जब गिरजा ने की पढ़ने की जिद
Ruby Sarkar
मंदसौर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ रोड पर बसा एक छोटा सा गांव गालियाखेड़ी, जहां बैरागी परिवार की 15 वर्षीय गिरजा का बाल विवाह उसके परिजनां ने 14 मई 2013 को एक 22 वर्षीय लड़के के साथ कर दिया गया । आम लड़कियों की तरह गिरजा भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, किन्तु ससुराल वाले उसके पढ़ाई-लिखाई के पक्ष में नही थे । उसका पति महेश भी इस मामले में ससुराल वालों का साथ दिया। वह समाज की परंपराओं के अनुसार उसे खेत में कार्य कराना चाहता था। इधर गिरजा पढ़ाई के प्रति गहरी आस्था रखने के के कारण उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। बहुत जिद करके भी वह कुछ नहीं बदल पाई और अंततः दबाव के आगे झुकने को मजबूर हो गई । एक दिन किसी सहेली ने उससे लाडो अभियान के जागरूकता कार्यक्रम के बारे मंे बताया। गिरजा इस अभियान के बारे में पूरी बात जानना चाहती थी, इसलिए वह जागरूकता कार्यक्रम में गई, तो उसे बाल विवाह के अवगुणांे और इसके रोकथाम के संबंध में विस्तृत जानकारी मिली। हथियार डाल चुकी गिरजा के भीतर एक नये ऊर्जा का संचार हुआ । उसे अपने सपनांे को साकार करने का जरिया मिल गया। उसने अपने माता-पिता एवं ससुराल वालों से साफ कह दिया, कि वह ससुराल नहीं जाएगी और यदि जबरन उसे ससुराल भेजा गया, तो वह घर छोड़कर भाग जायेगी। वह पढ़ेगी और खूब पढ़ेगी।
जब चारों तरफ से उस पर दबाव पड़ने लगा, तो वह बाल विवाह का प्रतिकार करने की ठान ली और महिला एवं बाल विकास विभाग पहुॅच गई। वहां उसने सभी अधिकारियों से अपनी आपबीती सुनाई । विभाग ने भी मामले को गंभीरता से लिया और जांच एवं परामर्श के पश्चात बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 के तहत बाल विवाह शून्य कराये जाने का आवेदन वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किया।
गिरजा अब 12वीं की छात्रा है। उसके इस बहादुरी के चर्चे चारों ओर फैल चुकी है। स्कूल के शिक्षकों ने भी उसकी बहादुरी को सराहा और उसका सम्मान किया। गिरजा कहती है, कि लाडो अभियान के चलते अब नाबालिगों की शादी आसान नहीं रह गया है, सब बच्चे जागरूक हो गये हैं। अब वे निडर होकर अपनी बात सबके सामने रखने लगे हैं। वह दिन लद गये, जब चुपचाप बच्ची की शादी कर माता-पिता उसे घुंघट में विदा कर देते थे। अब माता-पिता से ज्यादा भरोसा मुख्यमंत्री मामा का है, जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए कानून बनाया। वरना कहां लड़कियां पढ़ पाती थी । आज गिरजा के फैसले से उसके माता-पिता भी सहमत हैं और वह अपनी गलती मान रहे हैं। मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना के अंतर्गत उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च दिया जा रहा है।
अब गिरजा की नहीं, उसकी मां भी जागरूक हो गई हैं, वह कहती हैं, कि बाल विवाह महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। इसे खत्म कर हम मातृ मृत्यु दर को कम कर सकते हैं। उसके पिता ने कहा, कि लाडो अभियान के बारे में पता चला, तो और अधिक छानबीन की, पता चला मध्यप्रदेश में बाल विवाह का दर पिछले कुछ सालों में 73 फीसदी से 33 फीसदी तक आ गया है। प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, कि हमारे लिए यह आंकड़ा आशा जगाती है, लेकिन हमें इसे शून्य तक ले जाना है। हमारी बिटिया की तरह सभी बच्चियों को जागरूक बनाना है।
