कानून और अदालतों का राज समाप्त कर बुलडोजर की राजनीति कर रही सरकारें
रूबी सरकार
खरगोन में रामनवमी के दिन निकल रहे जुलूस में डीजे बजाए जाने को लेकर हुए विवाद के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और जमकर पत्थरबाजी हुई पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े तो वहीं पेट्रोल पंप का भी भरपूर उपयोग किया गया। कई घरों और दुकानों में भी आग लगा दी गई। सरकार ने दंगाइयों की संपत्ति को जमींदोज कर दिया। सुरक्षा के मद्देनजर खरगोन में चार भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी 15 डीएसपी सहित आर ए एफ की कंपनी और बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है। लेकिन यह केवल घटना नहीं है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल जो भाजपा और संघ का गढ़ माना जाता है। यहां तक कहां जाता है कि यह क्षेत्र संघ की प्रयोगशाला है। यहां . सितंबर 2021 में इंदौर के मुस्लिम बहुल बॉम्बे बाजार में मुस्लिम लिबास में दो लड़कियां एक आदमी के साथ देखी गईं। कुछ लोगों ने उन्हें रोका और उनसे पहचान पत्र दिखाने की मांग की। पहचान पत्र से पता चला कि वह लड़कियां हिंदू थीं, उनके साथ का पुरुष भी हिंदू था। इस बात को लेकर हंगामा हुआ था।
उसी तरह अगस्त 2021 में इंदौर इलाके में एक मुस्लिम लड़की और हिंदू लड़के में प्यार हो गया था। समाज के बंधनों के डर से दोनों भाग गए थे। इस घटना को सोशल मीडिया पर जोरदार ढंग से शेयर किया गया था। इस घटना को लेकर मुस्लिम समुदाय में बेहद नाराजगी थी। अगस्त 2021 में ही उत्तर प्रदेश के हरदोई के रहने वाला तस्लीम चूड़ियां बेचने के लिए इंदौर आया था। वह हिंदू नाम रखकर चूड़ियां बेचता था। इंदौर पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था वह व्यक्ति हिंदू नाम रखकर चूड़ियां बेचता था। मंत्री के मुताबिक चूड़ी बेचने वाले के पास से दो फर्जी आधार कार्ड भी मिले थे। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने पर खूब चर्चा हुई थी।
सन 2020 में महाकाल मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध उज्जैन में भी 25 दिसंबर को हिंदूवादी संगठनों की रैली के दौरान हिंसा हुई थी। 25 दिसंबर को भारतीय जनता युवा मोर्चा की रैली पर हुए पथराव के बाद 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। मुस्लिम पक्ष का आरोप था कि भारत माता मंदिर की तरफ जा रही रैली के दौरान हिंदूवादी युवाओं ने बेगमबाग के सामने रुककर हंगामा किया, खड़े वाहनों में तोड़फोड़ की। इसके बाद मुसलमान बस्ती के लोगों ने रैली पर पथराव किया।
दिसंबर 2020 में राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के लिए मंदसौर में रैली निकाली गई। आरोप लगे कि इस दौरान मुसलमानों के धार्मिक स्थल और घरों में तोड़फोड़ की गई। पुलिस ने इस संबंध में 9 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन्हें बाद में जमानत मिल गई थी।
मालवा क्षेत्र के तीन जिले उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में पिछले डेढ़-दो साल में सांप्रदायिक हिंसा की छोटी बड़ी 12 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। 2021 में इस तरह की सबसे पहली सांप्रदायिक हिंसा 25 दिसंबर को उज्जैन के बेगमबाग इलाके में हुई थी। 29 दिसंबर को इंदौर के चांदनखेड़ी और मंदसौर के डोराना गांव में रैली के दौरान माहौल खराब हुए। इंदौर के स्कीम 71 के सेक्टर-डी और राजगढ़ के जीरापुर में निकाली गई रैली में हालात बिगड़े। ये दोनों घटनाएं रैलियों के मुस्लिमों बहुल इलाकों से गुजरने के दौरान हुई।
