राजनीति के अखाड़े में बच्चों का इस्तेमाल
रूबी सरकारमध्यप्रदेश के 347 निकायों में दो चरणों में चुनाव होने है। पहले चरण में 133 और दूसरे चरण में 214 निकायों पर वोटिंग होगी। भोपाल में पहले चरण में 6 जुलाई को वोटिंग होनी है। इस दौरान प्रचार-प्रसार का शोर चरम पर है। राजधानी मे हर तरफ राजनीतिक दल शहर में अपनी सरकार बनाने को लेकर मतदाताओं के बीच अपनी बात और उपलब्धियां रख रहे हैं ।
इसी कड़ी में नेताओं ने सोचा बच्चों के साथ संवाद कर परिवार के बड़े मतदाताओं को प्रभावित किया जा सकता है। इसके लिए उन संगठनों की तलाष की, जो बस्तियों में बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। संगठनों ने सेफ सिटी इनिसिएटिव से जुड़े शहरी गरीब बस्तियों मे रहने वाले बच्चों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से चर्चा का आयोजन किया। मकसद बताया गया कि बच्चे अपने-अपने क्षेत्रों की समस्याओं पर प्रत्याषियों से बात करेंगे।
बच्चे अपनी समस्याओं को लेकर प्रत्याषियों से बात करते इससे पहले ही अलग-अलग पार्टियों ने अपना रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करना शुरू कर दिया, जो बच्चों के पल्ले नहीं पड़ा। शोर के बीच जब नेतागण आपस में तू-तू-मैं-मैं करने लगे, तब बच्चों ने बायकाॅट करना शुरू कर दिया । यहां नेताओं का दांव उल्टा पड़ गया।
बच्चों ने नेताओं के सामने तो नहीं , परंतु मीडिया के सामने अपनी बात जरूर रखी। कहा कि कहां तो हम लोग यहां अपने मन की बात रखने आए थे, परंतु यहां तो नेता ही अपने-अपने मन की बात कह रहे हैं। जिससे बच्चों का कुछ लेना देना नहीं है। बच्चों ने कहा कि वे वोटर भी नहीं है।
राहुल नगर बस्ती का ललित बिघाने ने बताया कि हमारे बस्ती में स्ट्रीट लाइट नहीं जलती। बरसात के दिनों में नालियां उफनती है । हर साल उफनती नाली एक बच्चे की जान ले लेती है। लेकिन चुने हुए पार्षदों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। स्ट््रीट लाइट न जलने से बस्ती के आवारा लोग जुआ खेलते है, महिलाओं का उस रास्ते से गुजरता मुष्किल कर देते है। लड़कियां ट्यूषन के लिए नहीं निकल सकती । सड़कें खराब है। आखिर इतना सारा बजट विकास के लिए खर्च होता है, तो फिर हमारी बस्ती विकास से क्यों पीछे है। हम तो प्रत्याषियों से यही कहने आए थें परंतु यहां हमारा सुनने वाला कोई नहीं हैं सिर्फ भाजपा-कांग्रेस और आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
इसी तरह शंकराचार्य झुग्गी बस्ती की नरगिस ने बताया कि हमारे बस्ती में पक्की सड़क नहीं है । कई बार बस्ती वालों ने आवेदन दिया, परंतु कोई सुनवाई नहीं र्हुअ। यह सिर्फ हमारी बस्ती की बात नहीं है। राजधानी भोपाल के किसी भी झुग्गी में मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलेगी। सरकार ने हमें बसाया है, अब वही सरकार स्मार्ट सिटी के नाम हमें उजाड़ने की कोषिष में लगी है। बस्तीवाले हमेषा अस्थिरता में जीते है। उसने कहा कि हमलोग बहुत गरीब है। बावजूद इसके एक-एक पैसा जोड़कर सर पर छत