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मंदसौर जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ रोड पर बसा एक छोटा सा गांव गालियाखेड़ी, जहां बैरागी परिवार की 15 वर्षीय गिरजा का बाल विवाह उसके परिजनां ने 14 मई 2013 को एक 22 वर्षीय लड़के के साथ कर दिया गया । आम लड़कियों की तरह गिरजा भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, किन्तु ससुराल वाले उसके पढ़ाई-लिखाई के पक्ष में नही थे । उसका पति महेश भी इस मामले में ससुराल वालों का साथ दिया। वह समाज की परंपराओं के अनुसार उसे खेत में कार्य कराना चाहता था। इधर गिरजा पढ़ाई के प्रति गहरी आस्था रखने के के कारण उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। बहुत जिद करके भी वह कुछ नहीं बदल पाई और अंततः दबाव के आगे झुकने को मजबूर हो गई । एक दिन किसी सहेली ने उससे लाडो अभियान के जागरूकता कार्यक्रम के बारे मंे बताया। गिरजा इस अभियान के बारे में पूरी बात जानना चाहती थी, इसलिए वह जागरूकता कार्यक्रम में गई, तो उसे बाल विवाह के अवगुणांे और इसके रोकथाम के संबंध में विस्तृत जानकारी मिली। हथियार डाल चुकी गिरजा के भीतर एक नये ऊर्जा का संचार हुआ । उसे अपने सपनांे को साकार करने का जरिया मिल गया। उसने अपने माता-पिता एवं ससुराल वालों से साफ कह दिया, कि वह ससुराल नहीं जाएगी और यदि जबरन उसे ससुराल भेजा गया, तो वह घर छोड़कर भाग जायेगी। वह पढ़ेगी और खूब पढ़ेगी।
जब चारों तरफ से उस पर दबाव पड़ने लगा, तो वह बाल विवाह का प्रतिकार करने की ठान ली और महिला एवं बाल विकास विभाग पहुॅच गई। वहां उसने सभी अधिकारियों से अपनी आपबीती सुनाई । विभाग ने भी मामले को गंभीरता से लिया और जांच एवं परामर्श के पश्चात बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 के तहत बाल विवाह शून्य कराये जाने का आवेदन वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किया।
गिरजा अब 12वीं की छात्रा है। उसके इस बहादुरी के चर्चे चारों ओर फैल चुकी है। स्कूल के शिक्षकों ने भी उसकी बहादुरी को सराहा और उसका सम्मान किया। गिरजा कहती है, कि लाडो अभियान के चलते अब नाबालिगों की शादी आसान नहीं रह गया है, सब बच्चे जागरूक हो गये हैं। अब वे निडर होकर अपनी बात सबके सामने रखने लगे हैं। वह दिन लद गये, जब चुपचाप बच्ची की शादी कर माता-पिता उसे घुंघट में विदा कर देते थे। अब माता-पिता से ज्यादा भरोसा मुख्यमंत्री मामा का है, जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए कानून बनाया। वरना कहां लड़कियां पढ़ पाती थी । आज गिरजा के फैसले से उसके माता-पिता भी सहमत हैं और वह अपनी गलती मान रहे हैं। मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना के अंतर्गत उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च दिया जा रहा है।
अब गिरजा की नहीं, उसकी मां भी जागरूक हो गई हैं, वह कहती हैं, कि बाल विवाह महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। इसे खत्म कर हम मातृ मृत्यु दर को कम कर सकते हैं। उसके पिता ने कहा, कि लाडो अभियान के बारे में पता चला, तो और अधिक छानबीन की, पता चला मध्यप्रदेश में बाल विवाह का दर पिछले कुछ सालों में 73 फीसदी से 33 फीसदी तक आ गया है। प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, कि हमारे लिए यह आंकड़ा आशा जगाती है, लेकिन हमें इसे शून्य तक ले जाना है। हमारी बिटिया की तरह सभी बच्चियों को जागरूक बनाना है।
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गुनाह है मर्जी के बिना शादी
