डेढ़ दशक के संघर्ष के बाद डिंडोरी जिले के सात गांवों को प्राप्त हुआ पहला बैगा रिजर्व
Ruby Sarkar
लगभग डेढ़ दशक के संघर्ष के बाद डिंडोरी जिले के सात गांवों को पहला बैगा रिजर्व होने का गौरव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में प्राप्त हुआ।
यूं तो बैगाचक में बैगाओं को वन भूमि से बेदखल करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों द्वारा उन पर किये जाने वाले अत्याचार का एक लंबा इतिहास रहा हैं। वन भूमि से बैगाओं को बेदखल करने के लिए बैगाओं के साथ मार-पीट करना, खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुताई कर या मवेशियों से चराकर बर्बाद कर देना, बैगाओं को जेल में डाल देना तथा हल-बक्खर जप्त कर लेना उन दिनों आम बात थी। पहली बार शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व में उन्हें देश का पहला बैगा रिजर्व हासिल हुआ।
दरअसल इनके साथ अत्याचार में वन विभाग के कर्मचारियों को संयुक्त वन प्रबंधन के तहत बने ग्राम वन समिति और वन सुरक्षा समिति के सदस्य भी साथ देते थे। बेबस बैगा ऐसे अत्याचार सहते हुए वन भूमि से ही जीविका चलाते थे। ‘‘उन्ही दिनों 6,7,8 अगस्त 2000 को वन विभाग के कर्मचारी और विशेष शस्त्र बल (एस.ए.एफ.) के जवान मिल कर वन भूमि से बेदखल करने के लिए बैगाचक के ग्राम ढाबा, रजनी सरई और जिलंग तथा एक गांव बैगाचक से लगा हुआ गौरा कन्हारी के बैगाओं के साथ मारपीट और अमानवीय अत्याचार किये।’’ इस घटना के बाद उस इलाके के बैगाओं में इतना दहशत बढ़ गया, कि पीड़ित बैगा अपने ऊपर हुए अत्याचार को कहने के लिए भी डरते लगे।
इसी घटना को लेकर 22 सितंबर 2000 को ग्राम चाड़ा में एक बैठक हुई थी, जिसमें पीड़ित बैगाओं के साथ बैगाचक के अन्य गांव के लोग भी शामिल हुए थे । बैठक में ‘‘लोगों ने तय किया, कि लगातार हो रहे इस तरह के अत्याचार का सामूहिक विरोध करेंगे । सामूहिक विरोध के लिए बैगा महापंचायत का गठन किया गया और बैगाओं के साथ हुए अमानवीय अत्याचार की अलग-अलग फोरमों में शिकायत की गई। इस घटना की जांच के आदेश के साथ दोषी वन कर्मियों को बैगाचक से हटा दिया गया। इससे बैगाओं को काफी उत्साह और साहस मिला। जो बैगा पहले वनकर्मियों को देख कर जंगल में छुप जाते थे, इस घटना के बाद वे वन कर्मचारियों के साथ खुलकर संवाद करने लगे। इस उत्साह और साहस को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रत्येक महीने में बैगा महापंचायत की बैठक होने लगी, जिसमें वन भूमि में काबिज रहने का संघर्ष के साथ बैगाओं के बेवर खेती का सांस्कृतिक अधिकार और गांव की अन्य समस्याओं पर भी सवाल उठाए । लुप्त हो चुकी बेवर खेती के सभी प्रकार के देषी बीजों को वापस लाने के लिए ‘‘बीज विरासत अभियान’’ चलाया गया।