इसके अलावा इंदौर में दक्षिणपंथी संगठनों की शिकायत पर मुनव्वर फारूकी नाम के एक स्टैंडअप कॉमेडियन को अरेस्ट किया गया। उन पर हिंदू देवी-देवताओं और गृहमंत्री अमित शाह का अपमान करने का आरोप था। हालांकि जांच में इसके कोई सबूत नहीं मिले।
दंगों के बीच कैराना की तलाश की जा रही
जानकार बताते हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए मालवा को कैराना बनाने की कोशिश की जा रही है। चुनाव में एक साल का वक्त है । लेकिन भाजपा का यह गढ़ सिलसिलेवार साम्प्रदायिक दंगे की चेपट में है। असल में खरगोन में दंगों के बीच कैराना की तलाश की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग बताते हैं कि सात करोड़ की आबादी वाले शांतिप्रिय मध्य प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर किसी कैराना की तलाश की जा रही है और मीडिया इस काम में विघटनकारी ताकतों की मदद कर रहा है ? साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील इंदौर के कुछ हिंदी अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर फोटो के साथ एक समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किया कि दंगा-प्रभावित खरगोन (इंदौर से 140 किलो मीटर) के बहुसंख्यक वर्ग के रहवासी इतनी दहशत में हैं कि वे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए अपने आवासों को बेचना चाहते हैं।अख़बारों ने खरगोन से कई परिवारों के पलायन का समाचार भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है।
अख़बारों ने खबर के साथ जो चित्र प्रकाशित किया उसमें सरकारी योजना के तहत बने मकान की दीवार पर ‘’यह मकान बिकाऊ है’’ की सूचना के साथ सम्पर्क के लिए एक मोबाइल नम्बर भी मोटे अक्षरों में प्रकाशित किया था ।दो प्रतिस्पर्धी अख़बारों ने एक ही मकान पर अंकित सूचना को सम्पर्क के लिए एक ही मोबाइल नम्बर के हवाले से दो अलग-अलग मालिकों के नामों और पतों की जानकारी से प्रकाशित किया ।मोबाइल नम्बर के प्रकाशन ने निश्चित ही देश भर के ख़रीददारों को बिकने के लिए उपलब्ध मकानों की सूचना और मध्य प्रदेश की ताजा साम्प्रदायिक स्थिति से अवगत करा दिया होगा।विवरण उसी खरगोन शहर के हालात का है जिसके जिले में देवी अहिल्याबाई होल्कर के जमाने की राजधानी महेश्वर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
वे तमाम लोग जो खरगोन से उठ रहे धुएँ के अलग-अलग रंगों का दूर से अध्ययन कर रहे हैं उन्हें एक नया मध्य प्रदेश आकार लेता नजर आ रहा है।एक ऐसा मध्य प्रदेश जिसकी अब तक की जानी-पहचानी भाषा और संस्कृति में ‘नेस्तनाबूत’ और ‘बुलडोजर’ जैसे नए-नए शब्द जुड़ रहे हैं।क़ानून और अदालतों का राज जैसे समाप्त करने की तैयारी चल रही हो।सत्ता में बैठे लोगों के मुंह से निकलने वाले शब्द ही जैसे क़ानून की शक्ल लेने वाले हों ! राजनेताओं और नौकरशाहों की बोलियाँ जनता को अपरिचित जान पड़ रही हैं।उन्हें लग रहा है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच की भौगोलिक सीमाएँ जैसे समाप्त हो गई हैं और दोनों राज्य एक दूसरे में समाहित हो गए हैं !
