पंच रुक्मणी ने महिला हिंसा के खिलाफ उठाई आवाज
Ruby Sarkar73वें संविधान संशोधन के जरिए स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी के प्रावधान से स्थानीय स्वशासन और विकास में महिलाअेां की सहभागिता को सुनिश्चित हुई ही है, साथ ही इसने विकास की प्रचलित धारा को बदलने की कोशिश की है। इस प्रक्रिया से सामने आई विकास की नई अवधारणा सामाजिक न्याय, महिला अधिकार और समता पर आधारित है । यह स्पष्ट है कि पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में महिलाओं को कई अवसरों और अधिकारों से वंचित रखे जाने की परम्परा रही है । वे शिक्षा, संपत्ति और रोजगार के अधिकार से तो वंचित है ही साथ ही कई उन पर हिंसा की घटनाएं लगातार होती रहती है । इस दशा में जब पंचायत में महिलाओं के नेतृत्व की बात करते है, तो यह देखना जरूरी है कि क्या महिला पंचायत प्रतिनिधियों ने विकास की अपनी अवधारणा में महिला अधिकार, समता एवं हिंसा से मुक्ति के ध्येय को भी शामिल किया है ।
हरदा जिला के खिरकिया विकास खण्ड की पंचायत जामन्या खुर्द। मुख्यालय से 40 किमी की दूरी पर वनक्षेत्र में बसे इस आदिवासी बहुल गांव में महिला हिंसा की कई घटनाएं प्रकाश में आई थी। यहां घरेलू हिंसा से महिलाएं त्रस्त थी । कानून होने के बावजूद अज्ञानतावश इन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी। यहां जागरूकता लाना जनप्रतिनिधियों के लिए चुनौती भरा काम था । फिर भी पंचायत की महिला जनप्रतिनिधि इसके लिए विशेष रूप से प्रयास कर रही थी। साझा मंच से जुड़ी संध्या स्वयं घरेलू हिंसा की शिकार थी । पति का हर रोज शराब पीकर घर आना और उसे पीटना आम बात हो चुकी थी । रोज-रोज की मार से तंग आ चुकी संध्या यह नहीं चाहती थी, कि उसके घर की बात समाज के सामने उजागर हो और परिवार की बदनामी हो। इसी वजह से वह सालों से अपने ऊपर हो रहे जुल्म को चुपचाप सहती रही। इधर संध्या ज्यादा परेशान और कमजोर दिखने लगी थी । वह अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना चाहती थी,लेकिन हर रोज इस तरह मां को पीटते देख बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ने लगा था । संध्या कतई नहीं चाहती , कि उसके उपर हो रही हिंसा का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़े। बुधवार की साप्ताहिक हाट जब उसकी भेंट पंच रुक्मणी उपसरपंच लीला से हुई और उनलोगों ने उसकी हालत देखकर उससे पूछ लिया, कि तुम्हारी हालत अच्छी नहीं दिख रही है । इस अपनेपन से संध्या अपना दर्द छुपा नही पाई और एकाएक उसके आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे उसने अपनी पूरी कहानी दिल खोलकर सुना डाली। रुक्मणी ने कहा, इतनी जागरूक होने के बावजूद तुम यह सब कैसे सहती रही । अब तुम्हें यह सब सहन नहीं करना पड़ेगा । तुम्हें यह तय करना है, कि तुम क्या चाहिए । संध्या रूआसी होकर कहने लगी, मैं अदालत के चक्कर नहीं काटना चाहिए, अगर समझाने से बात बन जाये, तो बेहतर है । अगले बुधवार बाजार के दिन पंच रुक्मणी और गांव की अन्य महिलाएं संध्या के घर गईं और उसके पति को समझाया। पति प्रहलाद सारा दोष संध्या पर मढ़ दिया और कहा, कि संध्या मेरी एक भी बात नहीं सुनती है,अपने मन का करती हैै। महिलाओं ने उसे समझाया, कि घरेलू हिंसा कानूनी अपराध है और हिंसा करने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है । जेल भी जाना पड़ सकता है। पति ने कसम खाई, अब ऐसा नही करुंगा। इसके बाद कुछ समय तक तो उसने संध्या को प्रताडि़त नहीं किया, लेकिन यह लम्बा नहीं चला । उसने फिर से संध्या पर जुर्म ढाने लगा। पंच ने संध्या को समझाया, कि अगर वह राजी हों, तो पति के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज हो सकता है। इसमें पंचायत उसकी पूरी मदद करेगी । संध्या ने कहा, इसी घर पर रहकर अगर मुकदमा करेगी, तो उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया जाएगा, इसलिए वह मायके जाकर पति पर केस दर्ज करना चाहती है। इससे वह सुरक्षित रह सकती है । संध्या के मायके वालों ने भी उसका साथ दिया । तब संध्या ने पति के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवा दी । इसके बाद थाने में दोनों पक्षों की पेशी हुई। पुलिस से फटकार मिलने के बाद प्रहलाद ने ससुराल जाकर संध्या से वापस अपने घर चलने के लिए आग्रह किया, लेकिन संध्या नहीं मानी । उसने कहा, कि उसे शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर कर देना होगा, कि वह सुधर गया है, अब पहले जैसा नहीं रहा । तभी वह वापस आ सकती है। आखिरकार प्रहलाद को संध्या की शर्त माननी पड़ी। अदालत में आपसी समझौते के बाद संध्या वापस ससुराल आयी। संध्या बताती है कि उसके पति को सबक मिल गया है । उसने इसका सारा श्रेय पंचायत और महिला पंच को देती है। जिसने सूझ-बूझ और कानून का सहारा लेकर उसकी गृहस्थी को बचा लिया । वह कहती है, अगर पंचायत की महिलाएं सक्रिय नहीं होतीं, तो हिम्मत नहीं जुटा पाती ।
महिला पंचायत प्रतिनिधियों ने घरेलू हिंसा जैसी लड़ाई को अपने घर की दहलीज से शुरू कर पंचायत की चौखट तक ले गई और ग्राम सभा के जरिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए तथा महिलाअेां के साथ होने वाली हिंसा को रोकने की कोशिश की है।
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