इसके बाद जब 2006 में वन अधिकार कानून बना , तब बैगाओं का दुश्मन बदल गया। पहले तो बैगा अधिकारियों, कर्मचारियों से लड़ लेते थे, लेकिन अब उनके सामने कागज की लड़ाई थी, जिसमें वे हार गये। जिस वन भूमि में बैगा लोग खेती करते है, उस जमीन का इनके पास कोई प्रमाण नहीं था। कोई दस्तावेज नहीं था। इसलिए अधिकतर दावा खारिज कर दिए गए। ‘वर्ष 2000 में जिस वन भूमि से बेदखल करने के लिए बैगा लोगों के साथ अमानवीय अत्याचार किया गया था, उस जमीन का अधिकार अभी तक उन्हें नहीं मिला था। ग्राम गौरा कन्हारी के बैगाओं ने उच्च न्यायालय में बेदखली रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की । इसके बाद वनाधिकार अधिनियम के तहत ज्यादातर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार का ही दावा किया गया है। ‘‘जो सामुदायिक अधिकार पत्र दिए गए उसमें भारतीय वन अधिनियम 1927 और वनग्राम स्थापना अधिनियम 1927 के प्रावधानों की शर्तें लगा कर दिया गया है। कुछ अधिकार पत्र में वन सुरक्षा समिति के सदस्य को अधिकार दिया गया है।’’ विषेष संकटग्रस्त आदिवासी समूह (डिण्डोरी जिला के संदर्भ में बैगा आदिवासी) के लिए दिए गए हैबिटैट राईट्स के प्रावधान पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था।
लगभग डेढ़ दशक के संघर्ष के बाद डिंडोरी जिले के सात गांवों को पहला बैगा रिजर्व होने का गौरव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में प्राप्त हुआ।
यूं तो बैगाचक में बैगाओं को वन भूमि से बेदखल करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों द्वारा उन पर किये जाने वाले अत्याचार का एक लंबा इतिहास रहा हैं। वन भूमि से बैगाओं को बेदखल करने के लिए बैगाओं के साथ मार-पीट करना, खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जुताई कर या मवेशियों से चराकर बर्बाद कर देना, बैगाओं को जेल में डाल देना तथा हल-बक्खर जप्त कर लेना उन दिनों आम बात थी। पहली बार शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व में उन्हें देश का पहला बैगा रिजर्व हासिल हुआ।
दरअसल इनके साथ अत्याचार में वन विभाग के कर्मचारियों को संयुक्त वन प्रबंधन के तहत बने ग्राम वन समिति और वन सुरक्षा समिति के सदस्य भी साथ देते थे। बेबस बैगा ऐसे अत्याचार सहते हुए वन भूमि से ही जीविका चलाते थे। ‘‘उन्ही दिनों 6,7,8 अगस्त 2000 को वन विभाग के कर्मचारी और विशेष शस्त्र बल (एस.ए.एफ.) के जवान मिल कर वन भूमि से बेदखल करने के लिए बैगाचक के ग्राम ढाबा, रजनी सरई और जिलंग तथा एक गांव बैगाचक से लगा हुआ गौरा कन्हारी के बैगाओं के साथ मारपीट और अमानवीय अत्याचार किये।’’ इस घटना के बाद उस इलाके के बैगाओं में इतना दहशत बढ़ गया, कि पीड़ित बैगा अपने ऊपर हुए अत्याचार को कहने के लिए भी डरते लगे।
इसी घटना को लेकर 22 सितंबर 2000 को ग्राम चाड़ा में एक बैठक हुई थी, जिसमें पीड़ित बैगाओं के साथ बैगाचक के अन्य गांव के लोग भी शामिल हुए थे । बैठक में ‘‘लोगों ने तय किया, कि लगातार हो रहे इस तरह के अत्याचार का सामूहिक विरोध करेंगे । सामूहिक विरोध के लिए बैगा महापंचायत का गठन किया गया और बैगाओं के साथ हुए अमानवीय अत्याचार की अलग-अलग फोरमों में शिकायत की गई। इस घटना की जांच के आदेश के साथ दोषी वन कर्मियों को बैगाचक से हटा दिया गया। इससे बैगाओं को काफी उत्साह और साहस मिला। जो बैगा पहले वनकर्मियों को देख कर जंगल में छुप जाते थे, इस घटना के बाद वे वन कर्मचारियों के साथ खुलकर संवाद करने लगे। इस उत्साह और साहस को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रत्येक महीने में बैगा महापंचायत की बैठक होने लगी, जिसमें वन भूमि में काबिज रहने का संघर्ष के साथ बैगाओं के बेवर खेती का सांस्कृतिक अधिकार और गांव की अन्य समस्याओं पर भी सवाल उठाए । लुप्त हो चुकी बेवर खेती के सभी प्रकार के देषी बीजों को वापस लाने के लिए ‘‘बीज विरासत अभियान’’ चलाया गया।