प्रदेश में तेजी से बदलते हुए साम्प्रदायिक घटनाक्रम को लेकर लोग चिंतित हैं और उन्हें डर लग रहा है कि विधान सभा चुनावों (2023) के पहले कहीं कोई कैराना मध्य प्रदेश में भी तो नहीं ढूंढा जा रहा है ! साल 2017 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले यूपी के कैराना से बहुसंख्यक वर्ग के लोगों के पलायन की खबरें जारी हुई थीं।हाल के यूपी विधान सभा चुनावों के पहले भी कैराना के साम्प्रदायिक भूत को जगा कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिशें की गई थीं।
अपराधी के साथ पूरा परिवार प्रताड़ित हो, यह कहां का न्याय है
जगत विजन पत्रिका की संपादक विजया पाठक बताती हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुल्डोजर अभियान को सफलता मिली। उसी सफलता को देखते हुए मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने साम्प्रदायिक दंगों की आड़ में बुल्डोजर अभियान शुरू किया है।
वे बुलडोजर चलाकर प्रदेश में विभिन्न घटनाओं को अंजाम दे रहे लोगों को नेस्तनाबूद करने का संकल्प ले चुके हैं। अपने इसी संकल्प को लेकर मुख्यमंत्री पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन चुके हैं। बड़ा सवाल यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बावजूद प्रदेश सरकार को बुलडोजर अभियान चलाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या प्रदेश सरकार को अपने कानून और पुलिस व्यवस्था से भरोसा उठ गया है? या फिर यूं कहे कि प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की कार्यशैली पर मुख्यमंत्री को अब बिल्कुल भरोसा नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री ने अब खुद अपने हाथ में बुल्डोजर अभियान लिया है।
प्रशासन का गुंडों, माफियाओं पर डर होना ही चाहिए। पर इसका मतलब यह नहीं की आप उनके घर पर ही बुलडोजर चलवा दो। एक परिवार में एक आदमी गलत हो सकता है पर उसकी सजा पूरा परिवार क्यों भुगते? मुझे तो आश्चर्य हो रहा है देश की माननीय अदालतों ने भी इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया। अगर सिर्फ अपराधी होने के कारण किसी का घर जमींदोज होता है तो भारत में संविधान को ही खत्म कर देना चाहिए। अगर विधायिका का काम कार्यपालिका ही कर दे तो यह सीधे-सीधे प्रशासनिक असफलता की ओर इशारा करती है। अपराधी व्यक्ति के साथ पूरे परिवार को सजा देना तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा तो हो ही नहीं सकता। अगर आपको कार्यवाही ही करना है तो आपकी कैबिनेट के नकारा मंत्रियों पर कीजिए। प्रशासन के नकारा अधिकारियों पर कीजिए, जो समय रहते स्थितियों को नहीं संभाल पाए।
सजा का हक सिर्फ अदालत को
अगर सत्ता पक्ष खुद बुलडोजर चलाकर बिना अदालतों के फैसले देने लग जाए और उसका अदालत, मीडिया और जनता विरोध नहीं करेंगे तो वो दिन दूर नहीं, जब सत्ता पक्ष तानाशाही की राह पर चल देगा। इसलिए जब भी कोई जुर्म हो, जुर्म करने वाले का अदालत के जरिए ही फैसला होना चाहिए। अगर संपत्ति गिराने का अंतिम आदेश जारी हो चुका है, तो प्रशासन को अधिकतम 40 दिनों के अंदर संपत्ति को गिराना होगा। संपत्ति गिराने का आदेश उस संपत्ति के मालिक को अपना पक्ष रखने का एक अच्छा मौका दिए बिना जारी नहीं किया जा सकता।
शरारती तत्वों को सत्तारूढ़ दल का संरक्षण!
