नशा मुक्ति के लिए सरपंच कलावती का संघर्ष
Ruby Sarkar
ग्राम बोकना की सरपंच कलावती खंगार पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह अपने पति के साथ अपने जन्म स्थान बौकना में ही रहती हैं, जबकि शादी टीकमगढ़ जिले में हुई है । कला बाई खेती -किसानी के माध्यम से अपने छोटे से परिवार का भरण पोषण करती हैं। तीसरी तक पढ़ी कला बाई को सरपंच चुने जाने से पहले पंचायत के कामों की कोई तर्जुबा नहीं था । समूह की महिलाओं ने चुनाव लड़ाने का फैसला लिया और वह तैयार हो गई । उसके व्यवहार और सरल स्वभाव ने उसे जीता भी दिया ।
कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि न होने से ग्राम सभा की बैठकों में समूह की महिलाओं के साथ उपस्थित होती रही। इस तरह धीरे-धीरे वह पंचायत के कामकाज को समझने लगी । उसे समझ में आने लगा, कि एक महिला होने के नाते उसे महिलाओं के मुद्दों को आगे लाना होगा ।
इसके लिए उसने महिला नेतृत्व कार्यक्रमों में भागीदारी करने लगी। बैठक एंव प्रशिक्षण में उसकी सहभागिता से गांववाले भी उत्साहित थे । कला बाई को लगा कि वह सरपंच चुन ली गई हैं, अब उसे अपने पंचायत के विकास में अहम भूमिका निभानी होगी । उसके लिए रास्ता इतना आसान भी नहीं था, कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थी । सबसे बड़ी चुनौती तो गांव में बिक रही अवैध शराब थी, जिसकी वजह से परिवार बर्बाद हो रहे थे, बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट रही थी । उसने नया हथकंडा अपनाते हुए घोषणा की, कि पंचायत का काम वही व्यक्ति करेगा, नषे से दूर रहेगा । शराब पीकर आने वाले व्यक्तियों को पंचायत में काम नहीं मिलेगा ।
कलाबाई ने गांव में बिक रही अवैध शराब को बंद करवाने के लिए कलेक्टर से मिली । उन्हें इंटरफेस बैठक में आवेदन दिया । कला बाई के आवेदन के बाद तहसील बड़ामलहरा में अवैध शराब की दुकानों पर रेड डाली गई, सरकार की ओर से खौफ पैदा किया गया, जिससे डरकर व्यापारियों ने अवैध शराब की दुकानें बंद रखें । जब मामला ठंडा पड़ गया, तो दोबारा शराब की दुकानें खुलने लगी । तब कला बाई ने समूह की महिलाओं को इकट्ठा किया और शराब की बोतलें तोड़ने लगी। इस तरह उसने अपने गांव में पूर्ण रूप से तो नहीं, लेकिन आंशिक रूप से अवैध शराब की बिक्री पर रोक जरूर लगा दी । इससे गांव में कुछ हद तक नशा खोरी कम हो गई। लेकिन इससे कला बाई का आत्मविश्वास बढ़ा और वह आगे बढ़कर चुनौती स्वीकारने का मन बनाया ।
उसने कई निर्माण कार्य भी करवाये, जैसे - पहले पंचायत बौंकना में पंचायत भवन नहीं था, क्योंकि पिछले सरपंच के कार्यकाल में आपसी विवाद के कारण पंचायत भवन के लिए जो जमीन निर्धारित की गई थी, वहां विवाद खड़ा हो गया था । कला बाई ने अपनी सूझबूझ से ग्राम सभा में इसे सर्वसम्मति से विद्यालय के पास की जमीन 30 हजार रुपए में स्वयं के नाम खरीद ली और बाद में ग्राम सभा की बैठक में उसे पंचायत के नाम दान कर दी। इसके बाद जमीन का विवाद खत्म हो गया । अब उसी भूमि पर ग्राम पंचायत भवन बना है ।
उसने अपने पंचायत में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया। लगातार वह गांव में मिनी पी.एच.सी. की स्थापना के लिए प्रयास करती रही। गांव में पेयजल की समस्या को देखते हुए उसने गांव में नल-जल योजना के अंतर्गत पेयजल का प्रस्ताव रखा । गांव में सी.सी. रोड एंव कपिल धारा के अंतर्गत कुएं बनाये । कला बाई अपनी उपलब्धियों का श्रेय प्रदेश में संचालित योजनाओं को देती है । उसका कहना है, कि योजनाएं बहुत है, हमें एक-दूसरे के टांग खींचने के बजाय इसका लाभ लेने की दिशा में काम करना चाहिए । जटिल परिस्थिति में भी आशाजनक बात यह है, कि प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं द्वारा जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करने और उसे मजबूत बनाने के लिए संघर्ष किया जा रहा है और उसमें उन्हें सफलता भी हासिल हो रही है । महिलाएं संघर्ष के साथ न सिर्फ अपनी पंचायत को नियम-कायदोे के अनुसार संचालित कर रही हैं, बल्कि सामाजिक न्याय की स्थापना भी कर रही हैं।
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