इसके बाद जब 2006 में वन अधिकार कानून बना , तब बैगाओं का दुश्मन बदल गया। पहले तो बैगा अधिकारियों, कर्मचारियों से लड़ लेते थे, लेकिन अब उनके सामने कागज की लड़ाई थी, जिसमें वे हार गये। जिस वन भूमि में बैगा लोग खेती करते है, उस जमीन का इनके पास कोई प्रमाण नहीं था। कोई दस्तावेज नहीं था। इसलिए अधिकतर दावा खारिज कर दिए गए। ‘वर्ष 2000 में जिस वन भूमि से बेदखल करने के लिए बैगा लोगों के साथ अमानवीय अत्याचार किया गया था, उस जमीन का अधिकार अभी तक उन्हें नहीं मिला था। ग्राम गौरा कन्हारी के बैगाओं ने उच्च न्यायालय में बेदखली रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की । इसके बाद वनाधिकार अधिनियम के तहत ज्यादातर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार का ही दावा किया गया है। ‘‘जो सामुदायिक अधिकार पत्र दिए गए उसमें भारतीय वन अधिनियम 1927 और वनग्राम स्थापना अधिनियम 1927 के प्रावधानों की शर्तें लगा कर दिया गया है। कुछ अधिकार पत्र में वन सुरक्षा समिति के सदस्य को अधिकार दिया गया है।’’ विषेष संकटग्रस्त आदिवासी समूह (डिण्डोरी जिला के संदर्भ में बैगा आदिवासी) के लिए दिए गए हैबिटैट राईट्स के प्रावधान पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था।
अधिनियम में हैबिटैट राइट्स के प्रावधान
विशेष संकटग्रस्त आदिवासी समूह के लिए अधिनियम की धारा 2 (ज), धारा 3(1)(ङ), धारा 3(1)(´), धारा 5(ग), नियम 2008 के धारा 5(ग) और धारा 7(ग), नियम 2008 धारा 12(घ), संशोधन नियम 2012 की धारा 12(ख)(1) में हैबिटैट राइट्स का उल्लेख हैं। हैबिटैट राइट्स के मुद्दे को लेकर पिछले वर्षों में चाहे वे सरकारी कर्मचारी हो या सिविल सोसायटी , एक भ्रम की स्थिति में थे। कुछ लोग हैबिटैट राइट्स का मतलब घर (मकान) समझ रहे थे, तो कुछ लोग इकोलॉजिकल हैबिटैट व कस्टोमरी टेरिटोरी को हैबिटैट कह रहे थे।
अब यह भ्रम भारत सरकार के जनजातीय मंत्रालय के एक पत्र से साफ हो गया है। ‘‘23 अप्रैल 2015 को सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को लिखे पत्र क्र. 23011/16/2015/ में स्पष्ट है कि हैबिटैट राइट्स का मतलब घर या मकान का अधिकार नहीं है। विषेष संकटग्रस्त आदिवासी समूह के द्वारा आजीविका, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, आत्मिक, धार्मिक एवं पवित्र स्थानों में पूजा के उपयोग किये जाने वाला संपूर्ण रूढ़िजन्य भू-भाग को हैबिटैट राइट्स के रूप मे मान्यता दिया जाएगा।’’ बैगाचक के बैगा आदिवासियों के संदर्भ में हम शुरू से ही इसी तरह से हैबिटैट राइट्स को कहते और समझते आ रहे थे परंतु इस मुद््दे की अस्पष्टता व भ्रम के कारण हमारे लिए इस दिशा में आगे काम करना मुश्किल हो रहा था।
