आदिवासी महिलाओं ने की शौचालय निर्माण की पहल
Ruby Sarkar
भील आदिवासी बाहुल झाबुआ मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बड़ी धामनी गांव के हर घर में आज शौचालय है। यहां घरों में शौचालय होना एक बड़ी बात है। 60 वर्षीय लीज्जो बताती हैं, कि रोज शौच के लिए बाहर खेत में जाना पड़ता था। यह एक दुष्चक्र है। शौच के लिए बाहर जाना गंदगी से जुड़ी बीमारियों को जन्म देता है और फिर इलाज में खर्च की वजह से शौचालय बनवाने के लिए पैसा नहीं बचता। खुले में शौच के लिए जगह खोजना भी मुश्किल काम है। बहुत दूर जाना सुरक्षित नहीं होता। लीज्जो की तरह ही गांव के करीब 500 लोग खुले में शौच जाते हैं। लीज्जो बताती है, कि पहले गांव में ऐसी एक भी खुली जगह नहीं दिखती जहां मल न पड़ा हो। स्वास्थ्य पर इसका असर भी दिखने लगा । गांव के अधिकतर बच्चे कुपोषित हैं। गांव के लोगों के परिवार की मासिक आय का कोई भरोसा नहीं है, काम की तलाश में लोग पलायन करते हैं। जबकि इलाज का खर्च एक हजार रुपये के करीब आता है। इस दबाव में गांव वाले अपने बच्चों को गांव के झोलाछाप डॉक्टर या झाड़-फंूक कराने उनके पास ले जाते हैं, जो कम खर्चीला है। लीज्जो का कहना है, कि कुछ भी कर लीजिए, डॉक्टर के पास तो जाना ही पड़ेगा। और इस सब का कारण खुले में शौच और उससे होने वाली बीमारियां हैं।्
पीने का साफ पानी, स्वच्छता और शौचालय कुपोषण खत्म करने का महत्वपूर्ण कारक हैं। खुले में शौच के कारण कई बीमारियां जैसे- डायरिया, उल्टी-दस्त होती है, जो विशेषकर बच्चों में यह घातक है। इसका असर बच्चों के कद पर भी पड़ता है, जो अंततः कुपोषण को जन्म देता है।
गांव की विद्या बताती है, कि शौचालय की कमी की वजह से गांव में बीमारियां फैलती रही हैं और यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या है। गांव में हर कोई कहता है, कि उनका अस्पताल में
आना-जाना बढ़ गया है। इलाज पर जो खर्च होता है सो अलग! लोगों के अस्पताल पहुंचने का मुख्य कारण दस्त, आंत्रशोथ जैसी स्वच्छता संबंधित बीमारियां हैं।
इसलिए बड़ी धामनी गांव (थांदला) की विकास मंच समिति की महिलाओं ने खुले में शौच रोकने और हर घर में शौचालय निर्माण के लिए पंचायत में आवेदन दिया। थांदला विकासखंड के बड़ी धामनी, कोटरा और मुजाल तीन गांव की 162 महिलाओं की 15 समूह ने पहले ग्राम पंचायत में आवेदन दिया, लेकिन जब यहां बात नहीं बनी, तो विकास खण्ड तक जाकर शौचालय निर्माण के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया। ग्राम साथिन शांति बताती हैं, कि यहां भीलों के 91 फीसदी और दलितों के 71 फीसदी घरों में शौचालय नहीं था। स्वच्छता अभियान के तहत 15 समूह की महिलाओं ने मिलकर ग्राम सभा में 3 बार आवेदन दिया, जब बात नहीं बनी, तो आंदोलन किया और विकास खण्ड पर पहुंचकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी पीसी वर्मा को केवल शौचालय के लिए ही नहीं, बल्कि रपटा पुल, हैण्डपम्प, पानी की टंकी, सामुदायिक भवन , सीसी रोड और बिजली के लिए भी आवेदन और धरना भी दिया । इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वच्छ भारत मिशन का नारा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को देशवासियों ने मन की बात करते हुए कहा, कि महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के खुले में शौचमुक्त भारत बनाये । इसी उद्देश्य से देश में युद्ध स्तर पर शौचालय निर्माण हो । प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2019 तक स्वच्छ भारत मिशन के तहत हर घर में शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा है। इससे हम लोगों का काम थोड़ा आसान हो गया। इस तरह कोटरा, मुजाल और बड़ी धामनी को मिलाकर 350 से
अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ है। इससे बच्चे कम बीमार पड़ रहे हैं और डॉक्टर इलाज पर खर्च भी नहीं हो रहा है।
समूह की एनिमेटर विद्या भूरिया ने बताती है, हालांकि शौचालय बहुत ही छोटा है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई बहुत कम है, इसलिए लोगों को उसमें जाने में परेशानी हो रही है। उसने मुख्यमंत्री तक यह बात पहुंचाना चाहती है, कि जिनके पास पैसे हैं, वह तो अपनी तरफ से पैसे लगाकर शौचालय को बड़ा बना रहे हैं, लेकिन यहां बहुत सारे परिवार ऐसे है, जिनके पास शौचालय में लगाने के लिए पैसे नहीं है। ऐसे परिवारों की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री को ले लेनी चाहिए । दूसरी तरफ शौचालय के साथ एक छोटा सा पानी के लिए टैंक भी बनाया गया है। गांव में 24 हैण्डपम्प हैं, लेकिन गर्मी के दिनों में इन हैण्डपम्पों में से मात्र दो से ही पानी मिलता है। इसलिए यह व्यवहारिक नहीं लगता, कि दूर-दूर से पानी लाकर पहले टेंक को भरा जाए, उसके बाद शौचालय का इस्तेमाल किया जाये। विकास मंच की ही राधा ने बताया, कि बच्चों को कुपोषण और बीमारी से बचाने के लिए सालों से शौचालय निर्माण के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं। वह तो अच्छा हुआ, कि सरकार के एजेंडे में यह मुद्दा आ गया और हमारा काम आसान हो गया। राधा को भरोसा था, कि सरकार की ओर से यह काम जल्दी ही हो जायेगा ।
झाबुआ की कहानी मध्य प्रदेश के स्वच्छता अभियान का सटीक चित्रण करती हैं। मध्यप्रदेश में अच्छे प्रयास हुए हैं। इसके बावजूद आज भी पूरे मध्यप्रदेश में लाखों लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। जिसके कारण लोगों को कई सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। स्वच्छता की कमी सजा-ए-मौत की तरह है। भारत में होने वाली हर 10 मौतों में से एक स्वच्छता की कमी से जुड़ी है। विश्व में कुल 95 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जिनमें से 60 फीसदी भारतीय हैं। इस मामले में भारत , अफ्रीका के कई देशों से भी पीछे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार, अफ्रीका के तीन देशों नाइजीरिया में 25 फीसदी, इथियोपिया में 29 फीसदी और कांगो में 10 फीसदी परिवार खुले में शौच जाते हैं, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार 50 फीसदी भारतीय खुले में शौच करते हैं। ग्रामीण भारत में यह आंकड़ा 67 फीसदी के आसपास है।
मामला सिर्फ खुले में शौच जाने की शर्म या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का नहीं है। इस अभिशाप की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान भी बहुत है। वर्ष 2015 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को खुले में शौच की वजह से करीब 7,13,400 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। इस नुकसान को यूं समझा जा सकता है, कि यह राशि देश के स्वास्थ्य बजट से 19 गुना अधिक है। यह रिपोर्ट एक्सेल ग्रुप कॉरपोरेशन, वाटर एड और ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने मिलकर प्रकाशित की है।
खुले में शौच की समस्या को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को भारत के सबसे बड़े अभियान स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी। पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर, 2019 तक देश के हर घर में शौचालय का लक्ष्य रखा है। इसी दिन देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती मनाएगा। एक बार गांधी जी ने कहा था, कि स्वतंत्रता से ज्यादा स्वच्छता आवश्यक है। अगर देश के हर घर में शौचालय हो तो सही मायने में इसे दूसरी आजादी कहा जा सकता है। क्योंकि गांव की खुशहाली का रास्ता शौचालयों से होकर गुजर रहा है।
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