भाकपा के रूद्रपाल यादव व माकपा के केसीएल सर्रावत का कहना है कि प्रदेश के सबसे शांत मालवा अंचल में सुनियोजित तरीके से साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिश की जा रही है। रूद्रपाल ने कहा कि असल में आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ तत्व जिन्हें सत्तारूढ़ दल का संरक्षण मिला है, वह इलाके की शांति भंग करने का प्रयास कर रहे हैं जिसे सख्ती से रोका जाना चाहिए। इन नेताओं ने पुलिस कमिश्नर को एक ज्ञापन भी सौंपा है जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों को आयोजन की अनुमति देते समय कई शर्ते लगाई जाती है। वहीं धार्मिक आयोजनों के नाम पर कोई रोक नहीं होने से वे अल्पसंख्यक बस्तियों और धर्म स्थलों के सामने जाकर बड़े-बड़े डीजे से शोर करते हैं और हथियार लहरा लहरा कर धमकाने की कोशिश करते हैं । खरगोन की घटना भी ऐसी ही उत्तेजना फैलाने की कोशिश का परिणाम है ।
वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया कहते हैं कि अनेक साम्प्रदायिक दंगों की जड़ में तथाकथित धार्मिक जुलूस ही रहे हैं। इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्होंने दर्जनों साम्प्रदायिक दंगों के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा कि धार्मिक संस्थाओं द्वारा जुलूस निकाले जाते है , जिसका मार्ग भी निर्धारित किया जाता है, परंतु यकायक जुलूस का रास्ता बदल दिया जाता है और जुलूस संवेदनशील इलाकों में प्रवेश करता है। जिसके भड़काऊ नारे के कारण पत्थरबाजी जैसी घटनाएं होती है।
दरअसल मध्य प्रदेश की राजनीति में कहा जाता है कि मालवा-निमाड़ में जिस दल के ज्यादा विधायक होते हैं , प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है।
वे तमाम लोग जो खरगोन से उठ रहे धुएँ के अलग-अलग रंगों का दूर से अध्ययन कर रहे हैं उन्हें एक नया मध्य प्रदेश आकार लेता नजर आ रहा है।एक ऐसा मध्य प्रदेश जिसकी अब तक की जानी-पहचानी भाषा और संस्कृति में ‘नेस्तनाबूत’ और ‘बुलडोजर’ जैसे नए-नए शब्द जुड़ रहे हैं।क़ानून और अदालतों का राज जैसे समाप्त करने की तैयारी चल रही हो।सत्ता में बैठे लोगों के मुंह से निकलने वाले शब्द ही जैसे क़ानून की शक्ल लेने वाले हों ! राजनेताओं और नौकरशाहों की बोलियाँ जनता को अपरिचित जान पड़ रही हैं।उन्हें लग रहा है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच की भौगोलिक सीमाएँ जैसे समाप्त हो गई हैं और दोनों राज्य एक दूसरे में समाहित हो गए हैं !
प्रदेश में तेजी से बदलते हुए साम्प्रदायिक घटनाक्रम को लेकर लोग चिंतित हैं और उन्हें डर लग रहा है कि विधान सभा चुनावों (2023) के पहले कहीं कोई कैराना मध्य प्रदेश में भी तो नहीं ढूंढा जा रहा है ! साल 2017 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले यूपी के कैराना से बहुसंख्यक वर्ग के लोगों के पलायन की खबरें जारी हुई थीं।हाल के यूपी विधान सभा चुनावों के पहले भी कैराना के साम्प्रदायिक भूत को जगा कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिशें की गई थीं।
अपराधी के साथ पूरा परिवार प्रताड़ित हो, यह कहां का न्याय है
जगत विजन पत्रिका की संपादक विजया पाठक बताती हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुल्डोजर अभियान को सफलता मिली। उसी सफलता को देखते हुए मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने साम्प्रदायिक दंगों की आड़ में बुल्डोजर अभियान शुरू किया है।
वे बुलडोजर चलाकर प्रदेश में विभिन्न घटनाओं को अंजाम दे रहे लोगों को नेस्तनाबूद करने का संकल्प ले चुके हैं। अपने इसी संकल्प को लेकर मुख्यमंत्री पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन चुके हैं। बड़ा सवाल यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बावजूद प्रदेश सरकार को बुलडोजर अभियान चलाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या प्रदेश सरकार को अपने कानून और पुलिस व्यवस्था से भरोसा उठ गया है? या फिर यूं कहे कि प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की कार्यशैली पर मुख्यमंत्री को अब बिल्कुल भरोसा नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री ने अब खुद अपने हाथ में बुल्डोजर अभियान लिया है।