बैगाचक के हैबिटैट राइट्स प्रक्रिया की शुरुआत
डिंडोरी निवासी नरेश विश्वास बताते हैं, कि बैगाओं के संदर्भ में 1890 में ब्रिटिश सरकार के बनाये बैगा रिजर्व (बैगाचक) के लगभग 23 हजार एकड़ क्षेत्र को हैबिटैट राइट्स की मान्यता की बात कही गई है। तत्कालीन कलेक्टर छवि भारद्वाज को शासन की मंषा का पता था, वे मानती थी, कि अधिनियम में हैबिटैट राइट्स का प्रावधान तो है , परंतु इसे कैसे मान्यता दी जायेगी , इस पर कोई गाइडलाइन नहीं हैं। काफी अध्ययन के बाद जब उन्हें पता चला, कि डिण्डौरी जिला का बैगाचक (रिजर्व) एक ऐसा क्षेत्र है जिसे 1890 में मान्यता देकर उसके अंतर्गत आने वाले सात गांव के बैगाओं को उनके पारंपरिक खेती ‘‘बेवर प्रथा’’ से खेती करने की छूट दी गई थी। जबकि उस वक्त बैगाचक से बाहर के बैगाओं को बेवर प्रथा से खेती करने पर पाबंदी थी। इसका कुल क्षेत्र लगभग 23 हजार एकड़ चिन्हांकित है तथा ब्रिटिश काल का नक्शा भी है। सरकार के गजेटियर (मंडला गजेटियर 1912 रिप्रिंट 1995) में 36 स्क्वायर मील क्षेत्र का उल्लेख है। अलग-अलग मानव शास्त्रीय अध्ययन दस्तावेजों में भी बैगाचक के बारे में जानकारी है। 1911 में बैगाचक में गांव बसे है, इसका पुराने दस्तावेज भी लोगों के पास है।
बैगा रिजर्व के गांव
दस्तावेजों के अनुसार बैगा रिजर्व में अजगर, ढाबा, जिलंग, सिलपिड़ी, धुरकुटा, रजनी सरई और लमोठा शामिल है। परंतु अब इस बैगाचक में इससे अधिक गांव हैं। संभवतः बाद में आकर बस गये हो। 1895 में ब्रिटिश सरकार ने बैगाचक में गोंड आदिवासियों को बसने का अनुमति दिया। उस समय बैगाचक में रहने वाले बैगा लोग नही चाहते थे, कि बैगाचक के अंदर दूसरे लोग आकर बसे।
बैगाचक के इस क्षेत्र के बैगा आदिवासी अपनी संस्कृति, बेवर खेती आधारित जैव विविधता और जंगल आधारित जैव विविधता को सुरक्षित रखा है। वन अधिकार कानून के संशोधन नियम 2012 की धारा 12(ख)(1) जिला स्तरीय समिति को विशेष संकटग्रस्त आदिवासी समूह के पारंपरिक संस्था के मुखिया से परामर्श कर संबंधित ग्राम सभा से मान्यता देकर दावा फाईल करने की बात कही गई हैं।
कलेक्टर होने के नाते वे अधिनियम के प्रावधान के अनुसार नियम 12 के तहत हैबिटैट राईट्स की प्रक्रिया शुरू कर दी। उन्होंने अधीनस्थ कर्मचारियों से बैगाचक से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा। उसके बाद हैबिटैट राइट्स के बारे में बैगा मुखियों की राय जानने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया।
कार्यशाला में जिला स्तर के वन अधिकारी (फारेस्ट गार्ड से लेकर अनुविभागीय अधिकारी तक), वन अधिकार अधिनियम के सरकारी प्रशिक्षण (भोपाल), बैगा मुखिया, कुछ स्कूलों के प्राचार्य और बैगाचक के हैबिटैट राइट्स की जानकारी के लिए मुझे बुलाया गया। जिन बैगा मुखिया को कार्यशाला में बुलाया गया था वो वन समितियों के सदस्य और पंजीकृत बैगा लोक नृत्य मंडली के मुखिया थे। कार्यशाला में वन समितियों से जुड़े बैगा सदस्य और वन अधिकारी हैबिटैट राइट्स के विरोध में बात कर रहे थे और कह रहे थे कि इससे जंगल कट जाएगा। और सरकारी प्रशिक्षण तो हैबिटैट राइट्स का मतलब घर, मकान का अधिकार बता रहे थे।