Ruby Sarkar
मंदसौर जिले की सीतामऊ तहसील अंतर्गत आबा खेड़ी गांव में 9 अप्रैल 2015 को 17 वर्षीय गोविंद गरासिया का विवाह उसकी इच्छा के विपरीत उसके परिजनों ने कर दिया । उस समय गोविंद को लाडो अभियान के बारे में पता नहीं था। शादी के बाद जब उसने अपने दोस्त से इसका उल्लेख किया, तो उसने गोविंद को लाडो अभियान के बारे में बताया और मुख्यमंत्री की आवाज में संदेश भी सुनाया। साथ ही उसे महिला सशक्तिकरण विभाग के अधिकारियों से मिलने की सलाह दी। गोविंद चाईल्ड लाईन के माध्यम से महिला सशक्तिकरण कार्यालय गया और अपनी कम उम्र में जबरन शादी करवाने और पढ़ाई छूट जाने की शिकायत की। उसका सपना है, कि वह पढ़-लिख कर शासकीय सेवा में जाये। उसे यह भी पता चल गया था, कि बाल विवाह करने वालों को शासकीय सेवा से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। इसलिए वह अपना विवाह शून्य कराना चाहता है। काउंसलिंग के दौरान यह पता चला कि गोविन्द इस विवाह का पहले भी घोर विरोध किया था। किंतु उसकी एक नहीं सुनी गई और परिजनों ने जबरदस्ती सामाजिक परंपरा की दुहाई देकर उससे 8 साल अधिक आयु की लड़की से उसका विवाह कर दिया । गोविंद किसी भी स्थिति में इस विवाह को मानने को तैयार नहीं था। वह इस बंधन से जल्द से जल्द मुक्त होना चाहता था। विभाग के अधिकारियों ने उसे वाद मित्र के माध्यम से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 के अंतर्गत बाल विवाह शून्य कराने के लिए आवेदन सक्षम न्यायालय में दिया। गोविंद का कहना है, कि वह पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खडा होना चाहता है। यहां यह बताते चले, कि गोविंद बंजारा समुदाय से है और बंजारा समुदाय में बाल विवाह आम बात है। इसलिए गोविंद का सामाजिक परंपराओं के विरुद्ध लिया गया यह निर्णय समुदाय के अन्य बच्चों के लिए प्रेरणाप्रद रहा है। हालांकि गोविंद के इस निर्णय से उसके परिजन उसकी खिलाफ आ गए थे। किंतु विभागीय परामर्श के बाद वे बाल विवाह के अवगुणों और गोविंद के भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए उसके साथ आ गये।
गोविंद अब 11वीं में पढ़ रहा है। इस बीच उसने इतना कुछ देख लिया, कि उसे लाडो अभियान के बारे में एक-एक बात पता है, वह अपने समुदाय के बच्चों को भी जागरूक बना रहा है और उसे पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। वह कहता है, कि मुख्यमंत्रीजी कहते हैं, प्रगति के पथ पर सामाजिक-आर्थिक दोनों पहलू महत्वपूर्ण है और विकास समदृष्टा होना चाहिए । गोविंद बताते है, कि केवल लड़के नहीं, बल्कि़ महिलाओं को व्यवसाय से जोड़ऩा चाहिए, इससे वे आर्थिक रूप सक्षम हांेगी और यह काम समाज के हर स्तर पर व्यवहार में बदलाव लाकर किया जा सकता है।
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ललिता की जिंदगी में कंस बनकर आया सगा मामा
मंदसौर जिले की सीतामऊ तहसील अंतर्गत आबा खेड़ी गांव में 9 अप्रैल 2015 को 17 वर्षीय गोविंद गरासिया का विवाह उसकी इच्छा के विपरीत उसके परिजनों ने कर दिया । उस समय गोविंद को लाडो अभियान के बारे में पता नहीं था। शादी के बाद जब उसने अपने दोस्त से इसका उल्लेख किया, तो उसने गोविंद को लाडो अभियान के बारे में बताया और मुख्यमंत्री की आवाज में संदेश भी सुनाया। साथ ही उसे महिला सशक्तिकरण विभाग के अधिकारियों से मिलने की सलाह दी। गोविंद चाईल्ड लाईन के माध्यम से महिला सशक्तिकरण कार्यालय गया और अपनी कम उम्र में