प्रशासन का गुंडों, माफियाओं पर डर होना ही चाहिए। पर इसका मतलब यह नहीं की आप उनके घर पर ही बुलडोजर चलवा दो। एक परिवार में एक आदमी गलत हो सकता है पर उसकी सजा पूरा परिवार क्यों भुगते? मुझे तो आश्चर्य हो रहा है देश की माननीय अदालतों ने भी इस मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया। अगर सिर्फ अपराधी होने के कारण किसी का घर जमींदोज होता है तो भारत में संविधान को ही खत्म कर देना चाहिए। अगर विधायिका का काम कार्यपालिका ही कर दे तो यह सीधे-सीधे प्रशासनिक असफलता की ओर इशारा करती है। अपराधी व्यक्ति के साथ पूरे परिवार को सजा देना तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा तो हो ही नहीं सकता। अगर आपको कार्यवाही ही करना है तो आपकी कैबिनेट के नकारा मंत्रियों पर कीजिए। प्रशासन के नकारा अधिकारियों पर कीजिए, जो समय रहते स्थितियों को नहीं संभाल पाए।
सजा का हक सिर्फ अदालत को
अगर सत्ता पक्ष खुद बुलडोजर चलाकर बिना अदालतों के फैसले देने लग जाए और उसका अदालत, मीडिया और जनता विरोध नहीं करेंगे तो वो दिन दूर नहीं, जब सत्ता पक्ष तानाशाही की राह पर चल देगा। इसलिए जब भी कोई जुर्म हो, जुर्म करने वाले का अदालत के जरिए ही फैसला होना चाहिए। अगर संपत्ति गिराने का अंतिम आदेश जारी हो चुका है, तो प्रशासन को अधिकतम 40 दिनों के अंदर संपत्ति को गिराना होगा। संपत्ति गिराने का आदेश उस संपत्ति के मालिक को अपना पक्ष रखने का एक अच्छा मौका दिए बिना जारी नहीं किया जा सकता।
शरारती तत्वों को सत्तारूढ़ दल का संरक्षण!
भाकपा के रूद्रपाल यादव व माकपा के केसीएल सर्रावत का कहना है कि प्रदेश के सबसे शांत मालवा अंचल में सुनियोजित तरीके से साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिश की जा रही है। रूद्रपाल ने कहा कि असल में आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ तत्व जिन्हें सत्तारूढ़ दल का संरक्षण मिला है, वह इलाके की शांति भंग करने का प्रयास कर रहे हैं जिसे सख्ती से रोका जाना चाहिए। इन नेताओं ने पुलिस कमिश्नर को एक ज्ञापन भी सौंपा है जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों को आयोजन की अनुमति देते समय कई शर्ते लगाई जाती है। वहीं धार्मिक आयोजनों के नाम पर कोई रोक नहीं होने से वे अल्पसंख्यक बस्तियों और धर्म स्थलों के सामने जाकर बड़े-बड़े डीजे से शोर करते हैं और हथियार लहरा लहरा कर धमकाने की कोशिश करते हैं । खरगोन की घटना भी ऐसी ही उत्तेजना फैलाने की कोशिश का परिणाम है ।
वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया कहते हैं कि अनेक साम्प्रदायिक दंगों की जड़ में तथाकथित धार्मिक जुलूस ही रहे हैं। इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्होंने दर्जनों साम्प्रदायिक दंगों के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा कि धार्मिक संस्थाओं द्वारा जुलूस निकाले जाते है , जिसका मार्ग भी निर्धारित किया जाता है, परंतु यकायक जुलूस का रास्ता बदल दिया जाता है और जुलूस संवेदनशील इलाकों में प्रवेश करता है। जिसके भड़काऊ नारे के कारण पत्थरबाजी जैसी घटनाएं होती है।
दरअसल मध्य प्रदेश की राजनीति में कहा जाता है कि मालवा-निमाड़ में जिस दल के ज्यादा विधायक होते हैं , प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है।
बुलडोज़र की राजनीति पर चलता लोकतंत्र, क्या कानून और अदालतों का राज समाप्त हो गया है?
16 Apr 2022
https://hindi.newsclick.in/Buldojar-politics-in-India-BJP-state-governments-Muslim-Hindu-riots
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