बैगाओं के जंगल आधारित जीवन शैली, जंगल से उनकी आजीविका, भोजन और पोषण तथा बैगाओं की पारंपरिक खेती बेवर की विविधता, बेवर खेती से खाद्य और पोषण सुरक्षा की निर्भरता, जंगल के साथ बैगाओं का आत्मिक संबंधों आदि की जानकारी अधिकारियों को दी गई। इसके साथ ही अधिनियम में हैबिटैट राइट्स के प्रावधान के तहत बैगाचक को हैबिटैट राइट्स की मान्यता के आधार को प्रमुखता से सबके सामने रखा गया। यह बात भी कही गई, कि संशोधित नियम 2012 में जिन पारंपरिक संस्थाओं के मुखिया से परामर्श की बात कही गई है वो ये बैगा मुखिया नहीं हैं, जिन्हें इस कार्यशाला में बुलाया गया है। ‘‘प्रत्येक गांव में बैगाओं का एक पारंपरिक ढांचा होता है, जिसका मुखिया मुकद्दम, देवान और समरथ होता है। अधिनियम में इन्हीं परंपरागत मुखियाओं से परामर्श की बात कही गई हैं।’’ इस कार्यशाला के बाद यह तय किया गया, कि बैगाचक के 7 गांवों के सरपंच, सचिव, वन अधिकार समिति के अध्यक्ष व सचिव और बैगाओं के पारंपरिक संस्था के मुखिया से परामर्श के लिए एक कार्यशाला की जाएगी। गांव में बैगा समाज के अंदर होने वाली छोटे-छोटे झगड़े एवं अन्य सामाजिक विवादों का निपटारा पारंपरिक मुखिया करते हैं। इसके अलावा इनके सामाजिक, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में इन मुखिया का महत्वपूर्ण भूमिका होता है। किसी भी तरह के विवादों को निपटाने और सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम को संपन्न करने के लिए वे सामूहिक बैठक करते हैं जिसे ‘‘जाति समाज’’ कहते हैं।
बैगाचक के हैबिटैट राइट्स के लिए वन अधिकार कानून में उल्लेख इन पारंपरिक मुखिया के जिम्मेदारियों और उससे जुड़े उनके अहम भूमिका के बारे में जानकारी देने के लिए बैगाचक के सभी गांव, टोले में ‘‘मुकद्दम संवाद अभियान’’ चलाया गया। सभी गांव में ग्राम स्तरीय बैठक कर देवान, मुकद्दम और समरथ को संगठित किया गया। इस अधिकार के लिए कानूनी प्रावधान में उनकी अहम भूमिका की जानकारी दिया गया ताकि वे अधिकारियों से संवाद और ग्राम सभा में बैगाचक के संपूर्ण जंगल का वन अधिकार कानून में दिए गए कानूनी अधिकार को प्रमुखता से रख सकें। इसके बाद हमने जंगल और बैगाओं के संबंध को समझने और बैगा समुदाय से सीधा संवाद करने के लिए बैगाचक के गांव में वन खाद्य मेला का आयोजन किया,जिसमें कलेक्टर को आमंत्रित किया गया।
बैगा महापंचायत और निर्माण संस्था ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया। बैगाओं की जंगल आधारित जीवन शैली को समझने के लिए इस कार्यक्रम में उनके बेवर खेती की सभी प्रकार के बीज, सैकड़ों प्रकार के जंगल से उपयोग करने वाले खाद्य (कांदा, फल, फूल, हरी पत्तियों वाली भाजियां), बैगा संस्कृति से जुडी़ सामग्री, कृषि औजार इत्यादि की प्रदर्शनी लगाई गई। इस कार्यक्रम में बैगाचक के 7 गांवों के पारंपरिक संस्था के बैगा मुखिया व काफी संख्या में इन गांव की महिला-पुरुष आए । डिण्डोरी कलेक्टर लगभग 4 घंटे तक कार्यक्रम में रहीं और बैगाओं से सीधा संवाद किया। इसी कार्यक्रम में कलेक्टर ने सात गांवों की बैगाओं के पारंपरिक मुखिया मुकद्दम, देवान और समरथ के साथ अलग से बैठक की