जबरन शादी करवाने और पढ़ाई छूट जाने की शिकायत की। उसका सपना है, कि वह पढ़-लिख कर शासकीय सेवा में जाये। उसे यह भी पता चल गया था, कि बाल विवाह करने वालों को शासकीय सेवा से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। इसलिए वह अपना विवाह शून्य कराना चाहता है। काउंसलिंग के दौरान यह पता चला कि गोविन्द इस विवाह का पहले भी घोर विरोध किया था। किंतु उसकी एक नहीं सुनी गई और परिजनों ने जबरदस्ती सामाजिक परंपरा की दुहाई देकर उससे 8 साल अधिक आयु की लड़की से उसका विवाह कर दिया । गोविंद किसी भी स्थिति में इस विवाह को मानने को तैयार नहीं था। वह इस बंधन से जल्द से जल्द मुक्त होना चाहता था। विभाग के अधिकारियों ने उसे वाद मित्र के माध्यम से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 के अंतर्गत बाल विवाह शून्य कराने के लिए आवेदन सक्षम न्यायालय में दिया। गोविंद का कहना है, कि वह पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खडा होना चाहता है। यहां यह बताते चले, कि गोविंद बंजारा समुदाय से है और बंजारा समुदाय में बाल विवाह आम बात है। इसलिए गोविंद का सामाजिक परंपराओं के विरुद्ध लिया गया यह निर्णय समुदाय के अन्य बच्चों के लिए प्रेरणाप्रद रहा है। हालांकि गोविंद के इस निर्णय से उसके परिजन उसकी खिलाफ आ गए थे। किंतु विभागीय परामर्श के बाद वे बाल विवाह के अवगुणों और गोविंद के भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए उसके साथ आ गये।
गोविंद अब 11वीं में पढ़ रहा है। इस बीच उसने इतना कुछ देख लिया, कि उसे लाडो अभियान के बारे में एक-एक बात पता है, वह अपने समुदाय के बच्चों को भी जागरूक बना रहा है और उसे पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। वह कहता है, कि मुख्यमंत्रीजी कहते हैं, प्रगति के पथ पर सामाजिक-आर्थिक दोनों पहलू महत्वपूर्ण है और विकास समदृष्टा होना चाहिए । गोविंद बताते है, कि केवल लड़के नहीं, बल्कि़ महिलाओं को व्यवसाय से जोड़ऩा चाहिए, इससे वे आर्थिक रूप सक्षम हांेगी और यह काम समाज के हर स्तर पर व्यवहार में बदलाव लाकर किया जा सकता है।
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ललिता की जिंदगी में कंस बनकर आया सगा मामा
Ruby Sarkar
विधवा बहन की लाचारी का फायदा उठाकर धोखे से सगे मामा ने अवयस्कता की स्थिति में अपनी भांजी ललिता की शादी 18 अप्रैल, 2014 को प्रतापगढ़ जिले के अरनौद तहसील के मिरावता गांव में प्रेम मीणा के साथ कर दिया । बचपन में ही पिता को खो चुकी 15 साल की कमसिन ललिता जब विदा होकर ससुराल गई, तो उसे पता चला, पति तो पहले से ही शादीषुदा है। किसी रेशमा नाम की लड़की से पति का विवाह हो चुका है। ठगी गई ललिता ने जब इस बात का विरोध किया, तो उसके साथ घरेलू हिंसा होना शुरू हो गया। उसे शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं दी जाने लगी, पढ़ाई लिखाई बंद कराकर उसे घर पर ही कैद कर दिया गया। उसकी मर्जी के बिना उसका शारीरिक शोषण किया जा रहा था, जब वह गर्भवती हो गई, तो उसका गर्भपात करा दिया गया।
इस यातना से टूट चुकी ललिता बताती है, कि अंधेरा होने पर अपने ही घर में वह असुरक्षित हो जाती है। आखिरकार उसने पुलिस से मदद मांगी, वह थाने जाकर पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का रिपोर्ट दर्ज करवाया। लेकिन वहां भी उसे निराषा ही हाथ लगी, पति ने उल्टे उसके चरित्र पर लांछन लगाते हुए आपसी सहमति से प्रकरण वापस ले लिए ।
