Saturday, June 10, 2023

बालिग होने बाद विवाह शून्य करवाया

बालिग होने बाद विवाह शून्य करवाया


लाडो अभियान से केवल बालिकाएं ही नहीं, बल्कि कम उम्र के बालक भी अपनी शादी को शून्य करवाने के लिए आगे आ रहे हैं।ष्इन्हीं में से एक है वर्तमान अतिथि शिक्षक भारत सिंह। भारत मंदसौर जिले के ग्राम नलखेड़ा तहसील शामगढ़ का  रहने वाला है। कुषाल सिंह राठौर एवं उनके बड़े भाई ने भारत सिंह का विवाह मात्र 12 वर्ष की आयु में 2006 में कर दिया था।  तब भारत के लिए विवाह मात्र गुड्डे गुड़ियों का खेल था, लेकिन 2013-14 आते-आते उसे लाडो अभियान के प्रचार- प्रसार से बाल विवाह के दुष्परिणाम  में पता लगा। उसे यह भी पता चल चुका था, कि वह बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत विवाह को सक्षम न्यायालय से शून्य भी करवा सकता है। बस फिर क्या था, अब तो वह उस विवाह बंधन से मुक्त होने के लिए छटपटाने लगा।   अज्ञानता में जो कुछ उसके साथ हुआ था। वह उससे मुक्त होना चाहता था। वह इस रिश्ते को मानने से भी इंकार करने लगा।  लाडो अभियान उसके लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आई थी। उत्साही भारत ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अपना बाल विवाह शून्य कराने के लिए अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत विवाह शून्यीकरण के लिए सक्षम न्यायालय में आवेदन दिया। लेकिन उसे इतनी आसानी से कहां न्याय मिलने वाला था। पहले तो न्यायालय ने उसके आवेदन को अधिनियम की धारा 3 (2) का हवाला देते हुए यह कहकर अमान्य कर दिया, कि इस धारा के अंतर्गत आवेदन किसी भी समय दी जा सकती है। न्यायालय ने कहा, बालक ने सशक्तिकरण विभाग को इसकी जानकारी दी और विभाग ने भी तत्परता से परामर्श सुविधा उपलब्ध कराते हुए पहले तो महिला के हितों के परिप्रेक्ष्य में विवाह संबंध को यथावत रखने का प्रयास किया। लेकिन  भारत के जिद के आगे किसी की नहीं चली। उसके अडिग इरादों को देखते हुए विभाग ने विधिक सहायता के माध्यम से भारत का प्रकरण पुनः सक्षम न्यायालय में बाल विवाह शून्य कराने के लिए प्रस्तुत किया और बार भारत को कामयाबी मिली। उसने इस कामयाबी का पूरा श्रेय महिला बाल विभाग को दिया। आज वह शासकीय विद्यालय में अतिथि शिक्षक के पद पर कार्य करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखा है। गर्व और आत्मविश्वास के साथ  वह कहता है,  कानून तो सबके लिए है । फिर हम क्यों पीछे रहे ।  हमें भी तो इन कुरीतियों का विरोध करना चाहिए। वरना इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। यह लड़की -लड़का दोनों की जिंदगी का सवाल है। किसी के साथ भी जाने-अनजाने में अगर नाइंसाफी हो जाये, तो उसे न्याय के लिए अदालत का दरवाजा जरूर खटखटाना चाहिए। यही तो लोकतंत्र की खूबी है और यहां तो सरकार हमारे साथ है। फिर हमें आगे बढ़ने में क्यों परेषान होने चाहिए। सरकार इसी तरह लोकहित में योजनाएं बनाती रहे, तो हमारा हौसला अफजाई होता रहेगा। शिक्षक बनकर अगर हम मिसाल न कायम कर पाये, तो फिर दूसरों को हम कैसे रास्ता दिखायेंगे। भारत के इस सोच में उसके सभी युवा दोस्त शामिल हैं। आज गांव में कोई भी अपने नाबालिग बच्चे की शादी करने से पहले सौ बार सोचता है। नाबालिग की शादी सिर्फ शादी भर नहीं है । बल्कि एक औरत और उसके पैदा होने वाले बच्चों के भविष्य का सवाल है। कमजोर और अविकसित मां एक कमजोर बच्चे को ही जन्म दे सकती है । आज गांव में मुख्यमंत्री के इस ऐतिहासिक कदम और इस अभियान की ख इस खूब चर्चे  हैं। सभी इस अभियान का स्वागत करते हैं, क्योंकि बाल विवाह की वजह से बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी । अब बच्चे स्कूल जाने लगे है और वे शादी-ब्याह के पचड़ों से मुक्त होकर स्वच्छंद रूप से पढ़ाई और अपने करियर पर ध्यान देते हैं। इससे स्कूलों में उपस्थिति बढ़ी है। सरकार का प्रोत्साहन भी इसमें मददगार साबित हो रहा है। लड़के समझने लगे हैं, कि पहले पढ़ाई पूरी कर अपने पैर पर खड़े हो जायेंगे, तो शादी के लिए लड़कियों की कमी नहीं होगी और शादी के बाद पत्नी को भी अच्छी जिंदगी दे पायेंगे। यह समझ अब हर गांववालों को आ गई है। मुख्यमंत्री भी बीच-बीच में इस अभियान के लाभ के बारे में प्रदेश की जनता को बताते रहते हैं। कानून तो पहले से ही था, लेकिन अभियान के माध्यम से लोगों में जागरूकता आई है
बालिग होने बाद विवाह शून्य करवाया