और बैगाओं के हैबिटैट और हैबिटेशन को समझने के लिए रूबरू चर्चा की। बैगाओं के पारंपरिक मुखियों ने एक हस्ताक्षर युक्त लिखित ज्ञापन देकर बैगाचक के 23 हजार एकड़ क्षेत्र के पूरे जंगल का हैबिटैट राइट्स देने की मांग की। इसके बाद कलेक्टर डिण्डौरी से निरंतर संपर्क और हैबिटैट राइट्स के लिए आगेे की कार्यवाही के बारे में चर्चा होती रही है। इस दौरान अलग-अलग स्रोतों के जरिये हैबिटैट राइट्स से संबंधित जो भी उपयोगी अध्ययन रिपोर्ट, दस्तावेज, सरकार के सर्कुलर मुझे मिलते थे, कलेक्टर उसका अध्ययन करती थीं और उस पर बैगाओं से चर्चा भी करती थीं। इसी चर्चा में बैगाचक के सात गांवों की एक संयुक्त ग्राम सभा करने का कार्यक्रम तय हुआ था। परंतु ग्राम सभा से प्रस्ताव के प्रावधान को देखते हुए बाद में संयुक्त ग्राम सभा के बजाय अलग-अलग ग्राम सभा करने का तय हुआ।
कलेक्टर के आमंत्रण पर 13 अगस्त 2015 को औपचारिक बैठक हुई । इस बैठक में तय हुआ, कि 20 अगस्त 2015 को जिला स्तर पर एक कार्यशाला होगी और 22 अगस्त 2015 को सात गांवों में अलग-अलग ग्राम सभाएं होगी। इस बैठक में एक गांव का सैंपल हैबिटैट मैपिंग करने का तय हुआ जिसके आधार पर बैगाचक के सातों गांव का मैपिंग ग्राम सभा में किया जायेगा। 18 अगस्त 2015 को जिला परियोजना अधिकारी निर्मल जोशी ने निर्माण संस्था के दो कार्यकर्ताओं के सहयोग से पारंपरिक बैगा मुखिया एवं गांव के लोगों की सहभागिता से ग्राम धुरकुटा का सैंपल हैबिटैट मैपिंग तैयार किया। इस सैंपल मैपिंग को 20 अगस्त के कार्यशाला में प्रस्तुत किया गया।
इस कार्यक्रम में बैगाचक के सात गांवों के सरपंच-सचिव, पारंपरिक बैगा मुखिया, वन अधिकारी और राजस्व अधिकारी को बुलाया गया। अधिनियम में हैबिटैट राइट्स के प्रावधान, दावा प्रक्रिया, बैगाओं के जंगल आधारित हैबिटैट की विस्तार से जानकारी दी गई। इस कार्यशाला में ग्राम धुरकुटा के सैंपल हैबिटैट मैपिंग का प्रस्तुतीकरण किया गया। ग्राम सभा के लिए डिप्टी कलेक्टर रैंक के अधिकारियों को नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी दी गई। कलेक्टर ने स्वयं तय किया कि वे ग्राम सभा के दौरान सात गांवों में भ्रमण करेंगी।
कलेक्टर डिण्डोरी ने ग्राम ढाबा में स्वयं उपस्थित होकर ग्राम सभा की कार्यवाही का निरीक्षण किया। पी.आर.ए. पद्धति से हैबिटैट मैपिंग तैयार किया गया। हैबिटैट राइट्स के लिए प्रारंभिक दावा भी भरा गया और सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया। सात गांवों के ग्राम सभा में पारंपरिक बैगा मुखिया और गांव के लोगों ने जंगल और बैगाओं का रिश्ता, जंगल से आजीविका, जंगल के खान-पान, पारंपरिक बेवर खेती, जंगल में उनके देव धामी, पवित्र पूजा का स्थान और आत्मिक (गढ़, जहां बैगाओं के गोत्र के अनुसार उनके पुरखों की आत्मा बसती है) संबंधों के बारे में खुलकर विस्तार से बताया। और पूरे बैगाचक के संपूर्ण जंगल का अधिकार देने की बात कही।