पति के अत्याचारांे से तंग आकर उसने अपनी मॉ के साथ रहने का निर्णय लिया। वह मायके वापस आ गई और अपनी पढ़ाई जारी रखा। वह शासकीय विद्यालय में 11वीं कक्षा की विद्यार्थी है। इस बीच महिला सशक्तीकरण कार्यालय की ओर से स्कूलों में लाडो का जागरुकता अभियान चलाया जा रहा था। जिससे बाल विवाह को रोका जा सके। जागरूकता अभियान में ही उसने जाना, कि बेटियों की मर्जी के बिना शादी उसके अधिकारों का हनन है। साथ ही यह भी जाना कि शादी की सही उम्र क्या है और अगर धोखे से कम उम्र में शादी कर दी जाती है, तो उसे क्या करना चाहिए। उसे लाडो के जरिये पति से छुटकारा पाने में आशा की एक किरण नजर आई। अगले ही दिन उसने महिला सषक्तीकरण विभाग के अधिकारियों को फोन कर अपनी परेषानी बताई। उसने यह भी कहा, कि वह पति के साथ नहीं रहना चाहती । विभाग की ओर से उसे आष्वासन दिया गया, कि विभाग उसके साथ है और उसे न्याय मिलेगा।
कानून का सहारा लेकर विभाग ने ललिता की खुशहाल जिंदगी के लिए बाल विवाह शून्य कराने का निर्णय लिया एवं बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी से संपर्क किया। विभाग ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 एवं 4 के तहत वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय से आग्रह किया, कि ललिता का शीघ्रतिषीघ्र ललिता का बाल विवाह शून्य कर उसे भरण-पोषण के आदेश दिये जाये। इधर सरकार ने ललिता को मुख्यमंत्री महिला सशक्तीकरण योजना अंतर्गत कम्प्यूटर प्रशिक्षण दिया गया।
ललिता बताती है, कि बाल विवाह इंसानियत के खिलाफ है। वह इतनी जागरूक हो चुकी है, कि धारा प्रवाह बताती है, यह लड़कियों के स्वास्थ्य का मुद्दा है । बाल विवाह में हिन्दुस्तान सबसे आगे है । हिन्दुस्तान के 6 राज्यों राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं। साथ ही कम उम्र में बेटी की शादी करके माता-पिता उसे कई अधिकारों से वंचित कर देते हैं। बेटियों को शिक्षा, मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीने का अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। यह मानवाधिकार का भी मुद्दा है। इससे भी खतरनाक परिणाम तब सामने आता है, जब समय से पहले बेटी विधवा हो जाती है और उसे घर से निकाल दिया जाता है। हमने अपनी मॉ को यह सब झेलते हुए देखा है। बाल विवाह के चलते अगर बेटी कम उम्र में मां बनती हैं, तो बच्चे को सही पोषण नहीं मिल पाता है, जिससे बच्चा कमजोर पैदा होता है। ऐसे में कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कम उम्र में विवाह होने वाली महिलाएं ज्यादा घरेलू हिंसा की शिकार बनती है। वह तनाव में जीती हैं। इससे एक किस्म का दुष्चक्र तैयार हो रहा है, जिसे समाप्त करना आवश्यक है। ललिता अब लाडो अभियान की हिस्सा है, उसे जब भी पता चलता है, कि कोई परिवार नाबालिग लड़की की शादी की तैयारी कर रहा है, वह उसे समझाती है और यदि न माने, तो कानून का सहारा लेती है। एक तरह से वह कम उम्र में मेच्योर हो गई। वह कहती है, लाडो नाबालिगों की शादी रोकवाने के लिए बरदान है। वह मुख्यमंत्री की इस सोच को सलाम करते हुए कहती है, देष को इसी तरह के मुख्यमंत्रियों की जरूरत है, जो देष और समाज को नई दिषा दे सके। कानून तो पहले से ही है, परंतु उसका पालन कितने लोग करते हैं।
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बल विवाह का विरोध करने पर नेहा को घर से निकाला