लाडो अभियान से केवल बालिकाएं ही नहीं, बल्कि कम उम्र केे बालक भी अपनी शादी को शून्य करवाने के लिए आगे आ रहे हैं।ष्इन्हीं में से एक है वर्तमान अतिथि शिक्षक भारत सिंह। भारत मंदसौर जिले के ग्राम नलखेड़ा तहसील शामगढ़ का  रहने वाला है। कुषाल सिंह राठौर एवं उनके बडे़ भाई ने भारत सिंह का विवाह मात्र 12 वर्ष की आयु में 2006 में कर दिया था।  तब भारत के लिए विवाह मात्र गुड्डे गुडि़यों का खेल था, लेकिन 2013-14 आते-आते उसे लाडो अभियान के प्रचार- प्रसार से बाल विवाह के दुष्परिणाम  में पता लगा। उसे यह भी पता चल चुका था, कि वह बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत विवाह को सक्षम न्यायालय से शून्य भी करवा सकता है। बस फिर क्या था, अब तो वह उस विवाह बंधन से मुक्त होने के लिए छटपटाने लगा।   अज्ञानता में जो कुछ उसके साथ हुआ था। वह उससे मुक्त होना चाहता था। वह इस रिष्ते केा मानने से भी इंकार करने लगा।  लाडो अभियान उसके लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आई थी। उत्साही भारत ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अपना बाल विवाह शून्य कराने के लिए अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत विवाह शून्यीकरण के लिए सक्षम न्यायालय में आवेदन दिया। लेकिन उसे इतनी आसानी से कहां न्याय मिलने वाला था। पहले तो न्यायालय ने उसके आवेदन को अधिनियम की धारा 3 (2) का हवाला देते हुए यह कहकर अमान्य कर दिया, कि इस धारा के अंतर्गत आवेदन किसी भी समय दी जा सकती है। न्यायालय ने कहा, बालक ने सशक्तिकरण विभाग को इसकी जानकारी दी और विभाग ने भी तत्परता से परामर्श सुविधा उपलब्ध कराते हुए पहले तो महिला के हितों के परिप्रेक्ष्य में विवाह संबंध को यथावत रखने का प्रयास किया। लेकिन  भारत के जिद के आगे किसी की नहीं चली। उसके अडिग इरादों को देखते हुए विभाग ने विधिक सहायता के माध्यम से भारत का प्रकरण पुनः सक्षम न्यायालय में बाल विवाह शून्य कराने के लिए प्रस्तुत किया और बार भारत को कामयाबी मिली। उसने इस कामयाबी का पूरा श्रेय महिला बाल विभाग को दिया। आज वह शासकीय विद्यालय में अतिथि शिक्षक के पद पर कार्य करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखा है। गर्व और आत्मविश्वास के साथ  वह कहता है,  कानून तो सबके लिए है । फिर हम क्यों पीछे रहे ।  हमें भी तो इन कुरीतियों का विरोध करना चाहिए। वरना इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। यह लड़की -लड़का दोनों की जिंदगी का सवाल है। किसी के साथ भी जाने-अनजाने में अगर नाइंसाफी हो जाये, तो उसे न्याय के लिए अदालत का दरवाजा जरूर खटखटाना चाहिए। यही तो लोकतंत्र की खूबी है और यहां तो सरकार हमारे साथ है। फिर हमें आगे बढ़ने में क्यों परेशान होने चाहिए। सरकार इसी तरह लोकहित में योजनाएं बनाती रहे, तो हमारा हौसला अफजाई होता रहेगा। शिक्षक बनकर अगर हम मिसाल न कायम कर पाये, तो फिर दूसरों को हम कैसे रास्ता दिखायेंगे। भारत के इस सोच में उसके सभी युवा दोस्त शामिल हैं। आज गांव में कोई भी अपने नाबालिग बच्चे की शादी करने से पहले सौ बार सोचता है। नाबालिग की शादी सिर्फ शादी भर नहीं है । बल्कि एक औरत और उसके पैदा होने वाले बच्चों के भविष्य का सवाल है। कमजोर और अविकसित मां एक कमजोर बच्चे को ही जन्म दे सकती है । आज गांव में मुख्यमंत्री के इस ऐतिहासिक कदम और इस अभियान की ख इस खूब चर्चे  हैं। सभी इस अभियान का स्वागत करते हैं, क्योंकि बाल विवाह की वजह से बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी । अब बच्चे स्कूल जाने लगे है और वे शादी-ब्याह के पचड़ों से मुक्त होकर स्वच्छंद रूप से पढ़ाई और अपने करियर पर ध्यान देते हैं। इससे स्कूलों में उपस्थिति बढ़ी है। सरकार का प्रोत्साहन भी इसमें मददगार साबित हो रहा है। लड़के समझने लगे हैं, कि पहले पढ़ाई पूरी कर अपने पैर पर खड़े हो जायेंगे, तो शादी के लिए लड़कियों की कमी नहीं होगी और शादी के बाद पत्नी को भी अच्छी जिंदगी दे पायेंगे। यह समझ अब हर गांव वालों को आ गई है। मुख्यमंत्री भी बीच-बीच में इस अभियान के लाभ के बारे में प्रदेश की जनता को बताते रहते हैं। कानून तो पहले से ही था, लेकिन अभियान के माध्यम से लोगों में जागरूकता आई है

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