगों के पास खेती के लिए जमीन तो है नहींजमीन सब कंपनी के पास चली गईलिहाजा सुबह-सुबह सभी को मजदूरी के लिए निकलना पड़ता है। ऐसे में पानी के लिए औरतों को अपनी मजदूरी और लड़कियो को अपना स्कूल छोड़ना पड़ता है। इसी गांव की सुशीलाबाई बताती है कि गांव में 5 हैण्डपम्प और चार कुँए हैलेकिन एक को छोड़कर सभी हैंडपंप सूखे पड़े हैं। कुओं में पानी नहीं है। गर्मी में तो एक भी हैंडपंप पानी नहीं उगलता।

दो करोड़ आबादी वाले बुंदेलखंड की सूखे की कहानी किसी से छिपी नहीं है।  यहां  मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बार्डर पर बसा शेखर गांव है। यहां सहरिया जनजाति की 60 वर्षीय रामवती बताती है कि उनकी चौथी पीढ़ी हैजो पानी की दिक्कतों से दो-चार हो रही है। यहां एक किलोमीटर दूर एक तालाब हैजहां से रसोई के लिए मीठा पानी लाना पड़ता है।  सुबह के लिए रात को ही पानी लाते है। रास्ता जंगल से होकर गुजरता है, लिहाजा महिलाएं समूह में जाती हैं। यही की रति कहती हैं कि सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे पानी के लिए देना पड़ता है। पास ही  500 मछुवा परिवारों का भगुवा गांव है। यहां महिलाएं रात-रात भर हैण्डपम्प के सामने लाईन लगाकर बैठी रहती हैं। इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा! घर के पुरुष दिन भर काम करने के बाद थक कर सो जाते हैं।

सुनीता कहती है कि हैण्डपम्प से एक-एक घंटे बाद केवल दो गुंडी पानी  निकलता है।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह बताते हैं कि पीने और निस्तार की पानी लेकर महिलाओं की परेशानी को देखते हुए अलग से जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है। इस मंत्रालय ने जलापूर्ति के लिए मध्यप्रदेश के लिए कार्ययोजना तैयार की है। इसे राज्य के साथ साझेदारी में पूरा किया जा रहा है जिसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर निर्धारित  गुणवत्ता का पर्याप्त पेयजल उपलब्ध हो सके। ग्रामीण घरों में नियमित और लंबी अवधि तक स्वच्छ नल जल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए समुदायों को अपने गांव में उसकी जिम्मेदारीसंचालन और प्रबंधन दिया जा रहा है।  फिलहाल सौ रुपए का प्रति घर अंदान वसूली की जिम्मेदारी महिला समिति को दी गई है। इस तरह सरकार ने भी पेयजल और निस्तार की पानी की समस्या केवल महिलाओं की समस्या मानकर उनके हाथों में यह काम सौंप दिया है। इसमें भी महिलाओं को ही समय देना पड़ रहा है।   

 वहीं समाज विज्ञानी संतोष कुमार द्विवेदी बताते हैं कि घर-घर नल जल को लोकलुभावन योजना को लोग शंका की नजर से देख रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि भारी भरकम पूंजी और शुल्क पर आधारित यह योजना जो आज पीने और निस्तार का पानी  सिर पर ढोने वाली महिलाओं के लिए एक बड़ी सहूलियत के तौर पर प्रचारित की जा रही है  वह महिलाओं के लिए भविष्य की तबाही न बन जाए। मासिक शुल्क पर आधारित नल जल योजना को लेकर न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं ने शंका हैबल्कि समाज विज्ञानी भी इस पर गंभी सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि हैंडपंप और बोरवेल की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोत खासकर कुंएबावड़ी और तालाब न सिर्फ उपेक्षा के शिकार हुए है बल्कि रख-रखाव के अभाव में खत्म हो गए ग्रामीण परिवार जब घरघर नल जल योजना का शुल्क नहीं जमा कर पाएंगेतब क्या होगा! देखने में आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में यदि कुछ परिवार बिजली का बिल जमा नहीं जमा कर पाते तो पूरे गांव की बिजली काट दी जाती है। संविधान और न्याय का फलसफा यह है कि दोषी भले ही छूट जाए पर किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन बिजली के मामले में गांव के वे निर्दोष परिवार  भी सजा पाते हैं जो हर माह नियम से बिजली बिल भरते हैं।

उन्होंने कहा कि कहीं नल जल योजना में भी ऐसा किया गया तब क्या होगा! नल जल आपूर्ति का मासिक शुल्क महिलाएं अपनी मजदूरी के पैसे से इकट्ठा कर चुकाती है। शुल्क नहीं जमा कर पाने की स्थिति में यदि जलापूर्ति बाधित होगीतब ग्रामीण महिलाएं क्या करेंगी! उनके सामने पीने एवं निस्तार का पानी जुटाने का फिर दायित्व आन पड़ेगा और यदि तल जल योजना के कारण समीपी जल स्रोत पीने योग्य पानी प्रदान करने की स्थिति में नहीं बचे तो उन्हें पहले की स्थिति में पानी के लिए कहीं ज्यादा दूर तक भटकने की नौबत आ सकती है।

                                               25 December 2022



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