विधवा बहन की लाचारी का फायदा उठाकर धोखे से सगे मामा ने अवयस्कता की स्थिति में अपनी भांजी ललिता की शादी 18 अप्रैल, 2014 को प्रतापगढ़ जिले के अरनौद तहसील के मिरावता गांव में प्रेम मीणा के साथ कर दिया । बचपन में ही पिता को खो चुकी 15 साल की कमसिन ललिता जब विदा होकर ससुराल गई, तो उसे पता चला, पति तो पहले से ही शादीषुदा है। किसी रेशमा नाम की लड़की से पति का विवाह हो चुका है। ठगी गई ललिता ने जब इस बात का विरोध किया, तो उसके साथ घरेलू हिंसा होना शुरू हो गया। उसे शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं दी जाने लगी, पढ़ाई लिखाई बंद कराकर उसे घर पर ही कैद कर दिया गया। उसकी मर्जी के बिना उसका शारीरिक शोषण किया जा रहा था, जब वह गर्भवती हो गई, तो उसका गर्भपात करा दिया गया।
इस यातना से टूट चुकी ललिता बताती है, कि अंधेरा होने पर अपने ही घर में वह असुरक्षित हो जाती है। आखिरकार उसने पुलिस से मदद मांगी, वह थाने जाकर पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का रिपोर्ट दर्ज करवाया। लेकिन वहां भी उसे निराषा ही हाथ लगी, पति ने उल्टे उसके चरित्र पर लांछन लगाते हुए आपसी सहमति से प्रकरण वापस ले लिए ।
पति के अत्याचारांे से तंग आकर उसने अपनी मॉ के साथ रहने का निर्णय लिया। वह मायके वापस आ गई और अपनी पढ़ाई जारी रखा। वह शासकीय विद्यालय में 11वीं कक्षा की विद्यार्थी है। इस बीच महिला सशक्तीकरण कार्यालय की ओर से स्कूलों में लाडो का जागरुकता अभियान चलाया जा रहा था। जिससे बाल विवाह को रोका जा सके। जागरूकता अभियान में ही उसने जाना, कि बेटियों की मर्जी के बिना शादी उसके अधिकारों का हनन है। साथ ही यह भी जाना कि शादी की सही उम्र क्या है और अगर धोखे से कम उम्र में शादी कर दी जाती है, तो उसे क्या करना चाहिए। उसे लाडो के जरिये पति से छुटकारा पाने में आशा की एक किरण नजर आई। अगले ही दिन उसने महिला सषक्तीकरण विभाग के अधिकारियों को फोन कर अपनी परेषानी बताई। उसने यह भी कहा, कि वह पति के साथ नहीं रहना चाहती । विभाग की ओर से उसे आष्वासन दिया गया, कि विभाग उसके साथ है और उसे न्याय मिलेगा।
कानून का सहारा लेकर विभाग ने ललिता की खुशहाल जिंदगी के लिए बाल विवाह शून्य कराने का निर्णय लिया एवं बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी से संपर्क किया। विभाग ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 एवं 4 के तहत वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय से आग्रह किया, कि ललिता का शीघ्रतिषीघ्र ललिता का बाल विवाह शून्य कर उसे भरण-पोषण के आदेश दिये जाये। इधर सरकार ने ललिता को मुख्यमंत्री महिला सशक्तीकरण योजना अंतर्गत कम्प्यूटर प्रशिक्षण दिया गया।
ललिता बताती है, कि बाल विवाह इंसानियत के खिलाफ है। वह इतनी जागरूक हो चुकी है, कि धारा प्रवाह बताती है, यह लड़कियों के स्वास्थ्य का मुद्दा है । बाल विवाह में हिन्दुस्तान सबसे आगे है । हिन्दुस्तान के 6 राज्यों राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं। साथ ही कम उम्र में बेटी की शादी करके माता-पिता उसे कई अधिकारों से वंचित कर देते हैं। बेटियों को शिक्षा, मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीने का अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। यह मानवाधिकार का भी मुद्दा है। इससे भी खतरनाक परिणाम तब सामने आता है, जब समय से पहले बेटी विधवा हो जाती है और उसे घर से निकाल दिया जाता है। हमने अपनी मॉ को यह सब झेलते हुए देखा है। बाल विवाह के चलते अगर बेटी कम उम्र में मां बनती हैं, तो बच्चे को