बनाते है, लकिन जब घर उजाड़ने की बात सामने आती हैं तो दिल दहल जाता है। हमें स्थाई ठौर चाहिए। इन्हीं बातों को रखने हम यहां आए थे कि शायद जीतने के बाद पार्षद हमारे लिए कुछ बेहतर करे। लेकिन यहां आकर अफसोस ही हुआ। यहां नेता तो एक-दूसरे के लिए जहर उगल रहे हैं और हमें इसका भागीदार बना रहे हैं। नगमा ने गांधीनगर झुग्गी की समस्याओं पर चर्चा करते हुए कहा कि झुग्गी में हम सब जाति धर्म के लोग मिलजुल कर रहते हैं , परंतु राजनेता वहां भी नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं। स्कूलों की हालत खराब है। मध्यान्ह भोजन बच्चों को मिल नहीं पाता। शिक्षकों को तन्ख्वाह समय पर नहीं मिलती। बाकी बिजली, पानी, सड़क की समस्या तो जस की तस है ही। सारे घरों में टोटी लगी है, परंतु उसमें पानी नहीं आता । अलबत्ता पानी ढोने के चक्कर में लड़कियां स्कूल से ड््राप आउट जरूर हो रही हंै। हमारे बस्ती में कभी नेता दौरा नहीं करते, सोचा यहां बोलने का मौका मिलेगा तो सारी बातें कह दूंगी। ईष्वरनगर बस्ती की पल्लवी मोहवे ने क हा हमारे बस्ती में बच्चे स्कूल छोड़कर सब्जी का ठेला लगाते है। बेरोजगार इस कदर है कि युवा तनाव में जीते है। यहां के बच्चे पढ़ाई में कितना ही बेहतर हो परंतु बड़े स्कूलों में हमारा दाखिला नहीं होता। कोटे से अगर दाखिला हो भी जाए तो कागजों में उलझा देते है, जिससे दाखिला हो ही नहीं पाता । इस तरह पूरी एक पीढ़ी की पढ़ाई छूट नहीं है। घर से दूर स्कूल जाने के लिए हमारे पास साइकिल नहीं है। यहां तक कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी हमें सही तरीके नहीं मिल पाता। हमें बुलाया ही इसलिए गया था, कि हम अपनी इन्हीं बातों को नेताओं के सामने रख सके।
अब सवाल यह उठता है कि सामाजिक व्यवहार की जमीन रचने वालों को क्या इस बात की फिक्र है कि इस तरह कैसी भावी पीढ़ी का निर्माण हो रहा है? शायद यह उनकी चिंता में शुमार नहीं होगा, क्योंकि जिनका मकसद ही एक बड़े वर्ग को इसी मनःस्थिति में रहने दिया जाए। वे इस तरह के हालात को अपनी कामयाबी भी मान सकते हैं. लेकिन जब यही लोग हिंसक होने लगेंगे, तो कैसा समाज होगा? कोई भी समाजविज्ञानी राजनेताओं के जहर उगलने वाले भाषणों के बीच बच्चों को बैठाने की सलाह नहीं देगा।
बहरहाल झुग्गि बस्तियों में बच्चों की समस्याओं में मुख्य रूप से बच्चों से जुड़ी नषा, बाल श्रम, बस्ती मे असुरक्षा व साफ सफाई, खेल कूद के स्थान, पढ़ाई प्रमुख है। जिन पार्टियों के नेता बच्चों से संवाद करने पहुंचे थे, उनमें भाजपा की प्रवक्ता नेहा बग्गा, कॉंग्रेस के भूपेन्द्र गुप्ता व संगीता शर्मा, आप से पंकज सिंह, सीपीआई के शैलेंद्र शैली सहित पार्षद पद के प्रत्याशी आदि शामिल थे, जिन्होंने
शहर के अर्बन प्लानिंग मे जहां मेट्रो और बड़ी इमारतों को लेकर प्लान की बात की, वहीं गरीबों के लिए बनने वाले मल्टियों मे बच्चों के पढ़ने की निजी जगह और खेल कूद के सुविधाजनक पार्क या मैदान बनाने का वचन दिया।
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