बैगाचक के हैबिटैट राइट्स के सात गांवों के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए बैठक हुई। इस बैठक में समिति के सदस्यों सहित बैगाओं के पारंपरिक संस्था के मुखिया, वन अधिकार समिति के सदस्य के साथ निर्माण संस्था के सदस्य भी शामिल थे। समिति की बैठक में वन विभाग के सदस्य द्वारा एक-दो आपत्तियों के बाद प्रस्ताव पास किया गया और दावा जिला स्तर समिति को भेज दिया गया है।
बैगाचक को हैबिटैट राइट्स देने के लिए जिला प्रशासन ने सभी सात गांवों का हैबिटैट मैपिंग का शुरूआत कर दी। वैसे तो डिण्डोरी जिला के बैगा बाहुल्य 52 गांव का मैपिंग किया जाना था। परंतु शुरुआत बैगाचक के उन गांव से किया गया है, जिन गांव का दावा प्रस्तुत किया गया है। इस सिलसिले में ग्राम रजनीसरई में हैबिटैट मैपिंग का ट्रायल किया गया है। इस प्रक्रिया में कुछ संगठनों ने बैगाचक के सात गांवों को हैबिटैट दिये जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया । इस पर ‘‘कलेक्टर डिण्डोरी का कहा, कि शुरुआत में बैगाचक के इन गांवों के बैगाओं के पारंपरिक मुखियओं ने ही हैबिटैट की मांग की है और इस सात गांव के हैबिटैट राइट्स का आधार, प्रमाण भी प्रस्तुत किया है। हम सात गांव से शुरू कर रहें हैं। उसके बाद यदि अन्य गांव के बैगा मांग करते है तो हम बाकी गांव को भी हैबिटैट राइट्स देंगेे।’’
26 नवंबर 2014 से शुरू हुआ यह प्रयास बैगाओं के पारंपरिक मुखियों के मांग से ग्राम सभा से प्रस्ताव के बाद जिला स्तरीय समिति तक पहुंचा है। इतना इसलिए संभव हो पाया है , क्योंकि मुख्यमंत्री के निर्देश पर डिण्डोरी जिले की कलेक्टर छवि भारद्वाज बेहद संवेदनशील तरीके से इस प्रकरण को लिया। वे स्वयं भी बैगाचक के हैबिटैट राइट्स के लिए इतनी गंभीर थी।
विश्वास बताते है, कि कई बार देखा गया, कि वन अधिकार के मुद्दे पर प्रचुर संसाधन वाले बड़े-बड़े गैर सरकारी संस्था कार्यालय, प्रशिक्षण, जागरूकता अभियान, शिविर, माइक्रो प्लान के लिए बहुत समय लगाकर बहुत मेहनत करके अच्छा काम करते हैं। लेकिन अगर प्रशासनिक अधिकारी की रूचि न हो तो सारी मेहनत धरी की धरी रह जाती है। इसलिए कोशिश यही रहती है कि प्रशासन अपना काम जवाबदेही के साथ करें । यहां कलेक्टर ने प्रशासन और बैगाओं के बीच एक पुल बनने की भूमिका निभाई है।
‘‘कलेक्टर छवि भारद्वाज कहती हैं यदि हम बैगाचक को हैबिटैट राइट्स की मान्यता दे सके तो इस क्षेत्र में रहने वाले बैगाओं को किसी भी परियोजना के तहत कोई भी यहां से नहीं हटा सकेंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी ये लोग यहां रह सकेंगे।’’ वन अधिकार कानून की क्रियान्वयन का यह देष का पहला ऐतिहासिक काम है। इसमें डिंडोरी जिला सबसे पहले आया है। हैबिटैट राइट्स के मुद्दे को ग्राम सभा तक ले जाने में बैगा महापंचायत के मुखिया और निर्माण संस्था का महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बहरहाल, बैगाचक के हैबिटैट राइट्स के लिए मिली-जुली प्रयासों से 29 दिसंबर 2015 को बैगाचक के पड़ोस के गांव गौराकन्हारी में जिले के प्रभारी मंत्री के हाथों बैगाचक के पारंपरिक मुखिया को उनके हैबिटैट राइट्स का प्रमाण पत्र दिया गया और इसी के साथ ही बैगाचक वन अधिकार कानून के तहत विशेष पिछड़ी जनजाति समूह को उनके अधिकार देने में देश का पहला जिला बन गया।
No comments:
Post a Comment