सही पोषण नहीं मिल पाता है, जिससे बच्चा कमजोर पैदा होता है। ऐसे में कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कम उम्र में विवाह होने वाली महिलाएं ज्यादा घरेलू हिंसा की शिकार बनती है। वह तनाव में जीती हैं। इससे एक किस्म का दुष्चक्र तैयार हो रहा है, जिसे समाप्त करना आवश्यक है। ललिता अब लाडो अभियान की हिस्सा है, उसे जब भी पता चलता है, कि कोई परिवार नाबालिग लड़की की शादी की तैयारी कर रहा है, वह उसे समझाती है और यदि न माने, तो कानून का सहारा लेती है। एक तरह से वह कम उम्र में मेच्योर हो गई। वह कहती है, लाडो नाबालिगों की शादी रोकवाने के लिए बरदान है। वह मुख्यमंत्री की इस सोच को सलाम करते हुए कहती है, देष को इसी तरह के मुख्यमंत्रियों की जरूरत है, जो देष और समाज को नई दिषा दे सके। कानून तो पहले से ही है, परंतु उसका पालन कितने लोग करते हैं।
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बल विवाह का विरोध करने पर नेहा को घर से निकाला
Ruby Sarkar
मंदसौर की रहने वाली नेहा का विवाह 12 वर्ष आयु में उसके परिजनों ने राजस्थान के निम्बाहेडा निवासी महेन्द्र के साथ कर दी गई थी। शादी के बाद वह एक-दो बार ससुराल भी गई, लेकिन उसे यह नहीं पता चला, कि आखिर शादी का असल मतलब क्या है । बंजारा समुदाय की नेहा के स्कूल में एक दिन लाडो अभियान के बारे में बताया जा रहा था, तब वह जागरूक हुई और उसे पता चला, कि शादी की सही उम्र क्या है और अगर कम उम्र में उसकी शादी कर दी गई है, तो वह किस तरह से उसे शून्य घोषित करवा सकती है। अन्जाने और कम उम्र में बिना सहमति से कर दी गई शादी को शून्य कराने के लिए वह विभाग से मदद मांगने गई, तो उसे वहां से हिम्मत और हौसला मिला, तो उसने परिजनों को चेतावनी भरे शब्दों में स्पष्ट कह दिया, कि वह अपने बाल विवाह को स्वीकार नहीं करेगी । तब तक उसे यह नहीं पता था कि उसकी इस खिलाफत के परिणाम इतने भंयकर हो सकते है । अततः नेहा को घर से निकाल दिया गया । फिर भी वह हिम्मत नही हारी और ष्महिला सषक्तीकरण विभाग से मदद मांगी । विभाग के अधिकारी नेहा की परेषानी देखकर तत्काल उसे आश्रय दिया और परिजनांे को कानूनी बात समझाई। किन्तु उनलोगों ने अधिकारियों की एक न सुनी और कानून को मानने को तैयार नहीं थे।
अंत में नेहा का बाल विवाह शुन्य कराने का प्रकरण बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 एवं 4 के तहत वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किया, न्यायायिक प्रक्रिया के तहत जहां से उसका बाल विवाह शून्य घोषित किया गया, वहीं उसे भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार भी मिला ।
फिलहाल नेहा एक निजी विद्यालय से 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है । उसकी पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी महिला सषक्तीकरण विभाग ने ले रखी है । नेहा के साहस की बात दूर-दूर तक फैली, तो उज्जैन की एक संस्था ने उसे विदुषी विद्योतमा स्त्री शक्ति सम्मान से सम्मानित किया । नेहा इसका श्रेय लाडो अभियान को देती है । उसने कहा, इस अभियान से क्षेत्र की बालिकाएं सषक्त हुई हैं । इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार स्कूलों में होने चाहिए । सिर्फ इस अभियान के चलते अकेला मध्यप्रदेष ऐसा राज्य है, जहां सबसे तेजी से बाल विवाह में कमी आई है और माता-पिता के अपेक्षा बच्चे अधिक जागरूक होकर कम उम्र में होने वाले विवाह का मुखालफल करने लगे हैं । मात्र 14 साल की आयु में नेहा को लाडो अभियान के तहत बाल विवाह कानून के बारे में इतनी जानकारी मिली और उसने कम उम्र में होने वाले विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद की । वह अपने परिवारवालों को ही नहीं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों को इसके दुष्परिणाम के बारे में बताया । आज नेहा की बात को बंजारा समुदाय गंभीरता से लेने लगे हैं।
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मंदसौर की रहने वाली नेहा का विवाह 12 वर्ष आयु में उसके परिजनों ने राजस्थान के निम्बाहेडा निवासी महेन्द्र के साथ कर दी गई थी। शादी के बाद वह एक-दो बार ससुराल भी गई, लेकिन उसे यह नहीं पता चला, कि आखिर शादी का असल मतलब क्या है । बंजारा समुदाय की नेहा के स्कूल में एक दिन लाडो अभियान के बारे में बताया जा रहा था, तब वह जागरूक हुई और उसे पता चला, कि शादी की सही उम्र क्या है और अगर कम उम्र में उसकी शादी कर दी गई है, तो वह किस तरह से उसे शून्य घोषित करवा सकती है। अन्जाने और कम उम्र में बिना सहमति से कर दी गई शादी को शून्य कराने के लिए वह विभाग से मदद मांगने गई, तो उसे वहां से हिम्मत और हौसला मिला, तो उसने परिजनों को चेतावनी भरे शब्दों में स्पष्ट कह दिया, कि वह अपने बाल विवाह को स्वीकार नहीं करेगी । तब तक उसे यह नहीं पता था कि उसकी इस खिलाफत के परिणाम इतने भंयकर हो सकते है । अततः नेहा को घर से निकाल दिया गया । फिर भी वह हिम्मत नही हारी और ष्महिला सषक्तीकरण विभाग से मदद मांगी । विभाग के अधिकारी नेहा की परेषानी देखकर तत्काल उसे आश्रय दिया और परिजनांे को कानूनी बात समझाई। किन्तु उनलोगों ने अधिकारियों की एक न सुनी और कानून को मानने को तैयार नहीं थे।
अंत में नेहा का बाल विवाह शुन्य कराने का प्रकरण बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 3 एवं 4 के तहत वाद मित्र के माध्यम से सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किया, न्यायायिक प्रक्रिया के तहत जहां से उसका बाल विवाह शून्य घोषित किया गया, वहीं उसे भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार भी मिला ।
फिलहाल नेहा एक निजी विद्यालय से 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है । उसकी पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी महिला सषक्तीकरण विभाग ने ले रखी है । नेहा के साहस की बात दूर-दूर तक फैली, तो उज्जैन की एक संस्था ने उसे विदुषी विद्योतमा स्त्री शक्ति सम्मान से सम्मानित किया । नेहा इसका श्रेय लाडो अभियान को देती है । उसने कहा, इस अभियान से क्षेत्र की बालिकाएं सषक्त हुई हैं । इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार स्कूलों में होने चाहिए । सिर्फ इस अभियान के चलते अकेला मध्यप्रदेष ऐसा राज्य है, जहां सबसे तेजी से बाल विवाह में कमी आई है और माता-पिता के अपेक्षा बच्चे अधिक जागरूक होकर कम उम्र में होने वाले विवाह का मुखालफल करने लगे हैं । मात्र 14 साल की आयु में नेहा को लाडो अभियान के तहत बाल विवाह कानून के बारे में इतनी जानकारी मिली और उसने कम उम्र में होने वाले विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद की । वह अपने परिवारवालों को ही नहीं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों को इसके दुष्परिणाम के बारे में बताया । आज नेहा की बात को बंजारा समुदाय गंभीरता से लेने लगे हैं।
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